विवेक शुक्ल-
टोनी जेसुदासन को दिल्ली में सब जानते थे और वे सबके करीबी थे। सियासत, ब्यूरोक्रेसी, मीडिया, विधि, कोरपोरेट क्षेत्रों में उनकी गहरी पकड़ थी। उन्हें सब टोनी या टीजे ही कहते थे। ये बातें 1980 के दशक की है। वे अमेरिकी एंबेसी के सूचना विभाग में काम कर रहे थे। वह शीत युद्ध का दौर था। अमेरिका और सोवियत संघ आमने-सामने रहते थे। उस दौर में टोनी राजधानी में अहम अंतरराष्ट्रीय मसलों पर दिल्ली के असरदार पत्रकारों तथा संपादकों से संपर्क में रहा करते थे। उन्हें अमेरिका के दौरे भी करवाते थे। उन्हें अमेरिका के खास नीति निर्धारकों से भी मिलवाते। इस कवायद के पीछे लक्ष्य यही होता था ताकि अमेरिका का पक्ष भारत में सही तरह से सामने आता रहे।
पर टोनी ने 1990 के दशक में रिलांयस इंड्रस्टीज लिमिटेड ( आरआईएल) को ज्वाइन कर लिया। यह रिलायंस के बड़ी छलांग लगाने का समय था। उसे धीरूभाई अंबानी देख रहे थे। उनका उनके दोनों पुत्र मुकेश और अनिल साथ दे रहे थे। टोनी की क्षमताओं की जानकारी धीरूभाई अंबानी को मिल चुकी थी। इसलिए उन्होंने टोनी को खुद अपने साथ जुड़ने की पेशकश की। वे टोनी से अशोक होटल में मिले। दस मिनट की बैठक के बाद टोनी ने रिलायंस का हिस्सा बनने का फैसला कर लिया। धीरूभाई अंबानी दिल्ली में नेहरू पार्क फेसिंग अशोक होटल के किसी कमरे में ठहरा करते थे।
खैर, टोनी को जल्दी ही दिल्ली के पावर सर्किल में धीरूभाई अंबानी के विश्वासपात्र के रूप में पहचाना जाने लगा। वे रिलायंस के दिल्ली में रहकर हित देखते। वे बड़े सरकारी बाबुओं से लेकर मंत्रियों से मिलते रहते। हालांकि उनकी जॉर्ज फर्नाडीज से कभी नहीं पटी। कहते हैं कि टोनी ने जार्ज साहब के कृष्ण मेनन मार्ग वाले सरकारी बंगले में भी जाना शुरू कर दिया था। जार्ज साहब तब अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में रक्षा मंत्री थे। उनके घर के दरवाजे तो सबके लिए हमेशा खुले ही रहते थे। एक बार टोनी जेसुदासन की जार्ज साहब से मुलाकात हो गई। बातचीत होने लगी। उसी दौरान टोनी जेसुदासन ने उनसे कहा कि आप तो देश के भावी प्रधानमंत्री हैं। ये सुनते ही जार्ज साहब का पारा चढ़ गया। वे उखड़ गए। उन्होंने टोनी से कहा कि आप कौन होते हैं मेरे बारे में इस तरह की भविष्यवाणी करने वाले। बेहतर होगा कि यहां से चाय पीकर अपना रास्ता नाप लें। टोनी ने बहुत माफी भी मांगी पर बात नहीं बनी।
दिल्ली के फैकल्टी ऑफ मैनेजमैंट स्टडीज (FMS) के स्टुडेंट रहे टोनी घोर तनाव के पलों में भी शांत रहा करते थे। शायद ही किसी ने उन्हें आवेश में आते देखा हो।
रिलायंस ने बाराखंभा रोड की विजय बिल्डिंग से संडे आर्ब्जवर तथा बिजनेस एंड पालिटिकल आर्ब्जवर अखबार निकाला । वे उसका मैनेजमेंट भी देखते। कभी-कभी विजय बिल्डिंग की 14 वीं मंजिल में मिल भी जाते। पर 1990 के दशक के अंत में आते-आते ये दोनों अखबार बंद हो गए। हालांकि इससे टोनी की शक्तियों पर असर नहीं पड़ा। वे पहले की तरह से काम कर रहे थे। उनके साथ उनकी टीम भी थी। हां, धीरूभाई अंबानी की 2002 में मृत्यु और फिर रिलायंस ग्रुप के 2005 में दो फाड़ होने के बाद टोनी का जलवा घटने लगा जो 1980 के दशक से चल रहा था। उनके सामने मुकेश या अनिल अंबानी में से किसी के साथ काम करने के विकल्प थे। उन्हें दोनों भाई चाहते थे। टोनी ने अनिल अंबानी के समूह को ज्वाइन किया। उन्होंने अनिल अंबानी का कभी साथ नहीं छोड़ा। टोनी की पिछले मंगलवार को राजधानी में हुई अंत्येष्टि के समय उनके तमाम दोस्तों, साथियों के साथ अनिल अंबानी भी थे।
साभार- नभाटा
नवनीत चतुर्वेदी-
कुछ दिन पहले रिलायंस ग्रुप के बड़े वरिष्ठ अधिकारी जो धीरू भाई के समय से कार्यरत हैं औऱ बाद में अनिल अंबानी के साथ रहे… अन्थोनी jesudasan उर्फ़ टोनी उनका निधन हो गया.
विगत 15 फरवरी को ही पटियाला house कोर्ट में मेरे द्वारा दाखिल क्रिमिनल कंप्लेंट केस #rafale की सुनवाई भी थी जहां अनिल अंबानी के साथ अन्थोनी jesudasan भी मुख्य आरोपी बनाए गए थे.
अन्थोनी jesudasan साहब अब दिवंगत ने करीब 2 साल पहले ताज मानसिंह में कॉफी पर चर्चा के दौरान मुझे कहा कि आप शौक से यह क्रिमिनल केस कंटिन्यू करें मैं इसको वापस लेने की request करने के लिए आपसे नहीं मिल रहा हूं, बस कुछ तकनीकी पॉइंट explain करना चाहूंगा शायद आप आज नहीं लेकिन कुछ समय बाद स्वयं समझ जाएंगे.
दिवंगत अन्थोनी साहब का कहना था किसी उद्योगपति का किसी सीएम या पीएम से नजदीकी जानपहचान होना कोई बड़ी बात नहीं हैं, उद्योगपति चंदा भी देता हैं बदले में उसको कुछ सहूलियत मिल जाती हैं उसका समय बचता हैं उसके काम में देरी नहीं होती छिटपुट फायदा अवश्य मिलता हैं लेकिन व्यापार करने का कौशल बुद्धि चतुराई तो हमारी ही होती हैं वो हमें कोई सीएम या पीएम नहीं दे सकता हैं
उनका इशारा बड़े सेठ मुकेश अंबानी व गौतम अडानी की तरफ था कि दोनों अपनी समझ व अक्ल से आगे बढ़ रहे हैं लेकिन अनिल लगातार डूबते जा रहे हैं. जबकि पीएम से नजदीकी तीनों को बराबर हासिल हैं.
अन्थोनी का कहना था आप अनिल पर 36000 करोड़ के घोटाले का आरोप लगा रहे हैं जो विशुद्ध political स्टंट हैं पैसा कहीं आया ही नहीं हैं हालांकि मेरा जो स्टैंड था कि आपको नियम विरुद्ध इंडस्ट्रियल लाइसेंस मिले हैं उससे वो इत्तफाक रखते थे.
Note..
आज ज़ब अन्थोनी jesudasan दिवंगत हो चुके हैं उनकी कुछ बातें recall करते हुए वो एक अलग एंगल पर सोचने को मजबूर कर रही हैं… वो यह कि पीएम से नजदीकी का आरोप व 36000 करोड़ घपले के आरोप के बावजूद आज अनिल अंबानी गुमनामी में हैं उनकी तक़रीबन सभी कंपनीज कर्ज में व बंद पड़ी हैं जबकि मुकेश व गौतम अडानी यदि ऊंचाई पर हैं तो अपनी समझ व अक्ल से हैं औऱ वो उन्हें किसी पीएम ने नहीं दी हैं.