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सियासत

पत्रकारों को मान्यता देने के नियमों और पीआईबी की कार्यप्रणाली में सुधार की ज़रूरत

स्वतंत्र पत्रकारिता के लिए पत्रकारों को मान्यता देने के लिए बने नियमों और पीआइबी की कार्यप्रणाली में सुधार की जरुरत है। ये मुद्दा उत्तर भारत के पत्रकारों के बीच चर्चा में है। इसके जरिये व्यवस्था के बीच पत्रकारों के योगदान के विषय को आगे बढ़ाया है हिंदुस्तान के इलाहबाद संस्करण के सिटी इंचार्ज ब्रिजेन्द्र प्रताप सिंह ने। ब्रिजेन्द्र कहते हैं, “मुझे ऐसा लगता है कि पत्रकारों को मान्यता देने के नियमों में अब बदलाव किया जाना चाहिए। बदलते वक्त से आंख मिलाइए तो तमाम हकीकतों से आप सब रूबरू हैं। मुझे ऐसा लगता है कि राज्य सरकारों की मान्यता के साथ राज्यों में केंद्रीय मान्यता दिलाए जाने की शुरूआत होनी चाहिए।

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राकेश मिश्रा

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स्वतंत्र पत्रकारिता के लिए पत्रकारों को मान्यता देने के लिए बने नियमों और पीआइबी की कार्यप्रणाली में सुधार की जरुरत है। ये मुद्दा उत्तर भारत के पत्रकारों के बीच चर्चा में है। इसके जरिये व्यवस्था के बीच पत्रकारों के योगदान के विषय को आगे बढ़ाया है हिंदुस्तान के इलाहबाद संस्करण के सिटी इंचार्ज ब्रिजेन्द्र प्रताप सिंह ने। ब्रिजेन्द्र कहते हैं, “मुझे ऐसा लगता है कि पत्रकारों को मान्यता देने के नियमों में अब बदलाव किया जाना चाहिए। बदलते वक्त से आंख मिलाइए तो तमाम हकीकतों से आप सब रूबरू हैं। मुझे ऐसा लगता है कि राज्य सरकारों की मान्यता के साथ राज्यों में केंद्रीय मान्यता दिलाए जाने की शुरूआत होनी चाहिए।

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राकेश मिश्रा

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केंद्रीय सूचना मंत्रालय, पीआईबी को रीजनल स्तर पर मान्यता देने का काम शुरू करना चाहिए। इसके अनेक फायदे हो सकते हैं। मैंने केंद्रीय सूचना मंत्री को एक पत्र लिखने का मन बनाया है। मेरा यह संदेश उन तक मौखिक तौर पर पहुंचा भी है। पर अब कुछ अधिकृत बात करने का मन है। इस क्रम में यह कह रहा हूं कि इलाहाबाद उत्तर मध्य सांस्कृतिक क्षेत्र की राजधानी है। रीजनल मान्यता की शुरूआत इसी सांस्कृतिक राजधानी से की जानी चाहिए।”
 
वरिष्ठ पत्रकार सुधांशु उपाध्याय इसे गंभीर बहस का मुद्दा मानते हैं, सुधांशु कहते हैं कि यह  गंभीर विमर्श का विषय है। मान्यता प्राप्त करने की अभी जो विवादास्पद, संदेहास्पद प्रक्रिया है- उससे कैसे मुक्त हुआ जा सकता है, विचार का एक अहम मुद्दा यह भी है।

इलाहबाद विश्वविद्यालय के छात्र सक्षम द्विवेदी कहते हैं कि इस के लिए एक पत्र भारतीय प्रेस परिषद के अध्यक्ष को भी लिखा क्योंकि किसी भी विषय क्षेत्र मे काम करने वालों को मान्यता देने की एकमात्र अधिकृत संस्थान उसकी परिषद ही होती है। हम लोग इस मुद्दे को लेकर पिछले दो सालों से संघर्षरत हैं।

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नैनीताल समाचार के वरिष्ठ पत्रकार पंकज विशेष पत्रकारों की आर्थिक और सामाजिक सुरक्षा को लेकर भी चिंतित हैं वे कहते हैं कि ट्रेनों-बसों से लाखों-करोड़ कमाने वाली सरकारें कुछेक सीट तो पत्रकारों के लिए छोड़ ही सकती है। सरकारी अस्पतालों में पत्रकारों के परिवार के इलाज का इंतजाम तो किया जा सकता है। सरकारी रेस्ट हाउसों में शुल्क चुकाकर पत्रकारों के लिए प्राथमिकता पर बुकिंग की व्यवस्था भी होनी चाहिए। …..लेकिन एक सवाल भी साथ में जोड़िए, परिवहन, स्वास्थ्य और प्रशासन के अफसरों की कोताही सामने आने पर पत्रकार की कलम की रवानी नहीं रुकेगी, इसकी क्या गारंटी है?

इस बदलाव प्रक्रिया के लिए सुझाव देते हुए ब्रिजेन्द्र कहते हैं कि जैसे एलएलबी करने के बाद वही लोग बार काउंसिल में पंजीकरण कराते हैं जो वकालत के पेशे में आना चाहते हैं, या वकालत करते हैं। बाकी लोग एलएलबी होकर दूसरे काम भी कर सकते हैं। अब यहां पर देखना यह है कि पत्रकारिता में डिग्री-डिप्लोमा लेने वालों का ही पंजीकरण कराया जाए या फिर कबीर की धरती पर बिना डिग्री-डिप्लोमा के भी बेहतर पत्रकारिता कर सकने की सामथर्य् वाले लोगों का भी पंजीकरण हो।

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पंजीकरण के आधार बिंदु पर व्यापक चर्चा जरूरी है। पत्रकारिता के  नए विद्याथाथियों के भविष्य के लिए तो और भी जरूरी है यह सब होना। “मुझे कई पत्रकारों ने बताया कि सूचना विभाग में बाकायदा मान्यता के नाम पर रिश्वत मांगे जाने के किस्से हैं”। कहते हुए ब्रिजेन्द्र बताते हैं कि सुधारों की इतनी सख्त जरुरत क्यों है? मान्यता के अपने पुराने अनुभवों को साझा करते हुए सुधांशु उपाध्याय बताते हैं कि 1982 में प्रेस परिषद को एक सुझाव दिया गया था लिखित कि मान्यता का काम वह अपने हाथ में ले ले। उस सुझाव दल में मैं भी था… मालिकों ने और कुछ पत्रकार ‘ नेताओं ‘ ने इसका खुला विरोध किया और हम कुछ नये लोगों की एक नहीं चली।

डेली न्यूज एक्टिविस्ट में वरिष्ठ पत्रकार प्रकाश सिंह मानते हैं कि आज-कल की सरकारें पत्रकारिता व पत्रकारों को अपने पल्लू से बांधकर चलना चाहती हैं। इसके लिए तमाम तरह के हथकंडे भी अपनाये जा रहे हैं। मीडिया घरानों का राजनीतिक दलों के पल्लू की आड़ से राजनीति में जाना और सांसद बनना, दर्शाता है कि हम सभी आजाद नहीं हैं, हमारी कलम आजाद नहीं है। ऐसे में सबसे पहले तो कलम की आजादी का मुद्दा उठना चाहिए। बात निकली है तो बड़ी दूर तलक जाएगी. जाहिर है कि संस्थागत और व्यक्तिगत पत्रकारिता के चरित्र और सरकार के साथ उसके सम्बन्ध पर उठ रहे सवाल जनता और खास कर बुद्धिजीवी वर्ग के लिए प्राथमिकता के सबब जरुर बन रहे हैं। पत्रकारिता से बदलाव की उम्मीद लगाये बैठे लोगों के लिए ये कुछ संतोषजनक भी है।

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राकेश मिश्रा। संपर्क 9313401818, 9044134164

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18 Comments

18 Comments

  1. sahid

    September 23, 2014 at 6:00 pm

    Taki bade media samuho ke patrkar khulkar dhandhebaji kar sake. Chhote ahbaro ke patrkaro ko ye Brijendra Babu hashiye par aur dhakelne ki hasarat pale baithe hain. Ye vahi Brijendra Pratap Singh hain jo pani bachane ke nam par apni Bivi ke nam se kai NGO chalakar Maal paida kar rahe hain. Kanpur me kabhi Dainik Jagran me KDA-NGAR NIGAM Dekhte the aur dalali ki shikayat par hui janch me range hatho pakde gaye the. Aaj patrkaarita ko bachane ki baat kar rahe hain. Dhanya ho…..aap jaise log.

  2. Pankaj Kumar Dubey

    December 4, 2016 at 3:06 am

    नमस्कार, मैं अभी डेली बिहार न्यूज में हूँ पर मेरे पास पत्रकारिता संबंधी कोई प्रमाण पत्र नहीं है सिवाय एक id card के मुझे वह सुविधा नहीं मिलती जो अन्य राष्ट्रीय पत्रकार को मिलता है,मैंने स्नातक वाणिज्य से किया है।आप मेरी मदद करें

  3. नाजिम खान

    February 18, 2017 at 2:13 pm

    विचार आपके बहुत अच्छे हैं मैं कामना करता हूं जल्दी ही इस विषय का हल हो और साथ ही हम पत्रकार बन्धु अपनी पुर्ण शक्ति के साथ आपके साथ हैं

  4. अविनाश पाण्डेय

    April 8, 2017 at 1:56 am

    आपने यथार्थ सत्य कहा | इस मुद्दे पर सरकार को विचार करके इसे लागू करना चाहिए क्योंकि झोलाचाप पत्रकारों की वजह से पूऋ पत्रकारिता बदनाम हो रही है |

  5. अनिल नामदेव जबलपुर

    April 23, 2017 at 10:46 am

    अपने आप में चौथा स्तंभ कहलाए जाने वाली मीडिया की सरकार की तौर पर उपेक्षा की जाती है यूं तो देखा जाए तो एक जनप्रतिनिधि चुनाव जीतकर MLA बनता है मंत्री बनता है और उसको अनेकों सुविधाएं मिलती है सुरक्षा की दृष्टि से आर्थिक दृष्टि से सभी प्रकार की उसकी सुरक्षा होती है व्यवस्था होती है किंतु जो मीडिया कर्मी अपनी जान हथेली पर लेकर समाज और सरकार के बीच में सेतु का काम करती है ना तो उसकी ओर सरकार ध्यान देती है और ना कोई आन संस्थाएं उनकी जान को खतरा बना रहता है उनकी माली हालत भी इतनी अच्छी नहीं होती जबकि जो पत्रकार अपनी संस्था के लिए काम करते हैं वह संस्था के मालिक दिनों दिन तरक्की के शिखर को छुते हैं और अपना पौधा बढ़ाकर अनेकों काम निकलवाते हैं जबकि मेहनतकश पत्रकार हमेशा उपेक्षित रहता है देखने में आता है कि यह नेता के आदमी चाहे जहां कब्जा कर लेते हैं उनको वहां पर लाभ मिल जाता है सरकारी योजनाओं का लाभ मिलता है लेकिन पत्रकारों के लिए कोई योजना नहीं यदि स्वास्थ्य विभाग में जाए तो उनको कोई अलग से विशेष व्यवस्था नहीं रेलवे में भी देखने में आता है कि उनके लिए ना तो कोई अलग से कतार की व्यवस्था होती है ना कोई विशेष छूट दिया जाता है जबकि वही पत्रकार जब कोई घटना हो जाती तो सबसे पहले पहुंचकर कवरेज करते हैं समाचार पत्रों में लिखते हैं किंतु पत्रकारों की हमेशा उपेक्षा होती है यदि पत्रकार अपनी आमदनी बढ़ाने के लिए कोई बिजनेस करना चाहे तो उनके लिए अलग से कोई कोटा नहीं रहता सरकार भवन बनवाती है और उनको नीलाम करती है लेकिन पत्रकारों के लिए ना तो कोई विशेष छूट करते हैं उनके लिए कोई आरक्षण उपलब्ध होता है ना कुछ आर्मी के लोगों के लिए बुजुर्गों के लिए पिछड़ा वर्ग के लिए सभी वर्गों के लिए कोई न कोई योजना चलाकर सरकारी लाभ लेकिन पत्रकारों के लिए कोई व्यवस्था नहीं वही पत्रकार जो रात दिन मेहनत करके पढ़ाई लड़की डिप्लोमा हासिल करते हैं लेकिन सरकार उनकी ओर ध्यान नहीं दे रही है कवरेज करते हैं अपनी जान की बाजी लगाते हैं उनके लिए सरकार की ओर से कोई योजना नहीं यूं तो झोलाछाप पत्रकारों की संख्या आए दिन बढ़ती जा रही है सरकार ने ना तो कोई नीति बनाई और ना कोई जो लोग डिप्लोमाधारी हैं डिग्रीधारी हैं उन्हें भी उसी श्रेणी में रखा जाता है ना तो सरकार अधिमान्यता को लेकर के कोई नीति बनाती है ना तो कोई कार्यशाला समय पर की जाती है सरकार को इस ओर ध्यान देने की जरूरत है यदि सरकार डिप्लोमा डिग्री करवाती है कालेज खुलती है मर सिटी में कम मात्रा में इनकी सीटे होती है उसके बावजूद मेहनतकश पत्रकार अपने समाजसेवी कर्तव्य पाल पर चलते के चलते समाज सेवा करती हैं वहीं जो नेता 5 साल के लिए समाज सेवा के नाम पर नेता बनते हैं उनको बहुत सारी सुविधाएं दी जाती है विधायक ना रहते हुए भी उनकी पेंशन योजना बनाई जाती है उन्हें अनेकों अनेक लाभ दिए जाते हैं लेकिन जो पत्रकार पढ़-लिखकर पत्रकारिता करते हैं उनकी हमेशा उपेक्षा होती आ रही है समय रहते सरकार को इस दिशा में भी कार्य करना चाहिए अनिल नामदेव

    • आनन्द कुमार

      August 5, 2018 at 4:22 pm

      नमस्कार भाई साहब
      क्या कहें हम सरकार के विषय में
      लगता है कि पत्रकारों के प्रति सरकार का जी सा ऊब गया है पत्रकार यदि किसी सरकारी कर्मचारी या राजनेता के द्वारा किए गए अवैध कामों को प्रसारण कर देता है तो वह सरकारी कर्मचारी और सत्ताधारी नेताओंरे द्वारा पत्रकार को मारने की धमकी दी जाती है व उस पर झूठा इल्जाम लगाकर उसको जेल भेज दिया जाता है कई नेता इस तरह न्यूज़ चैनल एजेंसियों के मालिक से मिलकर उस पत्रकार को न्यूज़ चैनल से बाहर कर दिया जाता है तब ऐसा प्रतीत होता है की सरकार चाहती है की पत्रकार या चौथा स्तंभ ही ना होता तो कोई भी सत्ताधारी नेताओं तथा सरकारी कर्मचारी अधिकारी को अवैध काम करने पर भी समाज के सामने नजरे ना झुकानी पड़ती।

  6. Vijay Mahale

    September 11, 2017 at 7:48 am

    नमस्कार सर मैं एक न्यूज चैनल में रिपोर्टरक के रूप में कार्य कर चुका हूँ !
    अब मैं कार्य करना चाहता हूँ। जिस न्यूज चैनल में मैं कार्य कर रहा था, वह बन्द हो गया है।

    • dharmendra singh ranera

      January 17, 2019 at 12:09 pm

      मैं विगत 9 वर्षों से हिन्दी पाक्षिक समाचार पत्र टाइम्स आॅफ मंदसौर का प्रकाशन कर रहा हूं। समाचार पत्र का प्रधान सम्पादक में ही हू। मुझे अधिमान्य पत्रकार बनना है, लेकिन मध्यप्रदेश के जिला मंदसौर के जिला जनसम्पर्क विभाग के सहायक संचालक श्री ईश्वरलाल चैहान अधिमान्यता हेतु अनुशंसा नहीं कर रहे हैं कहते हैं कि पाक्षिक समाचार पत्र वालों को अधिमान्य बनने का अधिकार नहीं है। गजट में भी कोई प्रावधान नहीं है। उन्होंने द्वेषतावश मेरे खिलाफ भादवि की धारा 294, 506 और धारा 92 दिव्यांग अधिनियम के तहत एफआईआर दर्ज करवा दी है। मैंने उनकी अनियमितता को लेकर एक समाचार अपने अखबार में प्रकाशित किया था। हालांकि मैंने अपनी जमानत करवा ली है। अभी चालान पेश नहीं हुआ है। मामला विशेष न्यायालय में चलेगा। मेरा मार्गदर्शन कीजिए। मेरा मोबाइल नंबर है 9993616696

      • जितेंद्र नायक

        May 11, 2019 at 6:30 pm

        श्रीमान में दसवीं कक्षा तक हु।में दैनिक भास्कर के लिए खबरें लिखता हूँ।क्या मुझे प्रेस कार्ड मिल सकता है।6महीने से खबर लिख रहा हूँ।क्या में अपने आप को पत्रकार कहलवा सकता हूँ।

  7. DEEPAK SAHU

    October 23, 2017 at 1:58 am

    नमस्कार सर जी मेरा नाम दीपक साहू है मे नरसिंहपुर जिले की तहसील गोटेगांव मे अभी रेड़ अलर्ट जो की एक पोर्टल बेप है मे इसमे पत्रकारिता कर रहा हूं इसके पहले मे कई अखबारो मे पत्रकारिता कर चुका हूं मेरे पास प्रेस के द्वारा मिली आई डी तो है लेकिन मुझे अभी तक कोई मान्यता नही मिली है । मोबाईल नम्बर 903933629, 769792306

  8. Mo rizwan

    December 13, 2017 at 3:11 pm

    सर नमस्कार, मैं पत्रकारिता संबंधी कोई प्रमाण पत्र नहीं है सिवाय आपना एक बेव चैनल है मुझे वह सुविधा नहीं मिलती जो अन्य राष्ट्रीय पत्रकार को मिलता है,मैंने स्नातक वाणिज्य से किया है।आप मेरी मदद करें

  9. रामनिवास माली

    May 1, 2018 at 9:26 am

    मेरा नाम रामनिवास माली (राजस्थान निवासी) है। मैंने पत्रकारिता में डिग्री की है । और मैं फ्रीलान्स की हैसियत से पत्रकारिता पिछले 2 साल से कर रहा हूँ। मैं चाहता हूं कि मुझे प्रेस परिषद से पत्रकार की मान्यता मिले। जानकारी उपलब्ध कराए।

  10. dharmendra raghav

    September 2, 2018 at 10:17 am

    विचार आपके बहुत अच्छे हैं मैं कामना करता हूं जल्दी ही इस विषय का हल हो और साथ ही हम पत्रकार बन्धु अपनी पुर्ण शक्ति के साथ आपके साथ हैं

  11. राहुल दुबे

    September 28, 2018 at 7:20 am

    पहले पत्रकार ही बन ले, तब मान्यता प्राप्त की बात की जाए, अभी तो राष्ट्रीय अखबारों में काम कर रहे 85 फीसदी पत्रकार 3 हजार से 5 हजार के बीच में काम कर रहे हैं, उन पर इन ब्यूरो ने कभी आवाज उठाई, सिवाय लफ़्फ़ाजी के यहाँ और कुछ नहीं होता देश में….

  12. Brahma Nand Pandey

    October 21, 2018 at 10:31 am

    kya akhbar ya fir agency naukari dete se pahle pariksha nahi lete kya ? jisase patrakaro ko niyukti ke bad parikshaye deni hogo…..galat hai <<<<khishiyani billi khambha noche wali kahavat hai

    • दिनेश शुक्ला

      September 7, 2019 at 7:09 am

      नमस्कार मित्रों,
      माफ करना
      किसी भाई ने लिखा झोलाछाप पत्रकार हमारा उन भाई से प्रश्न है।पत्रकार की परिभाषा क्या है।कैसे जाने की झोलाछाप है।इसके बारे में विस्तृत जानकारी कहां मिलेगी।
      सुना झोलाछाप डॉ होते है।पहली बार सुना कि झोलाछाप पत्रकार भी है।
      झोलाछाप डॉक्टर की दवा से मरीजो को जान गवानी पड़ी यह तो सुना है।
      पर झोलाछाप पत्रकार के कारण किसी डिग्री धारक पत्रकार को अपनी जान गवानी पड़ी हो यह अभी तक नही सुना है।
      अगर आपके पास किसी प्रकार की अच्छी जानकारी हो तो हमे अवश्य बताने की कृपा करें।
      क्योंकि हम भी बिना डिग्री धारण किये ही अनजाने में अपने आपको पत्रकार समझ बैठे।

  13. Sazid ali

    September 13, 2019 at 6:36 pm

    Kya patrkar sarkari hote hai I mean kya ye gorment job hai ya private plz btao

  14. kalicharan gupta

    April 23, 2020 at 6:18 pm

    sir ji i want to know for a press repoter in electronic and pirnt media rules and eleigbility

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