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गाजीपुर जिले के कई इलाकों में पंद्रह दिन तक शूट हुई ये भोजपुरी फिल्म, देखें तस्वीरें

भोजपुरी सिनेमा का खोया गौरव लौटाएगी फिल्म ‘कवन कसूर’? एक लंबे अंतराल के बाद गाजीपुर जनपद और खासतौर पर मुहम्मदाबाद तहसील में किसी फिल्म की शूटिंग हुई। किसी फिल्म की संपूर्ण कहानी की जनपद में शूटिंग का तो यह बिल्कुल पहला वाकया था। विगत 8 दिसंबर से 23 दिसंबर तक जनपद के कुंडेसर, बीरपुर, महरूपुर, खरडीहा, खालिसपुर और खुरपी नेचर विलेज में चली शूटिंग में फिल्म के चार गानों के साथ-साथ पूरी कहानी की शूटिंग संपन्न हुई।

इस फिल्म की शूटिंग के दौरान स्थानीय नागरिकों का उत्साह इस कदर था कि मुंबई से आई यूनिट को सुरक्षा व्यवस्था के लिए पुलिस से कोई सहयोग नहीं लेना पड़ा। कुंडेसर एवं बीरपुर के स्थानीय नागरिकों ने स्वयं इस जिम्मेदारी को बखूबी निभाया और फिल्म की शूटिंग को शांतिपूर्वक बिना किसी व्यवधान के संपन्न कराया। हालांकि फिल्म में विभिन्न किरदार निभाने वाले सुशील सिंह, ललितेश झा, गुंजन पंत, सोनालिका प्रसाद, राज सिंह, नीलम पांडेय एवं धीरज पंडित जैसे कलाकारों की एक झलक पाने एवं उनके साथ तस्वीर खिंचवाने के लिए नौजवानों की भीड़ लगातार उमड़ती रही लेकिन इसके बावजूद फिल्म की शूटिंग में कोई अड़चन नहीं आई।

मुंबई से आए कलाकारों एवं टेक्नीशियन्स के लिए बेहद सुखद अनुभव था। फिल्म के निर्माता-निर्देशक एवं लेखक के मुताबिक पूरी यूनिट गाजीपुर जनपद से एक बेहद खुशनुमा अनुभव लेकर गई है। निश्चित रूप से भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री में इससे एक सुखद संदेश जाएगा और अन्य फिल्म निर्माता भी अपनी फिल्म की शूटिंग के लिए जनपद के इस अंचल का रुख करेंगे। इससे स्थानीय कलाकारों को तो प्रोत्साहन मिलेगा ही साथ ही साथ नौजवानों को रोजगार भी मिलेगा।

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‘कवन कसूर’ फिल्म की पटकथा गाजीपुर जनपद के खरडीहा गांव से ताल्लुक रखने वाले राधेश्याम राय ने लिखी है। जिसका निर्देशन उन्होंने अपने मित्र एवं सहयोगी शिवराज देवल के साथ मिलकर किया है। फिल्म के निर्माता जयंत मीडिया प्राइवेट लिमिटेड एवं बनारस टाकीज हैं।

फिल्म के लेखक निर्देशक राधेश्याम राय ने जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय (जेएनयू) से सिनेमा और साहित्य के तुलनात्मक अध्ययन पर शोध करने के बाद मुंबई में बतौर पटकथा लेखक और सहायक निर्देशक अपने करियर की शुरुआत की थी। मुंबई में कहानी घर घर की, कुमकुम, आती रहेंगी बहारें, बाबुल की दुआएं लेती जा, इंतजार और सही, शगुन, कौन अपना कौन पराया जैसे दर्जनों धारावाहिक के लिए पटकथा लिखने के साथ-साथ राधेश्याम राय ने आतिश कापड़िया, रत्ना सिन्हा, विपुल शाह एवं समीर चंदा के साथ बतौर सहायक निर्देशक कार्य किया। इसी दौरान सन् 2004 में फिल्म ‘कवन कसूर’ की पटकथा भी तैयार हो गई। लेकिन लगातार बदलती परिस्थितियों में इस फिल्म का निर्माण टलता रहा। लेकिन जयंत मीडिया प्राइवेट लिमिटेड के रजत तिवारी एवं रुद्र तिवारी के सहयोग एवं प्रोत्साहन से इस फिल्म ने आखिरकार पन्ने से पर्दे तक की यात्रा शुरू कर ही दी। फिल्म के निर्माता पहली बार किसी फिल्म का निर्माण कर रहे हैं लेकिन उनका बेहतरीन प्रबंधन, कलाकारों एवं पटकथा का चुनाव ये दर्शाता है कि ये निर्माता फिल्म इंडस्ट्री में एक लंबी पारी खेलने के लिए आए हैं, अपने प्रोडक्शन की शुरुआत भले ही उन्होंने भोजपुरी सिनेमा से की है।

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बतौर लेखक निर्देशक करियर की शुरुआत भोजपुरी फिल्म से ही क्यों ? इस प्रश्न के जवाब में राधेश्याम राय का कहना है कि भोजपुरी सिनेमा की एक बेहद गौरवशाली परंपरा रही है। लेकिन दुर्भाग्य से विगत दशकों से भोजपुरी भाषा एवं संस्कृति को बाजार के समीकरणों के तहत जानबूझकर मलिन किया गया है। अन्य भाषाओं में अच्छा और बुरा दोनों तरह का सिनेमा मौजूद है लेकिन दुर्भाग्य से भोजपुरी में आज के दौर में ऐसा नहीं है। भोजपुरी सिनेमा में अश्लील गाने, दो-अर्थी संवाद एवं हिंदी सिनेमा की घिसी-पिटी कहानियों की भोंडी नकल की भरमार है। नतीजतन भोजपुरीभाषी लोगों का एक तबका इन फिल्मों को देखता तो जरूर है लेकिन खुद को इसकी कहानी से कनेक्ट नहीं कर पाता और फिल्म को देखने के बाद खुद को ठगा हुआ सा महसूस करता है। लेकिन भोजपुरी सिनेमा के साथ सबसे बड़ी त्रासदी इसकी पहचान का कलंकित होना है।

मुंबई में फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े लोगों की नजर में भोजपुरी सिनेमा की हैसियत हिंदी ‘सी ग्रेड’ सिनेमा से ज्यादा नहीं है। इसकी वजह से न तो अच्छे कलाकार भोजपुरी सिनेमा में काम करना चाहते हैं और न ही अच्छे म्यूजिशियन्स और टेक्नीशियन्स। ऐसे दौर में आलोचनाएं तो लगातार हो रही हैं लेकिन आगे बढ़कर कोई पहल नहीं कर रहा है। पहल करने वाले को इसमें जोखिम नजर आता है कि कहीं उनकी खुद की पहचान ही धुमिल न हो जाए, जबकि ढेर सारे लेखक निर्देशक एवं निर्माता भोजपुरी भाषी क्षेत्र से आते हैं। ऐसे में आगे बढ़कर पहल करना जरूरी है। हो सकता है व्यावसायिक रूप से इसमें जोखिम हो भी लेकिन समाज के हित में ये जोखिम जरूरी है। शायद इसी से एक नई राह निकले और दूर से तमाशा देख रहे लोग भी इस मुहिम में कूदें और भोजपुरी सिनेमा का वर्तमान और भविष्य संवरे।

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बतौर लेखक ‘कवन कसूर’ की कहानी भोजपुरी अंचल से जुड़ी हुई है। कहानी दो परिवारों की मित्रता की है जो इस मित्रता को रिश्ते में बदलना चाहते हैं लेकिन कुछ अनचाही परिस्थितियों की वजह से इस रिश्ते में दरार आ जाती है और नौबत जानलेवा दुश्मनी तक पहुंचती है। लेकिन परिवार के एक किरदार के त्याग की वजह से न सिर्फ सिर्फ ये रिश्ता बच जाता है बल्कि कई सारी भ्रांतियों को भी दूर कर जाता है। फिल्म का संगीत हर्षराज हर्ष ने दिया है जबकि इसके गीत परशुराम केसरी ने लिखे हैं। फिल्म से जुड़े लोगों की मानें तो इस फिल्म का संगीत धूम मचा देगा। लंबे समय बाद भोजपुरी सिनेमा में इस तरह का संगीत सुनने को मिलेगा। तकनीकी रूप से फिल्म के लुक और फील पर गंभीर काम किया गया है। फिल्म में बतौर कैमरामैन जहां अशोक सरोज ने बेहतरीन काम किया है वहीं सरोज खान के सहयोगी रह चुके विक्की खान ने गानों की कोरियोग्राफी की है। नपे-तुले शब्दों में कहा जाय तो इस फिल्म को हिंदी सिनेमा के पैटर्न पर बनाया गया है जो इस सिनेमा के दर्शकों के लिए एक नया एहसास होगा।

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