Connect with us

Hi, what are you looking for?

सियासत

सूखे की दस्तक से हड़बड़ाई मोदी सरकार

Drought

लहलहाती फसल हो या फिर परती जमीन। जबरदस्त बरसात के साथ शानदार उत्पादन हो या फिर मानसून धोखा दे जाये और किसान आसमान ही ताकता रह जाये। तो सरकार क्या करेगी या क्या कर सकती है। अगर बीते 10 बरस का सच देख लें तो हर उस सवाल का जबाव मिल सकता है कि आखिर क्यों हर सरकार मानसून कमजोर होने पर कमजोर हो जाती है और जब फसलें लहलहाती है तब भी देश के  विकास दर में कृषि की कोई उपयोगिता नहीं होती। तीन वजह साफ हैं। पहला 89 फिसदी खेती के लिये देश में कोई इन्फ्रास्ट्रक्चर नहीं है। दूसरा, देश में अनाज संरक्षण का कोई इन्फ्रास्ट्क्चर नहीं है। तीसरा कृषि से कई गुना ज्यादा सब्सिडी उद्योग और कॉरपोरेट को मिलता है। यानी मोदी सरकार ने जो आज अनाज संरक्षण से लेकर गोदामों में सीसीटीवी लगाने की योजना बनायी वह है कितनी थोथी इसका अंदाजा इसे से हो सकता है। कि औसतन देश में 259 मिलियन टन अनाज हर बरस होता है। लेकिन सरकार के पास 36.84 मिलियन टन अनाज से ज्यादा रखने की व्यवस्था है ही नहीं। यानी हर बरस दो सौ मिलियन टन अनाज रखा कहां जाये, यह हमेशा से सवाल ही रहा है। और असर इसी का है कि 44 हजार करोड़ रुपये का अनाज हर बरस बर्बाद हो जाता है। यानी सरकार जो भी सब्सिडी खेती के नाम पर किसानों को देती है उसका आधा सरकार के पास कोई प्लानिंग ना होने की वजह से पानी में मिल जाता है।

<p><img src="images/Drought.jpg" alt="Drought" /></p> <p>लहलहाती फसल हो या फिर परती जमीन। जबरदस्त बरसात के साथ शानदार उत्पादन हो या फिर मानसून धोखा दे जाये और किसान आसमान ही ताकता रह जाये। तो सरकार क्या करेगी या क्या कर सकती है। अगर बीते 10 बरस का सच देख लें तो हर उस सवाल का जबाव मिल सकता है कि आखिर क्यों हर सरकार मानसून कमजोर होने पर कमजोर हो जाती है और जब फसलें लहलहाती है तब भी देश के  विकास दर में कृषि की कोई उपयोगिता नहीं होती। तीन वजह साफ हैं। पहला 89 फिसदी खेती के लिये देश में कोई इन्फ्रास्ट्रक्चर नहीं है। दूसरा, देश में अनाज संरक्षण का कोई इन्फ्रास्ट्क्चर नहीं है। तीसरा कृषि से कई गुना ज्यादा सब्सिडी उद्योग और कॉरपोरेट को मिलता है। यानी मोदी सरकार ने जो आज अनाज संरक्षण से लेकर गोदामों में सीसीटीवी लगाने की योजना बनायी वह है कितनी थोथी इसका अंदाजा इसे से हो सकता है। कि औसतन देश में 259 मिलियन टन अनाज हर बरस होता है। लेकिन सरकार के पास 36.84 मिलियन टन अनाज से ज्यादा रखने की व्यवस्था है ही नहीं। यानी हर बरस दो सौ मिलियन टन अनाज रखा कहां जाये, यह हमेशा से सवाल ही रहा है। और असर इसी का है कि 44 हजार करोड़ रुपये का अनाज हर बरस बर्बाद हो जाता है। यानी सरकार जो भी सब्सिडी खेती के नाम पर किसानों को देती है उसका आधा सरकार के पास कोई प्लानिंग ना होने की वजह से पानी में मिल जाता है।</p>

Drought

लहलहाती फसल हो या फिर परती जमीन। जबरदस्त बरसात के साथ शानदार उत्पादन हो या फिर मानसून धोखा दे जाये और किसान आसमान ही ताकता रह जाये। तो सरकार क्या करेगी या क्या कर सकती है। अगर बीते 10 बरस का सच देख लें तो हर उस सवाल का जबाव मिल सकता है कि आखिर क्यों हर सरकार मानसून कमजोर होने पर कमजोर हो जाती है और जब फसलें लहलहाती है तब भी देश के  विकास दर में कृषि की कोई उपयोगिता नहीं होती। तीन वजह साफ हैं। पहला 89 फिसदी खेती के लिये देश में कोई इन्फ्रास्ट्रक्चर नहीं है। दूसरा, देश में अनाज संरक्षण का कोई इन्फ्रास्ट्क्चर नहीं है। तीसरा कृषि से कई गुना ज्यादा सब्सिडी उद्योग और कॉरपोरेट को मिलता है। यानी मोदी सरकार ने जो आज अनाज संरक्षण से लेकर गोदामों में सीसीटीवी लगाने की योजना बनायी वह है कितनी थोथी इसका अंदाजा इसे से हो सकता है। कि औसतन देश में 259 मिलियन टन अनाज हर बरस होता है। लेकिन सरकार के पास 36.84 मिलियन टन अनाज से ज्यादा रखने की व्यवस्था है ही नहीं। यानी हर बरस दो सौ मिलियन टन अनाज रखा कहां जाये, यह हमेशा से सवाल ही रहा है। और असर इसी का है कि 44 हजार करोड़ रुपये का अनाज हर बरस बर्बाद हो जाता है। यानी सरकार जो भी सब्सिडी खेती के नाम पर किसानों को देती है उसका आधा सरकार के पास कोई प्लानिंग ना होने की वजह से पानी में मिल जाता है।

मॉनसून कमजोर है इसे लेकर सरकार के हाथ-पांव जिस तरह फूले हुये हैं और जिस तरह गोदामों में सीसीटीवी लगाने की बात हो रही है और राशन दुकानों में कम्प्यूटर की बात हो रही है उसका सबसे बड़ा सच यही है कि देश में सरकार गोदाम महज 13 मिलियन टन रखने भर का है और किराये के गोदामों में 21 मिलियन टन अनाज रखा जाता है। और-करीब 3 मिलियन अनाज टन चबूतरे पर खुले आसमान तले तिरपाल से ढंक कर रखा जाता है। यानी हजारों मिट्रिक टन अनाज हर बरस सिर्फ इसलिये बर्बाद हो जाता है क्योंकि गोदाम नहीं है और न देश में गोदाम बनाने का बजट। और गोदाम के लिये जमीन तक सरकार के पास नहीं है। क्योकि भूमि सुधार के दायरे में गोदामों के लिये जमीन लेने की दिशा में किसी सरकार ने कभी ध्यान दिया ही नहीं है। तो फिर कमजोर मानसून से जितना असर फसलों पर पड़ने वाला है करीब उतना ही अनाज कम गोदामों के वजह से बर बरस बर्बाद होता रहा है। और एफसीआई ने खुद माना है कि 2005 से 2013 के दौरान 194502 मिट्रिक टन अनाज बर्बाद हो गया। और देश में 2009 से 2013 के दौर में बर्बाद हुये फल, सब्जी, अनाज की कीमत 206000 करोड़ रुपये रही।

Advertisement. Scroll to continue reading.

लेकिन सरकार की नजर पारंपिरक है क्योंकि मानसून की सूखी दस्तक ने सरकार को मजबूर किया है कि वह खेती पर दी जा रही सब्सिडी को जारी रखे। इसलिये मोदी सरकार ने फैसला लिया है कि वह बीज और खाद पर सब्सिडी को बरकरार रखेगी। लेकिन जिस खेती पर देश की साठ फीसदी आबादी टिकी है उसे दी जाने वाली सब्सिडी से कई गुना ज्यादा सब्सिडी उन उघोगों और कॉरपोरेट को दी जाती है, जिस पर 12 फीसदी से भी कम की आबादी टिकी है। यानी सरकार की प्राथमिकता खेती को लेकर कितनी है और सरकार की नीतियां उघोग-धंधों को लेकर किस कदर है इसका अंदाजा मनमोहन सरकार के दौरान के इस सच से समझा जा सकता है कि पी चिदंबरम ने फरवरी में रखे अंतरिम बजट में अनाज, डीजल और खाद पर करीब ढाई लाख करोड की सब्सिडी देने का अनुमान बताया। वहीं कॉरपोरेट टैक्स से लेकर एक्साइज और कस्टम ड्यूटी में जो छूट उघोग और कारपोरेट को दी वह करीब छह लाख करोड़ की है। सवाल यही है कि क्या मोदी सरकार इन नीतियों को पलटेगी या फिर खेती को लेकर शोर शराबा ज्यादा होगा और चुपके चुपके हर बार की तरह इस बरस भी कॉरपोरेट टैक्स, पर्सनल टैक्स, एक्साइज टैक्स और कस्टम टैक्स में औगोगिक घरानों को रियायत देने का सिलसिला जारी रहेगा। मुश्किल यह है कि बीते पांच बरस में करीब तीस लाख करोड़ की रियायत औघोगिक घरानों को दी गयी। और अनाज संरक्षण से लेकर खेती के इन्फ्रास्ट्रक्चर को बनाने में सरकार को सिर्फ इसका आधा यानी दस से बारह लाख करोड़ ही चाहिये। मनमोहन सरकार की प्राथमिकता खेती रही नहीं। इसलिये जीडीपी में कृषि का योगदान भी 18 फीसदी से भी नीचे आ गया। अब मोदी सरकार की प्राथमिकता खेती है या फिर वह भी औद्योगिक घरानों के मुनाफे तले चलेगी इसका इंतजार करना पड़ेगा। जो अभी तक साफ नहीं है और सरकार ने पहले महीने सिर्फ सरकार चलाने में आने वाली मुश्किलों को ही दुरुस्त करने की दिशा में कदम बढ़ाया है। यानी असर कोई नजर आये यह बेअसर हैं। वैसे सब्सिडी का खेल भी निराला है। एक तरफ खेती के लिये 246397 करोड़ रुपये सब्सिडी दी गयी तो चालू वर्ष में उघोग/ कारपोरेट को 5,73,630 करोड़ रुपये की रियायत दी गयी है। सवाल है इसे मोदी सरकार बदलेगी या मनमोहन के रास्ते पर ही चलेगी। वैसे मोदी को अब फूड सिक्यूरटी बिल भी अच्छा लगने लगा है। 1 लाख 31 हजार करोड के जरीये हर किसी को भोजन देने की बात सोनिया के राष्ट्रीय सलाहकार समिति के ड्रीम प्रोजेक्ट से निकली, मनमोहन सिंह ने फूड सिक्यूरटी बिल के तौर पर लाये और अब नरेन्द्र मोदी सरकार इसे लागू कराने पर भिड़ गये हैं।

लेकिन 1 लाख 31 हजार करोड़ की यह योजना पूरे देश में लागू कब और कैसे होगी यह अपने आप में सवाल है। क्योंकि यह योजना राशन की दुकानों के जरीये ही लागू होना है। और मौजूदा वक्त में सरकार के ही आंकड़ें बताते है कि देश भर में 478000 राशन दुकाने हैं। जिनके जरीये 18 करोड़ परिवार या कहे 40 करोड़ लोगों तक अनाज पहुंचाया जाता है। वहीं योजना आयोग की रिपोर्ट बताती है कि राशन दुकानों से निकले अनाज का सिर्फ 25 फीसदी ही बीपीएल तक पहुंच पाता है। यानी 1 लाख 31 हजार करोड़ की योजना में से आने वाले वक्त में करीब एक लाख करोड रुपये कहा जायेंगे, यह सबसे बड़ा सवाल है। और इससे जुड़ा सच यह है कि देश में फिलहाल दो करोड 45 लाख फर्जी राशन कार्ड है। 5 लाख राशन दूकानो से अनाज की लूट पकड़ी गयी है। और बीते पांच बरस में दस लाख मिट्रिक टन अनाज बीपीएल परिवार तक पहुंचा ही नहीं। तो फिर फूड सिक्योरटी हो या अंत्योदय इसे लागू कराना ही सबसे बडी चुनौती मोदी सरकार के सामने है। और अब इसके तमाम छेद जस के तस रखते हुये मोदी सरकार भी हर पेट को भोजन देने की दिशा में बढ़ रही है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

वरिष्ठ पत्रकार पुण्य प्रसून बाजपेयी के ब्लॉग से साभार।

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement