डा० अरविंद सिंह-
फोर्टिस हास्पिटल में बंधक बने उपेन्द्र सिंह, हुए डिस्चार्ज! पेमेंट न जमा होने पर हास्पिटल ने बनाया था बंधक, पत्रकारों और एक्टिविस्टों की मुहिम हुई सफल, बेरोजगारी ने एक युवा को तोड़ कर रख दिया
देखें रिहाई के बाद की उपेंद्र की तस्वीरें…
video ये है रिहाई के बाद पत्रकार नेहा हबीब खान द्वारा की गई बातचीत, क्लिक करें- https://youtu.be/fA7uXghpIy0
जब आप पूरे मनोयोग से किसी को बचाने और मदद करने में लग जातें हैं, तो इंसानियत ही नहीं प्रकृति भी पूरी शिद्दत से उसकी मदद करने में लग जाती है.
आजमगढ़ के उपेन्द्र सिंह की मदद हमारे समय की इंसानियत ने ही नहीं, प्रकृति ने भी खूब किया, नहीं तो उनके जीवन की डोर कमजोर पड़ ही चुकी थी. भला हो उनके शुभचिन्तकों, मित्रों और सोशल मीडिया के जनसरोकारी चेहरों का, जिन्होंने एक गंभीर अवस्था में जीवन और मौत के बीच जुझ रहे बेरोजगार युवा को बचा लिया.. ईश्वर ने कृपा बना दिया,और चिकित्सकों ने जान बचा ली.
तीन दशक पहले आंखों में एक स्वपनिल ख़्वाब लेकर यह युवा देश और दिल की राजधानी दिल्ली पहुंचा था, बेरोजगारी और बेकारी का पहाड़ इतना बड़ा था कि उसे काटने में तीन दशक की जवानी यूँ ही जाया हो गयी, इधर कोरोना ने कमर क्या तोडी, लाकडाउन ने उम्मीद. ऐसी परिस्थितियों में बिमारियों ने इस युवा के शरीर में अवसाद और तनाव लेकर क्या घुसी कि पथरी ने पेट की पीड़ा बढ़ा दिया.
समय ने दिल और दिमाग को इतना दर्द दिया कि आंखों के सामने अंधेरा छाता गया. 8 माह से मकान का किराया नहीं जमा हो सका, जिस मोटर साइकिल से कंपनियों में सप्लाई का काम करते रहें, उसकी फिटनेस सरकार ने अवैध कर दिया और कंपनियों ने कोरोना में हाथ खींच लिया. आर्थिक भार इतना बढ़ा की दोनों मासूम बच्चों का स्कूल एडमिशन नहीं हो सका. हाय रे इंसान की मजबूरियां! क्या से क्या बना दिया एक जोश और उम्मीद से भरे नौजवान को, जो दिल्ली कमाने गया था, वह दिल्ली, उसकी जान पर ही बन गयी.
पिछले 15 मार्च को अचानक से इस नौजवान की तबियत खराब हुई, आंखों से रोशनी गायब होने लगी और मुंह से आवाज़. गंभीर हालत में उनकी पत्नी ने सफदरजंग हास्पिटल में भर्ती कराया, जहाँ इलाज के अभाव में हालत और गंभीर होती चली गयी. फिर क्या बेबस पत्नी के आंखों के सामने अंधेरा छा गया, पति की जान बचाने के लिए 16 मार्च को बसंतकुंज स्थित ‘फोर्टिस हास्पिटल’ में भर्ती कराया. इलाज शुरू हुआ, लेकिन पैसे के नाम पर फूटी कौड़ी नहीं, पत्नी का फोन आया- ‘भैया! इनकी जान बचा लीजिए’. गाँव का खेत बेच कर वापस कर देगें.
मुश्किल दौर से गुजर रहे उपेन्द्र सिंह की जान बचाने के लिए मुहिम चलायी- सोशल मीडिया पर कैंपेन चलाया गया, मित्रों, शुभचिन्तकों, एक्टिविस्टों से उनकी जान बचाने के लिए अपील की गयी. पत्रकारों ने सहयोग किया. किसी तरह एक लाख रुपये जमा हुआ. आईसीयू से बाहर निकलें, लेकिन पत्नी ने जब बताया कि उसके पति को डिस्चार्ज कर दें क्योंकि इतने मंहगे इलाज नहीं करा सकेगी. अस्पताल था कि मरीज को रोककर बिल बढ़ाते गयें. दो लाख.. तीन लाख.. फिर चार लाख..पार… मजबूरी में आप विधायक सोमनाथ भारती Somnath Bharti ने सहयोग दिया.
उपेन्द्र सिंह के इलाज के लिए ईडब्ल्यूएस का पेपर बना कर हास्पिटल भेजा, जिससे मरीज का इलाज मुफ्त होने लगे और बिल दिल्ली सरकार भर दे. लेकिन वाह रे हास्पिटल! मजबूर पत्नी से कहा- जबतक नकद नहीं जमा करोगी, तबतक मरीज डिस्चार्ज नहीं करेगें. ईडब्ल्यूएस पेपर हम नहीं मानेगे. फिर क्या बंधक बने इस मरीज की ख़बर जंगल की आग की तरह सोशल मीडिया पर तैरने लगी. लोग कमेंट और ट्वीट करना शुरू कर दिया. Aman Kumar Tyagi ने वायरल किया.
Bhadas4media भड़ास मीडिया के संपादक यशवंत सिंह Yashwant Singh ने इस मुहिम को आगे बढ़ाया, सहारा टीवी ‘एडिटर इन चीफ’ उपेन्द्र राय ने अपने चैनल पर स्पेस दिया. सोशल मीडिया से ख़बर पाकर पत्रकार Neha Habib Khan नेहा हबीब खान ने फोर्टिस में जाकर उपेन्द्र से इन्टरव्यू कर बंधक बने मरीज के माध्यम से हास्पिटल की कारस्तानी बाहर ला दिया. लिहाजा, आज शाम होते होते जो फोर्टिस बिना कैश लिए डिस्चार्ज न करने पर अड़ा था, आज उसी ईडब्ल्यूएस पेपर के आधार उपेन्द्र सिंह को डिस्चार्ज कर दिया. संघर्ष को सलाम!!
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