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रामनाथ गोयनका नाम वाला बड़ा पत्रकारिता पुरस्कार नेता के हाथों क्यों दिया जाता है?

आज रामनाथ गोयनका पत्रकारिता पुरस्कार के बारे में। इंडियन ए्क्सप्रेस में आज पहले पन्ने पर छपी खबर के अनुसार केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह 13वें रामनाथ गोयनका पत्रकारिता पुरस्कार समारोह के मुख्य अतिथि होंगे और 18 श्रेणी में 29 विजेताओं को पुरस्कार बांटेंगे। पिछले साल यह पुरस्कार उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने दिए थे और उससे पहले 2016 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने। उस साल पुरस्कार पाने वालों में एक, द टाइम्स ऑफ इंडिया के पत्रकार अक्षय मुकुल भी थे और उन्होंने यह पुरस्कार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से लेने से मना कर दिया था। उस समय छपी खबरों के मुताबिक अक्षय मुकुल ने इस समारोह का बायकाट किया और हार्पर कॉलिन्स इंडिया के प्रकाशक और मुख्य संपादक कृष्ण चोपड़ा ने उनकी ओर से यह पुरस्कार प्राप्त किया था। मुकुल को यह पुरस्कार पुस्तकों (नॉन फिक्शन) की श्रेणी में उनकी पुस्तक – गीता प्रेस एंड दि मेकिंग ऑफ हिन्दू इंडिया के लिए दिया गया था। इसमें भारत में हिन्दुत्व के आदर्श की राष्ट्रवादी और उग्रवादी राजनीति का विवरण है।

इस पुस्तक को बुक ऑफ दि ईयर अवार्ड भी मिला था। इस पर मुकुल ने कहा था कि रामनाथ गोयनका पुरस्कार मिलना सम्मान की बात है। पर पुरस्कार देने के लिए नरेन्द्र मोदी जैसी हस्ती को आमंत्रित करने का इंडियन एक्सप्रेस मैनेजमेंट का निर्णय कई पत्रकारों को नाखुश करने वाला था। पत्रकारिता पुरस्कार किसी राजनेता के हाथों दिलाया जाना मुझे कभी ठीक नहीं लगा। खासकर तब जब प्रविष्टियां आमंत्रित की जाती हैं। अगर किसी को राजनेता के हाथों पुरस्कार नहीं लेना हो तो वह आवेदन ही नहीं करेगा। चयन कैसे सर्वश्रेष्ठ या निष्पक्ष होगा? 2016 की घटना के बाद मुझे लगा था कि प्रबंधन शायद इस बारे में सोचे पर लगता नहीं है कि ऐसा कुछ हुआ। हालांकि, उपराष्ट्रपति या राष्ट्रपति को सक्रिय राजनीति से अलग और पार्टी की राजनीति से मुक्त माना जा सकता है। ऐसे में इस बार गृहमंत्री को मुख्य अतिथि बनाया जाना बिल्कुल अनुचित है। कायदे से पत्रकारिता पुरस्कार किसी पत्रकार को ही देना चाहिए। पर तब सवाल उठता है कि कौन पत्रकार? मेरे ख्याल से वह पत्रकार इंडियन एक्सप्रेस का संपादक ही क्यों न हो?

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इंडियन एक्सप्रेस में खबर। पुरस्कार के लोगो में ऊपर टीवीएस

पत्रकारिता के लिए पुरस्कार देने का मकसद अगर अच्छी पत्रकारिता को जिन्दा रखना है तो क्यों नहीं अच्छे संपादक बनाने या जो अच्छे हैं उन्हें संरक्षण देने का काम भी किया जाए। क्यों नहीं पुरस्कारों की एक श्रेणी ऐसी भी हो। क्या अब इसकी जरूरत नहीं है। इस समय इंडियन एक्सप्रेस के संपादक राजकमल झा हैं और शेखर गुप्ता के मुकाबले सेलीब्रिटी नहीं हैं। इसलिए, मुमकिन है आपने उनका नाम नहीं सुना हो या टीवी पर नहीं देखा हो। लेकिन, पुरस्कार देने वाली हस्ती का सेलीब्रिटी होना जरूरी है? पत्रकारिता में राजकमल झा का नाम कम नहीं है और रूप से वे सेलीब्रिटी हैं। मेरे ख्याल से किसी राजनेता की बजाय कोई भी पत्रकार किसी संपादक से पुरस्कार लेना पसंद करेगा और केंद्रीय गृहमंत्री की ही बात हो तो सरदार बल्लभ भाई पटेल की हस्ती और राजनाथ सिंह की हस्ती में फर्क है। अब तो पटेल की हैसियत कम करने जैसा कोई दोष हो तो यह सरकार और उसके गृहमंत्री अछूते नहीं हैं।

एक मीडिया संस्थान के रूप में इंडियन एक्सप्रेस का झुकाव भाजपा या संघ के पक्ष में दिखता रहता है। ऐसे में अक्षय मुकुल की किताब का चुनाव पुरस्कार के लिए किया जाना अच्छी बात है और पुरस्कार प्रधानमंत्री से दिलवाने के राजनीतिक मायने लगाए जा सकते हैं। और एक बार विवाद होने के बावजूद इसपर ध्यान नहीं देना रामनाथ गोयनका के नाम पर इस पुरस्कार का महत्व कम करना है। वैसे भी, आजकल जैसी पत्रकारिता हो रही है उसी में से अच्छी पत्रकारिता चुन लेना गोबर में से गेहूं चुनने जैसा है अच्छी पत्रकारिता के लिए भी कुछ किया जाना चाहिए और मेरा मानना है कि इसके लिए पहले कुछ अच्छे संपादक बनाने होंगे। यह काम पुरस्कार देने भर से नहीं होगा। ठीक है कि यह काम अकेले इंडियन एक्सप्रेस का भी नहीं है। लेकिन अच्छे संपादक होंगे और उन्हें सम्मान मिलेगा तो पत्रकारिता अच्छी होगी ही, पुरस्कार देने के लिए राजनेताओं की शरण में नहीं जाना होगा।

अगर पत्रकारिता पुरस्कार किसी पत्रकार से ही दिलाने और ऐसे पत्रकार उपलब्ध नहीं हुए तो वह दिन दूर नहीं है जब फिल्मी पुरस्कारों की तरह प्रायोजक कंपनियों के मार्केटिंग मैनेजर पत्रकारिता पुरस्कार बांटेंगे। तकनीकी रूप से यह गलत भले न हो पर बाजार का दबाव यही होता है और पत्रकारिता के बाद पत्रकारिता पुरस्कार भी बाजार की भेंट चढ़ जाएगा। मैं नहीं मानता कि आज की स्थिति में अच्छी पत्रकारिता पुरस्कारों या वेतन का भी मोहताज है। इसलिए कम से कम पत्रकारिता पुरस्कार को पुरस्कार रहने दिया जाए खासकर वह जो इंडियन एक्सप्रेस दे रहा है औऱ जो रामनाथ गोयनका के नाम से जुड़ा है। आज ही देखा कि यह पुरस्कार टीवीएस प्रस्तुत कर रहा है। अगर ऐसा ही है तो मेरी चिन्ता और बढ़ गई है। मुझे नहीं लगता कि इस पुरस्कार का कोई व्यावसायिक उद्देश्य नहीं हो तो इसे इसी तरह जारी रखे जाने का कोई मतलब है।

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पुरस्कार समारोह के बारे में एक्सप्रेस समूह के हिन्दी अखबर जनसत्ता की खबर इस प्रकार है, तमिलनाडु में समुद्र तट पर रेत खनन, धूम्रपान-विरोधी वैश्विक संधि के लिए दिग्गज तंबाकू कंपनी का दुनिया भर में अभियान, पंजाब की महिला क्रिकेटरों की आंकाक्षाओं, हमारे शहरों को स्वच्छ रखने वालों की जिंदगी और मौत – सही रूप में और निडरता से सामने लाई गईं ये सभी और कई कहानियां एवं तस्वीरें चार जनवरी को नई दिल्ली में आयोजित रामनाथ गोयनका एक्सीलेंस इन जर्नलिज्म अवॉर्ड्स के 13वें संस्करण में सम्मानित की जाएंगी। समारोह के मुख्य अतिथि होंगे केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह, जो 2017 में किए गए उल्लेखनीय कार्य के लिए प्रिंट, ब्रॉडकास्ट एवं शुद्ध रूप से डिजिटल में 18 श्रेणियों के 29 विजेताओं को पुरस्कार प्रदान करेंगे।

इस साल भारतीय मीडिया #मीटू अभियान के केंद्र में रहा, जिसने कई महिला पत्रकारों को कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के खिलाफ बोलते देखा। इससे बाध्य होकर एक केंद्रीय मंत्री को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा। इस आंदोलन एवं कर्मचारियों को सुरक्षित माहौल उपलब्ध कराने में संपादकों की भूमिका समझने के लिए पुरस्कार वितरण के बाद शुक्रवार को एक पैनल डिस्कशन होगा। विषय है- ‘#मीटू इन द न्यूजरूम : व्हाट एडिटर्स कैन एंड शुड डू’। इस पैनल में न्यूजरूम की नायक रहीं चार महिला संपादक होंगी : द न्यूज मिनट की सह-संस्थापक एवं प्रधान संपादक धन्या राजेंद्रन, मुंबई मिरर की संपादक मीनल बघेल, द क्विंट की सह-संस्थापक एवं मुख्य कार्यकारी अधिकारी ऋतु कपूर और बीबीसी वर्ल्ड सर्विस में भारतीय भाषाओं की प्रमुख रूपा झा। इस चर्चा का संचालन करेंगी द इंडियन एक्सप्रेस की डिप्टी एडिटर सीमा चिश्ती। इस चर्चा के बाद उपस्थित दर्शकों के लिए सवाल जवाब का सत्र होगा।

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द एक्सप्रेस ग्रुप ने अपने संस्थापक रामनाथ गोयनका के शतवर्ष समारोह के सिलसिले में 2005 में रामनाथ गोयनका एक्सीलेंस इन जर्नलिज्म अवॉर्ड्स की स्थापना की थी। इन पुरस्कारों का उद्देश्य पत्रकारिता में उत्कृष्टता का जश्न मनाने, साहस एवं समर्पण को पहचान देने और देश भर से उत्कृष्ट योगदान देने वाले पत्रकारों को सामने लाना है। भारतीय मीडिया जगत में बेहद प्रतिष्ठित यह सालाना आयोजन पत्रकारिता के उच्च मानकों की एक स्वीकृति है। कई बार आर्थिक एवं राजनीतिक दबाव के बावजूद वर्षों से विजेताओं ने ऐसे काम किए हैं, जिससे मीडिया में जनता का भरोसा पैदा हुआ एवं बना रहा और लोगों के जीवन पर असर भी पड़ा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, उप राष्ट्रपति वेंकैया नायडू, पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम, लोकसभा की अध्यक्ष सुमित्रा महाजन, पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा पाटील और भारत के पूर्व प्रधान न्यायाधीश पी सदाशिवम इससे पहले के पुरस्कार संस्करणों में मुख्य अतिथि रह चुके हैं।

वरिष्ठ पत्रकार और अनुवादक संजय कुमार सिंह की रिपोर्ट। संपर्क : [email protected]

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1 Comment

1 Comment

  1. abhishek

    January 3, 2019 at 4:30 pm

    जब पत्रकार ही नेताओं के पीचे पिछलल्गू बनें हो तो इसी तरह की स्थितियां बनती हैं। कुछ टेलीविजन चैनलों के संपादकों के हाल इतने ज्यादा खराब है कि वो नेताओं के प्रेस नोट व उनका पीआर करने में जुटे रहतें है। वहीं तमाम संपादक नेता की सत्ताधारी पार्टी में अपने लिए राजनीति की संभावनाएं तलाशने में जुटे हैं। एक निजी चैनल के संपादक तो यूपी में सीएम के आगे-पीछे लगकर अपने लिये लोकसभा की सीट मांग रहें हैं हर नेता के साथ ये संपादक दिख जाते हैं…।

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