Connect with us

Hi, what are you looking for?

साहित्य

एक जवान विधवा स्त्री के शारीरिक मनोविज्ञान की गाथा है ‘देह का गणित’

संदीप तोमर-

पाखी के पिछले अंक में छपी कहानी “देह का गणित” के बाद कहानी की लेखिका और संपादक दोनों को सोशल मिडिया पर ट्रोल किया गया। मैं देख रहा था किसी ने लिखा आत्मकथा, तो किसी ने कहा-लेखिका अपना भोगा लिख रही हैं। मैं इसे एक बड़ी बुरी बीमारी के रूम में देखता हूँ कि जब कुछ न मिले तो व्यक्तिगत दोषारोपण शुरू कर दें। उक्त कहानी को पढ़ते हुए पाठक के मन में दो सवाल उभरने स्वाभाविक हैं- एक कहानी के कथ्य को लेकर दूसरा कहानी के ट्रीटमेंट को लेकर। इस बात पर सवाल किया जा सकता है कि समाज में क्या इस तरह के रिश्ते को मान्यता दी आज सकती है जहाँ कोई बेटा माँ पर आसक्त हो सकता है या फिर मां बेटे की यौन पिपासा में भागिदार हो सकती है? लेकिन साथ ही हमने विचार करना होगा कि हर के कहानी, हर एक लेखन में कुछ न कुछ तत्व यथार्थ से ही होते हैं, कहानियां और खास तौर पर किसी कहानी का कथ्य कल्पना लोक से नहीं आते। कितनी ही घटनाएँ देखने सुनने को मिलती हैं जिनमें हर बलात्कार करने वाला कोई सम्बन्धी होता है, उक्त कहानी का पात्र यदि पुत्र है और वह अपनी माँ के प्रति आसक्त है तो दो स्थितियां हो सकती है या तो वह रेप एटेम्पट करता है या फिर माँ उसके सामने कुछ भावनात्मक पहलु या फिर अपनी यौनिक कुंठा के चलते उस रिश्ते की भागीदार बने जो कि देह का गणित का कथानक प्रदर्शित करता है। अब सवाल आकर फिर वहीँ अटकता है, कहानी का प्रस्तुतीकरण- यहाँ लेखिका को बहुत संयम से काम लेना चाहिए था जहाँ वे पूरी तरह विफल होती हैं और यही उनके ट्रोल होने की एक बड़ी वजह भी बनती है। कहानी के मूल बिन्दु यानि कथ्य के पास आते-आते लेखिका शब्दों के चयन में असफल होती हैं और कहानी किसी घटना की सपाटबयानी में तब्दील हो जाती है। यहाँ यह बात भी महत्वपूर्ण है कि अगर किसी घटना का हुबहू चित्रण लेखक करेगा तो रिपोर्टिंग और कहानी लेखन में कितना अंतर हुआ?

Advertisement. Scroll to continue reading.

जहाँ तक लेखिका और सम्पादक के ट्रोल होने का सवाल है और जो लोग इसे लेखिका की आत्मकथा का अंश कह रह हैं इन्हें लोलिता और इलेवन मिनट्स उपन्यास पढ़ने चाहिए। जहाँ इस तरह के प्रसंग बहुत उत्तेजना के साथ लिखें गए हैं। हिंदी साहित्य भी इस तरह के वर्णन और संबंधो की कथाओ से अटा पड़ा है, अज्ञेय, राजेन्द्र यादव सहित कितने ही कहानीकारों की कथाओ किस्सों पर बात की जा सकती हैं। लेकिन मैं इस कहानी को एक नवयुवक के मनोविज्ञान और एक जवान विधवा स्त्री के शारीरिक मनोविज्ञान की गाथा के रूप में देख रहा हूँ। कहानी को अगर दो पार्ट में देखा जाए तो मनोवैज्ञानिक पक्ष सही है लेकिन बाद वाला दो डॉ. का संवाद बेहतर होना चाहिए था। सम्वाद शैली से लगा नहीं कि दोनो की बातों में कहीं डॉ. के स्तर को भी लेखिका छू पायी हो। यहाँ लेखिका की कमजोरी मानी जायेगी। लेखिका को पहले मेडिकल के टर्म्स की समझ बनानी थी तब संवाद लिखे जाते तो कहानी अपने गंतव्य तक पहुँचती। लेकिन लेखिका ऐसा नहीं करती बल्कि कहानी सस्ती लोकप्रियता की ओर चली जाती है, और बेतुकी चर्चा का विषय बन जाती है।

जहाँ कहानी की लेखिका को ट्रोल करने वालो की संख्या बहुतायत हैं वहीँ मैं सोशल मिडिया पर कहानी के पक्ष में लिखने वालो के व्यू भी देख रहा हूँ, किसी ने कहा कि इस समाज का घिनौना यथार्थ लिख दिया है। इस समाज का घिनौना यथार्थ अगर लेखिका ने लिख दिया है तो बवाल तो लोग करेंगे ही और लेखिका को अपने या कहानी के बचाव में आना भी होगा। याहं एक पाश यह भी है जिस पर गौर किया जाना चाहिए- कि कैसे और क्यों ऐसी विकृतियां समाज में पनप रही हैं? और उन्हें दूर करने के लिए क्या किया जाए, इस पर भी बात की जानी अपेक्षित है। लेकिन लोगों को 6000 शब्दों में सिर्फ 26 शब्द ही दिखाई दिए, इन २६ शब्दों के लिखें जाने की लेखिका की समाज वेदना को भी जानने का प्रयास किया जाना उतना ही अपेक्षित हैं जितना उनकी आलोचना। सवाल ये है कि लेखिका ने साहित्यिक भाषा का प्रयोग नहीं किया, जो घटा साफ़-साफ़ कहा। शायद लेखिका के मन में ये सवाल हो कि कैसे कह दे जब उसने छुआ तो ठंडी हवाएं चलने लगीं, अंतरंग संगीत बहने लगा या इस तरह की भाषा वह कैसे कह सकती है? बलात्कार नहीं हुआ, स्पर्श से सुन्न हो गयी उसकी सोच और अंदर एक भय भी, दो बातों ने उसे जकड़ा, फिर अंततः कुछ क्रियाओं द्वारा उसकी सुप्त इन्द्रियां सक्रिय हो गईं तो वो शामिल हुई, तो ये प्रक्रिया दिखाई जानी शायद लेखिका के लिए जरूरी थी, इसलिए दिखाई भी। बतौर पाठक मैं भी इस तरह की विवेचना के पक्ष में नहीं हूँ लेकिन हमारे साहित्यिक समाज को और सब कुछ दिखेगा लेकिन आखिर लेखिका ने लिखा क्यों, वो नहीं दिखेगा, ये विडंबना है। ये कहानी की पैरवी नहीं, घटनाक्रम कैसे हुआ होगा उस पर एक दृष्टि है। फिर समाज में पिता द्वारा बलात्कार होने, बहन भाई के एकांत वास में साहचर्य इन सबके मनोविज्ञान को समझे बिना कुछ भी कह देना बहुत जल्दबाजी है। तस्लीमा नसरीन ने “मेरे बचपन के दिन” में लिखा अपने जन्म का वर्णन- पिताजी डॉ थे उन्होंने योनि में औजार घुसाकर मेरा जन्म कराया।…..चाचा मुझे सुनसान से कमरे में ले गए। फिर यौन शोषण का वर्णन। …मामा घर आये तो……। …इन सबको क्या कहेंगे? खुशवंत सिंह अपनी आत्मकथा में पोछा लगती नौकरानी का सौंदर्य वर्णन करते हैं। क्या हम ये कहें कि वो सब साहित्य नहीं है? इस सब को लिखने के पीछे का मनोविज्ञान समंझना साहित्य का असल विश्लेषण होना चाहिए। सेक्स पड़ाव नहीं है लेखन का, वह मात्र एक माध्यम है कथा विन्यास का। जिसके सहारे रचनाकार पूरे मनोविज्ञान को, समाज के विद्रुप सच को एक कथानक के सांचे में ढालता है। हर लड़की का आदर्श पिता होता है वह प्रेमी और पति में उसकी छवि देखती है। हर लड़का अपनी माँ को विश्व सुंदरी के रूप में देखता है। फ्रायड अपनी सौतेली माँ के प्रति सेक्सयूएली अट्रैक्ट थे।

Advertisement. Scroll to continue reading.

हिंदी समय ( महात्मा गाँधी अन्तर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय का उपक्रम) ने विवेक मिश्र की कहानी “तितली” छापी जिसमें विवेक मिश्र की भाषा के स्तर को देखा जा सकता है-“ सजल ने उसकी कमर में हाथ डाल कर उसे अपने पास खींच लिया था। उसके शरीर के भीतर एक सिहरन दौड़ रही थी, जो तेज होती धड़कनों के साथ एक तूफान पैदा कर रही थी, जो उसकी तेज और गर्म साँसों से बाहर निकल रहा था। सजल की पकड़ कस गई थी, जिससे उसकी तनी छातियाँ सजल के सीने को छूकर दब गईं थीं और उसके होंठ खुल गए थे, जिन्हें सजल बड़ी बेसब्री से चूम रहा था। अंशु के कुँआरे मन में बैठी तितली, जिसके पंखों पर कई रंगों के धब्बे थे, अंशु के शरीर में उठे इस तूफान के साथ उड़ कर, आज बाहर आ गई थी। वह कहाँ से, कैसे निकली थी, अंशु नहीं जान पाई थी, उसे इतना ही होश था कि जब वह शरीर से निकल कर उस के ऊपर मंडरा रही थी, तब उसके अधखुले होंठों को सजल ने पी लिया था। उसका शरीर हवा में तैरते पत्तों की तरह हल्का हो गया था। उसके पैर जमीन पर नहीं थे। वह सजल के गले से झूल गई थी और सजल के होंठ और हाथ मिल कर अंशु के पूरे शरीर को एक बैगपाईपर की तरह बजा रहे थे, जिसका संगीत सजल और अंशु के कानों में गूँज रहा था। इस संगीत में डूबे दोनों कब हॉल से बेडरूम में आ गए थे, पता ही नहीं चला। अब बेडरूम के दरवाजे पर लटका विंडचाईम बाहर से आती हवा से हिल कर निरंतर बज रहा था और अंशु के शरीर से उठते संगीत में मिल रहा था, जिसे सजल अपनी बेसब्र होती साँसों से बजा रहा था। हवा से हिलते फानूस के प्रकाश से दीवार पर बनती आकृतियाँ, आपस में उलझी जा रहीं थीं।“ एक स्थान पर वे लिखते हैं- तभी उसे होश आया कि वह कमर से ऊपर नग्न थी और उसकी जीन्स की जिप भी आधी खुली थी।…..दरवाजे पर अभि की आँखें उसके नग्न स्तनों को घूर रहीं थी….. ।

शब्दांकन डॉट कॉम पर अजय नावरिया की कहानी है आवरण उसका एक अंश देखिये- मैं आप को प्रेम करने लगी हूँ।” उन्हें ऐसे घूरते देख, आज रम्या ने फिर दोहराया….. । “हम्म… ” वे उठ खड़े हुए और रम्या का हाथ पकड़ कर उठाया। उन के कानों में बज रहा था- डरपोक, डरपोक, डरपोक। उस से लिपट कर वे उसे बुरी तरह चूमने लगे। कुछ देर बाद वे थोड़ा पीछे हटे और उन्होंने बहुत तेजी से अपनी कमीज के बटन खोले और कमीज उतार कर एक तरफ फेंक दी। पेंट की बैल्ट खोली और पेंट भी उतार फेंकी, फिर अंतःवस्त्र भी। अब वह एकदम निर्वस्त्र थे। कुछ क्षण वह उन्हें देखती रही और फिर उन से लिपट गयी। वह उन्हें बुरी तरह चूम रही थी और उन का शरीर तन गया, कठोरता से।

Advertisement. Scroll to continue reading.

“अब तुम उतारो।”

“नहीं आप।” रम्या शर्मा गयी और उन के गले लग गई।

Advertisement. Scroll to continue reading.

“पहली बार तुम खुद उतारो ये आवरण।”

और सच में वह दृढ़ता से खड़े रहे। कोई हरकत नहीं की उन्होंने अपने हाथों से। रम्या कुछ देर उन्हें चूमती रही, शायद इंतजार करती रही, उन के हथियार डालने का।

Advertisement. Scroll to continue reading.

अब एक हाथ दूर रम्या खड़ी थी और सकुचाते-सकुचाते अपनी कमीज़ उतार रही थी, फिर जींस भी।

“अब ये तुम्हारी भी मर्ज़ी हुई रम्या।” दीपंकर धीमे से बुदबुदाए और आगे बढ़ कर रम्या को बहुत प्रेम से गोद में उठा लिया। रम्या के बाकी कपड़े भी अब लकड़ी के गर्म फर्श पर पड़े थे। वह उसे निहार रहे थे। सच में, इतनी सुंदर देह, उन्होंने अब तक साक्षात कभी नहीं देखी थी, सिर्फ यूनानी मूर्तिशिल्पों के अलावा। वह मंत्रमुग्ध थे जैसे। हर अंग जैसे अपने रूप और आकार में सम्पूर्ण।

Advertisement. Scroll to continue reading.

उस के स्तनाग्र को उन्होंने मुँह में भर लिया। “दीपंकर…” रम्या की सुलगती आवाज़ उन के बहरे हो चुके कानों तक आई

उन्होंने बहुत प्यार से रम्या के पूरे शरीर पर हाथ फेरा, बहुत ही स्निग्ध त्वचा।

Advertisement. Scroll to continue reading.

“ओह मां…।” रम्या धीमी आवाज़ में चिल्लाई। दस मिनट बाद ही रम्या की साँसें तेज चलने लगी, शरीर तनाव में आया और वह निढाल हो गयी। रम्या के कान के पास दीपंकर धीमे से फुसफुसाए- ‘सुखद गर्म।’ लगभग आधे घंटे दोनों बेसुध पड़े रहे, शायद सो ही गए।

“दीपंकर, आप बहुत मासूम दिखते हैं, पर हैं नहीं, राक्षस हैं आप।” रम्या उन की आंखों में आंख डाल कर बोली। “आप पहले पुरुष हैं जिसे मैंने इतना नजदीक आने दिया।” रम्या ने चादर की तरफ इशारा किया, मुचड़ी हुई सफेद चादर लाल हो गयी थी, जगह-जगह से। “और आप की जि़न्दगी में।”

Advertisement. Scroll to continue reading.

इस सवाल से पशोपेश में पड़ गए दीपंकर। कुछ पल चुप बैठे रहे, फिर ऊँगलियाँ चटकाने लगे। वह तय नहीं कर पा रहे थे कि क्या कहें?

“ये सवाल बिल्कुल निरर्थक है।” उन्होंने अपने पाँवों पर कम्बल डाल लिया। हल्की सर्दी महसूस होने लगी थी उन्हें। “मैं सिर्फ इतना कह सकता हूँ कि पिछले चार महीनों से, जब से तुम आयी, मेरी जिंदगी में कोई और नहीं है।”

Advertisement. Scroll to continue reading.

“मुझे यह सच सुन कर अच्छा लगा।” रम्या उन के पास सरकती हुई बुदबुदाई।

“एक सच और कहूँगा…इतनी संपूर्ण लड़की मैंने आज पहली बार ज़िंदगी में देखी। तुम संसार की सुंदरतम लड़की हो, अभागा है तुम्हारा वह दोस्त।”

Advertisement. Scroll to continue reading.

विवादित हुई कहानी देह का गणित का विवादित अंश…….. जब मेरा बेटा राहुल सात साल का हुआ तब नीरज का साया उसके सिर से उठ गया. मैं तो जैसे बेसहारा ही हो गयी. इस अचानक हुए हादसे ने मुझे सुन्न कर दिया. एक साल बाद रिश्तेदारों ने मुझ पर दूसरी शादी का दबाव बनाया लेकिन मुझे नीरज ने इतने सालों में वो सब दे दिया था कि उनकी यादों के सहारे ही पूरी ज़िन्दगी गुजार सकती थी. मैंने सबका विरोध करते हुए अपने बेटे के साथ जीवनयापन का सोचा. अब राहुल ही मेरी पूरी दुनिया बन गया. उसको सबसे पहले डे केयर स्कूल में डाला ताकि मेरा और उसका दोनों का समय एकसाथ घर पहुँचने का हो. इस तरह उसे कभी अकेलेपन का अहसास नहीं हुआ……….एक रात उसकी ऊँगलियाँ मेरी नाभि के अन्दर घूम रही थीं तो मेरी आँख खुली. मैं सकते में आ गयी, कुछ समझ नहीं आया कैसे रियेक्ट करूँ इसलिए दम साधे पड़ी रही चुपचाप. जवान बेटे को क्या कहूँ कुछ समझ नहीं आया…….उसके फिर दो तीन दिन बाद यही दोहराया……उसका स्पर्श शायद मुझे अच्छा भी लग रहा था. एक बेहद लम्बे अरसे बाद किसी मर्द के हाथ ने एक औरत के शरीर को छुआ था तो जो चाहतें अब तक दबी हुई थीं जाने कहाँ से सक्रिय हो उठीं………“ममा, मुझे किसी की परवाह नहीं और इस बारे में आगे बहस मत करना वर्ना मैं घर छोड़कर चला जाऊँगा या कहीं मर खप जाऊँगा” सुन मैं सहम उठी और चुप कर गयी क्योंकि मेरी तो सारी दुनिया ही मेरा बेटा था. अब वो धमकी थी या उसके अन्दर के पुरुष का विज्ञान, मैं नहीं समझ पाई क्योंकि मैं सिर्फ माँ थी जिसकी सारी दुनिया उसका बेटा था………….. वो ही प्रक्रिया दोहराते-दोहराते मेरे ब्लाउज के बटन खोल दिए तब मेरी आँख खुली और मैं सहम उठी अन्दर ही अन्दर. ये राहुल को क्या हो रहा है? अब मैं क्या करूँ? कैसे इसे रोकूँ? क्या इसे रोकूँगी या कुछ कहूँगी तो ये मान जाएगा? इसे अभी डाँटने फटकारने से क्या ये मान जायेगा या फिर मुझे हमेशा को छोड़ कर चला जायेगा? अगर चला गया तो कैसे जीयूँगी उसके बिना?………… यदि अनहोनी घट गयी तो क्या हमारा रिश्ता फिर सहज रह पायेगा? लेकिन माँ बेटे का सबसे पवित्र रिश्ता आज पंगु हो गया था. मैं अभी इसी सोच में घिरी थी कैसे प्रतिकार करूँ कि रिश्ता भी बचा रहे और वो शर्मिंदा भी न हो ……….उसने धीरे से मेरे उरोज अपने मुंह में ले लिए और उसके हाथ मेरे अन्तरंग अंगों को सहलाने लगे, मैं सोच ही न पाई सही और गलत, सोच को जैसे लकवा मार गया था. एक सुन्नपन ने जकड लिया था. शरीर के प्रत्येक अंग से पसीना निकलने लगा. ………प्रतिरोधात्मक शक्ति ने जैसे हथियार डाल दिए थे. शायद उस वक्त एक माँ मर गयी थी और एक स्त्री देह जाग गयी थी. वहीं शायद कहीं न कहीं मैं कमज़ोर हो गयी थी. फिर भी मैंने हल्का प्रतिरोध किया और उसे परे हटाना चाहा मगर उसकी मजबूत पकड़ से छुट नहीं पायी या फिर शायद स्त्री देह छूटना नहीं चाहती थी. फिर वो घटित हो गया जो नहीं होना चाहिए था. एक घृणित सम्बन्ध ने पाँव पसार लिए थे…………..महीने भर बाद फिर वही प्रक्रिया दोहराई गयी. और इस तरह हमारे बीच संसार का सबसे घृणित सम्बन्ध कायम हो गया. जिसमें अब वो मेरे साथ जबरदस्ती भी करने लगा. मैं मना करती तो भी न मानता. अब तक वो मेरे साथ 3-4 बार ये घृणित सम्बन्ध बना चुका. …………..जाने मुझे भी क्या हो गया, मैंने भी सही और गलत को ताक पर रख दिया या फिर शायद मैं अन्दर से डरती थी यदि कुछ कहा तो मुझे छोड़ कर चला जाएगा. फिर मैं उसके बिना कैसे जी पाऊँगी? मेरे जीने का मकसद ही मेरा बेटा था, ऐसे में उसे मैं किसी भी कीमत पर नाराज नहीं कर सकती थी तो दूसरी तरफ ये सम्बन्ध मुझे ग्लानि से भरे दे रहा था. कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था. न उसे हाँ कर सकती थी न ही न. ……………मुझे नहीं पता मैं आखिर चाहती क्या थी. मैंने इस बारे में अब तो बात भी करनी चाही उससे लेकिन वो मेरी सुनता ही नहीं. …………… हम दोनों अन्दर ही अन्दर शायद शर्मिंदा भी थे अपने कृत्य पर, शायद उसी के बोझ तले हमने आँख मिलाना भी छोड़ दिया था.

पूरे प्रकरण को पढने पर यही बात गौर करने लायक है कि यहाँ बाल-मनोविज्ञान और स्त्री के अन्दर सुसुप्त पड़ी यौनेच्छाओं के मनोविज्ञान को समझना बहुत जरुरी है। स्यां नायिका इस मनोविज्ञान को समझने में असफल है जब वह कहती है -मैंने दो तीन बार जान देने की कोशिश भी की. कभी सोचा बस के नीचे आ जाऊँ और कोशिश की लेकिन लोगों ने बचा लिया। लेखिका नायिका को इस भंवर से निकालने क प्रयास करती दिखाई नहीं देती, जो कहानी का सबसे दुर्बल पक्ष हैv अब सवाल ये है कि कहानीकार का क्या दायित्व है, उसकी स्वीकार्यता/ अस्वीकार्यता क्या है? क्या यही केहिका का दायित्व है कि वह लिख दे-“इधर मेरी सुप्त पड़ी भावनाएं जाग चुकी थीं तो उसकी दूरी मुझे सहन नहीं हो रही थी, उसकी कहो या पुरुष शरीर की कहो. मगर कुछ कहने लायक अब मैं न थी. मैं कैसे खुद सम्बन्ध कायम कर सकती थी जबकि मुझे पता है ये अनैतिक है. न कुछ पूछ सकती थी किसी से, न कह सकती थी इस बारे में किसी से भी।“

Advertisement. Scroll to continue reading.

लेखिका बहुत आसानी से नायिका की यौन भावनाओ के आगे हथियार डाल देती है और वह उन्ही शब्दों को आकार देने लगती है जो नायिका के कमजोर मन को भाते हैं। जाने कितनी स्त्रियाँ शरीर के मनोवैज्ञानिक दबाव में जीवन होम करती होंगी लेकिन उफ्फ नहीं कर पाती होंगी क्योंकि समाज के बनाये नियम तोड़ने की किसी में हिम्मत नहीं होती, जबकि ये मनुष्य शरीर की वो जरूरत है जिसे अनदेखा किया जाना उसी के साथ अन्याय है, लेकिन यह जरुरत क्या एक बेटे के साथ ही पूरी हो पाती, क्या नायिका के पास एनी विकल्प नहीं, जबकि आधुनिक समाज में यौन सम्बन्धो के लिए अनेक विकल्प खुले हैं, सवाल ये भी है कि क्या वास्तव में नायिका को यौन पिपासा है? या फिर बेटे की नाजायज हरकत से सुसुप्त इच्छाओं का जागना प्रमुख है? क्या कारण है जिसने एक माँ को स्त्री में तब्दील कर दिया वर्ना जिसने सारी उम्र बिना पुरुष संसर्ग के गुजार दी हो वो उम्र के इस पड़ाव पर आकर कैसे मर्यादा की धज्जियाँ उड़ा देती है?

कहानी के बाद के हिस्से को देखने पर पता चलता है कि यहाँ लेखिका बहुत चलताऊ संवाद को कहानी को लम्बी खीचने का माध्यम बनाती है- उनके अंदरूनी हिस्सों में कितना मवाद है, जो टीसता रहता है और वो उफ़ भी नहीं कर पातीं, इस बारे में कभी जान ही नहीं पाते. जाने ऐसे कितने किस्से आस पास बिखरे पड़े हों और हम उनसे अनजान हों…..जैसे पूरा स्त्री शरीर विज्ञान और मनोविज्ञान दोनों के ही दरवाज़े खोल कर रख दिए थे…….जब एक स्त्री होकर उसका ये हाल हो गया तो मर्द से क्या उम्मीद करें. उसके लिए तो स्त्री है ही सिर्फ देह भर. वहाँ कहाँ रिश्तों में मर्यादा का ध्यान होता है. उसे तो स्त्री वैसे ही सिर्फ अपनी वासनापूर्ति का माध्यम लगती है. ………..उसके लिए भी उसकी माँ सिर्फ एक देह ही थी उसके इतर कुछ नहीं. उसे तो वो ग्लानि भी नहीं जो उसकी माँ को थी. मर्यादा तो दोनों के लिए ही होती है न तो कैसे उसे लड़का सोच ख़ारिज कर दें. गलत तो वो भी था…. । उक्त सारा संवाद और विवेचन कहानी की न आवश्यकता है नहीं कोई उपचार?

Advertisement. Scroll to continue reading.

सवाल ये भी है कि आखिर लेखिका का उक्त कहानी लिखने का मंतव्य क्या रहा? मात्र विवेचना या फिर कहानी के मद्षम से एक गंभीर विषय या अनहोनी पर विमर्श? अगर बाद वाली बात कहानी का आधार है तो लेखिका अपने उद्देश्य में पूर्णतः विफल रही है। इस तरह की मनोवैज्ञानिक कहानियों के ट्रीटमेंट में रचनाकार को बहुत अधिक सावधानी बरतने की आवश्यकता होती है जिसकी जहमत उठाने का यहाँ प्रयास नहीं किया गया, अंत में सिर्फ इतना ही कि एक बहुत ही संवेदनशील विषय को बहुत चलताऊ तरीके से लिखने के चलते विमर्श की दिशा बदल गयी और कहानी काल का ग्रास बन गयी।

सन्दीप तोमर लेखक, उपन्यासकार और आलोचक हैं. संपर्क- [email protected]

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement