श्रीप्रकाश दीक्षित-
मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान पहले दौर में दिए गए बयानों जैसे ‘कलेक्टरों को उलटा लटका दूँगा’ और ‘अमेरिका से बेहतर हैं एमपी की सड़कें’ पर खूब सुर्खियां बटोर चुके हैं. यह बात और है की किसी ने भी इन्हें संजीदगी से नहीं लिया और बात आई गई हो गई।
आरक्षण पर हाईकोर्ट के विपरीत फैसले के बाद तब उनका यह बयान खासा मशहूर हुआ था कि कोई माई का लाल आरक्षण खत्म नहीं कर सकता है. दूसरे दौर में दिए जा रहे उनके फिल्मी डायलाग नुमा बयान जुमलेबाजी ही लग रही है जिसमें गंभीरता के बजाए हास परिहास का पुट ज्यादा नजर आता है. यह मुख्यमंत्री के पद की गरिमा के भी प्रतिकूल है.
अब वे ‘खतरनाक मूड मे हूँ-माफिया को जिंदा दफन कर दूँगा’, ‘टाइगर जिंदा है-शिकार पर निकला है’, ‘डंडा लेकर निकला हूँ’ जैसे बयानों से सुर्खियां बटोर रहे हैं. जिस माफिया को वे धमका रहे थे वो कमलनाथ के छोटे दौर में तो आबाद हुआ नहीं होगा. उसकी विकास यात्रा में उनके तेरह बरस के पहले दौर का भी योगदान रहा ही होगा..! वरना उनके आक्रामक बयान के बाद भी माफिया की गतिविधियाँ कम क्यों नहीं हो रही हैं. अखबारों मे उसके बुलंद हौसलों और सरकारी अमले पर हमले की निरंतर खबरें छपती रहती हैं.
दो दिन पहले टाइम्स ऑफ इंडिया में माफिया के खिलाफ कार्रवाई पर एसडीएम के तबादले की खबर छपी है.
लगता है कोई और हो या ना हो पर नौकरशाही मुख्यमंत्री की जुमलेबाजी से प्रभावित हो रही है. तभी तो ग्वालियर कलेक्टर का अधीनस्थों को फाँसी पर लटकाने का बयान आज छपा है.कुछ महीने पहले बड़वानी के कलेक्टर पर वहाँ पदस्थ तरोताजा आईएएस अफसर ने सीधे सीधे पैसा खाने और सी एम हाउस फोन कर तबादले का आरोप मढ़ा था.. अफसरों की इस प्रकार की बयानबाजी कोई अच्छा शगुन नहीं है और इसे सख्ती से रोका जाना चाहिए.
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