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सियासत

क्या संजय गांधी जैसा है योगी का जनसंख्या नियंत्रण कानून?

निर्मल कांत शुक्ल

45 साल पहले सांसद वरुण के पिता संजय गांधी ने की थी जनसंख्या नियंत्रण की पहल, वरिष्ठ पत्रकार विश्वमित्र टंडन की पुस्तक “पीलीभीत में इमरजेंसी की सौ अनसुनी कहानियां” में मिलता है जिक्र, योगी सरकार का जनसंख्या नियंत्रण कानून कोई नया कानून नहीं बल्कि पुराने कानून का ही अंश, साढ़े चार दशक पुराना संजय गांधी का जनसंख्या नियंत्रण कानून बेहद सख्त था, पुराने कानून में दो से अधिक बच्चे वाले शस्त्र लाइसेंस और कोटे की दुकान से भी कर दिए गए थे वंचित, तब हाईकोर्ट और उसके अधीनस्थ कर्मचारी जनसंख्या नियंत्रण कार्यक्रम से रखे गए थे मुक्त

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भारत में जनसंख्या नियंत्रण पिछले कई वर्षों से राजनीतिक और सामाजिक मुद्दा रहा है, इन दिनों उत्तर प्रदेश में योगी सरकार का जनसंख्या नियंत्रण एक्ट ना सिर्फ चर्चा में है बल्कि तमाम राजनीतिक दल इसे अपने-अपने नजरिए से देख रहे हैं। आबादी नियंत्रण के लिए कानून बने ऐसा पहली बार नहीं हो रहा बल्कि 45 साल पहले इस देश में आबादी नियंत्रण को लेकर बड़ी पहल पीलीभीत के सांसद वरुण गांधी के पिता संजय गांधी ने की थी, तब के कानून और अब आने वाले यूपी सरकार के कानून में बहुत ज्यादा बड़ा फर्क नहीं है।

जनसंख्या नियंत्रण को लेकर संजय गांधी की पहल का जिक्र पीलीभीत के वरिष्ठ पत्रकार व लोकतंत्र रक्षक सेनानी विश्वमित्र टंडन द्वारा लिखित पुस्तक “पीलीभीत में इमरजेंसी की सौ अनसुनी कहानियां” में मिलता है। उन्होंने अपनी पुस्तक में शीर्षक “इमरजेंसी में छीने गए थे नसबंदी न कराने वालों के तमाम मौलिक अधिकार” से इसका विस्तार से जिक्र किया है, जिसमें बताया गया कि तकरीबन 45 वर्ष पहले देश में एक ऐसा दौर भी आया था, जब संजय गांधी ने देश की राजनीति में अपने को स्थापित करने के लिए 5 सूत्रीय कार्यक्रम बनाया, जिसका सर्वाधिक प्रमुख कार्यक्रम जनसंख्या नियंत्रण करने के लिए देश में चला नसबंदी अभियान था। तब राज्य सरकारों ने भी इंदिरा सरकार में छोटे सरकार के नाम से पहचाने जाने वाले संजय गांधी की निगाहों में चढने के लिए बढ़-चढ़कर इस अभियान को चलाया और इसकी सफलता के लिए लोगों के अधिकार छीनने वाले तमाम कानून बना डाले।

उस समय उत्तर प्रदेश में पहला कानून राज्य कर्मचारियों के लिए “The Uttar Pradesh Government Servants (Special Provision Relating To Family Planning) Rules 1976” बनाया गया, जिसके तहत यदि कोई सरकारी कर्मचारी लक्ष्य दंपति की श्रेणी में आता है और उसने अपनी या अपनी पत्नी का नसबंदी ऑपरेशन यदि नहीं कराया है, तो उसको अन्य सरकारी नौकरी में नियुक्ति, साक्षात्कार, प्रतियोगात्मक परीक्षा आदि में बैठने, पदोन्नति व मूल अथवा पदोन्नत पद पर स्थायीकरण, सरकारी अस्पताल से मुफ्त चिकित्सा, सरकारी वेलफेयर से सस्ते सामान, सरकारी मकान का आवंटन, सभी प्रकार के सरकारी ऋण आदि की सुविधा से भी वंचित कर दिया गया। यदि नियमों के पारित होने के बाद कोई बच्चा पैदा होता है, उनकी संतानों की संख्या 3 से अधिक हो जाए तो ऐसे कर्मचारियों की सेवानिवृत्ति की आयु भी 58 वर्ष व 60 वर्ष से घटाकर 55 वर्ष कर दी गई थी। हालांकि उस समय हाईकोर्ट तथा उसके अधीनस्थ कर्मचारियों व अधिकारियों को इन नियमों से मुक्त रखा गया था।

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आम नागरिकों के लिए उस समय “The Uttar Pradesh Essential Articles And Things (Restriction On Grant And Supply To Unplanned Families) Order 1976” जारी किया गया, जिसके तहत नसबंदी न कराने वालों को सरकारी राशन की दुकानों से मिलने वाली सुविधा, परमिट, लाइसेंस या कोटा प्राप्त करने के लिए आवेदन पत्र देने से वंचित कर दिया गया। परिवार में अधिक सदस्य होने के बावजूद मात्र 4 सदस्यों के लिए ही सरकारी दुकान से राशन मिल सकता था। ऐसा व्यक्ति मोटर मिनी बस ऑटो रिक्शा- टैक्सी के परमिट से भी वंचित कर दिया गया। आवास विकास, विकास प्राधिकरण के स्थानीय प्राधिकरण अथवा राज्य सरकार का भवन आवंटित करने से भी वंचित कर दिया गया था। ऐसे परिवारों के बच्चों को विभिन्न शिक्षण संस्थाओं में मिलने वाले आरक्षण तथा फीस और छात्रवृत्ति से भी वंचित कर दिया गया था। लक्ष्य दंपति को सरकारी कोटे से स्कूटर मोटरसाइकिल खरीदने पर तक पाबंदी थी।

छोटे सरकार संजय गांधी के आबादी नियंत्रण कार्यक्रम के तहत उत्तर प्रदेश सरकार ने “The Uttar Pradesh Fire Arms And Ammunition (Restriction On Grant Of Licence) Order 1976” जारी किया, जिसमें यह प्रावधान किया गया था कि लक्ष्य दंपति जब तक ऑपरेशन ना करवा ले, तब तक शस्त्र आदि का लाइसेंस लेने से वंचित कर दिया जाए और यदि शस्त्र लाइसेंस पहले से स्वीकृत है तो वह नवीनीकरण की तिथि के बाद स्वतः रद्द माना जाए और उसका नवीनीकरण ना किया जाए।

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वर्तमान में जनसंख्या नियंत्रण को लेकर उत्तर प्रदेश में सियासत गरमा गई है। सूबे की योगी आदित्यनाथ सरकार ने विश्व जनसंख्या दिवस पर राज्य विधि आयोग के मसौदे को सार्वजनिक कर उस पर आपत्तियां मांगी हैं

प्रस्तावित नए कानून में आबादी नियंत्रण में वन चाइल्ड पॉलिसी स्वीकार करने वाले बीपीएल श्रेणी के माता-पिता को विशेष तौर पर प्रोत्साहित करने का प्रस्ताव रखा है। इसके तहत जो माता-पिता पहला बच्चा पैदा होने के बाद आपरेशन करा लेंगे, उन्हें कई तरह की सुविधाएं दी जाएंगी। पहला बच्चा बालक होने पर 80 हजार रुपये और बालिका होने पर एक लाख रुपये की विशेष प्रोत्साहन राशि दी जाएगी। ऐसे माता-पिता की पुत्री उच्च शिक्षा तक नि:शुल्क पढ़ाई कर सकेगी, जबकि पुत्र को 20 वर्ष तक नि:शुल्क शिक्षा मिलेगी। इसके अलावा उन्हें नि:शुल्क चिकित्सा सुविधा और सरकारी नौकरी होने की स्थिति में सेवाकाल में दो इंक्रीमेंट भी दिए जाएंगे।

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विधि आयोग के प्रस्ताव में दो से ज्यादा बच्चों के माता-पिता को स्थानीय निकायों का चुनाव लड़ने से रोकने, सरकार से मिलने वाली सब्सिडी बंद किए जाने, सरकारी नौकरियों के लिए आवेदन करने पर रोक लगाने तथा सरकारी नौकरी कर रहे लोगों को प्रोन्नति से वंचित करने का प्रस्ताव है।

उत्तर प्रदेश में प्रस्तावित जनसंख्या नियंत्रण कानून कोई नया कानून नहीं है बल्कि यह 46 साल पहले का सांसद वरुण गांधी के पिता संजय गांधी के 5 सूत्रीय कार्यक्रम का सर्वाधिक प्रमुख कार्यक्रम जनसंख्या नियंत्रण कार्यक्रम जैसा ही है। बल्कि उस समय की कार्यक्रम में कुछ ज्यादा ही कड़े प्रावधान थे जबकि अब लाए जा रहे कानून में नई बात निकाय चुनाव से ऐसे लोगों को वंचित किया जाना प्रमुख है। यह कहना भी गलत ना होगा कि योगी सरकार जिस कानून को आबादी नियंत्रण के लिए ला रही है, वह नई बोतल में पुरानी शराब जैसा है। हालांकि तब चार दशक पहले संजय गांधी के इस कार्यक्रम को आगे आने वाली सरकारों ने बंद कर दिया। यदि इसका कुछ अंश भी बना रहता तो शायद आज ना तो देश में और ना ही उत्तर प्रदेश में आबादी की ऐसी विस्फोटक स्थिति होती।

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  • निर्मल कांत शुक्ल
    वरिष्ठ पत्रकार/मजीठिया क्रांतिकारी/ आरटीआई एक्टिविस्ट
    मंडल अध्यक्ष, उत्तर प्रदेश श्रमजीवी पत्रकार यूनियन
    संपर्क – 7017389915, 9411498700
    Gmail – [email protected]
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