18 जून 1968 को पत्रकारों की गुजारिश पर सरकार ने चाइना बाजार गेट स्थित भवन का पट्टा यूपी वर्किंग जर्नलिस्ट यूनियन के नाम पर आवंटित किया था। इसका उद्देश्य था कि पत्रकारों को एक स्थान मिल जाएगा, जहां वह बैठकर वह खबरों पर, देश-प्रदेश की स्थिति पर चर्चा-बहस कर लिया करेंगे। साहित्यिक और राजनीतिक चर्चाओं को भी विस्तार दे सकेंगे। इस भवन के आवंटन से पत्रकारों को उठने-बैठने और चर्चा की एक जगह मिल जाएगी, दूसरे युवा पत्रकारों को वरिष्ठों से सीखने का मौका भी मिलेगा।
यह स्थान उत्तर प्रदेश में पत्रकारिता की नींव मजबूत करने का स्थान बनेगा। शुरुआत में यह भवन पत्रकारों के विकास और सकारात्मक कार्यों का सबब बनता रहा, लेकिन समयंतराल यह प्रेस क्लब का भवन अय्याशी और साजिश रचने का अड्डा बनने लग गया। यहां से दलाली किए जाने की योजनाएं बनने लगीं। यहां से एक दूसरे को निपटाने की साजिशें रची जाने लगीं। यूपी वर्किंग जर्नलिस्ट यूनियन को आवंटित इस भवन पर प्रकारातंर पत्रकारों की बजाय ऐसे समूह ने कब्जा कर लिया, जिसका पत्रकारिता से कोई लेना-देना ही नहीं रह गया।
पत्रकार से दलाल के रूप में परिवर्तित हो गए लोगों ने इस भवन पर पूरी तरह से कब्जा जमा लिया, जिससे प्रेस क्लब की गरिमा धीरे-धीरे धूमिल होने लगी। पट्टे के उद्देश्य के विपरीत यह स्थान अय्याशी और दारुबाजी का अड्डा बन गया। हर दिन यहां पत्रकारिता की हत्या की जाने लगी। दलालों का लालच इस कदर बढ़ा कि वह इस सरकारी स्थान का अवैध तरीके से कामर्शिल इस्तेमाल करने लगे। प्रेस क्लब की बाउंड्री में मांस-मुर्गा की दुकानें खुलवा दी गईं।
प्रेस क्लब बार क्लब और रेस्टोरेंट बन गया। कामर्शिल इस्तेमाल से होने वाली आमदनी को सरकारी खजाने में जमा किए जाने की बजाय अपनी जेबों में डाला जाने लगा। कुछेक पत्रकारों ने प्रेस क्लब के बरबादी को लेकर शासन-प्रशासन को शिकायत भी की तो सत्ता-सिस्टम में पकड़ बनाए दलालों ने मामले को दबवा दिया। सरकारें भी इन दलालों को नियम-कानून से ऊपर मानकर अवैध गतिविधियों का संचालन आंख बंद करके देखती रहीं। स्थिति यह हो गई कि कभी चर्चाओं और समझ को नई ऊंचाई देने वाला प्रेस क्लब दारू-मांस का अड्डा बन गया।
प्रेस क्लब में पत्रकारिता भी दारू की बोतलों और मुर्गे की हड्डियों के नीचे दबकर बेमौत मरने को मजबूर हो गई। पत्रकारिता के विकृत चेहरे और दुर्गंध को नजदीक से महसूस करना हो तो प्रेस क्लब से बेहतर स्थान फिलहाल लखनऊ में दूसरा कोई नहीं है। दलाल और मठाधीशों के अनाधिकृत कब्जे वाला प्रेस क्लब ना केवल पत्रकारिता का बुरा कर रहा है बल्कि यह आने वाली पीढि़यों को भी दलाली, चाटुकारिता, हरामखोरी का ऐसा मंत्र दे रहा है, जिसकी कीमत केवल पत्रकारिता को ही नहीं बल्कि इस प्रदेश की आमजनता को भी चुकानी होगी।
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