Connect with us

Hi, what are you looking for?

टीवी

पत्रकारिता की उम्मीद में दिल्ली आए लड़के-लड़कियों के लिए कोई स्पेस ही नहीं बचता!

श्याम मीरा सिंह

न्यूज 18 – अमिश देवगन

न्यूज नेशन – दीपक चौरसिया

रिपब्लिक भारत – अर्नब गोस्वामी

Advertisement. Scroll to continue reading.

आज तक – रोहित सरदाना, अंजना ओम कश्यप

जी न्यूज – सुधीर चौधरी

Advertisement. Scroll to continue reading.

इंडिया टीवी – रजत शर्मा

एबीपी न्यूज – सुमित अवस्थी, रुबिका लियाकत

Advertisement. Scroll to continue reading.

टीवी9 भारत – इसके सभी एंकर संघी नमूने हैं

बाकी छुटमुट हिंदी चैनलों पर भी संघियों का ही प्रभुत्व हो चुका है। राज्यसभा, लोकसभा, डीडी न्यूज पहले से ही सरकारी चैनल हैं। कुलमिलाकर पत्रकारिता की ऐसी नई पौध जो “पत्रकारिता” करना चाहती है। उसके लिए इस देश में एक ऐसी जगह नहीं है जहां वह अपना सीवी भेज सके। न कोई जगह है, न कम्पनी है, न उन्हें लिया जाएगा। ये एक बड़ी विकट समस्या है। हममें से बहुत से दोस्तों ने अपने करियर शुरू ही किए हैं लेकिन काम करने के सारे स्पेस पहले से ही पैक्ड हैं। यदि उनमें कोई जगह है भी तो कास्ट बेसिस पर प्रियॉरिटी दी जाती हैं। वह भी सिर्फ एक कास्ट को।

Advertisement. Scroll to continue reading.

किसी भी मीडिया हाउस में शुरुआती जगह पाने के लिए आपका दुबे, चौबे, त्रिवेदी, शुक्ला होना लगभग अनिवार्य शर्त है। इसके अलावा एक सबसे बड़ी शर्त बनकर जो चीज उभरी है वह है आपका “संघी होना”, सरकार के लिए “जीभ लिटा लेना”। ऐसे में पत्रकारिता की उम्मीद में दिल्ली आए लड़के लड़कियों के लिए कोई स्पेस ही नहीं बचता। बचती है तो सिर्फ बेरोजगारी, छुटमुट पोर्टल, वेबसाइट्स या अपना खुद का यूट्यूब चैनल बनाने का विकल्प।

कई बार ये स्थिति व्यथित करती है। उसमें भी नौकरियां जाना यहां एक सामान्य घटना है। नौकरी जाते ही आप एकपल में जीरो महसूस करने लगते हैं। अगर आप यहां फेसबुक पर, ट्विटर पर कुछ लिख दें तो आपकी organisation को टैग कर दिया जाता है। आपकी कम्पनी को आपके पर्सनल ट्वीट्स में टैग करके आप पर दबाव बनाया जाता है कि आप ऐसा क्यों लिख रहे हैं?

Advertisement. Scroll to continue reading.

अधिकतर कम्पनियां भी या तो संघी मॉडल पर काम कर रही हैं। या जो काम नहीं कर रही हैं वे ऐसे ट्रोलर्स के एक ट्वीट से तुरंत डिफेंसिव मोड में आ जाती हैं। स्थिति देखिए कि पत्रकारों पर ट्रोलर्स भारी हैं। परिणाम ये होता है कि आपका बॉस आपको ठिकाने लगाने के लिए सोच विचार करने लगता है। कम्पनी को जैसे ही कोई स्पेस मिलता है जैसे ही कोई लूपहोल मिलता है, कम्पनी तुरंत आपको “बाय” कर देती है।

कुलमिलाकर पत्रकारिता में “पत्रकारिता” करना ही कठिन है, बाकी सब सरल है। किसी बड़ी कॉरपोरेट मीडिया कम्पनी में होकर यहां पर लिखना अपने परों को खुद कुतरने जैसा है। यह औरों को नहीं पता होता, सिर्फ आपको पता होता है। धीरे धीरे पत्रकारिता के सभी संस्थानों के दरवाजे आपके लिए बन्द हो चुके होते हैं। किसी भी कम्पनी में आप अपना सीवी नहीं भेज सकते हैं। आपके पास क्या बचता है? बेरोजगारी और आपकी पत्रकारिता….

Advertisement. Scroll to continue reading.

इस समय देश में कोई कम्पनियां या पोर्टल नहीं हैं जहां आप स्वतंत्र होकर काम कर सकें। कई बार लगता है हम पत्रकारिता क्यों कर रहे हैं? और किसलिए कर रहे हैं।

युवा पत्रकार श्याम मीरा सिंह की उपरोक्त एफबी पोस्ट पर आए ढेरों कमेंट्स में से कुछ प्रमुख यूं हैं-

Advertisement. Scroll to continue reading.

Inder Kumar
श्वेता सिंह को भूल गए कोई खास लगाव है क्या महाराज

अनिल कुमार सिंह
आपके लिए ndtv का विकल्प है ना।

Advertisement. Scroll to continue reading.

Vikas Mishra Vick
बेबुनियाद। हर ब्राह्मण संघी नही होता।

Devendra Singh
पर ज्यादातर संघी हो गया है

Advertisement. Scroll to continue reading.

Mujeeb Rehman
वॉयर पर जो आती है अरफा खनाम शेरवानी उनका किया स्टैंड है

Rajgaurav Singh
न्यूज 18 – अमिश देवगन
न्यूज नेशन – दीपक चौरसिया
अर्नब गोस्वामी – रिपब्लिक भारत
आज तक – रोहित सरदाना, अंजना ओम कश्यप
जी न्यूज – सुधीर चौधरी
एबीपी न्यूज – सुमित अवस्थी, रुबिका लियाकत

Advertisement. Scroll to continue reading.

इनमें से तो कोई भी दुबे, चौबे, त्रिवेदी, शुक्ला ना दिख रहा ;

इतना विरोधाभासी पोस्ट लिखे हों ;

Advertisement. Scroll to continue reading.

तुम्हारे पास योग्यता के नाम पे सिर्फ “कांग्रेसी चाटुकारिता” का सर्टिफिकेट है जो देश में चाटुकारिता का सर्टिफिकेट देने वाली सबसे पुरानी संस्थान है ।।

Rahul Chauhan
अर्नब गोस्वामी, सुमित अवस्थी बम्भन है

Advertisement. Scroll to continue reading.

Rajgaurav Singh
आप तो जाति विशेषज्ञ लग रहे हैं ; वैसे आपकी जानकारी के लिए बता दूं, गोस्वामी बभ्भन ही है लेकिन जाति अत्यन्त पिछड़ी जाति में है ।।
सुमित अवस्थी समान्य जाति में बाभ्भन है ,तो क्या किसी ब्राहम्ण का किसी मिडिया हाउस का चीफ होना ,एन्कर होना ; उसके विरोध का कारन हो सकता है ।।

Raihan Afsar
Sudarshan wale chicha ko bhool gye ??

Advertisement. Scroll to continue reading.

Omsharan Singh
टिपिकल संघी रजत शर्मा – इंडिया टीवी

Swapnadarshi Sarthak Sumaniya
रजत शर्मा (इंडिया tv) वो भी कम नही हैं….
घाघ है घाघ…. संघियों का चमचा..

Advertisement. Scroll to continue reading.

Garima Tiwari
मैं आपकी पोस्ट से बिलकुल सहमत नहीं हूँ…मीडिया संघी हो चली है…ये बात सत्य है…लेकिन मीडिया में करियर शुरुआत करने के लिए किसी का दुबे, त्रिवेदी, शुक्ला होना यानी कि ब्राह्मण होना अनिवार्य है…ये कहना पूर्णरूप से अनुचित और बेबुनियाद है…मैं जिन भी मीडिया संस्थानों में कार्यरत रही हूँ…मुझे वहां ऐसा कहीं भी देखने को नहीं मिला…कि किसी को उसके कास्ट के आधार पर प्रायओरिटी दी जा रही हो…आप एकतरफा बात कर रहे हैं…इसका कोई आधार नहीं है

संदीप कुमार
आपकी मीडिया कंपनी में कितने दलित काम करते हैं? कितने आदिवासी कितने मुसलमान कितने ओबीसी काम करते हैं?
अच्छा छोड़ो आप ये बताओ आज तक चैनल के कितने ऐसे पत्रकार को जानते हो जो SC ST OBC या मुस्लिम हो? आजतक में जवाब न हो तो एबीपी न्यूज देख लो और उससे जवाब दो, न्यूज़18, आर भारत,…
किस चैनल में SC ST OBC और अल्पसंख्यक पत्रकारों की संख्या 85% है?

Advertisement. Scroll to continue reading.

Garima Tiwari
संदीप कुमार वैसे तो आपका सवाल जवाब देने योग्य नहीं है…लेकिन फिर भी मैं जवाब दे देती हूँ…पहले ये बताइये कितने प्रतिशत दलित और आदिवासी मीडिया में साक्षात्कार के लिए आते हैं…?
क्या आपने.. सईद अंसारी, शम्स ताहिर खान, रुबिका लियाकत, रोमाना इसार खान, शाज़िया निसार…इन सबके नाम सुने हैं कभी…?
और एक बात और बताइये…आपने किस चैनल में जाकर जातियों के प्रतिशत का मुआयना किया है…?
बताइये…ज़रा हमें भी तो ज्ञात हो कि आप कहाँ से सूचना एकत्रित करके लाए हैं…

Vibhor Saxena
to bat reservation ki hai ya fr jinhe job na mili unki kshamata ki?? wese media house kisi bhi model ka ho aap logo ka model fix hai bhale hi wah pvt./corp. model kyu na ho(bike hone k sath sath)… log likhte gae aur bina soche samjhe hi karwa judta gya 🙂 🙂

Advertisement. Scroll to continue reading.

Lalit Sharma
भाई जातिवाद कुछ हद तक हो सकता है क्योकि यदि जातिवाद होता तो सारे ब्राह्मण को ही नोकरी मीडिया में मिलती। मुझे खुद नही मिली जबकि में जामिया के मेरे बैच में 2nd topper था। यहा तक कि लिखित में टॉपर था।
मेरे हिसाब से नेपोटिस्म जरूर है मीडिया में।रही बात sc st की तो उन लोगो को सरकारी जॉब थोड़ी आसानी से मिल जाती है। इस कारण वो पत्रकारिता में ज्यादा नही आते है।
आजकल पत्रकारिता देशसेवा के लिए नही बल्कि जीविका के लिए करते है।
हर जगह ब्राह्मणों को गाली देने से कुछ नही होगा।

Umesh Bharatpuria
भैया न्यूज़ 24 का अभी भी थोड़ा दीन ईमान बचा हुआ है….संदीप चौधरी और साक्षी जोशी काफ़ी हद तक अच्छा काम कर रहे हैं पत्रकारिता में……उम्मीद की एक छोटी से छोटी किरण हर दौर में बनी रहती है….बस हमें उसके सहारे इस अंधेरे में चलते रहना होगा….निराशा में हार कर बैठ गए तो ये भी तो उन सरकारी पत्रकारों की मानसिक जीत होगी…..
आशा रखिये पत्रकारिता में अंधकार का ये दौर भी छटेगा…..इसका रिस्क हमारी और आपकी पीढ़ी के लोगों को लेना होगा और हमें जिन्होंने अभी लगभग करियर शुरू किया है…….तभी हम हमारे बाद के बच्चों को निष्पक्ष और सच्ची पत्रकारिता करने की हिम्मत दे पाएंगे….. हम और आप जैसों को ही अपने कम्फर्ट जोन से बाहर निकलना पड़ेगा……
वो सुना है न कि “जहाज बंदरगाहों में सबसे ज्यादा सुरक्षित होते हैं लेकिन वो बंदरगाहों में खड़े होने के लिए बनते”।
बदलाव आएगा….लगे रहिये अपने सिद्धांतों के साथ

Advertisement. Scroll to continue reading.

Pankaj Singh
जब देश की स्वतंत्रता ही दांव पर लगी हो , ऊपरी तीनों स्तम्भ ही धराशायी हो चुके हैं, वहाँ छद्म चौथे स्तम्भ की यह गत तो होनी ही थी।पत्रकारिता की पढ़ाई के दौरान ही सबको यह बता दिया जाता है, जूते की दुकान से आप नैतिक होकर परिवार चला सकते हैं पर इससे हरगिज नहीं।

Ambika Singh
दर्द तो समझते हैं।
और यह दर्द सिर्फ़ पत्रकारिता करनेवाले युवकों के साथ ही नहीं जुड़ा हुआ है,बल्कि अन्य तमाम विधाओ से निकले युवाओं के साथ भी है।
बड़ी भयावह स्थिति से आज के युवा गुजर रहे हैं और सब अलग अलग कमरों में अकेले अकेले रो रहे हैं।
ये तमाम विधाओं के तमाम बेरोजगार युवकों का एक संघटन नहीं बन सकता, संसद पर हमला करने के लिए।
आप बेकार पत्रकार लोग ट्रेंड सिपाही हो,भाषा और भावनाओं पर अच्छी पकड़ है।
बेकार हैं तो सारे सपने भी अधुरे हैं,लगभग मृतप्राय हैं तो क्यों न सबकुछ खत्म होने के पहले एकबार पुरजोर तरीके से हमला किया जाये।
आप मोर्चा संभालो,आपके भाषा में बहुत जान है।
आपके बिचार तबाही मचा सकती है।
एकबार तबियत से अंगडाई तो लो।

Advertisement. Scroll to continue reading.

Sanjay Pawaiya
80 से 90% तो कास्ट प्रीविलेज से ही इंट्री होती है?

Anil Kanhaua
गुजरात मॉडल का एक पहलू ये भी है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

Jeevan Dagla
बेशक हालात तो यही हैं। लेकिन क्या अब ‘पत्रकार’ और ‘पत्रकारिता’ के मायने ही बदलने होंगे।

Salman Arshad
स्थितियाँ बहुत ख़राब हैं, लेकिन एक अच्छे पत्रकार के लिए ये चुनौती भी है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

Sanjay Maurya
इससे भी भयावह स्थिति क्या हो सकती है यह सारा पाप जनसंघियों
के गुप्त एजेंडें के तहत बिछाये गये जालों का परिणाम है। और यह जो सुनाना चाहता और दिखाना चाहता है वहीं आप देखेगे। सत्य से कभी
रुबरु ही नही हो पायेगा
बन जाता है अन्धभक्त
फिर सारे समस्याओं का
जड़ मुसलमान को मानकर चलने लगता है।
उसको अपनी समस्याओं से कोइ सरोकार नहीं रहता है।
देश का दुश्मन देश में ही है और देश को खोखला कर रहा है।
क्रांतिकारी लेखको को अरबन नक्सलाइट कहकर जेलों में डाला जाता है।
देश का बहुसंख्यक मानसिक गुलामी में जी रहा है जब यह मुक्त होगा
तभी कल्याण संभव है

Nikita Thagunna
बिल्कुल सही लेकिन अब इस अंदर से आने वाली पत्रकारिता का रूप कैसे निकाले

Advertisement. Scroll to continue reading.

Tej Singh Jaglan
आप बहुत ही बडे मुद्दे की तरफ़ ध्यान खींचा है। धीरे धीरे पत्रकारिता अब समाप्ति की और है। कहने को भारत मे लोकतंत्र है लेकिन भारत और चीन की पत्रकारिता मे अब बहुत ज़्यादा फ़र्क़ नही बचा है। जाति वाली बात आप सोलह आने सही है। अगर आप ब्राह्मण नही है तो आपके दरवाज़े लगभग बंद है। और गलती से कोई एक आध खुल गया तो पत्रकारिता की स्वतंत्रता पर वो भी बंद है।

Shueb Khan
किनके लिए कर रहें हैं साधो ये मुर्दो का देश है

Advertisement. Scroll to continue reading.

Nadeem Ali
बिलकुल सही कहा आपने आजकी मीडिया चाटुकारिता की पराकाष्ठा पर है… लेकिन यहां इनसब ने बैलेंस स्टाफ बना रखा है… hindu मुस्लिम अन्य… ज़्यादातर मुस्लिम एंकर से मुस्लिम समाज के खिलाफ ही रिपोर्टिंग कराई जाती है… और वो सब सबसे कराया जाता है जिससे उनका नाम मीडिया मे ज़िंदा रहें

Ashok Upadhyay
किसी भी मीडिया हाउस में शुरुआती जगह पाने के लिए आपका दुबे, चौबे, त्रिवेदी, शुक्ला होना लगभग अनिवार्य शर्त है……..सही लिखा ….बस शुरुआती दो महीने …..उसके बाद तो जो लाइन पर नहीं चलेगा . वो सड़क पर चलेगा

Advertisement. Scroll to continue reading.

Raihan Afsar
Behad afsos hai. Sahi wale kidhar jayen. job h hi nhin. Sachche log talwa chat hi nhi skte

Anil Malik
यह पाप तो मीडिया नही स्वयं किया है ।2012 से शुरू करते करते हम आज यंहा तक आ गए।उस समय सबको लग रहा था कि वे कोई क्रांति कारी काम कर रहें है आज भुगतिये ।जिन्हें खूब स्पेस दिया वे अब आपका स्पेस खा गए।वे आपको कल भी पत्रकार नही मानते थे आज भी नही ।और अब तो भक्तकाल है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

Sumitra Ganguly
बहुत ही दुखद है लेकिन वास्तविकता यही है। हमारे जैसे लोग जो ईमानदार पत्रकारिता चाहते हैं वो आप जैसे पत्रकारों की तारीफ करने उन्हें सम्मान की नजरों से देखने के अलावा कुछ भी करने में सक्षम नहीं है।ये हमारे लिए भी घोर निराशाजनक है।

Brij Kishor Kushwah
बहुत सटीक बंधुवर, लोकतंत्र हमारे देश में सिर्फ नाम ही है, हमे तो राजतंत्र में जीने की आदत है, सरकार में आने के पहले कुछ और सब्जबाग दिखाते हैं और सत्ता प्राप्ति पश्चात कार्य करने का तरीका ही बेहद अलग हो जाता है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

Gabbar Singh
Is tarah aap midia ki pol to khil sakte he magar iska koi paridaam nahi hota,
Jab tak unko khud par dawab mahsoos nahi hota
Or inko aadat pad chuki he dalaalo karne esa nahi karne par sarkaar Or media chennalon ki nokari se haath dona padega

Akhter Shaikh
Journalist Freedom
Ek kahani bhuli bisri

Advertisement. Scroll to continue reading.

Manojsingh Neta
कड़वा है पर सत्य है जो लोग मीडिया हाउस संचालित करते हैं उनको राज सभा जाना है सत्ता के साथ बचा हुआ सपना को पूरा करना

Ranjana Das
हमारे देश में अब लोकतंत्र नहीं संघतंत्र है, ऐसी स्थिति में लोकतांत्रिक मूल्यों की उम्मीद करना बेकार है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

Saleem Khan Kayamkhani
Democracy Khud khtre m h to bhyya knha aik nishpx ptrkar ko jgh dee jayegii??
Jaati wala system to is desh ki aatma h sir ji
iske bina to kuch hota hi kya h??

FK S
ये situation ओर दूसरे फील्ड में भी हो चुकी हैं

Advertisement. Scroll to continue reading.

Syed Waliul Iqbal
ऐ भाई आप वीर भगत सिंह के रिश्तेदार है का हमेशा फायर ही करते रहते है
वैसे हम भी आपकी हां मे हां मिलाते है

Afroz Ahmad Khan
अन्ततः रास्ता एक ही बचेगा क्रांति।

Advertisement. Scroll to continue reading.

Rajesh Gurjar
या तो पेट पर पत्थर बांध लो या स्वाभिमान नीलाम कर दो

Sarwar Chaudhry
sanghi siyasat ki kalai kholdi chupa agenda inka open kardiya apne sir

Advertisement. Scroll to continue reading.

Bharat Raj Singh Chauhan
Tum khud kya ho Communist, apne upar bhi prakash dalo

Joy Hunter
Kalam hamesha gulam rahi hai Kya àaj Kya atit

Advertisement. Scroll to continue reading.

Ahead Toukir
हम भुगत चुके हैं। टाइम रहते साइड हो लिये।

Shravan Shukla
वैसे, डुबे, शुक्ला होने का फायदा नहीं मिला कभी। बाकी ये संघी वंघी जैसे नए टर्म अनुचित है। 2008-2010 तक यही मीडिया यूपीए की तारीफ में जुटा रहता था। 2009 में यूपीए और विकास की इतनी बात हुई कि अल्पमत में भी यूपीए2 बनी। बाहरी समर्थन द्वारा। घोटाले हुए तो मीडिया ने दूसरी राह पकड़ी। बात धंधे की है। किसी विचारधारा की नहीं। और किस मीडिया की बात कर रहे हो? दुनिया में कोई भी संस्थान ऐसा नहीं है, जिसका कोई एजेंडा न हो। बाकी रोजगार वोजगार को लेकर परेशानियां आती रहती हैं। 10 साल के करियर में 18-20 बार बदल चुका और मन भर गया है। बात अपने मन की है। बस। मैं न्यूज18 में ग्राउंड रिपोर्टिंग के टाइम आम आदमी पार्टी की तारीफ भी लिखता था। जबकि संपादक वही लोग थे। ऐसा प्रेशर नहीं आया। मोदी की रैली में चाइनीज मीडिया पास वाली स्टोरी पर भी खूब बवाल कटा। बीजेपी की इंटरनल रिपोर्टिंग पर भी हंगामा हुआ। लेकिन संस्थान की तरफ से कोई दबाव नहीं पड़ा। हां, वरुण गांधी ने एक बार भिड़ने की कोशिश की थी और तब संस्थान के बीच वाले कर्मी रेंग गए थे।

Advertisement. Scroll to continue reading.

Advertisement. Scroll to continue reading.
4 Comments

4 Comments

  1. Amit

    July 26, 2020 at 9:43 pm

    भाई 2008-12 में मीडिया में आते तो एबीपी के प्रमुख शाजी जमा थे,जो वामपंथी थे खूब हिन्दू विरोधी खबरें चलाते थे बल्कि खास तौर पर टारगेट करते थे,आज तक उनदिनों कमर वाहिद नक़वी जी संभालते थे। न्यूज -24 आज भी पहले की तरह कांग्रेसी था क्योंकि कांग्रेस नेता राजीव शुक्ला मालिक थे और अजित अंजुम वामपंथी थे जो चैनल हेड थे,इंडिया न्यूज के मालिक विनोद शर्मा उन दिनों हरियाणा कांग्रेस से मंत्री थे। ज़ी न्यूज़ की बागडोर जानबूझकर पुनीत गोयनका को दी गयी,तांकि सत्तारूढ़ पार्टी को संघ से जुड़ने की बात न लगे,इंडिया टीवी उन दिनों विनोद कापड़ी चलाते थे जो वामपंथी थे, एनडीटीवी तो आज भी वामपंथी था और कल भी क्योंकि चैनल के मालिक डॉक्टर प्रणव रॉय वामपंथी नेता वृंदा करात के भाई हैं, तो आज का टीवी -18 उस वक़्त का IBN7 हुआ करता था जिसके सर्वेसर्वा राजदीप और आशुतोष हुआ करते थे दोनों ही वामपंथी थे,आशुतोष की सच्चाई तो सर्वविदित है। अब बताये तब संघी कौन था ? जो आज आपकी हालत हैं वो कल तक संघी पत्रकारों की हालत थी। सरकार बदली मीडिया बदला, तो अब कलप काहें रहे हो??कल तुम्हारा दौर था आज किसी और का है कल किसी और का होगा लेकिन दूसरे से जल क्यों रहे हो?? अब बात जात की तो बता दूं मैं उच्च कोटी का ब्राह्मण हूँ भारद्वाज गौत्र है इस आधार पर मुझे नौकरी दिलवा दें तो आपकी अति कृपा होगी अन्यथा ऐसी चूतियापे वाली बातें शोभा नहीं देती।

  2. गणेश प्रसाद झा

    July 27, 2020 at 12:46 am

    तो निचोड़ यह निकला कि ये सभी पीड़ित आत्माएं अर्बन नक्सल वाली विचारधारा वाले लोग हैं और एकजुट होने और संसद पर हमला करने की मंशा रखते हैं। क्योंकि इन्हें लोकतंत्र खतरे में दिखाई देने लगा है क्योंकि इन्हें मीडिया में और मीडिया के जरिए समाज में अर्बन नक्सल वाली देशविरोधी ( देशद्रोही) विचारधारा को आगे बढाने का अवसर जो नहीं मिला। मीडिया में यही शायद सबसे काबिल लोग हैं पर किसी मीडिया संस्थान ने इनकी काबिलियत को नहीं पहचाना। उस समय शायद ये लोग दूध पी रहे होंगे जब राजीव गांधी की कांग्रेसी सरकार थी और उस समय के सबसे बड़े बोफर्स घोटाले का द हिंदू, स्टेट्समैन और इंडियन एक्सप्रेस जैसे अखबारों ने पर्दाफाश किया था और लगातार लिख लिख कर सरकार की बखिया उधेड़ते रहे थे। उन्हीं दिनों कांग्रेस के मंत्री बलराम जाखड़ का चारा मशीन घोटाला भी हुआ था जिसका इंडियन एक्सप्रेस और जनसत्ता ने पर्दाफाश किया था। भाजपा की अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में पेट्रोल पंप एलाटमेंट में मनमानी का पर्दाफाश इंडियन एक्सप्रेस ने किया था और सरकार को वह पूरी एलाटमेंट प्रक्रिया ही रद्द करनी पड़ी थी।
    मीडिया कोई सरकारी कंपनी तो है नहीं जो पत्रकारों की नियुक्तियों में आरक्षण का नियम अपनाए। उन्हें लिखने पढने में जो काबिल और तेज तर्रार लगता है उन्हें वे टेस्ट लेकर रखते हैं। हमारे समय में तो जनसत्ता और नवभारत टाइम्स का रिटन टेस्ट यूपीएससी के टक्कर का होता था और पत्रकार इसी तरह जांचपरख और छानकर लिए जाते थे। उस समय होनेवाली नियुक्तियों पर कोई हाय तौबा नहीं मचाता था, और न कोई आरक्षण मांगता था। जिनमें कूवत और काबीलियत होती थी वही टेस्ट में पास होता था, जाति कोई भी हो। उस समय के तो स्ट्रिंगर भी इतने काबिल हुआ करते थे जितने आज के ज्यादातर रिपोर्टर और उप संपादक भी नहीं हैं। आज पत्रकारिता में एमए करके आनेवाले लड़कों को एक खबर भी ढंग से एडिट करना नहीं आता और वे एजेंसी की कापियां कंपाइल नहीं कर पाते। अपने बूते ढंग की एक स्टोरी करने का दम नहीं होता। उन्हें जात पात और आरक्षण जरूर समझ आता है। उन्हें सीनियरों को गाली देना जरूर आता है। भैया पत्रकार बनने के लिए खुद को साधना पड़ता है। बडी कठिन डगर है। पत्रकारिता सिर्फ नौकरी करने के लिए नहीं होती। जो सिर्फ नौकरी के लिए आना चाहते हैं उन्हें पत्रकारिता में हर्गिज नहीं आना चाहिए। इसलिए हे साधो खुद को साधो, अनर्गल बातें न किया करो। – गणेश प्रसाद झा

  3. Akhilesh Kumar

    July 27, 2020 at 8:52 am

    साथियों, mjmc करके दिल्ली गया पत्रकारिता में काम करने के लिए सैकड़ों बीवी दिए, फ्री में काम मांगा, कुछ नहीं हुआ। हां बैकवर्ड, फारवर्ड है मीडिया में।

  4. Amit

    July 29, 2020 at 2:55 pm

    अखिलेश जी,सैंकड़ों सीवी को आप सैंकड़ों बीवी लिख रहे हैं,टाइपो मिस्टेक आप ठीक नहीं कर सकते,आरक्षण चाहिए आपको मीडिया में भी। अरे भाई कौन से न्यूज़ चैनल में किस पत्रकार ने जाति तलाशी साहब, आप उन्हीं का नाम बता दीजिए। फालतू की बात करते हैं,योग्यता खुद में नहीं बात जात की करते हैं । मीडिया महागुरु एसपी सिंह ब्राह्मण थे क्या?? रुबिका लियाकत ब्राह्मण हैं क्या??आशुतोष गुप्ता ब्राह्मण थे क्या??नवीन कुमार ब्राह्मण हैं क्या?? भाई योग्यता लाये अपने में, आरक्षण के सहारे सरकारी में तो काम मिल जाता है कोई बिज़नेस मेन अपना निजी एम्पायर आरक्षण देकर खाक में नहीं मिलाएगा।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement