: यू नो, आई एम सीरियस :
दिनेशराय द्विवेदी जी मेरे अच्छे फेसबुक मित्रों में हैं. उनका, उनके विचारों का काफी सम्मान करता हूं लेकिन आज उनकी एक पोस्ट जरूरत से ज्यादा निचले स्तर की लगी. इस तरह की अपेक्षा ऐसे विद्वानजनों से नहीं की जाती. हर पेशे का सम्मान होना चाहिए अन्यथा आपको ऐसे जवाब के लिए तैयार रहना चाहिए. द्विवेदी जी फेसबुक पर वनलाइनर लिखते हैं- ”गनीमत है, मीडिया अभी साहिब के हगने मूतने को खबर नहीं मानता।”
यह टिप्पणी रॉबर्ट वाड्रा के ताजा विवाद या वीआईपीज को जरूरत से ज्यादा खबरों में रखने की मीडिया की आदत पर की गई है. नो प्राब्लम. आलोचना करने का अधिकार है लेकिन इन शब्दों में नहीं कि आप उसके पेशे को हगना मूतना कहने लग जाएं. संकेत साफ है कि इस तरह की टिपपणी मीडिया के खबर देने के उसके अधिकार या खुद पर हुए हमले का शालीन तरीके से विरोध कर खबर दिखाने के बुनियादी हक पर बुलडोजर चलाने जैसा है. साहब. सवाल पूछना तो मीडिया का अधिकार है. आपको पसंद नहीं है, नो कमेंट कह दीजिये लेकिन अगर आपने यानि राबर्ट वाड्रा या नवीन जिंदल जैसे लोगों ने हाथ उठाने की चेष्टा की तो हमसे साधु बनने की उम्मीद मत करिए.
सवाल पूछना हमारा पेशा है. साहब से अवैध जमीन से जुड़े उस विवाद पर सवाल था जिस पर सरकार ने जांच के आदेश दिए हैं. कौन सा हमने साहब से यह पूछ लिया था कि बताइये आपके पिता और भाई बहन ने आत्महत्या क्यों कर ली. मीडिया को आमंत्रण मिला था इसलिए संवाददाता उस होटल में पहुंचा. अब सवाल तो उठेंगे ही. आपको जवाब नहीं देना है मत दीजिये. लेकिन हाथ उठाने का अधिकार तो आपको नहीं है. हर पेशे का सम्मान होना चाहिए गनीमत है रिपोर्टर ने साहब का गला नहीं पकडा. इस विवेक की तारीफ होनी चाहिए ना कि इसे हगना मूतना कहना चाहिए.
और हां, हगना-मूतना भी दिखाएंगे यदि वह देश और समाज के हित में होगा. मसलन कुंभ के मेले में गंगा नदी के किनारे खुले में जब आप जैसे लाखों लोग हगते-मूतते हैं, तो मीडिया उसे पर्यावरण के प्रति अन्याय के तौर पर पेश करता दिखाता है. इससे भी आगे, जिस दिन लोग अपने घरों के संडास को छोडकर खुलेआम सड़क पर हगना-मूतना शुरू करेंगे तो भी दिखाएंगे साहब. क्योंकि यह हमारी ड्यूटी है और उससे दगा तो नहीं कर सकते. मत छेड़िए साहब वरना चड्ढी उतारना और नंगा करना बखूबी जानते हैं. यू नो. आई एम सीरियस.
लेखक अनिल द्विवेदी रायपुर, छत्तीसगढ के वरिष्ठ पत्रकार हैं तथा उनसे इस नम्बर 09826550374 पर संपर्क किया जा सकता है.
Comments on “गनीमत है, मीडिया अभी साहिब के हगने मूतने को खबर नहीं मानता”
satik
मेरे विचार इस कमेंट्स को लेकर नहीं लेकिन इस तरह की स्थिति को लेकर हैं। ये गंभीर मामला है। इसमे कोई संदेह नहीं की मीडिया का रूप बदला है और ये कुरूप भी हुआ है लेकिन इसका मतलब ये नहीं की इस तरह के किसी को भी कुछ भी कहा जाये। और हमारी जवाबदारी भी तय न हो सके।
अनिल जी ,मीडिया को जानने और पूछने का कोई विशेष अधिकार भारत के सम्बिधान ने नहीं दिया है /मीडिया को वो ही अधिकार है जो देश के सभी नागरिको को मिला हुआ है /संबिधान में अधिकार के साथ कर्तव्य भी दिया हुआ है /लेकिन मीडिया में एक बर्ग एसा आ गया है जो कुते की तरह कुछ नेतायो और पार्टियों पर बिना कुछ सोचे समझे भोकने लगता है लेकिन जेसे ही बरी नरेन्द्र मोदी और बीजेपी की आती है तो वे अपने मालिक के तरह दूम हिलाने लगते है /एसे लोगो को चिन्हित करना अब जरूरी हो गया है क्योंकि उनके कारण पूरा मीडिया को बदनाम होना पद रहा है/
बिलकुल सही भाई जी ।7