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सुख-दुख

90 फीसदी मॉडर्न ऑटो इम्‍यून बीमारियों की शुरुआत inflammation से होती है, देखें ऐसे खाने की लिस्‍ट

मनीषा पांडे

“मैं स्‍पॉन्‍डलाइटिस (spondylitis) को समझने के लिए पढ़ रही थी. पता चला कि स्‍पॉन्‍डलाइटिस भी एक ऑटो इम्‍यून बीमारी है. इससे जुड़े हर आर्टिकल में बार-बार inflammation शब्‍द का जिक्र था. मुझे डॉ. मार्क हाइम की बात याद आई कि “90 फीसदी मॉडर्न ऑटो इम्‍यून बीमारियों की शुरुआत inflammation से होती है. मुझे जानना था कि क्‍या-क्‍या खाने से शरीर में inflammation होता है. मैंने inflammatory foods की लिस्‍ट ढूंढी. वो लिस्‍ट कुछ इस प्रकार है-

  • शुगर
  • कोई भी पैकेज्‍ड फूड, जिसमें Added sugar हो
  • आइसक्रीम, चॉकलेट, केक, पेस्‍ट्री
  • Sugary beverages, कोल्‍ड ड्रिंक, सोडा, एनर्जी ड्रिंक
  • प्रॉसेस्‍ड फूड
  • ब्रेड, कुकीज, क्रैकर्स
  • रिफाइंड कार्ब, पास्‍ता, नूडल्‍स
  • फास्‍ट फूड, बेक्‍ड फूड
  • Artificial Sweeteners
  • High fructose corn syrup like flavored yogurts, desserts
  • Vegetable oils like sunflower, safflower and corn oil
  • Fried foods made with trans-fats or hydrogenated fats.

ये पढ़ने के बाद अपनी सोसायटी के डिपार्टमेंटल स्‍टोर, फूड जॉइंट्स और आसपास की फूड आइटम बेच रही सारी दुकानों के चक्‍कर लगा आइए. हरेक चीज चेक कर लीजिए. सच तो ये है कि फल-सब्‍जी वाले ठेले के अलावा बाकी जो कुछ भी बिक रहा है, वो विशुद्ध जहर है.

हाल ही में एक पॉडकास्‍ट में डॉ. गाबोर माते और मार्क हाइम बात कर रहे थे. डॉ. माते ने कहा कि ड्रग्‍स बेचने और खरीदने वाले क्रिमिनल्‍स होते हैं. हम उन्‍हें पकड़कर जेल में बंद कर देते हैं. जबकि ये सारे बड़े फूड कॉरपोरशंस, पैकेज्‍ड फूड बिजनेस कर रहे, समाज के सम्‍मानित, अमीर लोग सबसे बड़ा ड्रग्‍स का व्‍यापार कर रहे हैं. ये 80 फीसदी बीमारियों की जड़ है. मौत का कारण है, लेकिन कोई इसे क्रिमिनल एक्‍ट नहीं मानता. दोनों काफी विस्‍तार से इस बारे में बात करते हैं कि किस तरह ये सारे प्रॉसेस्‍ड, पैकेज्‍ड फूड खतरनाक ड्रग्‍स से कहीं ज्‍यादा खतरनाक और एडिक्टिव हैं.

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मैंने पिछले एक साल से हर तरह का पैकेज्‍ड और प्रॉसेस्‍ड फूड खाना बंद कर दिया है. लेकिन पिछले दिनों मेरा ये नियम-संतुलन थोड़ा बिगड़ गया था. मैं रोज घर लौटते हुए स्‍टोर से थम्‍स अप की एक बोतल उठा लेती. कभी बिस्किट, कभी केक, कभी चिप्‍स, नमकीन, मीठी ब्रेड या कुछ भी और कूड़ा. ज्‍यादातर मीठी चीजें ही होती थीं. मैं सामान्‍य स्थिति में ऐसा नहीं करती, लेकिन ये सब अतिरिक्‍त तनाव की वजह से हो रहा था.

आपको कुछ चाहिए, जो शांत कर सके, थोड़ा बेहतर महसूस कराए और चीनी ये काम खूब मजे से करती है. फिलहाल कुछ 10-12 दिन ये चला होगा. फिर बंद कर दिया, लेकिन बॉडी अभी भी उसकी डिमांड कर रही है. रोज शाम को मन करता है कि आइसक्रीम, कोल्‍ड ड्रिंक, केक, कुकीज कुछ भी मिल जाए.

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मैं संतरे की दो फांकें फांककर डॉ. माते और डॉ. मार्क के पॉडकास्‍ट बार-बार सुनती हूं. स्‍ट्रेस, दुख, तनाव, ट्रॉमा, अकेलापन, चिंता, फूड हैबिट, बीमारियां सब एक-दूसरे से जुड़ी हैं. एक भी गड़बड़ हो तो बाकी सब गड़बड़ हो ही जाएगा.

डॉ. मार्क तो फूड के बारे में ऐसे बात करते हैं, मानो ये पूरे जीवन, पूरे अस्तित्‍व का केंद्र है. वॉर और क्‍लाइमेट चेंज का भी. सोचकर देखिए, वो ठीक कह रहे हैं. संसार मानो एक बड़ा सा अस्‍पताल है और सारे मनुष्‍य शरीर और मन से बीमार.”

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साभार- एफबी

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