Connect with us

Hi, what are you looking for?

सियासत

बीजेपी के ‘मिशन 2024’ में जीत की गारंटी बनेगा ‘समान नागरिक संहिता’ कानून !

अजय कुमार-

सुप्रीम कोर्ट और कई हाईकोर्ट काफी समय से अपने तमाम फैसलों के दौरान केंद्र सरकार से समान नागरिक संहिता लाने के लिए कह रहा था। यह बात तो सबको पता थी,लेकिन केन्द्र कानून बनाने की राह क्यों नहीं पकड़ रही थी,यह बात कम ही लोगोें को समझ में आ रही थी। परंतु राज्यसभा में भाजपा के एक वरिष्ठ सांसद की ओर से निजी स्तर पर समान नागरिक संहिता विधेयक(यूसीसी) प्रस्तुत करके समान नागरिक संहिता पर गरम बहस छेड़ दी है।यूसीसी का राज्यसभा में जैसा विरोध हुआ, उसका औचित्य समझना कठिन है,क्योंकि हमारे संविधान में भी समान नागरिक संहिता को आवश्यक बताया गया था।। इसके बाद भी यूसीसी का विरोध यही बताता है कि विपक्षी दल समान नागरिक संहिता पर बहस करने के लिए भी तैयार नहीं। आखिर जिस समान नागरिक संहिता का उल्लेख संविधान के नीति निर्देशक तत्वों में है, उस पर संसद में बहस क्यों नहीं हो सकती और वह भी तब, जब निजी विधेयक पेश करने की एक परंपरा है? यह हास्यास्पद है कि कई विपक्षी सांसदों ने समान नागरिक संहिता विधेयक पेश करने की पहल को संविधान विरोधी बता दिया। इसे अंधविरोध और कुतर्क के अतिरिक्त और कुछ नहीं कहा जा सकता।

Advertisement. Scroll to continue reading.

भाजपा के राज्यसभा सांसद किरोड़ी लाल मीणा ने 09 दिसंबर 2022 को राज्यसभा में प्राइवेट मैम्बर के तौर पर यूनिफॉर्म सिविल कोड (समान नागरिक संहिता) का प्रस्ताव पेश किया। यानी राज्यसभा में यह विधेयक सरकार द्वारा पेश नहीं किया गया है। बल्कि सांसद द्वारा इस प्रस्ताव को पेश किया गया था। राज्यसभा में एक निजी सदस्य विधेयक के रूप में यूनिफॉर्म सिविल कोड (यूसीसी) विधेयक पेश किए जाने के बाद भाजपा के रुख ने संकेत दिया है कि उनके सांसद किरोड़ी लाल मीणा ने जो बिल पेश किया उसका पार्टी मौन समर्थन है।

राजनीति के जानकार कहते है कि बीजेपी की नजर 2024 के आम चुनाव पर है और सदन के नेता पीयूष गोयल ने इस मुद्दे पर बोलते हुए कहा भी था कि यह सदस्य का वैध अधिकार है। उच्च सदन के कई सदस्यों ने स्वीकार किया है कि सत्ता पक्ष अवसर की तलाश कर रहा है और जब सदन में विपक्ष की संख्या कम थी तब विधेयक पेश किया गया। सूत्रों ने कहा कि कांग्रेस कुछ सदस्यों को छोड़कर अनुपस्थित थी और संकेत दिया कि हो सकता है कि कांग्रेस बिल का विरोध नहीं करना चाहती हो।संविधान के नीति निर्देशक तत्वों के तहत अनुच्छेद 44 बनाकर उसमें कहा भी गया है कि सरकार आगे चलकर समान नागरिक संहिता लागू करने की दिशा में काम करेगी, लेकिन मीणा की तरफ से लाए गए समान नागरिक संहिता बिल का विपक्षी दलों ने विरोध शुरू कर दिया है। कांग्रेस, सपा और ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस ज्डब् ने बिल के खिलाफ आवाज उठाई, हालांकि बिल पेश करने की राह में वे रोड़े नहीं अटका सके।

Advertisement. Scroll to continue reading.

उल्लेखनीय है कि कई चुनावों में यूसीसी भाजपा के घोषणापत्र में रहा है। जबकि निजी सदस्य का बिल 2020 से लंबित था, लेकिन पेश नहीं किया गया था। यूसीजी नागरिकों के व्यक्तिगत कानूनों को बनाने और लागू करने के लिए एक प्रस्तावित कानून है, जो सभी नागरिकों पर उनके धर्म, लिंग या यौन अभिविन्यास की परवाह किए बिना लागू होगा।दरअसल, उत्तराखंड की भाजपा सरकार ने यूसीसी के कार्यान्वयन की जांच के लिए एक समिति का गठन किया है और गुजरात के मनोनीत मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल भी यूसीसी के पक्ष में अपनी हामी पहले जाहिर कर चुके हैं। वहीं, हिमाचल प्रदेश में भी भाजपा ने अपने घोषणापत्र में यूसीसी के कार्यान्वयन को सूचीबद्ध किया था, लेकिन पार्टी को राज्य में संपन्न हुए विधानसभा चुनाव में हार का सामना करना पड़ा। उत्तराखंड सरकार ने उत्तराखंड के निवासियों के निजी दीवानी मामलों को विनियमित करने वाले संबंधित कानूनों की जांच करने और कानून का मसौदा तैयार करने के लिए विशेषज्ञों की एक समिति गठित की है। इसके तहत वर्तमान में प्रचलित कानूनों में संशोधन व सुझाव उपलब्ध कराना। साथ ही राज्य में विवाह, तलाक के संबंध में वर्तमान में प्रचलित कानूनों में एकरूपता लाने का मसौदा बनाना। राज्य में समान नागरिक संहिता के लिए मसौदा तैयार करना शामिल है।

बता दें कि विपक्ष के विरोध के बीच समान नागरिक संहिता विधेयक निजी सदस्य द्वारा 09 दिसंबर 2022 को राज्यसभा में पेश किया गया। कुल 63 सदस्यों ने विधेयक के पक्ष में मतदान किया, जबकि 23 मत इसके विरोध में पड़े। कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल और द्रमुक ने विरोध प्रदर्शन किया, जबकि बीजू जनता दल ने सदन से वॉक आउट कर दिया। यह ठीक है कि निजी विधेयक मुश्किल से ही कानून का रूप लेते हैं और हाल के इतिहास में तो किसी भी ऐसे विधेयक को संसद की मंजूरी नहीं मिली है, लेकिन किसी भी सांसद को निजी स्तर पर विधेयक पेश करने का अधिकार है। जब ऐसे विधेयकों पर संसद में चर्चा होती है तो देश का ध्यान संबंधित विषय की ओर आकर्षित होता है और उस पर विचार-विमर्श की प्रक्रिया तेज होती है। यदि भाजपा सांसद किरोड़ीमल मीणा के निजी विधेयक के जरिये यह काम होता है तो इससे किसी को परेशानी क्यों होनी चाहिए?

Advertisement. Scroll to continue reading.

निजी स्तर पर पेश किए गए समान नागरिक संहिता विधेयक पर राज्यसभा में व्यापक बहस इसलिए होनी चाहिए, क्योंकि कई राज्य सरकारें इस संहिता के निर्माण की दिशा में सक्रिय हैं। जहां उत्तराखंड ने इसे लेकर एक समिति गठित कर दी है और उसने अपना काम शुरू कर दिया है, वहीं गुजरात सरकार ने भी चुनाव में जाने के पहले ऐसा करने का वादा किया था। इसके अलावा मध्य प्रदेश सरकार ने भी समान नागरिक संहिता के निर्माण की आवश्यकता जताई है। इन स्थितियों में आवश्यक केवल यह नहीं कि संसद में समान नागरिक संहिता को लेकर विस्तार से बहस हो, बल्कि यह भी है कि केंद्र सरकार इस संहिता का कोई मसौदा सामने लाए, जिससे आम जनता के बीच भी विचार-विमर्श की प्रक्रिया आगे बढ़े। जब ऐसा होगा तो समान नागरिक संहिता को लेकर दुष्प्रचार की जो राजनीति हो रही है, उसकी काट करने में मदद मिलेगी। यह दुष्प्रचार वोट बैंक की राजनीति के तहत और साथ ही अल्पसंख्यक समुदायों, खास तौर पर मुस्लिम समुदाय को भ्रमित करने के शरारतपूर्ण इरादे से हो रहा है। इसका पता विपक्षी सांसदों के इस तरह के थोथे बयानों से चलता है कि समान नागरिक संहिता के निर्माण की दिशा में आगे बढ़ने से विविधता की संस्कृति को क्षति पहुंचेगी। यह निरा झूठ है, क्योंकि यह संहिता तो विविधता में एकता के भाव को बल देगी। इसके साथ ही इससे राष्ट्रीय एकता को भी बल मिलेगा।

उधर,ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने समान नागरिक संहिता विधेयक को एक प्राइवेट बिल के तौर पर राज्यसभा में पेश किए जाने को निराशाजनक कदम बताया है। बोर्ड ने इस कदम को देश की एकता और अखंडता को नुकसान पहुंचाने की कोशिश बताया है।बोर्ड के महासचिव खालिद सैफुल्लाह रहमानी ने कहा है कि देश के संविधान का निर्माण करने वालों ने बहुत ही सोच समझ कर संविधान बनाया था। संविधान में हर वर्ग को अपने धर्म और अपनी संस्कृति के अनुसार जिंदगी गुजारने की इजाजत दी गई है। इसी सिद्धांत पर केंद्र सरकार ने आदिवासियों से समझौता भी किया था ताकि वह पूरे देश में अपनी विशेष पहचान के साथ इस देश के नागरिक बनकर रह सकें। उन्हें भरोसा दिलाया गया था कि इनको कभी भी उनकी भाषा एवं संस्कृति से रोकने की कोशिश नहीं की जाएगी। इसी भरोसे के तहत देश में मुसलमान, ईसाई, पारसी और अन्य धार्मिक ग्रुप अपने-अपने पर्सनल लौ के साथ जिंदगी गुजार रहे हैं। अब इन सब पर समान नागरिक संहिता लागू करने का कोई फायदा तो नहीं होगा लेकिन इससे देश को नुकसान हो सकता है। इससे हमारे देश की राष्ट्रीय एकता और अखंडता प्रभावित हो सकती है। इसलिए सरकार को चाहिए कि वह देश की ज्वलंत समस्याओं पर अपना ध्यान केंद्रित करे। ऐसी बातों से बचे जो फायदे के बजाय नफरत पैदा करने वाली हों।बोर्ड महासचिव खालिद सैफुल्लाह ने कहा कि भारत जैसा देश जहां दुनिया के सबसे ज्यादा आबादी बसती है और जो ढेर सारे धार्मिक और सांस्कृतिक ग्रुपों का संगम है, वहां समान नागरिक संहिता बिल्कुल भी सही नहीं है बल्कि यह नुकसानदेह साबित होगा।

Advertisement. Scroll to continue reading.

बता दें कि सुप्रीम कोर्ट और कई हाईकोर्ट ने पहले अपने फैसलों के दौरान केंद्र सरकार से समान नागरिक संहिता लाने के लिए कहा भी है। इसके अलावा उत्तराखंड, कर्नाटक और गुजरात सरकार ने इसे लागू करने के लिए रिटायर्ड जजों की अध्यक्षता में कमेटियां भी बनाई हैं। कांग्रेस और कई विपक्षी दल समान नागरिक संहिता लागू करने का विरोध कर रहे हैं। जबकि, बीजेपी हर बार इसे चुनावी एजेंडे में शामिल करती है। ऐसे में माना जा रहा है कि समान नागरिक संहिता पर संसद में पेश प्राइवेट मेंबर बिल को मोदी सरकार और बीजेपी की तरफ से समर्थन मिल सकता है। हालांकि, इसे दो-तिहाई बहुमत से दोनों जगह पास कराना होगा। लोकसभा में ऐसा समर्थन तो मिल जाएगा, लेकिन राज्यसभा में बिल को पास कराने के लिए कई विपक्षी दलों की मदद लेनी होगी।

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement