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उत्तर प्रदेश

यूपी-यूके-बिहार की 125 सीटों के लिए बीजेपी का ‘मेगाप्लान’ तैयार!

अजय कुमार, लखनऊ

भारतीय जनता पार्टी अन्य राज्यों से इत्तर उत्तर प्रदेश,उत्तराखंड(यूके) और बिहार में अलग तरह से राजनैतिक पिच तैयार करने में लगी है.बीजेपी द्वारा उत्तर प्रदेश की 80 सीटें जीतने के लिए यूपी को भगवा कर दिया गया है. अयोध्या में रामलला की जन्मभूमि पर बने भव्य राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा के कार्यक्रम की गूंज देश-विदेश सहित सियासी मोर्चा पर भी सुनाई दी तो वाराणसी के ज्ञानवापी तहखाने में जिला अदालत के आदेश के बाद पूजा अर्चना शुरू हो गई है. मथुरा में श्री कृष्ण जन्मभूमि का विवाद भी सरकार की इच्छाशक्ति के चलते जल्द सुलझता नजर आ रहा है.

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यह सब घटनाक्रम बीजेपी की मौजूदा राजनीति और चुनावी टाइमिंग के हिसाब से काफी महत्वपूर्ण है.वैसे भी चुनावों के समय बीजेपी को कौन सा मुद्दा उठाना है और कौन सा छोड़ना है?इसमें बीजेपी और पीएम मोदी को महारथ हासिल है. अयोध्या में राम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा बाद उत्तर प्रदेश विधान सभा के बजट सत्र के दौरान भी प्रभु श्रीराम का नाम खूब गूंजा. सत्ता पक्ष ने विधान सभा में श्रीराम जन्मभूमि पर राम मंदिर निर्माण के लिये पीएम मोदी और सीएम योगी को बधाई संदेश देकर अयोध्या मुद्दे पर समाजवादी पार्टी में दो फाड़ ही कर दिये.

समाजवादी पार्टी को प्रभु श्रीराम के मंदिर पर सियासत करना लोकतंत्र के मंदिर में उस समय भारी पड़ गया, जब सपा के विधायकों ने विधान सभा के भीतर हाथ उठाकर मोदी-योगी के लिए बधाई संदेश का समर्थन कर दिया. मात्र 14 विधायकों ने ही इसका विरोध किया. बसपा के भी एकमात्र विधायक उमाशंकर भी बधाई संदेश का समर्थन करते दिखे. कुल मिलाकर बीजेपी और योगी सरकार लोकसभा चुनाव से पहले यूपी को पूरी तरह से भगवामय कर देना चाहती है.ताकि हिन्दू वोटरों को एकजुट किया जा सके. यदि ऐसा हो जाता है तो समाजवादी पार्टी सहित कांग्रेस और बसपा के लिये भी आम चुनाव चुनौती साबित हो सकते हैं. भाजपा अबकी से सभी 80 सीटें जीतने का दावा कर रही है.

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2019 में हुए लोकसभा चुनाव में यूपी की 80 सीटों पर हुए चुनाव में एनडीए ने बड़ी जीत दर्ज की थी. इस चुनाव में एनडीए में बीजेपी और अपना दल (एस) एक साथ मिलकर लड़े थे और एनडीए का 51.19 प्रतिशत वोट शेयर रहा था. जिसमें बीजेपी के खाते में 49.98 प्रतिशत और अपना दल (एस) को 1.21 प्रतिशत वोट शेयर मिला था. वहीं महगठबंधन (बहुजन समाज पार्टी, समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल) को 39.23 प्रतिशत वोट शेयर मिला था. जिसमें बसपा को 19.43 प्रतिशत, सपा को 18.11 प्रतिशत और रालोद को 1.69 प्रतिशत वोट मिला था. इसके अलावा कांग्रेस को इस चुनाव में 6.36 वोट शेयर मिला था. बात सीटों की कि जाये तो बीजेपी को 62, अपना दल (एस) को दोख् बीएसपी को 10, सपा को पांच और कांग्रेस को एक सीट पर जीत हासिल हुई थी.

साल 2019 में हुए चुनाव के बाद यूपी की तीन सीटों पर उपचुनाव हुए थे, जिसमें रामपुर, आजमगढ़ और मैनपुरी लोकसभा सीट शामिल रहीं. रामपुर में सपा नेता आजम खान ने लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था, जिसके बाद इस सीट पर उपचुनाव हुआ था. आजम का गढ़ कहे जाने वाले रामपुर में बीजेपी ने उपचुनाव में जीत दर्ज की थी. इसके अलावा सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव के इस्तीफे के बाद खाली हुई आजमगढ़ लोकसभा सीट पर भी उपचुनाव हुआ. इस सीट पर सपा ने धर्मेंद्र यादव को अपना उम्मीदवार बनाया था, वहीं बीजेपी ने इस सीट पर भोजपुरी सुपरस्टार दिनेश लाल यादव निरहुआ को मैदान में उतारा था. दिनेश लाल यादव निरहुआ ने धर्मेंद्र यादव को 8 हजार से अधिक वोटों से हराया था.

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वहीं सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद मैनपुरी सीट पर भी उपचुनाव हुआ था. सपा का गढ़ कहे जाने वाले मैनपुरी में सपा की तरफ से अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव मैदान में थीं और इस सीट पर बीजेपी ने प्रेम सिंह शाक्य को अपना उम्मीदवार बनाया था. हालांकि मैनपुरी उपचुनाव में डिंपल यादव ने जीत दर्ज की थी.अबकी से सपा और बसपा अलग होकर चुनाव लड़ रहे हैं.वहीं सपा का कांग्रेस से गठबंधन हो रखा है,लेकिन अभी तस्वीर साफ नहीं हुई है.

उत्तर प्रदेश की ही तरह उत्तराखंड भी भगवा रंग में रंगता जा रहा है. यहां सीएम पुष्कर सिंह धामी के फैसलों से यह बात बार-बार साबित हो रही है. धामी सरकार द्वारा मदरसों की मनमानी पर शिकंजा कसा जा रहा है, वही जगह-जगह बनाई गईं मजारों को हटाया जा रहा है. उत्तराखंड देश का ऐसा पहला राज्य भी बन गया है, जिसने समान नागरिक संहिता को मंजूरी दे दी है. अब उत्तराखंड में सभी धर्मो के लड़के-लड़कियों की शादी की उम्र तय कर दी गई है. इसी तरह तलाक के मामले भी एक ही तरह से निपटाये जायेंगे. वहीं हलाला, बहुविवाह पर रो लगा दी गई है, कुल मिलाकर उत्तराखंड में यूसीसी कानून के तहत प्रदेश में सभी नागरिकों के लिए विवाह, तलाक, गुजारा भत्ता, जमीन, संपत्ति और उत्तराधिकार के समान कानून होंगे. चाहे वे किसी भी धर्म को मानने वाले हों.

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वर्ष 2022 में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा द्वारा जनता से किए गए प्रमुख वादों में यूसीसी पर अधिनियम बनाकर उसे प्रदेश में लागू करना भी शामिल था. वैसे इसका विरोध भी शुरू हो गया है. समान नागरिक संहिता (यूसीसी) विधेयक पर ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) के कार्यकारी सदस्य मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली ने कहा – क्या इसके (यूसीसी) आने पर जितने भी कानून हैं उनमें एकरूपता आ जाएगी? नहीं, बिल्कुल एकरूपता नहीं होगी.

जब आपने कुछ समुदायों को इससे छूट दे दी है तो एकरूपता कैसे हो सकती है?हमारी कानूनी समिति मसौदे का अध्ययन करेगी और उसके अनुसार निर्णय लेगी. मुख्यमंत्री द्वारा 6 फरवरी को विधेयक पेश किये जाने के दौरान सत्तापक्ष के विधायकों ने ‘‘भारत माता की जय, वंदे मातरम और जय श्रीराम’’ के नारे भी लगाये. गौरतलब हो प्रदेश मंत्रिमंडल ने दो दिन पूर्व 04 फरवरी को यूसीसी मसौदे को स्वीकार करते हुए उसे विधेयक के रूप में सदन के पटल पर रखे जाने की मंजूरी दी थी. उधर,विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य ने कहा कि सरकार की मंशा पर संदेह है. उत्तराखंड में यूसीसी कानून बनने में कोई अड़चन नजर नहीं आ रही है. 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने उत्तराखंड की पांचों सीटें जीती थीं, यहां इस बार भी बीजेपी के सामने कोई खास अड़चन नहीं दिखाई दे रही है.

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बात बिहार की कि जाये तो यहां भी बदले सियासी माहौल में बीजेपी बढ़त में नजर आ रही है. अयोध्या में प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम से यूपी के साथ बिहार पहले से ही राममय था,अब बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर, जिन्हें पिछड़ों का जनक कहा जाता है, को उनकी जन्म शताब्दी पर भारत रत्न देकर नरेंद्र मोदी ने हिंदी पट्टी के पिछड़ों और अति पिछड़ों को भी साध लिया है. कहते हैं, संसद का रास्ता उत्तर प्रदेश और बिहार से होकर गुजरता है. दोनों ही राज्यों में पिछड़े और अति पिछड़े चुनावी गणित में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

दरअसल, बिहार भाजपा के लिए बेहद महत्वपूर्ण राज्य है और यहां नीतीश कुमार कुछ-कुछ सालों में पाला बदलने का खेल खेलते रहते हैं. आज वह फिर से बीजेपी के साथ आ गये हैं, लेकिन उनका विश्वास नहीं लौटा है. इसीलिए नरेंद्र मोदी की कोशिश यही है कि बिहार की राजनीति से नीतीश कुमार को साथ रहते हुए भी अप्रासंगिक कर दिया जाए. वर्ष 2014 से इसके प्रयास भी वो लगातार करते आ रहे हैं। बिहार से लोकसभा की 40 सीटें हैं. वर्ष 2014 में जनता दल (यू), राजद और भाजपा, तीनों अलग-अलग चुनावी मैदान में उतरे थे. भाजपा के साथ रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी और उपेंद्र कुशवाह की राष्ट्रीय लोक समता पार्टी जैसे छोटे दल थे. चुनाव में भाजपा ने सहयोगियों के साथ 40 में से 31 सीटों पर विजय हासिल की थी. जनता दल (यू) को दो और राजद को चार सीटें ही मिली थीं. इसके बाद नीतीश कुमार भाजपा के साथ आ गए थे.

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वर्ष 2019 में उन्होंने भाजपा के साथ गठबंधन में रहते हुए बिहार में चुनाव लड़ा और लोकसभा की 16 सीटों पर विजय हासिल की. दोनों दलों के गठबंधन में राजद का सुपड़ा-साफ हो गया था और वो लोकसभा चुनाव में खाता भी नहीं खोल पाई थी। हालांकि, इसके बाद नीतीश कुमार एक बार पलटी मार कर राजद के साथ चले गये थे, परंतु अब फिर बीजेपी के साथ आ गये हैं और बीजेपी के साथ मिलकर सरकार भी चला रहे हैं.

जहां तक हिंदी पट्टी के अन्य राज्यों राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, हरियाणा, दिल्ली और भाजपा के गढ़ गुजरात, उत्तराखंड, हिमाचल, कर्नाटक व महाराष्ट्र की बात है तो इन सभी राज्यों में राम मंदिर का असर बीजेपी के पक्ष में दिख रहा है. यह वोटों में तब्दील भी होगा,यह समय बतायेगा. इन राज्यों में लोकसभा की 222 सीटें हैं। इसके अलावा, पश्चिम बंगाल और पूर्वोत्तर के असम समेत अन्य राज्यों में भाजपा की स्थिति मजबूत दिख रही है। वो यहां पुनः वर्ष 2019 वाला प्रदर्शन दोहरा सकती है. नरेंद्र मोदी जब भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार घोषित हुए थे, उससे पहले वर्ष 2009 में लोकसभा चुनाव में भाजपा का वोट शेयर 18.80 प्रतिशत था और पार्टी की 116 सीटें थीं, लेकिन वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी के करिश्माई नेतृत्व ने भाजपा का वोट शेयर 31 प्रतिशत कर दिया और 282 सीटें पार्टी को मिलीं। भाजपा नेतृत्व वाले एनडीए ने 336 सीटों पर विजय हासिल की।

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वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी ने भाजपा के वोट शेयर को और बढ़ा दिया। यह बढ़कर 37.7 प्रतिशत हो गया और पार्टी ने अपने बलबूते पर 303 सीटों पर विजय हासिल की, यानी नरेंद्र मोदी जानते हैं कि जनता को क्या पसंद है और कैसे चुनाव-दर-चुनाव जीत हासिल करनी है। इस साल लोकसभा चुनाव में चंद दिन ही बचे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देशभर में अपना चुनाव प्रचार शुरू कर दिया है, जबकि विपक्षी दल गठबंधन बनाकर सीटों की शेयरिंग में ही उलझे हुए हैं।

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं.

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