शीतल पी सिंह-
वे जो मरे हैं वे दरअसल मारे गए हैं
दुनियाँ के सबसे अमीर लोगों के देश अमरीका के राष्ट्रपति पिछले दो सौ सालों से उसी घर में रह रहे हैं जिसे व्हाइट हाउस कहते हैं
पर
दुनियाँ में सबसे ज़्यादा गरीब जनसंख्या वाले देश (जिसमें लोगों की प्रति व्यक्ति आय का औसत अमरीका से तीस गुना कम है) के प्रधानमंत्री का मन सात बरस में ही पुराने घर से ऊब गया है जो देश की सबसे महँगी प्रापर्टी में अवस्थित है!
इस समय जब सारी अमीर दुनियाँ हमें ग़रीब और मजबूर जानकर महामारी से निबटने के लिये ज़रूरी मदद भेज रही है, ठीक उसी समय हमारे “फ़क़ीर” प्रधानमंत्री के वर्ष भर में कुछ मिनटों के तीन चार संबोधनों के लिए संसद की नई इमारत और अपने लिये उसी के बग़ल में नये आलीशान बंगले के निर्माण की हुड़क तेज हो चुकी है जिस पर क़रीब साढ़े तेरह हज़ार करोड़ रुपये खर्च किये जा रहे हैं!
और कोरोना काल के “लॉकडाउन” के आदेश को सिर्फ़ इस निर्माण छेत्र में लॉकअप में डाल दिया गया है !
मेरे इर्द गिर्द कई बेशर्म लोग हैं जो इस ग़रीब देश के सीमित संसाधनों में से भी जाति या किसी अन्य प्रिविलेज के चलते शिक्षा / सोहबत / संपर्क पाकर डाक्टर इंजीनियर सरकारी अफ़सर पत्रकार वकील जज आदि बनकर शहरी मध्यवर्गीय जीवन पा गये ।उन्हें अपने पीछे छूट गए बाक़ी लोगों से रंच मात्र भी लगाव नहीं बचा है । वे इन छूट गये लोगों में दोष ही दोष पाते हैं और “दयावश”अपने लिये इनमें सिर्फ़ “दास” का अक्स देख पाते हैं जो उनकी कार बंगला बाथरूम सड़क दफ़्तर साफ़ किया करे ।उनके भोजन और जायदाद का रखरखाव करे और बिना शिक्षा बिना दवा बिना छत के अल्पायु में मरकर उनपर कोई ज़िम्मेदारी डाले बिना आँख से ओझल होता रहे (अपनी अगली पीढ़ी को दास बनाकर)।
ऐसे ही लोगों की विंकास चेतना के नायक हैं वर्तमान प्रधानमंत्री । इस “नैतिक” वर्ग को इनकी डिग्री के लापता होने , अनवरत झूठ बोलते पकड़े जाने, किसी भी विषय में गंभीरता/ योग्यता के अभाव होने , किसी भी सवाल का किसी स्वाधीन मंच पर सामना न करने और यहाँ तक कि चीन के हाथ क़रीब हज़ार किलोमीटर ज़मीन गँवा देने तक से किंचित् मात्र फ़र्क़ नहीं पड़ता । यह वर्ग अपने व्हाट्सएप ग्रुपों में इनके आईटी सेल द्वारा हर पल परोसे जाते (इतिहास/विज्ञान/ समाजशास्त्र/ नागरिकशास्त्र और समसामयिक विषयों पर ) झूठे वीडियोज/फोटोशाप को शेयर कर मगन बना हुआ था कि “कोरोना” आ गया!
“कोरोना” ने इस फ़र्ज़ी नायकत्व के कपड़े तार तार कर दिये ! दुनियाँ के हर प्रतिष्ठित पत्र पत्रिका पोर्टल अख़बार में इनकी असलियत सड़े हुए चूहे की तरह गंधा रही है, इससे बचने के लिये इनका विचार प्रबंधन तंत्र कभी बंगाल कभी केजरीवाल कभी उद्धव ठाकरे आदि विपक्ष की राज्य सरकारों के फ़ैसलों / दैनंदिन प्रबंधन/ क़ानून व्यवस्था / व्यक्तित्व पर डायवरजन कराने का प्रयास करता रहता है । अनेकों बार अनेकों रूप में टीवी चैनलों पर (जो मीडिया के इस समय नियंता हैं) इनके द्वारा एजेंडा परोसे जाने के मामले उजागर हो चुके हैं लेकिन इस परजीवी वर्ग को किसी तरह की लोकलाज है ही नहीं । वह आपको नित नई फ़र्ज़ी क्लिप कई कई बार फारवर्ड करता मिलता रहेगा!
आप कहेंगे कि व्हाइट हाउस के बारे में लिखते लिखते कहाँ बहक गये ? कहीं नहीं बहका बल्कि अपनी घायल हुई संवेदनाओं और आहत भावनाओं को व्यक्त करने के लिये शब्द और वाक्य ढूँढ रहा हूँ सिलसिला तलाश रहा हूँ । मेरे चारों तरफ़ निर्दोष चिंताएँ जल रही हैं जो मेरे बंधु बांधवों मित्रों की हैं , रोज़ इनमें कुछ नई जुड़ रही हैं और कुछ आई सी यू और श्मसानों में पंक्तिबद्ध हैं !
ये लोग ज़बरन महामारी से मारे गए घोषित किये गये हैं जबकि मैं जानता हूँ आप जानते हैं हाई कोर्ट सुप्रीम कोर्ट तक मानते / कहते हैं कि यह नरसंहार है जो आपराधिक लापरवाही और अयोग्यता का परिणाम है । वरना बांग्लादेश भूटान नेपाल तक और पाकिस्तान आज इस महामारी के समक्ष हमसे बेहतर स्थिति में कैसे हो सकते थे? मैं पश्चिम और विकसित दुनियाँ के सापेक्ष कोई पैमाना खड़ा नहीं कर रहा ।
तो जिन्हें मैं जानता समझता हूँ/देख रहा हूँ कि राज्यों को आक्सीजन सप्लाई करने में भी वे हाईकोर्ट/ सुप्रीम कोर्ट के कंटेंम्प्ट तक इंतज़ार कर रहे हैं , उनके लिए तर्क देते , उनके पक्ष में मुद्दा बदलते और उनके झूठे वीडियो आडियो फोटोशाप फैलाते परजीवी वर्ग से साहचर्य कैसे संभव है ?
उन्होंने टीवी चैनलों के ज़रिए फैलाया है न कि ये उनका नहीं बल्कि “सिस्टम” का दोष है? ठीक!
मैं सिर्फ़ यह पूछना चाहता हूँ कि आज सिस्टम किसके हाथ में है?
इन्हें भी पढ़ सकते हैं–
कृष्ण कांत-
आपने कभी मुर्दहिया में फेंका गया डांगर देखा है? हमारे गांवों में मरे हुए पशुओं को फेंकने के लिए एक निश्चित स्थान होता था. पशुओं के मरने के बाद उनका चमड़ा उतार कर उन्हें उसी जगह यानी मुर्दहिया में फेंक दिया जाता था. जैसे ही मुर्दा पशुओं को वहां फेंका जाता था, तमाम गिद्ध, कौवे और कुत्ते पहुंच जाते थे और उस मुर्दा जानवर को नोच कर खा लेते थे.
इस वक्त बेतहाशा कालाबाजारी और अस्पतालों की लूट की तमाम खबरें देखकर मुझे वही दृश्य याद आते हैं.
मथुरा के केडी मेडिकल कॉलेज ने रेमडेसिविर के लिए 2-2 लाख रुपए वसूले. मरीज भर्ती कराने के लिए 75 हजार रुपए लिए. इस मेडिकल कॉलेज को कोविड हॉस्पिटल बनाया गया था. भारत समाचार ने लिखा है, ‘कोरोना काल का गिद्ध बना केडी मेडिकल कॉलेज’. अस्पताल पर लापरवाही करने और मरीजों से मोटी रकम वसूलने का आरोप है.
कल आजतक ने खबर छापी कि गुरुग्राम से एक मरीज को लुधियाना ले जाने के लिए एंबुलेंस चालक ने एक लाख बीस हजार रुपये बसूल किए.
सरकार कह रही है आत्मनिर्भर बनो और आपदा में अवसर तलाशो. अस्पतालों से लेकर आम लोगों तक ने इस पर अमल शुरू कर दिया है. आक्सीजन सरकार के पास नहीं है. कालाबाजारियों के पास है.
भक्त मंडली कहती घूम रही है कि अब सरकार क्या क्या करेगी? देश की सब सुविधा और संसाधनों को प्राइवेट सेक्टर के हाथों बेच देना चाहिए. भक्त ऐसा इसलिए कहते हैं क्योंकि भक्तों के फर्जी फकीर उर्फ विष्णु के अवतार कोरोना की आड़ में देश बेच देने का मंसूबा पाले बैठे हैं. दो दिन पहले ही उन्होंने एक बैंक बेच दिया है.
कोरोना की पहली लहर की आड़ में चोर दरवाजे से कानून लाकर इन्होंने कृषि सेक्टर और मंडियां बेचने का कानून पास कर डाला था. अबकी बार बैंक बेच दिया. इधर प्राइवेट अस्पतालों की हालत ये है कि वे महामारी में बेतहाशा लूट रहे हैं. लगातार खबरें आ रही हैं कि मरीज मर गया और बिल न चुकाने पर अस्पताल ने शव देने से मना कर दिया. ये बिल कई बार लाखों में होता है. दो दिन पहले बनारस में मोदी के प्रस्तावक रहे गायक पंडित छन्नूलाल मिश्र की बेटी की मौत हुई तो परिवार ने ऐसा ही आरोप लगाया था कि ये जल्लाद लाश देने के भी पैसे मांग रहे हैं.
हम आप निरीह पशुओं की लाशों की तरह हैं जिन्हें यह प्राइवेट सेक्टर गिद्ध की तरह झुंड में झपटकर नोच रहा है.
महामारी ये भी सबक लेने का समय है कि स्वास्थ्य और शिक्षा का बाजार बंद हो. बुनियादें सुविधाएं सरकार के नियंत्रण में हों और सबको उपलब्ध हों. अब आपके नागरिक बनने का समय है. सरकार में बैठी पार्टियों को लात मार कर, झकझोर कर जगाने का समय है कि वे जवाबदेह बनें और फेल हो जाएं तो जवाबदेही स्वीकार करें.
महामारी तो प्राकृतिक आपदा है, मौजूदा सरकार उससे बड़ी आपदा है. अपनी सुरक्षा के साथ इससे निपटने के बारे में भी सोचिए. हाईकोर्ट कह चुका है कि जो हो रहा है, वह नरसंहार है.
दिलीप खान-
खाना, दवाई, किराना, जनाज़ा और कम लोगों के साथ शादी-ब्याह, आम तौर पर ज़रूरी सेवाओं में इन्हीं चीज़ों को रखा गया है. निर्माण कार्य दिल्ली-NCR में बंद है. लेकिन, लाशों के ढेर पर अय्याश नरेन्द्र मोदी अपने सपनों का महल खड़ा करने में जुटे हुए हैं. उसे ज़रूरी सेवाओं की सूची में डाल दिया गया है.
सरकारी बैठकों के मिनट्स बताते हैं कि इस प्रोजेक्ट को बनाने में 42 हज़ार से ज़्यादा लोग प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष तौर पर जुड़े रहेंगे. इनमें सबसे ज़्यादा हज़ारों मज़दूर शामिल हैं. उन्हें कोरोना का कोई ख़तरा नहीं है क्या? क्या उनके लिए IPL की तरह बायो-बबल बनाया गया है?
IPL में तो जय शाह कोविड पीड़ित वरुण चक्रवर्ती और संदीप वारियर को ‘चोटिल’ करार देने का षडयंत्र कर रहे थे. RCB ने मैच खेलने से मना कर दिया, तब भांडा फूटा था. मज़दूरों के लिए कौन भांडा फोड़ेगा? किसकी औकात है?
मोदी सरकार ने इस प्रोजेक्ट से पहले कहा था कि वह ‘विश्व स्तरीय पर्यटन साइट’ बना रही है. क्या वाक़ई? संसद भवन और प्रधानमंत्री आवास आम पर्यटन की जगह है? कितने लोगों को पर्यटन के लिए मोदी के मौजूदा घर जाने की इजाज़त है?
मोदी ने कहा था कि मौजूदा संसद भवन पुराना हो चुका है, घिस चुका है, छोटा पड़ रहा है. प्रधानमंत्री को जाकर कोई बताए कि देश के अस्पताल छोटे पड़ रहे हैं, लोगों के पैर घिस गए हैं, सरकार जर्जर हो चुकी है. कोरोना के इस भीषण काल में अपने लिए आलीशान भवन बनाना और उसके लिए सारे नियमों को तोड़-मरोड़कर रख देना बताता है कि इस आदमी की प्राथमिकता क्या है!
गुजराती कंपनी HCP डिज़ाइन, प्लानिंग एंड मैनेजमेंट को हज़ारों करोड़ रुपए का ठेका देने से ठीक पहले मोदी ने इसके मालिक बिमल पटेल को पद्मश्री से सम्मानित किया था. उन दोनों की पुरानी जुगलबंदी है.
जब सुप्रीम कोर्ट में इस परियोजना के ख़िलाफ़ 10 मामले लंबित थे उससे पहले ही मोदी ने इसका भूमि पूजन कर लिया था. कहां से ये आत्मविश्वास आया था कि अदालत उनके पक्ष में ही फ़ैसला देगी? अतिरिक्त सूचना ये है कि बीजेपी नेता की सुपर बाइक पर सवारी करने वाले बोवड़े उस वक़्त CJI थे.
Test
May 7, 2021 at 6:53 pm
Pura nahi padh paaya uske liye sorry
Fir bhi ek baat bolunlga modi and amit shah ji ki behan ka bhosda