रामकुमार सिंह-
अगर लेखन ही आपकी आजीविका है!
मैं पत्रकारिता से बाहर धकेला गया हूं। आज एक पेशेवर लेखक हूं। आज लेखन ही मेरी और मेरे परिवार की आजीविका है। मैं कहीं भी मुफ्त में अपने लेखन कौशल का इस्तेमाल नहीं करता हूं। मैं जानता था कि हिंदी साहित्य में लेखन से आजीविका संभव नहीं है। इसलिए मैंने होशोहवास में स्क्रीनराइटर के रूप में खुद को काम करने के लिए मनाया।
लेखन या स्क्रीन के लिए लेखन मैंने मेहनत करके सीखा है। काफ़ी समय और धन खर्च हुआ। यह मुझे उपहार में नहीं मिला है। जैसे एक डॉक्टर मरीज का इलाज करना सीखता है, जैसे इंजीनियर पुल बनाना सीखता है। वैसे ही कहानी का क्राफ्ट और उसकी दुनिया को सीखने के लिए बहुत कोशिश की है। कितना सीख पाए यह कहना मुश्किल है लेकिन मैं बहुत स्पष्ट हूं कि यह मुफ्त बांटने के लिए नहीं है। नए हिंदी लेखकों के लिए मेरा यह स्पष्ट संदेश है।
जो लोग नई वाली हिंदी को गरियाते हैं, उन्हें बताना चाहता हूं कि मेरे प्रकाशक ने बेहद अदब और प्रेम के साथ मेरी वांछित अग्रिम रॉयल्टी का भुगतान किया और उपन्यास छापा। उसके बाकी राइट्स को लेकर बिल्कुल स्पष्ट एग्रीमेंट किया। इसलिए मुझे नई वाली हिंदी फ्रेज से प्यार है। वे लेखक को अपने पैरों पर खड़ा करने की कोशिश करते हैं। एक लेखक के रूप में जब जरूरत होगी मैं उनके साथ खड़ा रहूंगा।
अभी स्क्रीनराइटिंग की जो किताब चर्चा में है, उसके लिए आप अंदर जाएंगे तो पाएंगे उसका कॉपीराइट एक कंपनी के पास है। हमारा स्पष्ट एग्रीमेंट उस कंपनी के साथ है। उनसे मैंने पर्याप्त अग्रिम धन इस प्रोजेक्ट के लिए लिया। पर्याप्त से मेरा आशय इतने धन से है जिसके बारे में हिंदी लेखक कल्पना नहीं करता है कि उसे किताब लिखने से मिल सकता है। रॉयल्टी का आगे का हिस्सा क्या और कैसे रहेगा वो एग्रीमेंट हमने कंपनी के साथ किया है।
साहित्य और सिनेमा में मेरे दोस्तों का एक संक्षिप्त सर्किल है, जहां मैं पैसों की बात उस तरह से नहीं करता जैसा अपने बाकी पेशेवर कामों के लिए करता हूं।
स्क्रीन राइटर को शुरुआती काम करने पर कुछ झटके जरूर लगते हैं। जब आप पेशेवर सख्ती पर आ जाते हैं तो कुछ काम आपके हाथ से छूटते हैं। ऐसे काफी प्रोजेक्ट्स हैं, जिनके लिए लगता है, आप उनका हिस्सा हो सकते थे, होना चाहिए था, लेकिन पैसे पर बात नहीं बनी और आपको प्रोजेक्ट छोड़ना पड़ा। मेरे बहुत से प्रोजेक्ट इसलिए छूटे कि उसमें लेखन का पैसा कम था। इस बात की मुझे निर्माता और खुद से कोई शिकायत नहीं। निर्माता को अपने बजट में काम कराने का अधिकार है और लेखक को अपने बजट में काम करने का। इस ज़िद की वजह से आप पर आर्थिक संकट का डर रहता है। डर हकीकत में बदलता भी है लेकिन मैंने समझौता फिर भी नहीं किया।
मुझे नए स्टूडेंट्स से संवाद करना बहुत पसंद है लेकिन जब भी कोई भाषण देने बुलाता है तो मैं पूछता हूं कि आप मुझे कितना पैसा देंगे? विश्वविद्यालय या कॉलेज के पास इसका जो बजट होता है, उसमें मैं खुश होता हूं लेकिन अगर वो कहते हैं, मुझे बिना पैसा लिए एक घंटे या दो घंटे बोलना है तो मैं विनम्रता से मना कर देता हूं। आजकल तो यह भी कि मैं बिना पैसा लिए किसी दूसरे के मंच से फेसबुक लाइव आना भी पसंद नहीं करता।
मेरे एग्रीमेंट वित्तीय और कानूनी सलाहकार बहुत ध्यान से पढ़ते हैं। उसमें कॉपीराइट एक्ट की सारी धाराओं के बारे स्पष्ट उल्लेख होता है। उसमें भविष्य में बौद्धिक सम्पदा से होने वाली आय की संभावनाओं को वो रेखांकित करते हैं। निर्माताओं से मैं वो जरूरी बदलाव के लिए आग्रह करता हूं।
आने वाले समय में कहानी और कंटेंट की दुनिया बहुत विशाल होने वाली है। यह लगभग हो भी गई है। इसलिए आप लेखक हैं तो अपनी कहानियों को मुफ्त में मत बांटिए। आप अपना और आने वाले लेखकों का नुकसान कर रहे हैं। पिछले तीन-चार साल में कंटेंट को लेकर लोगों का नजरिया तेजी से बदलता जा रहा है।
अपनी भाषा के लेखकों की गरीबी पर घमंड मत करिए। उन्हें इतना काबिल बनाइए कि वे लिख सकें। बेहतर सोच सकें, काम कर सकें। इसलिए नहीं कि आपको तो वेतन या पेंशन मिल ही रहा है, थोड़ा टाइम पास के लिए साहित्य की सेवा भी कर ली जाए।