संजय कुमार सिंह-
सरकार और पार्टी का यह घालमेल याद रखेगा हिन्दुस्तान।
गोदी मीडिया के पर्दों और ढक्कनों के बावजूद अभी तक आपको पता चल गया होगा कि
- केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के खिलाफ बेंगलुरु कोर्ट ने एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया है।
- वित्त मंत्री पर अब बंद हो चुके चुनावी बॉन्ड के जरिए कथित तौर पर पैसे ऐंठने के आरोप में अदालत ने यह आदेश दिया है।
- जनाधिकार संघर्ष परिषद (जेएसपी) के सह-अध्यक्ष आदर्श अय्यर ने बेंगलुरु में जनप्रतिनिधियों की विशेष अदालत में शिकायत की थी।
- कोर्ट ने वित्त मंत्री के साथ भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, प्रदेश अध्यक्ष बीवाई विजयेंद्र, नेता नलिन कुमार कतील, केंद्रीय और राज्य भाजपा कार्यालय और ईडी के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया है।
- बात-बात पर इस्तीफा मांगने वाले भाजपा नेताओं ने इस मामले में किसी से इस्तीफा नहीं मांगा है।
वित्त मंत्री के साथ भाजपा नेताओं के खिलाफ एफआईआर कराने के अदालत के आदेश का मतलब है – सरकार और भाजपा मिलकर वसूली कर रहे थे। ये वसूली नरेन्द्र मोदी की विशेष घोषणा – “ना खाउंगा, ना खाने दूंगा” के बावजूद इलेक्टोरल बांड के विशेष उपाय के जरिये किये जाने का आरोप है। क्या आपको याद है कि भाजपा ने अपने कोषाध्यक्ष को सीधे केंद्रीय मंत्री बना दिया था और कोषाध्यक्ष का पद कई महीने खाली रहा था और यह वैसे ही था जैसे अभी भाजपा अध्यक्ष को केंद्रीय मंत्री बना दिया गया है और अध्यक्ष का पद खाली है। आम तौर पर इसका मतलब होता है कि पार्टी के पास भिन्न पदों के लिए योग्य लोग नहीं हैं। पर इसका मकसद खास काम के लिए खास आदमी को लगाना भी होता है। केंद्रीय मंत्री भाजपा अध्यक्ष का भी काम कर रहे हैं और प्रधानमंत्री को लिखी चिट्ठी का जवाब अभी हाल में केंद्रीय मंत्री ने बतौर भाजपा अध्यक्ष दिया ही था।
दि प्रिंट में स्वाति चतुर्वेदी की 11 जून 2018 की एक खबर के अनुसार उस समय के वित्त मंत्री पीयूष गोयल भाजपा के अंतिम घोषित (तब तक) कोषाध्यक्ष थे और वे दोनों पदों पर हैं या कोषाध्यक्ष कोई और बना दिया गया है, यह घोषणा भाजपा ने काफी समय तक नहीं की थी। चुनाव आयोग से भी इसे छिपाया गया और उसी के बाद से केंद्रीय चुनाव आयोग को केंचुआ (बिना रीढ़ वाला संस्थान) कहा जाने लगा। पर वह अलग मामला है। भाजपा के मौजूदा कोषाध्यक्ष जागरण डॉट कॉम की बरेली डेटलाइन से 29 जुलाई 2023 की खबर के अनुसार, भाजपा के मौजूदा कोषाध्यक्ष राजेश अग्रवाल दूसरी बार भाजपा के राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष बनाये गये थे। खबर के अनुसार, तीन साल पहले भी पार्टी ने उन्हें यह जिम्मेदारी दी थी। इस हिसाब से पीयूष गोयल संभवतः दो साल दोनों पदों पर थे।
अभी मुद्दा यह है कि कोषाध्यक्ष को वित्त मंत्री बनाना और चंदे में तथाकथित पारदर्शिता लाने के लिए इलेक्टोरल बांड लाना और अब भाजपा पर इसके जरिये वसूली के आरोप लगना – क्या कहता है। वह भी तब जब कांग्रेस पर लगाये गये भ्रष्टाचार के आरोप साबित नहीं हुए। स्विस बैंक में रखा काला धन वापस नहीं आया और नोटबंदी से काला धन कम नहीं हुआ। जाहिर है, प्रधानमंत्री गलत सूचना और गलत उपायों के भरोसे थे और शायद हैं भी।
नरेन्द्र मोदी ने न सिर्फ प्रधानमंत्री के पद की गरिमा गिराई है बल्कि एक मुख्य न्यायाधीश से मिलकर और दूसरे के घर जाकर उनका भी मान कम किया है। सीबीआई प्रमुख को आधी रात को बदलकर, चुनाव आयुक्त की नियुक्ति में मनमानी, अनुकूल फैसला देने वाले जजों को ईनाम आदि जैसी कार्रवाई भी इसी श्रेणी में है। मामले की जांच हो नहीं, प्रचारक मानें या नहीं, पर जो हुआ है वह सब बेहद शर्मनाक है। जो लोग समझ रहे हैं वो संघ परिवार पर कब तक कितना भरोसा करेंगे और आरएसएस वाले अंकलों के आदर्शों पर अब कौन यकीन करेगा?
ऐसी भाजपा ने महाराष्ट्र में चुनाव जीतने के लिए प्रधानमंत्री ने 11.2 हजार करोड़ की योजनाएं घोषित की हैं तो राज्य की शिन्दे सरकार ने देसी गाय को चुनाव से पहले राज्यमाता का दर्जा दिया है। अगर इससे भाजपा चुनाव जीत भी जाये तो क्या फर्क पड़ेगा। हार कर ही कौन सा विपक्ष में रही? समझना तो समर्थकों को और यह स्तर नहीं बताता कि उन्हें अपने समर्थकों से ऐसा कोई डर है। मुझे नरेन्द्र मोदी की यही योग्यता मारक लगती है।