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जीने की जिद.. पढ़ें अन्तरंग प्रसंगों पर एक खुली बातचीत

श्रेष्ठ जीवन की इच्छा रखने वाले लोग करियर अथवा व्यापार में यह लक्ष्य तो तय करते हैं कि उन्हें कम से कम इतना तो पाकर ही रहना है। लेकिन हमें आरम्भ में ही अधिकतम का लक्ष्य भी तय कर लेना चाहिए ताकि इच्छित लक्ष्य पूरे होने के बाद बचे हुए समय और शक्ति से हम चारों तरफ बिखरी अन्य खुशियों को भी बटोर सकें और जीवन का वास्तविक आनन्द भी ले सकें।

अजयमेरु प्रेस क्लब के संस्थापक अध्यक्ष, वरिष्ठ पत्रकार एवं लेखक डा. रमेश अग्रवाल ने अपनी पुस्तक जीने की ज़िद पर चर्चा करते हुए कहा कि, ‘आंख मीच सफलता के पीछे भागते रहना बहुमूल्य जीवन को व्यर्थ गंवाने की तरह है।’

क्लब के सभागार में आज बड़ी संख्या में उपस्थित नगर के प्रबुद्धजन की मौजूदगी में डा. अग्रवाल ने छोटी छोटी खुशियों का जश्न मनाने, जीवन की चिन्ताओं का किसी एडवेन्चर अथवा कमप्यूटर गेम की तरह रोमांच लेने, इच्छाओं को शक्ति बनाने के साथ साथ बेलगाम इच्छाओं को नियंत्रित रखने जैसे मुद्दों पर खुद अपने जीवन के अनुभव सुनाए। रमेश अग्रवाल ने अपने जीवन के अन्तरंग प्रसंगों पर खुल कर बात करते हुए जानकारी दी कि किस तरह उन्होंने अपनी शारीरिक चुनौती को अपनी ताकत बनाया।

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इस अवसर पर पंजाब नेशनल बैंक के पूर्व महाप्रबन्धक एवं सुप्रसिद्ध लेखक वेद माथुर ने मंच पर ही श्री अग्रवाल का साक्षात्कार लिया। श्री माथुर द्वारा पूछे गये अनेक मर्मभेदी सवालों के जवाब देते हुए अग्रवाल ने कहा कि, ‘सफलता का अर्थ खुद अपने लिये अपने द्वारा तय किये गये लक्ष्यों की प्रापित है।’

उन्होंने कहा, ‘जीवन में ईमानदारी का कोई विकल्प नहीं है तथा हर क्षेत्र में जितने भी लोग शीर्ष पर हैं वे कहीं न कहीं ईमानदार अवश्य रहे है।’

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साहित्यकार अनन्त भटनागर ने आरम्भ में पुस्तक जीने की ज़िद का परिचय देते हुए कहा कि, ‘पुस्तक के प्राय: सभी अध्याय जीवन प्रबन्धन की अन्य किताबों से हट कर हैं। पुस्तक में गुस्से, चिन्ता, भूलने की आदत, बीमारी, धीमी गति जैसी नकारात्मक समझी जाने वाली प्रवृतियों की सकारात्मक व्याख्या एक अनूठा प्रयोग है।’

सुप्रसिद्ध कार्टूनिस्ट दिलीप पारीक ने लेखक का परिचय देने के साथ साथ कार्यक्रम का संचालन किया। अंत में अजयमेरु प्रेस क्लब के अध्यक्ष राजेन्द्र गुंजल ने आभार व्यक्त किया। इस अवसर पर उपस्थित श्रोताओं ने भी लेखक से सवाल पूछे।

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