यशवंत सिंह-
गौर सिटी एक नोएडा में मेरे टावर के गार्ड महेश यादव जी का कल सुबह फ़ोन आया। तबीयत बिगड़ गई। मुँह सूख रहा। छाती का दर्द बढ़ गया।
मैं मित्र अमृत तिवारी की शादी में शामिल होने के लिए निकल रहा था। लेकिन गार्ड साहब के फ़ोन आने के बाद रुक गया। उनको फ़ौरन घर से मेरे यहाँ आने को कहा। आते ही डाक्टर के पास ले गया।
डाक्टर साहब भले आदमी हैं। हमारा कुनबा उन्हीं से इलाज कराता है इसलिए दोस्ती भी हो गई है। मानवतावादी एप्रोच के हैं। फ़ीस के लिए कोई ज़िद नहीं। जो दे दीजिए।
डाक्टर साहब ने आधे घंटे गार्ड साहब को चेक किया। ढेर सारे सवाल जवाब किए। फिर फ़ौरन इलेक्ट्रॉल मंगाया। एक बोतल पानी में भरकर दे दिया और कहा कि आधा बोतल अभी पी जायिये।
गार्ड साहब को दवाएँ लिख कर देते हुए बोले- ‘इन्हें कुछ नहीं हुआ है। बीपी बहुत लो है। इसी से सारी समस्या है। इलेक्ट्रोल पीते रहें। दवा का कोर्स कर लें। बिल्कुल ठीक हो जाएँगे।’
सोचिए, हम लोग क्या क्या सोच रहे थे और क्या निकला।
इसीलिए कहते हैं डाक्टर को दिखा लेना चाहिए। ख़ुद ज्ञानी नहीं बनना चाहिए।
गार्ड साहब छुट्टी लेकर आराम किए। आज से फिर रात्रिक़ालीन ड्यूटी पर आ गए, झोले में इलेक्ट्राल और पानी की बोतल लिए हुए। हंसते हुए कहने लगे- ‘जे डाक्टर तो बहुत सही है साब!’
डाक्टर को फ़ीस पाँच सौ रुपये मैंने दिया। दवा के पाँच सौ रुपये गार्ड साहब थमाये। दवा के पैसे में 89 रुपये कम पड़ रहे थे तो मैंने पेटीएम कर दिया।
लगभग छह सौ रुपये खर्च कर एक गरीब आदमी के चेहरे पर संतोष और मुस्कुराहट ला देना महँगा सौदा नहीं है।
आप सभी का आभार, गार्ड साहब के बेहतर स्वास्थ्य के लिए पिछली पोस्ट पर अपनी दुवायें और त्वरित सलाह देने के लिए।
Fb से.