दो वर्ष पहले जेएनयू में दुर्गा पूजा की अनुमति दिए जाने तथा महिषासुर पूजा की अनुमति न देने तथा लोकसभा में भी महिषासुर का सन्दर्भ आने के कारण महिषासुर का मुद्दा पुनः चर्चा में आया था. हम जानते हैं कि नवरात्र के दौरान दुर्गा के नौ अवतारों की नौ दिन तक बारी बारी पूजा की जाती है. इसी अवधि में दुर्गा की सार्वजानिक स्थलों पर मूर्तियों की स्थापना की जाती है जहाँ पर रात को तरह तरह के गाने व् भजन गाये जाते हैं और माता के भक्त अपनी श्रद्धा के अनुसार पूजा करते हैं और चढ़ावा चढाते हैं. नौ दिन के बाद दुर्गा मूर्तियों का विसर्जन किया जाता है. यह देखा गया है कि पहले सार्वजानिक स्थलों पर बहुत कम मूर्तियों की स्थापना की जाती थी परन्तु इधर इन की संख्या बहुत बढ़ गयी है जो शायद हिंदुत्व के सुनियोजित कार्यक्रम का हिस्सा है.
दुर्गा की जिन मूर्तियों की स्थापना की जाती है उन में देवी द्वारा अन्य अस्त्र-शस्त्र धारण करने के इलावा महिषासुर का मर्दन (वध) भी दिखाया जाता है. महिषासुर के बारे में यह प्रचारित किया गया है कि वह बहुत बुरा असुर (दानव) था जिस का वध दुर्गा ने चामुंडा देवी के रूप में किया था. यह देखा गया है कि ब्राह्मणों ने अपने साहित्य में अपने विरोधियों का चित्रण बहुत बुरे स्वरूप में किया है. वेदों में भी आर्यों ने मूल निवासियों को असुर, दानव और दस्यु तक कहा है. दरअसल यह शासक वर्ग की अपने विरोधियों को बदनाम करने की सोची समझी रणनीति का हिस्सा होती है.
इधर महिषासुर के बारे में प्रचलित अवधारणा को दक्षिण भारत खास करके कर्नाटक के मैसूर क्षेत्र में जहाँ पर चामुंडा देवी का मंदिर है, के विद्वानों द्वारा चुनौती दी गयी है. उन्होंने अधिकारिक तौर पर कहा है कि महिषा एक बौद्ध राजा था जो बहुत न्यायकारी और जनता में बहुत प्रिय था. इस सम्बन्ध में मैसूर विश्वविद्यालय के पत्रकारिता विभाग के प्रोफ़ेसर महेश चन्द्र गुरु का कहना है, “वह एक बौद्ध राजा था जो कि आम लोगों के मानवाधिकारों का बहुत ख्याल रखता था परन्तु ब्राह्मण वर्ग ने उसे एक असुर के रूप में प्रचारित किया एवं दावा किया कि उसे चामुंडेशवरी (दुर्गा का अवतार) ने मारा था जो कि एक कल्पित देवी थी.” उन्होंने कहा है कि चामुंडी पहाड़ी पर महिषा जयंती मनाई जाती है.
उन्होंने आगे दावा किया है कि “महिषासुर मर्दनी” अर्थात चामुंडा देवी द्वारा महिषा का वध करने का कोई साक्ष्य नहीं है. “महिषा समानता और न्याय के प्रतीक थे और जो लोग उन्हें पसंद नहीं करते थे उन्होंने साजिश करके उन के बारे में झूठी कहानियां गढ़ कर उन्हें असुर के रूप में बदनाम किया. पाली भाषा में एक सन्दर्भ है कि वह महिषा मंडल का राजा था और इसी लिए मैसूरू शहर का नाम उसके नाम पर पड़ा.”
लोक्श्रुतियों के विशेषज्ञ कालेगोड़ा नागवार का कहना है कि महिषा का मैसूर पर राज था और वह बहुत अच्छा शासक था. उन का कथन है कि “तथ्यों को तोडा मरोड़ा गया है. लोगों को सच्चाई को जानना चाहिए और उसे असुर के रूप में स्वीकार नहीं करना चाहिए.”
लेखक बन्नुर राजू का कहना है कि पहले चामुंडा पहाड़ी को महाबलेश्वर मंदिर के रूप में जाना जाता था. इस पहाड़ी का नाम मैसूर के महाराजाओं के काल में चामुंडा के नाम पर रखा गया और उस के लिए चामुन्डेश्वरी द्वारा महिषासुर वध की कहानी प्रचारित की गयी. इसी प्रकार लेखक सिद्धास्वामी जिन्होंने “महिषासुर मंडल” (महिषासुर राज्य) नाम से पुस्तक भी लिखी है, का दावा है कि पहाड़ी के प्रवेश पर महिषासुर की मूर्ती चिक्क्देवाराजा वाडियार के राज काल में स्थापित की गयी थी.
दलित वेलफेयर ट्रस्ट के अध्यक्ष शांतराजू का कथन है कि ट्रस्ट महिषा के बारे में साहित्य छपवाएगा और उस के अच्छे कार्यों को पर्यटकों में प्रचारित करेगा. उन्होंने सरकार से “महिषा त्यौहार” मनाने की मांग भी की है. ट्रस्ट के सदस्य ने कहा कि वे चामुंडा पहाड़ी पर “महिषा जयंती” का आयोजन भी करते हैं जिस में काफी संख्या में लोग भाग लेते हैं.
दरअसल ब्राह्मणों ने शूद्रों और दलितों के इतिहास को या तो छुपाया है या उसे विकृत किया है. उन्होंने इन वर्गों के इष्ट लोगों के बारे में तरह तरह की कहानियां गढ़ कर उन्हें बदनाम किया है. उदाहरण के लिए वाल्मीकि रामायण में बुद्ध की तुलना “चोर” से की गयी है. इसी ग्रन्थ में आदिवासियों को मानव के स्थान पर भालू, बन्दर जैसे जानवरों के रूप में पेश किया गया है. इसी लिए अब समय आ गया है जब शूद्रों और दलितों को अपने असली इतिहास को खोजना होगा और उसे सही रूप में पेश करना और अपनाना होगा.
लेखक एस.आर.दारापुरी सेवानिवृत्त आई.पी.एस. अधिकारी हैं और सामाजिक सरोकारों को लेकर सक्रिय रहते हैं.
गुंजन सिन्हा
October 3, 2019 at 7:38 pm
इन महात्मन को कोई बताए कि रामायण बुद्ध से बहुत पहले की रचना है. दुर्गा और महिषासुर की कहानी पौराणिक है, उसे इतिहास बता कर पेश करना मूर्खता है और प्रागैतिहासिक कथाओं किम्व्दंतियों को आधार बना कर लोगों के बीच नफरत फैलाना दुष्टता के अलावा क्या है. इन्हें कहिये कि आज की समस्याओं को निबटाने में बुद्धि लगाएं, कपोलगल्प को लेकर गुहगिन्जन क्यों कर रहे हैं.
अभिषेक शुक्ला
October 3, 2019 at 11:07 pm
कोई बात नहीं , अगर ए उल्टा नहीं लिखेंगे तो लोग इनको जानेंगे कैसे? लोग शक्ति की आराधना करते हैं। आराधना के दौरान कितनी ऊर्जा मिलती है। इसका अहसास अगर कभी किया होता तो न इतिहास खंगालने की जरूरत थी न शोध की।
संतोष मिश्र
October 4, 2019 at 11:00 am
बाल्मीकि रामायण गौतम बुद्ध के पूर्व काल मे लिखा गया था। ये महोदय आईपीएस रहते हुए कितनो की ज़िन्दगी नरक बनाया होगा। यहाँ इनके लेख से झलकता है।
Mani Shekhar Pandey
October 6, 2019 at 5:18 pm
is terah ke Moorkh IPS reh chuke hain ? fir Civil services ka selected criteria change karne ka samay aa gaya hai