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सुख-दुख

लखनऊ के दो वरिष्ठ पत्रकार क़ोरोना की भेंट चढ़ गए!

राजीव तिवारी बाबा-

लड़ाकू पत्रकार साथी सच्चिदानंद गुप्ता उर्फ सच्चे कोरोना की भेंट चढ़ गये। बाबा सच्चे भाई की आत्मा को शांति और परिजनों को दुःख की इस घड़ी में धैर्य प्रदान करें.

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सच्चे

मोहम्मद कामरान-

आह! अफसोस दर अफसोस… इंतेहाई अफसोस के साथ यह बात बतानी पड़ रही है कि हम सबके प्रिय सच्चे भाई (सच्चिदानंद गुप्ता) अब हमारे बीच नही रहे। अपनी बीमारी के चलते वो इंटीग्रल हॉस्पिटल में भर्ती हुए थे जहां हालात बिगड़ती ही गयी और वो हम सबको छोड़ गए।

नवेद शिकोह-

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सच्चे जैसे अच्छे थे जो पहले चले गए!

” जिनकी सांसें चल रही हैं अब तलक,
ख़ुद का नंबर आए तब तक ताज़ियत देते रहें “।

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मौत की झड़ी लगी है, सबका नंबर आ रहा है। कोई पहले कोई बाद में। लग रहा है कि इस आंधी में हर तिनके को उड़ जाना है। जिनका नंबर जितनी देर से आ रहा है उन्हें उतने ज्यादा ग़म उठाने पड़ रहे हैं। लगने लगा है कि जाने की लाइन में सब खड़े हैं।

लखनऊ के पुराने और चर्चित पत्रकार सच्चिदानन्द सच्चे गुप्ता उर्फ सच्चे जहां खड़े होते थे लाइन वहीं से शुरू होती थी।
इसलिए उनका नंबर पहली खेप मे आ गया। तमाम परिजनों, पत्रकारों, शुभचिंतकों और आलाधिकारियों की लाख कोशिश के बावजूद उन्हें कोरोना के जानलेवा पंजों से बचाया नहीं जा सका। लखनऊ में तेज हो रही मौत की आंधी में हर सुबह और हर शाम हर किसी को अपने करीबी की मौत की खबर मिल रही है। अब लगने लगा है कि एक-एक कर सबको जाना है, किसी को पहले तो किसी को बाद में। जिसका नंबर जितने बाद मे आएगा उसे अपनों के बिछड़ने का उतना ही ग़म सहना पड़ेगा।

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हालात ये हैं कि अब मौत का डर भी है और ज़िन्दा रहना भी मुश्किल है। सुबह एक अज़ीज़ के मर जाने की खबर आती है और शाम दूसरे दोस्त की मौत का खामोश और सूना मातम होता है। सांसे अटकने और फिर थमनें का जिसका नंबर जितन देर से आएगा उसे उतने ही साथियों का मातम करना पड़ेग। जो अभी बचें हैं और जब तक बचे हैं, और जितने दिन तक और बचे रहेंगे उनके पास सुबह-शाम एक ही काम है- ताज़ियत पेश करना। ( संवेदनाएं प्रकट देना/दुख व्यक्त करना/श्रद्धांजलि देना।)

बड़े-बड़े जा रहा हैं। मौत की आंधी किसी को नहीं छोड़ रही। उनको भी नहीं जो हर आंधी को अपने पैरों तले रौंद देते थे। सच्चे भाई भी ऐसे थे। पत्रकारिता के पेशे की परेशानियों, मुफलिसी और चुनौतियों को रौंद कर तरक्की के रास्ते पर सरपट दौड़ने वाले सच्चिदानंद गुप्ता उर्फ सच्चे सचमुच एक मिसाल थे। उन्होने साबित कर दिया था कि एक मामूली पत्रकार किस तरह हुकुमतों से टकरा सकता है।

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कम संसाधधों वाला एक छोटे अखबार को बड़ी मंजिल तक कैसे ले जाया जा सकता है। एक जमीनी पत्रकार एक छोटे अखबार के साथ किस तरह बड़ी पहचान बनाता है। कानूनी लड़ाइयों से ताकतवर से ताकतवर सरकारों को कैसे बैकफुट पर लाया जा सकता है। किस तरह जनहित याचिका भ्रष्टाचार की परतें खो सकती है !

मजाल नहीं कि बड़े से बड़े अफसर आपको नजरअंदाज करें। इन तिलिस्मों को समझने के लिए सच्चे भाई की पत्रकारिता के सफर पर ग़ौर करना होगा। लेकिन सच्चे जीवन के सबसे बड़े सत्य को चुनैती नहीं दे सकते थे। अफसोस कि हर जंग जीतने वाला कोरोना को नहीं हरा पाया।

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अतुल मोहन सिंह-

लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार और इटावा जनपद में जन्में श्रीमान सच्चिदानंद गुप्ता उपाख्य ‘सच्चे गुप्ता’ कोरोना संक्रमित होने से मंगलवार शाम को गोलोकवासी हो गए। ईश्वर से प्रार्थना है कि दिवंगत आत्मा को सद्गति और शिकाकुल परिजनों को साहस दें। विनम्र श्रद्धांजलि!

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नवेद शिकोह-

दुर्गा

ये हैं दुर्गा प्रसाद शुक्ला जी। आज ये भी चले गए। पंद्रह बरस पहले मुझसे जुड़े थे। मैं लखनऊ के एक सांध्य समाचार पत्र ‘समर शिखर’ का संपादक था और ये मेरे बीकेटी संवाददाता थे। लेकिन जब भी हम मिलते थे नहीं लगता था कि संपादक और संवाददाता गुफ्तगू कर रहे हैं। पता नहीं क्यों मैं इन्हें देखकर ही इनसे मज़ाक करने लगता था, ये मुझे देखकर खबर ना लगने या कट जाने की शिकायतें करने लगते थे।
सुना है ये आजकल अमर उजाला अखबार से जुड़े थे।
जिन्दगी की भागादौड़ी में जिन पुराने साथियों से मुलाकात-बातचीत नहीं हो पाती थी उनकी मौत की खबरें सुनकर मलाल हो रहा है कि इतने लम्बे अंतराल तक पुराने साथियों से हालचाल का वक्त क्यों नहीं निकाल पाया। अब कैसे मुलाकात होगी! खिराजेअक़ीदत!


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