सिद्धार्थ ताबिश-
अस्सी के दशक में जब मैं अपने गांव में होता था तो मेरी दादी चूल्हे पर अरहर की दाल बनाती थीं.. वो भी आज वाली अरहर नहीं, छिलके के साथ वाली देसी अरहर.. इस दाल के साथ अक्सर बस एक ही सब्ज़ी होती थी.. मैं उस वक्त बहुत छोटा था मगर उस दाल को ही सिर्फ़ मैं कटोरा भर के पीता था.. चावल और रोटी के साथ तो खाता ही था, अलग से भी पीता था.. बड़े होने पर दादी के हाथ की उस दाल का मज़ा मैं याद किया करता था.
मैं अक्सर सोचता था कि आख़िर क्यों उस मजे की दाल अब नहीं मिलती है.. मुझे लगता था कि शायद अब दाल और सब्ज़ियों में वो मज़ा नहीं रहा, मगर ऐसा नहीं है.. दाल में अब भी वही मज़ा है मगर हमारे पास अब ऑप्शन और खाना इतना ज़्यादा हो गया है कि हम न तो ठीक से कभी भूखे हो पाते हैं और न ही किसी एक चीज़ का अकेले मज़ा ले पाते हैं.
उस वक्त खाने में गिने चुने ऑप्शन होते थे.. और जो भी खाना होता था वो उसी वक्त गरम गरम खाना होता था.. न कोई फ्रिज न कोई स्टोर करने का सामान.. हम बच्चे तब तक भूखे बैठे रहते थे जब तक खाना न पक जाए.. शाम को खेलने के बाद भूख ऐसी लगती थी जैसे कि क्या मिले और क्या खा लें.. और खाना पक रहा होता था चूल्हे पर आराम से.. न कोई कूकर, न कोई गैस.. देसी दाल ही पकने में अच्छा खासा समय लेती थी.. तो खाने का पूरी तरह से, ठीक से इंतज़ार किया जाता था.. हमारा पेट खाने का इंतज़ार करता था.. एक दम खाली हो जाता था पेट और आतें बेचैन हो जाती थीं सिर्फ़ दाल के लिए.
अब ज्यादातर लोगों के साथ ऐसी स्थिति बनती ही नहीं है.. हर जगह खाना है. हर जगह खाने के ठेले.. फल के ठेले, होटल, रेस्टोरेंट.. कोल्ड ड्रिंक से लेकर सैकड़ों तरह के नमकीन और स्नैक्स.. ये सब किसी भी इंसान को अब वैसी भूख लगने ही नहीं देते है.. ज़रा सा भूख लगी, आदमी कुछ न कुछ खा लेता है.. आतें कभी खाने के लिए तड़प ही नहीं पाती हैं.. इसलिए अब “स्वाद” ओवररेटेड चीज़ बन चुकी है.
ये वैसे ही है जैसे पहले दूरदर्शन था.. बस वही एक एंटरटेनमेंट का जरिया था.. तो हम बच्चे उस पर “कृषि दर्शन” तक देख डालते थे.. भले कुछ समझ आए या ना आए.. गिने चुने प्रोग्राम आते थे.. और रात 12 बजे स्टेशन बंद हो जाता था.. इसलिए देखने की भूख बची रहती थी.. अब 200 टीवी चैनल हैं.. नेटफ्लिक्स समेत सैकड़ों OTT प्लेटफार्म है.. मगर फिर भी कुछ समझ नहीं आता है कि क्या देखा जाय.. एक तरह से ये ओवर ईटिंग जैसा है.. कोई रस नहीं रहा अब देखने में क्योंकि ऑप्शन इतने ज़्यादा हैं कि अब मन भर चुका है.
इसी वजह से करीब 10 से 15 सालों से मैने खाने के बीच में कुछ भी खाना बंद कर दिया.. सुबह बस नाश्ता किया उसके बाद दोपहर में खाना खाया.. उसके बाद सीधे रात में ही खाता हूं कुछ.. बीच में में न तो कभी कोई स्नैक्स खाता हूं और न ही कुछ पीता हूं सिवाए पानी के.. कितना भी मेरे आसपास खाने का समान हो, मैं कुछ नहीं खाता.. और इसी बात का ये नतीजा है शायद कि अब भी मैं गांव से छिलके वाली देसी दाल मंगवाता हूं और उसे कभी कभी पकवा के खाता हूं.. चूल्हे वाला तो मज़ा नहीं मिलता है मगर हां, आतें जब कुलबुला जाती हैं तो वही मज़ा आता है जो बचपन में आता था..
मैंने अपने आसपास तमाम खाना होने के बावजूद खाने के सारे ऑप्शन बंद कर दिए.. खाना मेरे पेट को तभी मिलता है जब आतें पनाह मांग लेती हैं.. मैं फ्रिज से निकाल के कभी भी कुछ नहीं खाता हूं.. फ्रिज मेरे लिए किसी काम की नहीं होती है.. और इसी वजह से मैं शाम 6 या 7 बजे तक डिनर हर हाल में कर लेता हूं.
अपने आसपास खाने के बहुत सारे ऑप्शन ख़त्म कर दीजिए.. फिर खाने में मज़ा देखिए.
डॉ अव्यक्त अग्रवाल-
Adult age में जीभ के रिसेप्टर्स की संवेदनशीलता भी कम हो जाती है। शायद इसलिए बच्चों को चॉकलेट , आइसक्रीम , आम, इमली वगैरह अधिक पसंद होती है । मिर्च का तीखापन और करेले की कड़वाहट अधिक लगती है ।
Intermittent fasting अब वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित तरीका है बेहतर स्वास्थ्य का । दरअसल हजारों , लाखों वर्ष पहले खाने की उपलब्धता निरंतर न होने से हमारी शारीरिक संरचना भूखे रह सकने के अनुसार है।
जैसे ताकतवर शेर को तो और भी कम दिन खाना मिल पाता है । लेकिन उसकी संरचना में उसे रोज खिलाया जाने लगे तो शायद वो बीमार हो जायेगा ।
बेली फैट Extra reserve / power bank होता है जिससे कैलोरी मिलती रहे खाना कुछ दिन न मिल पाने पर। लेकिन अब लोग सिर्फ जमा करते हैं इस बैंक में खर्च नहीं करते तो पेट बढ़ता जाता है ।
तोंद, मोटापा, डायबिटीज, बीपी, खान पान में हुए इसी अचानक बदलाव की वजह से बढ़ा । Intermittent fasting से हमारे इंसुलिन रेसिप्टर अच्छा काम करते रहते हैं । आपका ऑब्जर्वेशन बहुत अच्छा है।
Dr. P. K. Sinha
July 26, 2023 at 7:26 pm
Natural, original and simple food makes us healthy and fit. This article is an eye opener for the common people. I still prefer to take gram and Jau ka sattu, maize, चिउड़ा का bhuja, छिलके वाली अरहर, मूंग, उड़द pulse, मोटी मोटी रोटी prepared of mixed flour with good quantity of Desi ghee and पकाया हुआ लहसुन वह लाल मिर्च। Let us relish
the dishes. मोटा भदई लाल रंग का चावल अब दुर्लभ है, but I arrange it and enjoy my meal.