दोस्तो, दैनिक जागरण में अब बहू बेटियों की इज्जत सुरक्षित नहीं है। कहां कहां से पकड़ कर आ गए हैं चरित्रहीन लोग, कुछ पता ही नहीं चल पा रहा है। आए दिन ऐसे मामलों के खुलासे होते हैं, लेकिन जागरण प्रबंधन अखबार की धौंस दिखा कर उन्हें दबवा देता है। क्या यह वही अखबार है, जो स्वामी विवेकानंद के सिद्धांतों और आदर्शों पर शुरू हुआ था। अब ऐसा लगता तो नहीं है।
दैनिक जागरण में ऐसी-ऐसी घटनाएं घट रही हैं, जिनसे शर्म को भी शर्म आ जाए। चाहे पेड न्यूज की बात हो या पत्रकारों से दलाली कराए जाने की बात। जागरण प्रबंधन शर्म को धोकर पी गया है। उसे खबर के लिए भी पैसा चाहिए, लेकिन कर्मचारियों को मजीठिया वेतन देने के नाम पर प्रबंधन को सांप सूंघ जाता है।
मुझे नोएडा के कई विभागों से सूचना मिली है कि दैनिक जागरण के पत्रकार दलाली से बाज नहीं आ रहे हैं। वे तो पुलिस पर भी धौंस जमाने लगे हैं। उनकी हरकत से पुलिस विभाग परेशान है। बड़ा समूह होने का जितना दुरुपयोग हो सकता है, दैनिक जागरण प्रबंधन की ओर से किया जा रहा है। इस पर सरकार मौन है, प्रशासन मौन है, पुलिस मौन है। यह समाज के लिए बहुत बड़े खतरे का संकेत है।
आखिर क्यों हम आस्तीन के सांप को दूध पिलाने में लगे हैं। जिस संस्थान के लिए संविधान, कानून, चरित्र, उदारता, सहयोग, ईमानदारी आदि को कोई महत्व नहीं है, उसे समाज में बने रहने का कोई हक नहीं है। आखिर दैनिक जागरण को नंबर वन किसने बनाया, उसके कर्मचारियों और समाज ने। आज उसी दैनिक जागरण को न तो अपने कर्मचारियों की कोई परवाह है और न ही समाज की। ऐसे समाज विरोधी संस्थान का अंत होना ही चाहिए।
सुखद यह है कि दैनिक जागरण की क्षुद्रताओं को अब अधिकारी समझने लगे हैं और उसकी हैंकड़ी का मुहतोड़ जवाब भी देने लगे हैं। शायद यही वजह है कि बुधवार को रात में चार श्रम पर्यवेक्षकों ने छापा मार कर दैनिक जागरण प्रबंधन को आईना दिखा दिया कि अब तुम्हारी धूर्तता का जवाब देने का समय आ गया है।
श्रीकांत सिंह के एफबी वॉल से
patel dilip
April 11, 2015 at 7:23 am
bahut achchi baat — likhi bhai srikantsingh ne— ki ye सुखद यह है कि दैनिक जागरण की क्षुद्रताओं को अब अधिकारी समझने लगे हैं। शायद यही वजह है कि बुधवार को रात में चार श्रम पर्यवेक्षकों ने छापा मार कर प्रबंधन को आईना दिखा दिया कि उसकी धूर्तता का जवाब देने का समय आ गया है।