गिरीश मालवीय-
मान लीजिए शहर की किसी व्यस्त सड़क से आप गुजर रहे हैं और आठ दस पुलिस वाले आपको रोकते हैं और वह आपके चेहरे का फोटो अपने मोबाइल पर खींच लेते हैं, ओर फिर आपको जाने देते हैं तो आप क्या करेंगे?
हो सकता है कि आप इस घटना को सामान्य मान कर आगे निकल जाए लेकिन हैदराबाद के MQ मसूद ने ऐसा नही किया. पहले लॉक डाउन के दौरान यह घटना उनके साथ घटी थी. मसूद ने इस तरह से अपने फ़ोटो खींचे जाने के खिलाफ शहर के पुलिस प्रमुख को एक कानूनी नोटिस भेजकर जवाब मांगा. कोई जवाब ना मिलने पर उन्होंने हाईकोर्ट में एक मुकदमा दायर किया जिसमें तेलंगाना सरकार द्वारा चेहरा पहचानने वाली तकनीक के इस्तेमाल को चुनौती दी गई है.
जी हाँ हम बात कर रहे हैं फेशियल रिकग्निशन की, भारत में अपनी तरह का यह पहला मामला है. मसूद की ओर से पेश एडवोकेट मनोज रेड्डी की दलीलें सुनने के बाद कोर्ट की पीठ ने तेलंगाना राज्य सरकार को नोटिस जारी किया है।
मसूद कहते हैं कि ‘यह जानना मेरा अधिकार भी है कि मेरी तस्वीर क्यों खींची गई, इसका क्या इस्तेमाल किया जाएगा, कौन-कौन उस फोटो का इस्तेमाल कर सकता है और उसकी सुरक्षा कैसे की जाएगी. हर किसी को यह जानने का अधिकार है.”
मसूद बिल्कुल सही कह रहे हैं, फेशियल रिकग्निशन तकनीक का इस्तेमाल पूरी दुनिया में तेजी से बढ़ा है. अब इस तकनीक को फोन की स्क्रीन खोलने से लेकर एयरपोर्ट आदि में प्रवेश के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है.
ऐसा लगता है कि भारत मे फेशियल रिकॉग्निशन केलिए तेलंगाना को पायलट प्रोजेक्ट के बतौर चुना गया है. पिछले साल आई एक रिपोर्ट में तेलंगाना को दुनिया की सबसे अधिक निगरानी वाली जगह बताया गया था.
राज्य में छह लाख से ज्यादा सीसीटीवी कैमरे लगे हैं जिनमें से अधिकतर हैदराबाद में हैं. इसके अलावा पुलिस के पास स्मार्टफोन और टैबलेट में एक ऐप भी है जिससे वह कभी भी तस्वीर लेकर उसे अपने डेटाबेस से मिलान के लिए प्रयोग कर सकती है.
भारत सरकार पूरे देश में फेशियल रिकग्निशन सिस्टम शुरू कर रही है, जो दुनिया में सबसे विशाल होगा. निजता के अधिकार पर छाए इस बड़े खतरे को भारत के लिबरल बुद्धिजीवी बहुत हल्का कर आंक रहे हैं.
डिजिटल अधिकारों के लिए काम करने वाले कार्यकर्ता कहते हैं कि फेशियल रिकग्निशन सिस्टम अक्सर गहरे रंग वाले या महिलाओं के चेहरों को पहचानने में गलती करता है और भारत में डेटा सुरक्षा को लेकर कड़े कानून नहीं हैं इसलिए यह तकनीक और ज्यादा खतरनाक हो जाती है.
प्राइवेसी के अधिकार को अभी भी भारत का लिबरल समाज ठीक से समझ नही पाया है. के.एस. पुट्टस्वामी बनाम भारत संघ एंड अन्य मामले में कहा गया कि सरकार निजता के अधिकार को तब तक प्रतिबंधित नहीं कर सकती जब तक कि ऐसा प्रतिबंध कानून पर आधारित न हो, और यह आवश्यक और आनुपातिक है इसलिए इस केस के फैसले पर बहुत कुछ निर्भर करता है.
जिस देश का प्रधानमंत्री कपड़ो से पहचानने की बात करता है वहाँ फेशियल रिकग्निशन कितना खतरनाक है, यह बातें भारत के बुद्धिजीवी अभी ठीक से समझ नहीं रहे हैं, न इस ओर हमारा ध्यान जा रहा है कि हमारा देश तेजी से सर्विलांस स्टेट में बदल रहा है।
बहुत से लोगों का तर्क है कि हर पल की निगरानी हमारे लिए अच्छी है. इससे तो अपराध रोकने में मदद मिलेगी, लेकिन जैसा दिखाया जाता है सच हमेशा ऐसा नहीं होता। भारत में यदि ऐसी तकनीक को इस्तेमाल किया जाता है तो सबसे ज्यादा खतरा मुसलमानों, दलितों और आदिवासियों को है क्योंकि ये लोग अपने विशिष्ट पहचान और स्किन कलर से पहले ही पुलिस व्यवस्था के निशाने पर हैं.
फेशियल रिकग्निशन की यह पूरी व्यवस्था AI आधारित तकनीक पर काम करती है इसलिए इसके सॉफ्टवेयर में ऐसी फीडिंग की जा सकती है जिसमें भौं के आकार से लेकर त्वचा के रंग और यहाँ तक कि जातीयता तक को लेकर लोगो को छांटा जा सकता है।
सबसे बड़ी बात तो यह है कि यह व्यवस्था सीधे बड़ी बड़ी कारपोरेट कम्पनियों के हाथों से संचालित की जाएगी।
आपको जानकर बेहद आश्चर्य होगा कि चीन में जहाँ दुनिया का सबसे खतरनाक सर्विलांस सिस्टम लागू किया जा चुका है वहाँ इस व्यवस्था को बनाने की जिम्मेदारी सीसीटीवी कैमरा निर्माता कंपनियों ने संभाल रखी है। इनमें हाईकेविजन (Hikvision) और दहुआ (Dahua) सीसीटीवी निर्माता कंपनियां हैं। इन्ही चीनी कंपनियों के कैमरे भारत मे भी बड़े पैमाना पर इस्तेमाल हो रहे हैं।
चीन के झिंजियांग प्रान्त में चलाई जा रही पुलिस वीडियो निगरानी को “झिंजियांग पुलिस परियोजना” नाम दिया गया है। इसे सीधे सीसीटीवी निर्माता कंपनी दहुआ संचालित करती है। दाहुआ के सीईओ व्यक्तिगत रूप से झिंजियांग पुलिस स्टेशनों के निर्माण और संचालन के लिए चीन की पुलिस के साथ व्यापक ‘सहयोग समझौतों’ पर हस्ताक्षर करते हैं।
इसी कंपनी द्वारा बनाया गया सार्वजनिक सुरक्षा के लिए वीडियो निगरानी में उपयोग की जाने वाली प्रणालियों के लिए एक मानक, जिसे मई 2021 में अपनाया जाना है, त्वचा के रंग को पांच श्रेणियों – सफेद, काला, भूरा, पीला और अन्य में सूचीबद्ध करता है।
Dahua पर आरोप लगा है है कि व्यक्तिगत जातीय समूहों का पता लगाने के लिए सरकारी मानकों का मसौदा तैयार करने में मदद की है इसलिए ऐसी कई कम्पनियों को अमेरिका में ब्लैकलिस्ट कर दिया गया है।
यह कितना खतरनाक है इसे बीजिंग में एक छोटे “स्मार्ट” हाउसिंग प्रोजेक्ट के उदाहरण से समझिए। नवंबर 2020 में यहाँ के लिए टेंडर निकाला गया है जिसके लिए आपूर्तिकर्ताओं को अपने निगरानी कैमरा सिस्टम के लिए एक मानक को पूरा करने की आवश्यकता होती है जो त्वचा की टोन, जातीयता और केश के अनुसार छँटाई की अनुमति देता है। यानी उस सोसायटी में कौन प्रवेश करेगा यह पहले से डिसाइड कर दिया गया है।
ऐसी तकनीक का राजनीतिक इस्तेमाल कैसे किया जा सकता है इसे आप ऐसे समझिए कि सीसीटीवी निर्माता कंपनी ने dahua ने अपने कर्मचारियों ‘दहुआ गार्ड्स’ ने अपने “राजनीतिक निर्णय” में “सुधार” करने के लिए महासचिव शी जिनपिंग के नवीनतम भाषण का “पूरी तरह से अध्ययन और कार्यान्वयन” करने के लिए एक कार्यशाला आयोजित की थी।
पिछले साल चीन ने हांगकांग में लोकतंत्र समर्थक प्रदर्शनों के दौरान प्रदर्शनकारियों को प्रोफाइल करने के लिए फेशियल रिकग्निशन सिस्टम का भी इस्तेमाल किया था।
इन्ही बातों को देखते हुए लोकतांत्रिक देशों में फेशियल रिकग्निशन सिस्टम को बन्द किया जा रहा है। ‘ब्लैक लिव्स मैटर‘ वाले आंदोलन में अफ्रीकी अमेरिकी व्यक्ति जॉर्ज फ्लॉयड की पुलिस हिरासत में मौत के बाद पुलिस की कार्यनीति के साथ लॉ इंफोर्समेंट के लिए इस टेक्नोलॉजी को गहन जांच के दायरे में लाकर खड़ा कर दिया है क्योंकि यह पाया गया है कि इस तरह की अधिकांश एल्गोरिदम सफेद लोगों की तुलना में काले लोगों और अन्य अल्पसंख्यकों के चेहरे की गलत पहचान करती है।
चेहरे की पहचान करने वाली इस टेक्नोलाजी को अमेरिका के सैन फ्रांसिसको में बैन कर दिया गया है। फेसबुक ने भी 2021 में फेसियल रिकोग्निशन सिस्टम को बंद करने की जानकारी दी है। उसने यह कदम दुनिया भर में फेस रिकोग्निशऩ तकनीक के गलत इस्तेमाल को लेकर बढ़ती चिंता के मद्देनजर उठाया है।
लेकिन यहां भारत मे कुछ मूर्ख लोगो को लगता है कि फेशियल रिकग्निशन सिस्टम बहुत अच्छा है और सरकार इसे लागू कर के हमारी सुरक्षा सुनिश्चित कर रही है।