दैनिक जागरण को अपने ही गढ़ कानपुर में शर्मनाक स्थिति की सामना करना पड़ रहा है। और यह स्थिति बनी है दैनिक हिन्दुस्तान की रीलांचिंग के बाद से। अब तक कंटेंट कॉपी करने अर्थात हिन्दुस्तान में प्रकाशित खबरों को कुछ दिन बाद प्रकाशित करने के मामले प्रकाश में आ रहे थे, मगर अब तो हद ही हो गई। इस बार दैनिक जागरण ने हिंदुस्तान के ‘मस्ती मार्ग’ के कांसेप्ट को पूरी तरह कॉपी करके यह संदेश देने का काम किया है कि अब उसके पास नई सोच रखने वालों का अकाल पड़ गया है और दूसरे के कांसेप्ट कॉपी करने वालों की संख्या बढ़ गई है।
दरअसल, हिन्दुस्तान ने 30 नवंबर-14 से कानपुर में मस्ती मार्ग का आयोजन प्रारंभ किया। अखबार ने अपने स्वस्थ कानपुर अभियान को केंद्र में रखते हुए प्रत्येक रविवार को विभिन्न खेलकूद गतिविधियों को इस आयोजन में शामिल किया। हर आयोजन के बाद इसमें लोगों की भागीदारी बढ़ती चली गई। पहले आयोजन में दस हजार से शुरू हुआ सिलसिला पांचवें आयोजन तक तीस हजार का आंकड़ा पार कर गया। बढ़ती भीड़ ने दैनिक जागरण के होश उड़ा दिए। अपने ही गढ़ में पिछड़ने के जागरण प्रबंधन को कुछ और नहीं सूझा तो उसने कानपुर में हिन्दुस्तान की राह पर चलने का फैसला कर लिया है।
हिंदुस्तान का मस्ती मार्ग आयोजन
दैनिक जागरण ने हिंदुस्तान के मस्ती मार्ग का पूरा कांसेप्ट ही कॉपी कर लिया है। नाम रखा है ‘कानपुर कनेक्शन’। अंदरखाने की खबर यह है कि जागरण के कुछ जिम्मेदार कर्मचारियों ने हिन्दुस्तान के मस्ती मार्ग की कॉपी करने पर सवाल भी उठाए और ऐसा करने से मना भी किया, मगर कानपुर में अपनी जमीन को लगातार खिसकते देखकर प्रबंधने उनकी एक ना सुनी और कानपुर कनेक्शन शुरू करने का फरमान जारी कर दिया। यह आयोजन भी हिन्दुस्तान की भांति शहर के एक रोड पर रविवार को सुबह सात बजे से दस बजे होगा। जागरण के इस कदम को मीडिया जगत में ही नहीं हर जगह आलोचना का शिकार होना पड़ रहा है।
खबर यह भी आ रही है कि दैनिक जागरण प्रबंधन हिंदुस्तान के इस कांसेप्ट को अन्य शहरों में भी आयोजित कर सकता है। इसके पीछे कारण यह बताए जा रहे हैं कि दैनिक जागरण में नई सोच रखने वाले कर्मचारियों का संकट लगातार बढ़ता जा रहा है और जो लोग संस्थान में ऊंचे पदों पर हैं, वे नई सोच व नई ऊर्जा से काम करने की बजाय किसी तरह अपनी नौकरी बचाने की कोशिशों में लगे हुए हैं। कम वेतन और काम को लेकर होने वाले शोषण के चलते ज्यादातर इस संस्थान में वे कर्मचारी ही रह गए हैं, जिनके लिए अन्य संस्थानों के दरवाजे बंद हैं। ऐसी स्थिति में दूसरे अखबारों के कांसेप्ट को कॉपी करने की बजाय दैनिक जागरण के पास दूसरा रास्ता रह भी नहीं गया है।
sidhartha
January 11, 2015 at 6:17 pm
nakal ke liye bhi akal ki jarrurat hoti hae :-* :-* :-*
King Khan
January 13, 2015 at 11:22 am
😥 Gupta ji ki bhains gayi Keechad mein
yogendra
January 13, 2015 at 1:55 pm
Bhaiya jagran ab purane jamane ke logon ka daftar ban ke reh Gaya hai….. Nayi soch Ki jarurat hai inhe….
yogendra
January 13, 2015 at 1:56 pm
😳