बस एक सरकारी बंगला बचाने के लिए मोदी सरकार के ग़ुलाम बन गए कांग्रेसी आज़ाद!

Share the news

विवेक शुक्ला-

बंगले के लिये गुलामी आजाद साहब की… गुलाम नबी आजाद के नाम ने मुझे हमेशा प्रभावित किया। वे आजाद भी हैं और गुलाम भी । एक नाम में दोनों। इस तरह के नाम आसानी से सुनने को नहीं मिलते। पर आजाद साहब अलग तरह की किस्मत लेकर पैदा हुये हैं। उन्होंने जीवनभर पंजीरी खाई। बार-बार मंत्री बनते रहे। मुख्यमंत्री भी रहे।

वे कभी जनता के नेता नहीं रहे। याद नहीं आता कि वे कभी सड़कों पर आकर किसी बड़े आंदोलन का हिस्सा रहे हों। उन्होंने पुलिस की लाठियां खाईं हों।

वे दो कौढ़ी के वक्ता रहे हैं। उनका भाषण सुनते हुये नींद आना लाजिमी है। उनकी तकरीरें बेहद बोरिंग होती हैं। इस सबके बावजूद वे कांग्रेस में इंदिरा गांधी से लेकर मनमोहन सिंह की सरकारों में मंत्री रहे। उन्होंने मंत्री रहते हुये किसी मंत्रालय का कायाकल्प नहीं किया। आज प्रेस क्लब में चर्चा थी कि सरकार ने कुछ दिन पहले ही आजाद साहब को लुटियंस दिल्ली के अपने सरकारी बंगले में रहने की अनुमति दे दी है।

वे हर हालत में अपने बंगले को बचाने की कोशिश कर रहे थे। कांग्रेस को छोड़कर उन्होंने अपना बंगला सुरक्षित कर लिया है। बाबा साहेब अंबेडकर ने नेहरु कैबिनेट को छोड़ने के अगले ही दिन अपना सरकारी बंगला छोड़ दिया था। पर गुलाम साहब ने तो कभी बाबा साहेब के नक्शे कदम पर चलने का दावा नहीं किया। वे तो अपनी इज्जत तार-तार करवाकर भी आज खुश होंगे क्योंकि उनका बंगला बचा रहा।

पीयूष बबेले-

गुलाम नबी अब आराम से गोल्फ खेल सकेंगे… कोई 4 साल पहले की घटना याद आ रही है। गुलाम नबी आजाद ने कई पत्रकारों को दिल्ली में अपने सरकारी बंगले पर दावत में बुलाया था। हम भी गए थे।

वहां उन्होंने अपने बंगले के लॉन में बार बार घूम कर बताया कि उनके पास कितना बड़ा लॉन है, जहां वे आराम से गोल्फ खेलते हैं। फिर उन्होंने एक पेड़ दिखाया जिसके नीचे सांप की बानी और छोटा सा मंदिर था।

उन्होंने बताया कि उसमें एक नाग नागिन का जोड़ा रहता है। फिर कहा कि लेकिन यह बात आप लोग अखबार में मत लिख दीजिएगा नहीं तो यहां मंदिर बनाकर मोदी जी मेरा बंगला खाली करा देंगे।

लेकिन आज तो आजाद ना सांसद है, ना नेता प्रतिपक्ष, ऐसे में उनका बंगला भी उसी तरह खाली कराया जा सकता था जैसे दलित नेता रामविलास पासवान के निधन के बाद बंगले से उनका सामान फेंक दिया गया था। अब कांग्रेस छोड़कर उन्होंने अपना बंगला भी सुरक्षित कर लिया है और लुटियंस जोन में बंगले के भीतर गोल्फ खेलने का पक्का इंतजाम भी कर लिया है।

कृष्ण कांत-

आज गुलाम नबी भी अपने फर्ज से आजाद हो गए। ऐसे समय में जब कांग्रेस को उनके ज्यादा सहयोग की जरूरत थी, वे भाग खड़े हुए। राहुल गांधी और कांग्रेस जिन्हें अपना समझते हैं, वही उन्हें ऐन मौके पर धोखा देता है। उनके लिए रास्ता उम्मीद से ज्यादा कठिन है।

हालांकि, उन्होंने कुछ नया नहीं किया है। इसकी अपेक्षा तब से थी जबसे डंकापति उनके लिए रोये थे। गुलाम नबी आजाद और कपिल सिब्बल जैसे नेता कहते थे कि पार्टी में कुछ हो नहीं रहा है। लेकिन जब कांग्रेस खुद को मजबूती देने के लिए लगातार मेहनत कर रही है, ये सारे के सारे नेता भाग रहे हैंं। हाल में महंगाई पर प्रदर्शन हुआ, अगली रैली 4 सितंबर को है, उसके बाद एक ऐतिहासिक देशव्यापी यात्रा है।

खुद गुलाम नबी को कश्मीर में चुनाव अभियान की कमान सौंपी गई थी। उन्होंने इस्तीफा दे दिया और अब पार्टी से भी निकल गए।

गुलाम नबी आजाद को कांग्रेस से क्या नहीं मिला? 1970 में वे कांग्रेस से जुड़े। 1975 में जम्मू कश्मीर यूथ कांग्रेस के अध्यक्ष बने। 1980 में यूथ कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने। 1980 में महाराष्ट्र की वाशिम लोकसभा से चुनाव जीते। 1982 में केंद्रीय मंत्री बनाया गया। 1984 में फिर इसी सीट से जीते। 1990-1996 तक महाराष्ट्र से राज्यसभा सांसद भेजे गए। नरसिम्हा राव की सरकार में मंत्री रहे। 1996 से 2006 तक जम्मू कश्मीर से राज्यसभा गए। 2005 में जम्मू कश्मीर के सीएम बने। फिर मनमोहन सरकार में स्वास्थ्य मंत्री बने। 2014 में उन्हें राज्यसभा में विपक्ष का नेता बनाया गया। 2015 में आजाद को जम्मू कश्मीर से फिर राज्यसभा भेजा गया।

1990 से लेकर अब तक वे सिर्फ राज्यसभा में रहे। एक चुनाव जीतने की औकात नहीं रही लेकिन पार्टी उन्हें राज्यसभा से मंत्री बनाती रही और सबसे खराब दौर में भी उन्हें राज्यसभा में नेता बनाया। अब भी उनका राज्य उन्हें सौंपा जा रहा था। कांग्रेस जो नहीं कर पा रही थी, उनके पास कर दिखाने का मौका था। वे कांग्रेस की निष्क्रियता से तंग आ गए थे, लेकिन जब पार्टी ने उन्हें सक्रिय होने को कहा तो फुस्स हो गए। 42 साल बिना पद के कभी नहीं रहे। अब कांग्रेस पद देने की हालत में नहीं थी तो साथ छोड़ गए। चर्चा है कि बंगला खाली करना था, शायद अब भाजपा के शायद कुछ खिचड़ी पक जाए तो बंगला बच जाएगा। जिनका लक्ष्य इतना छुद्र हो, वे लोग कांग्रेस के किस काम आएंगे?

कभी ऐसा लगता है कि जी-23 कांग्रेस के अंदर भाजपा का खड़ा किया हुआ किला है जो ऐन मौके पर कांग्रेस को नुकसान पहुंचाने के लिए सक्रिय होता है, फिर सोया रहता है। कांग्रेस को भाजपा ने उतना नुकसान पहुंचाया है जितना कांग्रेस के कथित दिग्गजों और राहुल के करीबियों ने पहुंचाया है। कांग्रेस को सबसे पहले अपने धोखेबाज नेताओं से निपटना होगा, वरना यह मुसीबत बढ़ती जाएगी।

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *