Connect with us

Hi, what are you looking for?

प्रिंट

जनसत्‍ता में सब कुछ ठीक नहीं जान पड़ता है… कुछ तो गड़बड़ है…

Abhishek Srivastava : दिल्‍ली के मोतीलाल नेहरू कॉलेज में चल रही मीडिया संगोष्‍ठी के एक सत्र में कल जनसत्‍ता के पत्रकार मनोज मिश्र और डॉ. राजेंद्र धोड़पकर वक्‍ता थे। दोनों लोगों ने भाषा के मामले में प्रभाष जोशी और जनसत्‍ता को याद किया। मनोज मिश्र ने बताया कि कैसे जनसत्‍ता में प्रभाषजी ने पत्रकारिता की एक नई भाषा गढ़ी जिसकी बाद में सारे इलेक्‍ट्रॉनिक मीडिया ने नकल मार ली। आप आज का और 23 तारीख का जनसत्‍ता उठाकर देखिए, समझ में आ जाएगा कि पत्रकार खुद अपना अखबार क्‍यों नहीं पढ़ते हैं और अतीत के गौरव में जीना क्‍यों पसंद करते हैं।


अखबार या परचा? प्रधानमंत्री की कही बात को अपने मुंह में डाल लेना कौन सी समझदारी है भाई?

कौन नामजद- बाप या बेटा?


Abhishek Srivastava : दिल्‍ली के मोतीलाल नेहरू कॉलेज में चल रही मीडिया संगोष्‍ठी के एक सत्र में कल जनसत्‍ता के पत्रकार मनोज मिश्र और डॉ. राजेंद्र धोड़पकर वक्‍ता थे। दोनों लोगों ने भाषा के मामले में प्रभाष जोशी और जनसत्‍ता को याद किया। मनोज मिश्र ने बताया कि कैसे जनसत्‍ता में प्रभाषजी ने पत्रकारिता की एक नई भाषा गढ़ी जिसकी बाद में सारे इलेक्‍ट्रॉनिक मीडिया ने नकल मार ली। आप आज का और 23 तारीख का जनसत्‍ता उठाकर देखिए, समझ में आ जाएगा कि पत्रकार खुद अपना अखबार क्‍यों नहीं पढ़ते हैं और अतीत के गौरव में जीना क्‍यों पसंद करते हैं।


अखबार या परचा? प्रधानमंत्री की कही बात को अपने मुंह में डाल लेना कौन सी समझदारी है भाई?

Advertisement. Scroll to continue reading.

कौन नामजद- बाप या बेटा?


Advertisement. Scroll to continue reading.

23 मार्च को प्रधानमंत्री के ‘मन की बात’ को जनसत्‍ता ने अपने मन की बात बनाकर छापा था। मैंने सवेरे अखबार उठाया तो चौंक गया कि ये अखबार खुद ही किसानों से क्‍यों झूठे हमदर्दों से बचने का आवाहन कर रहा है। खबर के भीतर जाकर पता चला कि ये तो प्रधानजी ने कहा है। आज फिर से मैंने अखबार उठाया तो व्‍यापमं घोटाले में नामजद व्‍यक्ति की ‘मौत’ की खबर पर नज़र पड़ी। समझ ही नहीं आया कि नामजद कौन है- राज्‍यपाल रामनरेश यादव या उनका बेटा?

जनसत्‍ता में सब कुछ ठीक नहीं जान पड़ता है। कुछ तो गड़बड़ है। पता नहीं कौन बता रहा था कि एक्‍सप्रेस अब नोएडा में शिफ्ट हो रहा है और जनसत्‍ता के भी दिन कम बचे हैं। संपादकजी भी समाजवादियों के सान्निध्‍य में डब्‍लूएसएफ गए हुए हैं। जनसत्‍ता चाहे जो हो, जैसा हो, अंतत: अपना अखबार है। चिंता स्‍वाभाविक है!

Advertisement. Scroll to continue reading.

युवा पत्रकार और सोशल एक्टिविस्ट अभिषेक श्रीवास्तव के फेसबुक वॉल से.

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement