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सुख-दुख

क्लब हाउस : खेल पलट गया है!

जे. सुशील-

क्लबहाउस में पत्रकारों और प्रशांत किशोर की बातचीत के बारे में जानकारी जुटाने के बाद

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इस पूरे प्रकरण को ऐसे देखिए कि दिल्ली का पत्रकार काम कैसे करता है. वो चुनाव कवर करने जाता है तो पहले मैनेजरों से जांच टटोल लेता है. पहले ये काम दफ्तर में बैठ कर होता था और मैनेजर टाइप लोग आते थे पत्रकारों को बताने कि भई हमारे सर्वे में ऐसा हो रहा है. संपादक लोग ऐसी मीटिंग खुले में करते थे ताकि दफ्तर का छोटा पत्रकार भी जवाब दे सके चुनाव मैनेजर को या कुछ पूछना हो तो पूछ सके.

इसमें संपादक टाइप लोग चुप रहते थे और अचानक से कठिन सवाल पूछ देते थे मैनेजरों से. रिपोर्टर लोग ऐसे चुनाव मैनेजरों पर चढ़े रहते थे और कमोबेश ये होता था कि मैनेजर अपनी बात कहने के बाद बार बार रिपोर्टरों से पूछता था कि आप बताइए फील्ड में क्या हो रहा है. रिपोर्टर अपनी बात बताता था और अक्सर रिपोर्टर के पास ठीक ठाक जानकारी रहती थी.

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पिछले दस पंद्रह सालों में जब से हर तीसरा टटपूंजिया आदमी सर्वे करने लगा है और पत्रकार अपने दफ्तर में बैठ कर ऐसे मैनेजरों से ही पूछ कर कॉपी बनाने लगा है विश्लेषण भी गलत होने लगे और सर्वेक्षण भी भरोसे लायक नहीं रहे.

जो हम क्लबहाउस में देख रहे हैं वो बस इतना कि खेल पलट गया है. पहले चुनाव मैनेजर पत्रकार से फीड लेकर अपनी रिपोर्ट ठीक करता था. अब पत्रकार चुनाव मैनेजर से बात कर के अपनी समझ दुरुस्त करता है और फिर लिखता है कि मोदी ने पूरे देश को इवेंट बना दिया है. इवेंट मैनेजर के पास आप खुद जा रहे हैं ये बात पत्रकार लोग ट्विटर पर नहीं बोलेंगे.

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मैं ऐसे पत्रकारों को जब गरियाता हूं तो वो आकर कहते हैं कि मैं खान मार्केट गैंग का हूूं लेकिन प्रशांत किशोर का ज्ञान लेने वाले कौन से गैंग के हैं ये कोई नहीं बता रहा है. बाद बाकी इस बातचीत को लीक करना या विस्फोटक कहना कहीं से भी उचित नहीं है. ऐसा कहने वालों को पत्रकारिता का ए बी सी डी नहीं पता है. पत्रकार सबसे बात करता है. और आप चाहें तो आईफोन से डाउनलोड कर के ये बातचीत सुन सकते हैं.

नीरा राडिया याद होगी आपको. वो पत्रकारों को फोन करती थी खासमखास को और बताती थी क्या लिखना है. प्रशांत किशोर के केस में प्रशांत को जिस तरह से सुन रहे हैं पत्रकार उससे लगता है सारे बड़े पत्रकार मान चुके हैं कि अगर इस समय कोई विश्लेषक है भारत में चुनाव का तो वो प्रशांत किशोर ही है. प्रशांत किशोर ने बिहार में किसी का आइडिया चुरा लिया. किसी पत्रकार ने स्टोरी करना उचित नहीं समझा. एक इकोनोमिक टाइम्स को छोड़कर. इस क्लबहाउस में बैठे ज्यादातर लोगों को वो खबर मालूम थी लेकिन किसी ने प्रशांत किशोर के खिलाफ स्टोरी नहीं छापी थी. इसलिए मुझे आश्चर्य नहीं है कि ये प्रशांत किशोर के ज्ञान को अंतिम ज्ञान मानेंगे.

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एक प्रथा और थी जो पुरानी थी कि कुछ संपादक एक साथ जाते थे चुनाव वाले राज्यों में. वो भी अब खतम हो गई लगती है. रिपोर्टर को भेजा जाता है बाइट लेने के लिए. पब्लिक समझदार है वो एनडीटीवी देखकर मोदी विरोधी बाइट देता है और आजतक एबीपी और ज़ी टीवी देखकर मोदी समर्थक. रिपब्लिक देखकर वो मुस्कुराता है और कहता है – पोंदे छाप टीएमसी साफ.

बाइट कलेक्टर और यूट्यूबर्स को पत्रकार मानने वाले भारतीय समाज से भी मुझे बहुत सहानुभूति है. जो देश ध्रुव राठी को बौद्धिक मानने लगा है उसके साथ जो भी हो रहा है वो कम है.

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पत्रकारिता की वाट लग चुकी है फिर भी ये पूछना ज़रूरी है कि किसी पत्रकार ने आखिरी बार प्रशांत किशोर से कोई कठिन सवाल कब किया था. याद कीजिए. जबकि ये वही आदमी है जिसने मोदी जैसे नेता को स्वीकार्य बना दिया और पूरी लोकतांत्रिक प्रक्रिया को एक तमाशा बना देने में कोई कसर नहीं छोड़ी. वाट्सएप से लेकर फेसबुक पर फर्जी पन्ने बनाने और माहौल तैयार करने का फॉर्मूला बेचने वाले इस आदमी से लोकतंत्र को खतरा है लेकिन ये बात न रवीश कुमार बोलेंगे और न रोहिणी सिंह और न ही कोई और क्योंकि आज की तारीख में प्रशांत किशोर मोदी के खिलाफ खड़े दिखते हैं.

मैंने लिखा है कि दिखते हैं……..ये सोच कर लिखा है. प्रशांत किशोर किसकी तरफ से बैटिंग कर रहे हैं ये सोच कर देखिए. पता चल जाएगा. बिहार में किसी पुराने घाघ रिपोर्टर से (जो मोदी या लालू भक्त नहीं हो) ऑफ द रिकार्ड पूछिएगा तो पता चलेगा कि राजनीति में इस आदमी ने क्या खेल किया है नीतिश कुमार के साथ.

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प्रशांत किशोर से ज्ञान लेने वाले पत्रकारों से मुझे सहानुभूति है कि उनमें से कुछ बंगाल में होते हुए थी प्रशांत से बचकाने सवाल कर रहे थे. जो दिल्ली बैठ कर प्रशांत से सवाल पूछ रहे थे उनसे भी सहानुभूति है कि उनके दफ्तरों ने उन्हें बंगाल जाने नहीं दिया तो वो ऐसे ही बातचीत से कोई बाइट निकाल कर खबर लिखेंगे सूत्रों या विश्लेषकों के या कभी कभी प्रशांत किशोर के हवाले से.

मैं दोहरा रहा हूं कि इस देश की मीडिया का एक हिस्सा तो लेट गया है लेकिन दूसरा हिस्सा जो खुद को मोदी के खिलाफ खड़ा बताता है असल में वो भी लेटा हुआ है मोदी के विरोध में. उसे सच नहीं दिख रहा है उसे केवल मोदी विरोध दिख रहा है. ऐसे पत्रकारों को भी अपने में झांकना चाहिए और सोचना चाहिए कि वो क्लबहाउस में क्या कर रहे थे. एक ज़माना था ज्यादा नहीं दस साल पहले तक ही लोग बड़े पत्रकारों के कार्यक्रम में जाना बड़ी बात समझते थे. आज की तारीख में पत्रकार इसी बात से खुश है कि प्रशांत किशोर उनको वाट्सएप पर जवाब देता है या क्लबहाउस में उसके सवाल पर जवाब देता है.

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सोच कर देखिए प्रशांत किशोर किसी को इंटरव्यू नहीं दे रहा. सब पत्रकार उससे ज्ञान ले रहे हैं. ऐसा कब हुआ था. मैनेजरों को सर पर चढ़ा लिया है पत्रकारों ने. ये उनकी गलती नहीं है. पत्रकार भी मुझ जैसे गैर पत्रकार की तरह फेसबुक पोस्ट लिख कर संतुष्ट है.

बाद बाकी मैं पूरी तरह मान रहा हूं कि बंगाल में टैगोर 2.0 आना चाहिए. राजस्थान और महाराष्ट्र में भी बीजेपी की सरकार मार पीट कर के बनाई जाए. सारा देश भगवा हो. हम यही डिजर्व करते हैं. लिबरल प्रोग्रेसिव छाती कूटें और प्रशांत किशोर की बात सुनें क्योंकि फील्ड में जाना है नहीं उनको.

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संजय कुमार सिंह-

क्लबहाउस ‘लीक’ पर मेरी राय

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असल में यह प्रशांत किशोर से कई लोगों की बातचीत है। मुझे लगता है यह ऑनलाइन वीडियो बातचीत है जिसका ऑडियो लीक हुआ है और यह इसमें एक जगह कहा भी गया है कि बातचीत रिकार्ड होती है। निश्चित रूप से बातचीत बंगाल चुनाव पर है और अलग-अलग सवालों पर बात हुई होगी। प्रशांत किशोर से पूछे जाने वाले एक सवाल में रवीश कुमार ने अपना भी सवाल जोड़ा हैं और जवाब में प्रशांत किशोर कहते हैं कि मोदी की लोकप्रियता तो है। कई लोगों को वे भगवान लगते हैं। सही लगते हैं कि गलत यह अलग मुद्दा है लेकिन लगते हैं और लोकप्रिय तो वो हैं ही। इस आधार पर यह प्रचारित करने की कोशिश की जा रही है कि प्रशांत किशोर ने मान लिया कि मोदी लोकप्रिय हैं (और ममता हार रही हैं)। चुनाव अगर एक महीने से ज्यादा चलेगा तो यही सब होगा और ना आप किसी को बात करने से रोक सकते हैं ना वीडियो के खास अंश लीक करने से।

इस वीडियो के इस अंश में रवीश कुमार का सवाल और प्रशांत किशोर का जवाब सुनने समझने के लिए महत्वपूर्ण है कि क्या मोदी के खिलाफ एंटी इनकंबेंसी नहीं है? जबाव में प्रशांत किशोर कहते हैं कि मोदी तो बंगाल में सत्ता में हैं ही नहीं। इसलिए एंटी इनकंबेंसी ममता के खिलाफ है। चूंकि बंगाल में भाजपा सत्ता में रही ही नहीं इसलिए वहां के लोगों को उसमें आकर्षण दिखता है। निश्चित रूप से यह सवाल का जवाब है और यही सब चुनाव नतीजों पर असर डालेंगे। प्रशांत किशोर ने यह भी कहा है कि ममता भी लोकप्रिय हैं। कहने की जरूरत नहीं है कि इसीलिए चुनाव टक्कर का लग रहा है और लोग यह जानने को उत्सुक हैं कि क्या होगा? पर किसी ने ना फैसला सुनाया है ना जीतने का आधार बताया है और ना यह कहा है कि कोई एकतरफा मजबूत है और आंधी चल रही है, सूपड़ा साफ हो जाएगा आदि आदि।

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कुल मिलाकर, जिन कारणों से चुनाव ममता के पक्ष में एकतरफा नहीं हैं उन्हें भाजपा की ताकत कहकर प्रचारित करना इस लीक और इसके प्रचार का मकसद हो सकता है। कई और ट्वीट के साथ साक्षी जोशी का एक ट्वीट था जिसमें उसने लिखा है कि चश्मदीद हूं। इसके बाद मुझे इसमें ‘लीक’ लायक कुछ लगा ही नहीं। वैसे भी जिस बात चीत में कई जाने-माने और घोषित मोदी विरोधी तथा पत्रकार थे उसमें प्रशांत किशोर ने जो कहा वह खबर होती तो हर किसी ने लिखा होता। लीक क्यों होता। कोई निजी या गुप्ता वार्ता तो है ही नहीं। सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध रिकार्डिंग का एक हिस्सा लीक की तरह पेश किया जा रहा है। शुरुआत क्यों कैसे हुई यह मुद्दा हो सकता है लेकिन बंगाल चुनाव पर अच्छी चर्चा है। सुनकर आप किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचेंगे। इससे इधर-उधर हो सकने वाले लोग दोनों तरफ गिरेंगे। प्रशांत किशोर ने जो कहा वह कुछ नया नहीं है ना ही मोदी के पक्ष में या ममता के खिलाफ है, सिर्फ तथ्य है। बाकी मीडिया वही कर रहा है जो करता रहा है।

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