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इसलिए पाठक अब शुरू करें दैनिक जागरण का बहिष्कार

लीजिए सबको समझाता हूं, क्‍या है मजीठिया वेतनमान और इस मुद्दे पर दैनिक जागरण के पाठक क्‍यों करें अखबार का बहिष्‍कार। अपने कुछ मित्रों के आग्रह पर आज मजीठिया वेतनमान के बारे में दैनिक जागरण के पाठकों को कुछ विस्‍तार से बता रहा हूं।

लीजिए सबको समझाता हूं, क्‍या है मजीठिया वेतनमान और इस मुद्दे पर दैनिक जागरण के पाठक क्‍यों करें अखबार का बहिष्‍कार। अपने कुछ मित्रों के आग्रह पर आज मजीठिया वेतनमान के बारे में दैनिक जागरण के पाठकों को कुछ विस्‍तार से बता रहा हूं।

तो पाठकों, आप जो खबरें पढ़ते हैं, उन्‍हें रिपोर्टर कड़ी मेहनत और संघर्ष के बाद लाते हैं और डेस्‍क पर उन खबरों को पढ़ने लायक बनाते हैं डेस्‍क के सहयोगी। इन दोनों वर्गो को पत्रकार कहा जाता है। इनके अलावा जो कर्मचारी अखबार छापने की मशीन चलाते हैं या अन्‍य दूसरे काम करते हैं, वे न्‍यूज पेपर कर्मचारी होते हैं, जिन्‍हें गैरपत्रकार कहा जाता है। पत्रकार और गैरपत्रकार कर्मचारियों के लिए हर दस वर्ष में वेज बोर्ड का गठन केंद्र सरकार करती है। अब तक कई वेज बोर्ड गठित हो चुके हैं मसलन पालेकर अवार्ड, बछावत वेतन आयोग, मणिसाना वेज बोर्ड और जस्टिस जीआर मजीठिया वेज बोर्ड। इन वेज बोर्डों का लाभ अखबार मालिकों ने न्‍यूज पेपर कर्मचारियों को नहीं दिया। ये आयोग किसी न किसी न्‍यायाधीश की अध्‍यक्षता में गठित किए गए, जिनमें कई और विभागों के विशेषज्ञ शामिल थे। उन्‍होंने आकलन किया कि पद के अनुसार न्‍यूज पेपर कर्मचारियों का कितना वेतन होना चाहिए। ठीक उसी तरह जैसे, केंद्र सरकार और राज्‍य सरकारों के कर्मचारियों के लिए वेतन आयोग समय-समय पर गठित होते हैं।

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अभी तक अखबार मालिकों की मनमानी इसलिए चल जाती थी, क्‍योंकि अब से पहले सूचना तंत्र अधिक मजबूत नहीं था। बैंक खातों की पारदर्शिता भी नहीं थी। सूचना क्रांति आने से अखबार मालिक समझ गए कि अब मजीठिया वेतनमान देना ही पड़ेगा। फिर भी उनके मन से बेईमानी नहीं गई और वे वेतन आयोग के गठन को चुनौती देने के लिए सुप्रीम कोर्ट चले गए। वर्ष 2011 में सुप्रीम कोर्ट ने न्‍यूजपेपर कर्मचारियों के पक्ष में फैसला सुना दिया। फिर भी अखबार मालिकों ने सुप्रीम कोर्ट की बात नहीं मानी और अदालत की अवमानना कर दी। इस पर कुछ न्‍यूज पेपर कर्मचारियों ने सुप्रीम कोर्ट में अवमानना का मामला दर्ज करा दिया। अब अखबार मालिक ऐसे कर्मचारियों को प्रताडि़त और परेशान कर रहे हैं, जिन्‍होंने सुप्रीम कोर्ट में अवमानना का मामला दर्ज कराया है। यहां तक कि अखबार मालिकों ने जबरन कर्मचारियों से सादे कागज पर हस्‍ताक्षर करा लिया था कि वे मजीठिया वेतनमान नहीं चाहते हैं।

जरा सोचें-दैनिक जागरण जैसे अखबार में काम करने वाला हर कर्मचारी आपकी समस्‍याओं और मुसीबतों की जानकारी सरकार तक पहुंचाता है और आपकी समस्‍याओं का समाधान हो जाता है। इस दृष्टि से अखबार के दफ्तर में काम करने वाला हर कर्मचारी आपका हितैषी हुआ, लेकिन अखबार मालिकों की मनमानी से कर्मचारियों का यह वर्ग संकट में है। अखबार मालिक आपके पैसे से धन्‍ना सेठ बन गए हैं और कर्मचारियों के खिलाफ धन बल का प्रयोग कर रहे हैं। चाहे आप पाठक हैं, विज्ञापनदाता हैं या और किसी माध्‍यम से दैनिक जागरण से जुड़े हैं। आपके सहयोग से दैनिक जागरण आपके ही बीच से आए मध्‍यम वर्गीय परिवार के लोगों का जीना हराम कर रहा है। ऐसे में क्‍या अखबार मालिकों को जनता का सहयोग मिलना चाहिए, आप खुद सोचें। आप दैनिक जागरण पढ़ना बंद कर देंगे तो भी आप सूचना से वंचित नहीं रहेंगे, क्‍योंकि सूचना के और भी साधन उपलब्‍ध हैं।

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आपसे अपील है कि जब तक कर्मचारियों को मजीठिया वेतनमान और 2011 से बढ़े वेतन का एरियर न दे दिया जाए, तब तक के लिए आप दैनिक जागरण से अपना सहयोग वापस ले लें। आपके सहयोग और असहयोग में बड़ी ताकत है। आपकी कुदृष्टि के आगे अखबार मालिक कभी भी ठहर नहीं पाएंगे। अब तक पत्रकार आपको न्‍याय दिलाते रहे हैं, लेकिन न्‍याय दिलाने की अब आपकी बारी है। आपने ऐसा नहीं किया तो पत्रकारिता नष्‍ट हो जाएगी। पत्रकारिता के नष्‍ट होते ही सारी व्‍यवस्‍था बिगड़ जाएगी और निश्चित ही हम नेताओं, भ्रष्‍ट अधिकारियों व कर्मचारियों के गुलाम बन जाएंगे। भ्रष्‍टाचार चरम पर पहुंच जाएगा। हमारी आने वाली पीढ़ी का भविष्‍य बर्बाद हो जाएगा। अब सोचने का समय नहीं है। आप दिखा दें अपने मताधिकार की ताकत। एक अखबार खरीदने का मतलब है, आप उसे जाने अनजाने वोट दे रहे हैं, जिसका अखबार मालिक दुरुपयोग करने में लगे हैं। तो देर किस बात की। आप बंद कर दें अपने पैसे का दुरुपयोग। इस पर आपका ही वश है।

श्रीकांत सिंह के एफबी वॉल से

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