नरेंद्र नाथ मिश्रा-
पूर्व क्रिकेटर प्रवीण कुमार लल्लन टॉप पर इंटरव्यू में बता रहे थे कि किस तरह उन्हें लोगों ने दूरी बना ली। लेकिन वह पूरी बात नहीं बता सके। अपनी कमी को छिपा ली। दूरी लोगों ने उनके अहंकार-बददिमाग व्यवहार के कारण बनायी। निःसंदेह वह शानदार क्रिकेटर थे लेकिन सफलता ने उन्हें तुरंत भटका दिया।
जब उन्होंने शोहरत पायी तब मैं मेरठ में ही था। आस्ट्रेलिया से जीतकर आए और अगले एक महीने के अंदर ही उन सबों से गाली-गालौज की उन्हें सरेआम बेइज्जत किया जो उनके संघर्ष के दिनों में लगातार साथ थे। पैसा-अय्याशी वाला बर्ताव उनके जीवन का अंग बना। शराब-शबाब- गाली-गलौज उनकी जिंदगी हो गयी। फिर उनकी जिंदगी में आया डिप्रेशन का दौर। इलाज में गये। ठीक भी हुए।
देश में सबसे बेहतरीन स्विंग करने वाले प्रवीण कुमार अपने शोहरत को काबू में नहीं रख सके। उनके इस बर्ताव का पता आज भी वहां उनसे जुड़े लोगों से पता कर सकते हैं।
खैर, लेकिन कुदरत का कानून है इस जिस तेजी से इनकी शोहरत आती है उतनी तेजी से ही जाती भी है। अगर अंदर नेचुरल वास्तव में शोहरत को एबजार्ब करने की कूबत रहे। वरना कुछ दिन ऐसा चल भी जाता है।फिर शुरू होता है कुंठा का दौर।
कई साल पहले बिहार के मुजफ्फरपुर से जुड़े एक और रियलिटी शो के स्टॉर को नजदीक से देखा है। उसे जिताने में उसके पिता ने लाखों रुपये गंवा दिये। तीन साइबर कैफे बुक कर दिये गये थे। बेटा जीत भी गया। बाद में ऐसा अकड़ा कि बाप को भूल गया। कुछ सालों उसका भूत उतरा। पैसे समाप्त हो गये। अब काम नहीं मिल रहा। अब एक कंपनी में काम कर रहे हैं। डिप्रेशन के दौर से गुजरे।
मतलब सफतला पाना कठिन है। लेकिन उससे बहुत कठिन है उस सफलता को बनाए रखना। इन उदाहरण का मतलब नहीं कि सभी ऐसे होते हैं। जेनेरलाइज नहीं कर रहा। यह एक वर्ग है। दूसरा वर्ग भी है जो सफलता के मायने समझता है। संजीदा होता है। इंसान के लिए बुरे वक्त में घबराना नहीं,अच्छे वक्त में पगलाने का मंत्र जो निभा पात है,सक्सेस उसके घर ही अधिक दिनों तक रहती है।