मेरे एक मेधावी एवं बेहद संवेदनशील मित्र ने एक रोज एक चकित करने वाली, पर सच्ची बात कही। उन्होंने कहा कि मजीठिया वेज बोर्ड की लड़ाई तो हम तभी जीत गए थे जब केंद्र की तत्कालीन यूपीए सरकार ने अधिसूचना जारी कर दी थी। अभी जो जंग चल रही है वह अखबार मालिकों और सुप्रीम कोर्ट के बीच की है। वो कैसे, मेरी तो समझ में ही नहीं आया? मित्र ने मेरी सवालिया सूरत को घूरते हुए खुलासा कुछ इस प्रकार किया।
उन्होंने बताया कि उस अधिसूचना से बौखलाए अखबार मालिकान वेज बोर्ड की संस्तुतियों को चुनौती देने और उस पर रोक लगाने, उसे रद्द कराने के लिए भागे-भागे सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए। लेकिन वहां भी उन्हें मुंह की खानी पड़ी। सुप्रीम कोर्ट ने मालिकान की याचिकाओं को खारिज करते हुए सख्ती से आदेश दिया कि वेज बोर्ड की रेक्मेंडेशन को दी गई मियाद में पूरी तरह लागू करो और कर्मचारियों का बनता एरियर चार किश्तों में भुगतान करो। इस आदेश के पालन में कोई कोताही नहीं होनी चाहिए, अन्यथा दंड के भागी बनोगे। मालिकान ने पुनर्विचार याचिकाएं भी दाखिल कीं, पर माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने उसे खारिज कर दिया।
मालिकों के बचने के सारे रास्ते बंद हो गए तो उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का खुलेआम उल्लंघन करना शुरू कर दिया। आदेश को अंगूठा दिखाते हुए वे गुंडागर्दी पर उतर आए। कर्मचारियों का बहुविधि उत्पीड़न करने लगे। उनका तबादला, निलंबन, निष्कासन, वेतन-सुविधाओं में कटौती, दूसरे नकली संस्थाओं में समायोजन, काम कुछ और पद नाम कुछ आदि के अनगिनत ऐसे कारनामे करने लगे कि कर्मचारी परेशान-आजिज हो जाए और जॉब छोड़कर स्वयं चला जाए। इसके अलावा वे कर्मचारियों से जबरन लिखवाने लगे कि वे (कर्मचारी) कंपनी के दिए जाने वाले वेतन एवं मुहैया की जाने वाली सहूलियतों से संतुष्ट हैं। इसके लिए वेज बोर्ड रिपोर्ट के क्लॉज 20जे का सहारा लिया गया। यही नहीं, कर्मचारियों को मालिकान के पालतू मैनेजर-संपादक रूपी गुंडों-नरभक्षियों-दानवों ने आए दिन धमकाना, चेतावनी देना, आगाह करना शुरू कर दिया, जो आज तक बदस्तूर जारी है।
मरता क्या नहीं करता। कर्मचारियों ने अंतत: सुप्रीम कोर्ट जाने और मालिकान पर सुप्रीम कोर्ट की अवमानना का केस करने की ठान ली। दूसरे शब्दों में अखबारी कामगारों ने सर्वोच्च अदालत को अवगत कराने का फैसला कर लिया कि हे माननीय सर्वोच्च न्यायालय, अखबारों के मालिक आपके आदेश को न मानने की कसम खा लिए हैं, ये आपको अपने आगे कुछ समझते ही नहीं है। इसके बाद तो अवमानना याचिकाओं की बाढ़ आ गई। इन याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट का क्या रुख है, यह आप मीडिया साथियों से छुपा तो है नहीं। साथ ही, अब अखबार मालिकों को भी पता ही नहीं, बल्कि पसीना भी छूटने लगा है। 23 अगस्त 2016 की सुनवाई में न्यायमूर्ति रंजन गोगोई और प्रफुल्ल सी. पंत की बेंच के आदेश ने तो ऐसा ही नजारा पेश किया है।
23 अगस्त दिन मंगलवार की सुनवाई में पांच राज्यों उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, नगालैंड एवं मणिपुर के लेबर कमिश्नरों को बुलाया गया था। उन्हीं की रिपोर्टों एवं कर्मचारियों और मैनेजमेंटों की ओर से दिए गए डाक्यूमेंटों एवं एविडेंसों-सबूतों के बेस पर तैयार सीनियर एडवोकेट श्री कोलिन गोंसाल्वेज की विस्तृत एवं विसंगतियों को उजागर करती रिपोर्ट पर कोर्ट की कार्यवाही चल पड़ी। शुरुआत में कानून के पन्ने पलटे गए, संबंधित कानूनों पर गहरी दृष्टि डाली गई। उसके बाद 20जे का मालिकान का सबसे बड़ा कर्मचारी मारक हथकंडा बहस का केंद्र बन गया। दोनों पक्षों की सुनने और जागरण के वकील की जबरदस्त खिंचाई के बाद कोर्ट ने 20जे को रद्द कर दिया। कोर्ट ने व्यवस्था दी कि 20जे वहां लागू होगा जहां कर्मचारियों को सेलरी मजीठिया वेज अवॉर्ड से ज्यादा मिलती है। वहां यह क्लॉज-कानून निष्प्रभावी-बेअसर-बेमतलब-बेमानी है जहां कर्मचारियों को वेज अर्वॉर्ड के मानकों-संस्तुतियों से कम या बेहद कम सेलरी मिलती है।
इस सबसे अहम कर्मचारी हितैषी एवं मालिकों पर वज्रपात फैसले के बाद लेबर कमिश्नरों का बुलावा शुरू हो गया। पहले पेश हुए उत्तर प्रदेश के लेबर कमिश्नर। उनकी खुद को बचाऊ बोलियों एवं गैर जिम्मेदाराना, मालिकों के फायदे वाले कारनामे करने और उसका औचित्य बताने वाली दलीलें देने और खानापूर्ति वाली स्टेटस रिपोर्ट पेश करने पर उन्हें कोर्ट का जबरदस्त् गुस्सा झेलना पड़ा। गनीमत रही कि उन्हें गिरफ़तार करने का वारंट नहीं जारी हुआ। िफर भी उन पर गिरफ़तारी से भी बड़ा बोझ एवं जिम्मेदारी डालते हुए कहा गया कि छह हफ़ते के अंदर वेज बोर्ड की संस्तुतियों को सारे अखबारों में लागू करवा के कोर्ट को सबूतों के साथ रिपोर्ट पेश करो। यूपी के आला श्रम अधिकारी की ऐसे में दशा कैसी थी, इसे कोर्ट रूम में मौजूद मेरे जैसे अनेक लोगों ने देखी। जिन्होंने नहीं देखी वे अपनी कल्पना के अश्व दौड़ा सकते हैं।
अब बारी आई हिमाचल के लेबर कमिश्नर की। उनके द्वारा प्रेषित बचकानी रिपोर्ट को लहराते हुए जज साहब ने पूछा यही है तुम्हारी रिपोर्ट। इतने बड़े मसले की रिपोर्ट ऐसे ही बगैर किसी छानबीन, जांच-पड़ताल, अखबारी प्रतिष्ठान परिसर में गए बिना, कर्मचारियों एवं मैनेजमेंट से बात किए-सबूत लिए बिना अपने कार्यालय में बैठे-बैठे मनगढ़ंत रिपोर्ट तैयार कर ली। और देश की सबसे बड़ी अदालत को गुमराह करने के लिए भेज दी। ये सब नहीं चलेगा जनाब! हमें ठोस, पक्की रिपोर्ट चाहिए। वेज अवॉर्ड इम्लीमेंट करवा कर अगली तारीख 4 अक्टूबर को हमें रिपोर्ट पेश करो। इसी तरह नगालैंड एवं मणिपुर के लेबर कमिश्नरों से पूछताछ जज साहब ने की और उनकी रिपोर्टों पर नाखुशी जताते हुए उन्हें भी अगली सुनवाई पर कंप्लीट रिपोट़र्स विथ इंप्लीमेंटेशन पेश करने के आदेश दिए।
न्यायमूर्ति रंजन गोगोई साहब सबसे ज्यादा खफा तो उत्तराखंड के लेबर कमिश्नर की अनुपस्थिति से हुए। उन्होंने उत्तराखंड के लेबर कमिश्नर की गिरफ़तारी का वारंट जारी करने का आदेश देते हुए उत्तराखंड के मुख्य सचिव को सख्ती से निर्देश दिया कि इस अफसर के खिलाफ कार्रवाई करके हमें यानी सुप्रीम कोर्ट को अविलंब सूचित करें। साथ ही राज्य पुलिस को आदेश दिया कि अगली सुनवाई पर लेबर कमिश्नर को पेश किया जाए। मुख्य सचिव को यह भी निर्देशित किया गया कि मजीठिया रिपोर्ट की संस्तुतियों को क्रियान्वित कराकर 4 अक्टूबर को बा-सबूत रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट में पेश करें।
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने इस बात पर बराबर जोर दिया कि ठेके के कर्मचारियों को हर सूरत में नियमित कर्मचारियों की ही तरह मजीठिया वेज बोर्ड की संस्तुतियों के अनुसार वेतन एवं अन्य लाभ मिलने चाहिए। इसमें किसी तरह की कोताही अक्षम्य होगी। यानी कि खामोशी ओढ़े ठेका कर्मचारियों को अब तो खिलखिलाना चाहिए। क्योंकि उन्हें तो बिना बोले ही वह सब मिल गया जिसके लिए रेगुलर या ऐसे ही दूसरे कर्मचारी कितनी मुसीबतें झेले हैं और झेल रहे हैं।
बहरहाल, इसी क्रम में एक रोचक एवं हंसी बिखेरने वाली परिघटना का जिक्र करना जरूरी है। सहारा कर्मचारियों का मसला जब उठा तो सहारा मैनेजमेंट के वकील की दलील थी हमारा अकाउंट सील है, इसीलिए हम कर्मचारियों के एरियर का भुगतान नहीं कर पा रहे हैं। न्यायमूर्ति रंजन गोगोई ने जब व्यंग्यात्मक लहजे में पूछा कि आपका एक ही अकाउंट है तो कोर्ट रूम में हंसी फूट पड़ी। साफ है कि सहारा अखबार अपने घोटालेबाज मालिक सुब्रत राय के सलाखों के पीछे होने और सेबी के हजारों करोड़ रुपए लौटाने की जद़दोजहद में फंसे होने की आड़ में अपने कर्मचारियों का हक निरंतर मारता जा रहा है। साथ ही अपने पुराने कर्मचारियों से पीछा छुड़ाने की नापाक हरकतों में मशगूल है। बावजूद इसके अखबार और चैनल धड़ल्ले से चल रहे हैं और विज्ञापनी कमाई में किसी तरह की कमी नहीं आई है।
इसके अलावा, कोर्ट ने साफ कर दिया है कि लेबर कमिश्नरों की बहानेबाजी नहीं चलेगी। उनके पास वैसे भी पहले से ही भरपूर अधिकार हैं और सुप्रीम कोर्ट उन्हें अपनी ओर से अधिकृत करती है कि वे अखबारी इस्टेब्लिशमेंट परिसर में धड़ल्ले से जा सकते हैं। वहां मैनेजमेंट के एक या सभी दस्तावेज, सूचनाएं, रिपोर्टें आदि देख सकते हैं, उन्हें मांग सकते हैं, अपने कब्जे में ले सकते हैं। वे कर्मचारियों से उनकी परेशानियों की जानकारी एवं उस बाबत एविडेंस, दस्तावेज आदि ले सकते हैं। उनके आधार पर मैनेजमेंट के खिलाफ कार्रवाई कर सकते हैं।
अगर इस रिपोर्ट-आलेख को पढ़ने वाले अन्यथा न लें तो मैं एक संदर्भित बात को कहने की गुस्ताखी करना चाहूंगा। मैं अपने मिलने वालों-जानने वालों से अवमानना केसों पर सुनवाई शुरू होने के वक्त से ही कहता रहा हूं कि कोर्ट को सारे अखबार मालिकों को पेशी के लिए बुलाकर केवल यही पूछना चाहिए—वेज अवॉर्ड दे रहे हो या नहीं। जवाब ‘हां’ या ‘नहीं’ में देने का आदेश देना चाहिए। अगर ‘हां’ कहते हैं तो बेहतर, और यदि ‘नहीं’ कहते हैं तो उन्हें अविलंब गिरफ़तार करवा कर जेल भेज दिया जाना चाहिए। इस मूढ़ मगज से निकली बात अब हकीकत का रूप लेती दिख रही है, ऐसा मेरा मानना है।
यह और बात है कि इसका रूप यानी फॉर्म अलग है। वह फॉर्म है लेबर कमिश्नरों पर शिकंजा कसने का, एक लेबर कमिश्नर की गिरफ़तारी का, वेज अवॉर्ड लागू करवाने के लिए लेबर कमिश्नरों को और अधिकार संपन्न् बनाने एवं उन्हें दिया गया टार्गेट हर हाल में पूरा करने का। जाहिर है, लेबर कमिश्नर्स सुप्रीम कोर्ट का आदेश पूरा करने के लिए जी तोड़ कोशिश करेंगे क्योंकि वे जेल नहीं जाना चाहेंगे। अपने पे-रोल पर पालने वाले अखबार मालिकान लेबर कमिश्नरों के काम में अड़ंगा डालने की पुरजोर कोशिश करेंगे। बहुत आशंका है कि वे आला श्रम अधिकारियों के साथ कुछ अनहोनी न कर बैठें। ऐसे में लेबर कमिश्नर्स सर्वोच्च अदालत से अपनी सुरक्षा की गुहार लगा सकते हैं। इस सूरत में सुप्रीम कोर्ट मालिकान पर सीधे कार्रवाई का आदेश दे सकती है।
कहने का मतलब ये कि सर्वोच्च न्यायालय ने उस सरकारी मशीनरी को ही मजीठिया वेज बोर्ड की संस्तुतियों को लागू करवाने के लिए माध्यम बनाया है जो कर्मचारियों-कामगारों-श्रमिकों के बीच काफी बदनाम है। उस पर मालिकों के साथ मिलकर श्रम कानूनों की धज्जियां उड़ाने एवं कर्मचारियों-श्रमिकों को उनके अधिकारों से वंचित रखने का आरोप सदियों से लगता आ रहा है। वैसे भी अदालत अपने आदेश के पालन के लिए सरकारी तंत्र का ही इस्तेमाल करती है। अवमानना के इस सबसे बड़े मामले में भी वही कर रही है। हां, इससे एक तथ्य–सच्चाई पर कोर्ट की मुहर लग गई है कि श्रम महकमा सर्वाधिक निष्क्रिय-निकम्मा, करप्ट एवं दागदार है।
23 अगस्त की सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति रंजन गोगोई ने यह बात अनेक बार दोहराई कि मजीठिया वेज बोर्ड की संस्तुतियों को सभी अखबारी प्रतिष्ठानों को अनिवार्य रूप से लागू करना है। अखबारी मालिकान की झूठी, टाइम पास करने वाली दलीलों को नहीं सुना जाएगा। अगर लागू कर दिया है तो सबूत पेश करो। कोर्ट को सबूत चाहिए, बहानेबाजी नहीं। सर्वोच्च अदालत ने अगली पेशी में पांच राज्यों मध्यप्रदेश, राजस्थान, दिल्ली, महाराष्ट़ एवं झारखंड के लेबर कमिश्नरों को तलब किया है। उनकी रिपोर्टों में दैनिक भास्कर, राजस्थान पत्रिका, नवी दुनिया, दैनिक जागरण, पंजाब केसरी, अमर उजाला, इंडियन एक्सप्रेस, हिंदुस्तान टाइम्स, टाइम्स ऑफ इंडिया आदि अखबारों के कारनामों का पुलिंदा होगा। इन अखबारों की कारस्तानियों का ब्योरा इन रिपोर्टों में नहीं होगा तो इन लेबर कमिश्नर्स की खैर नहीं। हालांकि हम मानकर चल रहे हैं कि इन लेबर कमिश्नर्स के कानों में सुप्रीम कोर्ट के डंडे की फटकार गूंज रही होगी। और अपनी बेईमान चमड़ी पर ईमानदारी का कॉस्मेटिक लगाने-पोतने में तल्लीन हो गए होंगे।
भूपेंद्र प्रतिबद्ध
चंडीगढ़
मो: 9417556066
sb
August 26, 2016 at 7:04 pm
Wah Bhupendra ji, aapki lekhni ka jawab nahin.. Aur Manniya SC ka bhi jawab nahin. Chalo, Der se hi sahi, ab to Nyay milney ki poori aasha hai. Sabsey badi baat to yah hai ki Jo Uninio ke Neta gan Imandari se SC gaye hue hain aur case lad rahey hain, unhein bhi Sadhuwad. Roopchand (ToI) aur Naidu (Indian Express) jaise netaon ko bhi ab samajh me aa gai hogi, ki ab unki bhi baari hai. Desh ke workers ko aise “Tuchchey Netaon” se bachaye… Jai hind… Satya-mev-jayate
Amarendra Kumar
August 27, 2016 at 7:53 am
Thanks, very informative
Amarendra Kumar
August 27, 2016 at 7:53 am
Thanks, very informative
Amit
August 31, 2016 at 6:46 pm
Madhya prades patrkar gair patrkar sangathan iske liye badhai Ka patr hai. Sangathan k Sabhi neta badhai k patr hai