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सियासत

इफको की कहानी (31) : महाभ्रष्ट अवस्थी पर हाथ डालने की अफसर, नेता और मीडिया में औकात नहीं है!

रविंद्र सिंह- 

निष्कर्ष
इफको घोटाले पर अध्ययन कर पुस्तक लिखने के बाद मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूं कि भारत में किसानों की दशा और दिशा बदलने के नाम पर महज कोरी राजनीति हो रही है। राजनीतिज्ञ किसानों के मुद्दों पर बाते तो करते हैं परंतु देश की सबसे बड़ी सहकारी क्षेत्र की, सरकार के नियंत्रण वाली इफको का पिछले 16 वर्षों में नौकरशाह, मीडिया और नेताओं ने जिस तरह से अपनी हवस बुझाने के लिए बलात्कार (बलात्कार का आशय भ्रष्टाचार व अपहरण से है) किया है, इसकी देश उम्मीद भी नहीं कर सकता। 

सन् 1976 में उदय शंकर अवस्थी इफको में अदना सा कर्मचारी था, व्यवस्था में लंबे समय से चले आ रहे दोष का फायदा उठाकर सोची समझी रणनीति-षड्यंत्र के तहत सन् 1993 में प्रबंध निदेशक बना। देश में हुए यूरिया घोटाले के सूत्रधार होते हुए खुद बच गया। बल्कि तत्कालीन प्रधान मंत्री पी. वी. नरसिम्हा राव नहीं बच पाए। यहीं से शातिर दिमाग अवस्थी का मनोबल बढ़ता चला गया। उसने दोनों हाथों से दूध देती गाय की तरह जब चाहा दुहा। परंतु उसके मन में एक ही सवाल बार-बार बेचैनी बढा रहा था कि कहीं ऐसा न हो सीवीसी के निगरानी के चलते सीबीआई भ्रष्टाचार के मामले में धर ले और जिन बरसाती मेंढक (राजनीतिज्ञ) के बल पर लूट खसोट की है मीडिया ट्रायल होने पर बिल में घुस जाएं और बतौर सजा तिहाड़ जेल नसीब हो जाए। 

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भारत में ऐसा नहीं है हर नौकरशाह व नेता लोकतंत्र की रक्षा करने की शपथ लेने के बाद अय्याशी और चोरी करता हो। हाँ इतना जरूर है इफको घोटाले पर सबके सब हमाम में नंगे हैं। सन् 1996-97 में केंद्रीय कृषि सचिव जेएनएल श्रीवास्तव से सांठ-गांठ कर सरकार में इस तरह की चर्चा शुरू कराई अगर मल्टी स्टेट को-ऑपरेटिव सोसाइटी एक्ट सरकार द्वारा बना दिया जाता है तो देश के किसान लोकतांत्रिक तरीके से आर्थिक समृद्धि की ओर अग्रसर हो जाएंगे। 

भारत में सहकारिता का इतिहास तकरीबन 160 वर्ष पुराना है। सहकारिता के आधार पर देश ने हर क्षेत्र में तरक्की की है और इस तरक्की की राह में अगर सहकारी संस्थाओं में घोटाला हुआ है तो दोषी को सजा भी मिली है। परंतु अब तक के इतिहास में इफको की तरह किसी सहकारी संस्था का एक ही अपहरण नहीं किया गया है। उर्वरक उत्पादन के क्षेत्र में के उद्देश्य से 1965 में श्री पॉल पोथन ने इफको की आधार शिला रखी थी। शुरू के दौर में सिर्फ किसानों को ही भागीदार बनाया गया था। परंतु तत्कालीन सरकार ने उर्वरक उत्पादन के क्षेत्र में उम्मीद से ज्यादा तरक्की करने पर 69.11 फीसदी यानी 289 करोड रुपये के शेयर खरीदकर नियंत्रण अपने पास रख लिया था, जिस उद्देश्य के साथ इफको की स्थापना की गई थी। 

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वर्तमान समय में भारत में इफको के 5 सयंत्र हैं और सहायक कंपनियां अवस्थी के द्वारा भ्रष्टाचार का नवाचार अपनाते खोली और बंद की जाती रही हैं। इफको में निदेशक मंडल पूरी तरह से सफेद हाथी (रबड स्टाम्प) बना हुआ है। इस तरह निदेशक मंडल के नियंत्रण में प्रबंध निदेशक नहीं है बल्कि प्रबंध निदेशक के नियंत्रण में पूरी तरह से बोर्ड है। इसका जीता जागता सबूत है कि इफको में हुए घोटाले पर बोर्ड रत्ती भर विरोध नहीं जता सका है। अवस्थी को बचाने के लिए बार-बार सेवा विस्तार देने के पीछे कार्रवाई से बचाना है। इफको की 50वीं वर्षगांठ मनाने के नाम पर अवस्थी ने पूरे देश में भ्रमण कर गरीब किसानों के अंश धन को पानी की तरह बहाया है। उक्त वर्षगांठ मनाने के पीछे अवस्थी द्वारा इफको में अपनी खलनायक की भूमिका को नायक के तौर पर पेश किया गया है और देश की राजनीति में ऐसी तस्वीर प्रस्तुत की जा रही है कि इफको के 5.5 करोड़ किसानों की आवाज केवल अवस्थी ही हैं, अगर सरकार ने उसके गिरेबान पर हाथ डालने का प्रयास किया तो नुकसान भी उठाना पड़ सकता है। 

वर्षगांठ कार्यक्रमों में बहुत ही चतुराई से अवस्थी ने सत्ता पक्ष के कई मंत्री को अध्यक्ष बनाकर किसानों का दिल जीतना नहीं था। बल्कि बाद में इन्हे भी भ्रष्टाचार में शामिल कर ब्लैकमेल करना था। इफको में सरकारी नियंत्रण वाली किसानों की सहकारी समिति की संख्या निरंतर घटती जा रही हैं वहीं सहकारिता माफियाओं (निजी नियंत्रण वाली ) समिति की संख्या बढ़ती जा रही है। इसके पीछे अवस्थी का षड्यंत्र है कि सरकार का नियंत्रण खत्म करने के बाद सरकारी नियंत्रण वाली समिति की सदस्यता न के बराबर रह जाएगी तो सरकार चाहकर भी कार्रवाई नहीं कर पाएगी।

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इफको बोर्ड में 80 फीसदी सदस्य बार-बार वही चुनकर आते हैं जो अवस्थी के भ्रष्टाचार में शामिल होकर हां में हां मिलाते हैं और कुत्ते की तरह अपनी पूंछ हिलाते हैं। बोर्ड में 8 फंक्शनल निदेशक हैं जिसमें से उदय शंकर अवस्थी सहित 6 सेवा विस्तार पर हैं। इसके पीछे साफ है गैंग का एक भी निदेशक सेवा निवृत्त होकर पब्लिक डोमेन में जाएगा तो कभी भी देश के किसानों के साथ अब तक का सबसे बड़ा किया गया धोखा खुलकर सामने आ जाएगा। 

इफको बोर्ड की तबाही में सबसे बड़ा हाथ जेएनएल श्रीवास्तव का है। यह 1 दिसंबर 1988 को कृषि मंत्रालय में संयुक्त कृषि सचिव के पद पर आसीन हुआ था। यहीं से अवस्थी के साथ जुगलबंदी शुरू हुई। मल्टी स्टेट कोआपरेटिव सोसाइटी एक्ट का ड्राफ्ट रूल तैयार करने के लिए कृषि सचिव की अध्यक्षता में वित्त और उर्वरक सचिव को सदस्य नामित कर 90 दिन में ड्राफ्ट रूल तैयार कर संसद की स्थायी समिति को सौंपना था। परंतु बेईमान कृषि सचिव ने मनमानी करते हुए दोनों ही विभाग सदस्यों से किसी तरह की राय नहीं ली बल्कि ड्राफ्ट रूल को 88 दिन तक अपने पास दबाए बैठे रहा और 2 दिन पहले दोनों ही सदस्यों को आपत्ति देने के लिए टेलीफोन पर आग्रह किया था, 2 दिन के भीतर ड्राफ्ट रूल पर राय देना संभव नहीं था इसलिए संयुक्त उर्वरक सचिव ने पक्ष रखते हुए लिखा 89.11 फीसदी के बजाए सरकार का शेयर 51 फीसदी कर दिया जाए, अगर इससे कम कर दिया जाता है तो इफको पर संकट के बादल मंडराने लगेंगे। 

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यही पक्ष मंत्रालय ने कृषि सचिव के समक्ष पूर्व में सन् 1996-97 में भी रखा था। परंतु कृषि सचिव ने भारत सरकार का इफको से नियंत्रण खत्म कर संशोधित बायलॉज पंजीकृत कर दिया। इफको का बायलॉज गैर कानूनी तौर पर संशोधन कर पंजीकृत करने के आरोप में अवस्थी व जेएनएल श्रीवास्तव आईपीसी की धारा 420, 467, 468, 427 व 120 बी के अभियुक्त हैं। इन्हे 16 वर्ष पहले ही गिरफ्तार कर जेल में डाला जाना था परंतु यह देश के दुश्मन आज भी इफको और सरकार पर बोझ बनकर माल खा रहे हैं। देश में बड़े से बड़े घोटाले हुए हैं और आरोपी जेल भी गए हैं परंतु ऐसी कौन सी कमजोरी है जिसके कारण अवस्थी एंड कंपनी पर सरकार, नेता और पत्रकार आज भी मेहरबान हैं। 

इफको में भारत सरकार का शेयर 69.11 फीसदी यानी 289 करोड था इसी तरह 30 फीसदी किसानों का अंश धन था जो कुल पूंजी 420 करोड रुपये के करीब बैठता है। 35 वर्ष बाद अवस्थी ने सरकार को वही जमा पूंजी वापस की वो भी तिमाही किस्तों में जो सरकार ने निवेश की थी। इस तरह सरकार के धन से फली बडी इफको की कैपिटल का बंदरबांट कर अवस्थी, नौकरशाह व तत्कालीन मंत्री खा गए। यह रकम लगभग 5 लाख करोड बैठती है। अध्ययन में यह भी साफ हुआ है कि राजनीतिक दल इफको घोटाले को इसलिए मुद्दा बनाना नहीं चाहते बदले में उन्हे हर बार हैसियत अनुसार चुनावी चंदा जो मिल रहा है। तत्कालीन उर्वरक सचिव नृपेंद्र मिश्र ने सरकार के शेयर वापसी पर विरोध जताया था जो आज भी नोट शीट में लिखा हुआ है, परंतु कृषि मंत्री सुखदेव सिंह ने श्री मिश्र को रातों रात सचिव पद से हटवा दिया था ऐसा भी नोटशीट में अंकित है। 

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आज देश का हर वह युवा, समाज सेवी, किसान जो भ्रष्टाचार की लडाई लड रहे हैं। उसके मन में सरकार से बार-बार एक ही सवाल उठ रहा है, कब लौटेगा इफको का गौरव, क्या हस्तक्षेप कर पाएगी मोदी सरकार? यह सवाल सीधे मोदी सरकार से इसलिए बनता है कि आजाद भारत में भ्रष्टाचार मुक्त भारत की परिकल्पना के आधार पर देश के 130 करोड़ जनता के बीच वोट मांगने श्री नरेंद्र मोदी ही आए थे। एक तरफ ग्लोबल वेलनेस फाउंडेशन के ज्ञापन पर प्रधान मंत्री कार्यालय सी.बी.आई. जांच के आदेश करता है परंतु हैरानी की बात यह है पीएमओ में भी अवस्थी की पहुंच है जिसके चलते जांच के दौरान पी.एम से प्रशंसा पत्र लेने में अवस्थी सफल हो जाता है और कुछ समय पश्चात तेलगू अकादमी से अघोषित इफको द्वारा स्पॉन्सर कार्यक्रम में उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू से स्वयं को सम्मानित करा लेता है।

इफको घोटाले पर भाजपा सांसद श्रीमती दर्शन विक्रम जर्दोश ने संसद में अपनी ही सरकार से सवाल किया जिसका उत्तर देते हुए उर्वरक मंत्रालय ने साफ कह दिया है कि अवस्थी ने सरकार का शेयर बल पूर्वक, गैर कानूनी प्रक्रिया अपनाकर वापस किया है जो विवादित है। इसके बावजूद क्या सरकार को यह इंतजार है विजय माल्या, नीरव मोदी, मेहुल चोकसी की तरह अवस्थी भी साजिश के तहत विदेश भाग जाए तब पकड़ने का प्रयास करेंगे? 

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4 फरवरी 2013 को निदेशक सहकारिता ने देश भर की मल्टी स्टेट कोआपरेटिव सोसाइटी को परिपत्र जारी करते हुए निदेशक डी.एन. ठाकुर ने निर्देशित किया था, अपना बोर्ड का कोरम पूरा कर 97वें संविधान संशोधन के अनुसार बायलॉज पंजीकृत कराना अनिवार्य है परंतु अवस्थी ने उक्त परिपत्र पर किसी तरह का ध्यान नहीं दिया, इसके बाद भी निष्प्रभावी बोर्ड से मनमाफिक निर्णय कराते चला गया। यहां सवाल यह है जब बोर्ड ही निष्प्रभावी हो गया तो उसे निर्णय लेने का अधिकार निदेशक सहकारिता ने कैसे स्वीकार कर लिया? 

इफको लूट से कराह रही है और कराहने की आवाज दूर-दूर तलक जा रही है फिर भी निदेशक सहकारिता बहरे-गूंगे क्यों बने रहे। क्या उन्हे ऐसे हालात में बोर्ड भंग कर रिसीवर बैठाने की जरूरत नहीं थी। किसान इंटर नेशनल ट्रेडिंग पूरी तरह से फर्जी सब्सिडी और इफको घोटाले के धन से स्थापित किया है जिसके जरिए अवस्थी अपने बेटों को तरह-तरह से धन लाभ पहुंचाता है। क्या इतने ताकतवर हैं उदय शंकर अवस्थी जो लंबे समय से संसद और संविधान को ललकार रहे हैं। सरकार को अब यह बात जग जाहिर करना चाहिए कि इफको उसकी, किसानों की या अवस्थी के जेब की जागीर है। 

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उर्वरक मंत्रालय के भी इफको पर सरकार का नियंत्रण है। उदय शंकर अवस्थी ने धोखा धडी कर अपहरण कर लिया है और मालिक सरकार को बाहर कर स्वयं अघोषित रूप से मालिक बन बैठा है। देश में अब तक के इतिहास में इफको घोटाला ऐसा मामला है जिसमें अवस्थी को सरकार ने नहीं हटाया है इसी का फायदा उठाकर वह गरीब किसानों के धन को लुटा कर जांच प्रभावित कर रहा है। भारत की संसद में इतनी ताकत और इच्छा शक्ति है कि उसने बड़े से बड़े विदेशी दुश्मन को पल भर में उखाड फेंका है परंतु अवस्थी कई दशक से संसद एवं उसके द्वारा बनाए गए संविधान को ही चुनौती दे रहा है, देश के कर्णधार इस देशद्रोही के सामने हाथ जोड़े खडे हैं अवस्थी चंदा दे दो चुनाव लड़ना है यही है आजाद भारत का सबसे बडा राजनीतिक भंडाफोड़? 

इफको घोटाले से भारत के 5.5 करोड किसान सदस्य व उनके आश्रित तकरीबन 30 करोड सीधे-साधे लोग प्रभावित हो रहे हैं। भारत की संसद ने 97वें संविधान का संशोधन कर दिया सुप्रीम कोर्ट ने समीक्षा कर दी और देश के प्रथम नागरिक यानी राष्ट्रपति ने मंजूरी दे दी इसके बाद राजपत्र में प्रकाशित होकर पूरे देश में लागू हो गया लेकिन अवस्थी ने इसे भी अपने पैरों तले रौंद दिया है और ऐसा प्रतीत हो रहा सरकार का भी अपहरण कर लिया है।

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आवश्यक सूचना
‘इफको किसकी’ पुस्तक के प्रकाशन के बाद जल्द भाग- 2 देश के सामने एक बार पुनः रखने का प्रयास किया जायेगा जिससे लंबे समय से सरकारी मशीनरी में लगी भ्रष्टाचार रूपी जंग को दूर किया जा सके और किसानों की इफको को आजाद कराया जा सके? अब भी देश में संवैधानिक संस्थाएं, नीति निर्धारक व मीडिया ऐसे संवेदनशील मुद्दे पर अपनी आंखे बंद रखता है तो इससे बड़ा धोखा देश के साथ और क्या होगा?

बरेली के पत्रकार रविंद्र सिंह द्वारा लिखी किताब ‘इफको किसकी’ का 31वां पार्ट..

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रविंद्र सिंह
पत्रकार एवं मीडिया रिसर्चर बरेली (उ0प्र0)।

पिछला भाग.. इफको की कहानी (30) : संविधान संशोधन को चुनौती देता बोर्ड, पढ़ें- GAZZETE OF INDIA

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