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जनसंदेश टाइम्स की छपाई मशीन का गिरा शटर, आनन-फानन में सहारा की मशीन में छपा 5 हजार कापी

वाराणसी से प्रकाशित हिन्दी दैनिक समाचार पत्र जनसंदेश टाइम्स का इन दिनों उल्टी गिनती बड़ी तेजी से शुरू है। बंदी के कगार पहुंच चुके इस समाचार पत्र में पिछले दिनों रात नौ बजे उस वक्त हड़कंप मच गया, जब रोहनियां प्रिंटिंग प्रेस में पैसे के अभाव में कागज के रील की व्यवस्था नहीं हो सकी। आनन-फानन में दैनिक समाचार पत्र की सहारा से तालमेल कर प्रतियां छापी गयी। हालांकि इस समाचार पत्र के लिए यह कोई नया संकट नहीं है। रील के अभाव में हर दूसरे-तीसरे दिन प्रतियां नहीं छपती। बीते दिनों रात में कंपनी की मैनेजिंग कमेटी ने निर्णय लिया कि अब प्रिटिंग प्रेस, रोहनियां का शटर ही गिरा दिया जाए।

<p>वाराणसी से प्रकाशित हिन्दी दैनिक समाचार पत्र जनसंदेश टाइम्स का इन दिनों उल्टी गिनती बड़ी तेजी से शुरू है। बंदी के कगार पहुंच चुके इस समाचार पत्र में पिछले दिनों रात नौ बजे उस वक्त हड़कंप मच गया, जब रोहनियां प्रिंटिंग प्रेस में पैसे के अभाव में कागज के रील की व्यवस्था नहीं हो सकी। आनन-फानन में दैनिक समाचार पत्र की सहारा से तालमेल कर प्रतियां छापी गयी। हालांकि इस समाचार पत्र के लिए यह कोई नया संकट नहीं है। रील के अभाव में हर दूसरे-तीसरे दिन प्रतियां नहीं छपती। बीते दिनों रात में कंपनी की मैनेजिंग कमेटी ने निर्णय लिया कि अब प्रिटिंग प्रेस, रोहनियां का शटर ही गिरा दिया जाए।</p>

वाराणसी से प्रकाशित हिन्दी दैनिक समाचार पत्र जनसंदेश टाइम्स का इन दिनों उल्टी गिनती बड़ी तेजी से शुरू है। बंदी के कगार पहुंच चुके इस समाचार पत्र में पिछले दिनों रात नौ बजे उस वक्त हड़कंप मच गया, जब रोहनियां प्रिंटिंग प्रेस में पैसे के अभाव में कागज के रील की व्यवस्था नहीं हो सकी। आनन-फानन में दैनिक समाचार पत्र की सहारा से तालमेल कर प्रतियां छापी गयी। हालांकि इस समाचार पत्र के लिए यह कोई नया संकट नहीं है। रील के अभाव में हर दूसरे-तीसरे दिन प्रतियां नहीं छपती। बीते दिनों रात में कंपनी की मैनेजिंग कमेटी ने निर्णय लिया कि अब प्रिटिंग प्रेस, रोहनियां का शटर ही गिरा दिया जाए।

शटर गिराने के बाद मैनेजिंग कमेटी ने कर्मचारियों से दूसरी व्यवस्था कर लेने की बात कहकर बाहर का रास्ता दिखा दिया है। इससे उनके समक्ष अब जॉब का संकट आ गया है। सूत्रों की माने तो रोहनिया प्रिंटिंग प्रेस का शटर हमेशा के लिए बंद हो चुका है। कहा, जा रहा है विकास नाम का कोई व्यक्ति इसमें अब पम्पलेट की छपाई करेगा। वैसे भी 90 प्रतिशत से अधिक तेजतर्रार पत्रकारों को पहले ही सैलरी न दे पाने की स्थिति में छंटनी हो चुकी है। यहां बता देना जरूरी है कि शुरुवाती दौर में 55 हजार प्रतियां छापने वाला जनसंदेश इनदिनों सिर्फ 5-6 हजार प्रतियां ही बेच पा रहा है। विज्ञापनदाताओं को कनफ्यूज कर उनकी जेब काटा जा रहा है। सूत्र बताते हैं कि जनसंदेश की यह दुर्गति दैनिक समाचार पत्र हिन्दुस्तान से आए कुछ बड़े अधिकारियों की मठाधीशी के चलते हुई है। इन लोगों ने मठाधीशी कर पहले हिन्दुस्तान को चूना लगाया। अब जनसंदेश की लुटिया ही डुबो डाली। एडिटोरियल विभाग में अब गिनती के ही लोग बचे हैं।

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एक पत्रकार द्वारा भेजे गए पत्र पर आधारित.

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0 Comments

  1. apka apa

    December 10, 2014 at 11:04 am

    कब तक छापेगा विकास और कितन छापेगा और मठाधीशी से तो ये होना ही था लेजिब सअबसे अजीब विडम्बना ये हाइ की मैनेजमेंट भी काठ की उल्लू बना रहा

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