निश्चित आय योजना लागू करना जरूरी या सामाजिक जिम्मेदारी? सरकार की जिम्मेदारी है कि हर नागरिक को रोजगार उपलब्ध कराए। रोजगार ना मिलने तक बेरोजगारी भत्ता दे। गरीबों के लिए हर माह निश्चित आय योजना लागू की जाय। संविधान के अनुच्छेद 21 को 1985 में सुप्रीम कोर्ट ने व्यापक कर इसमें आजीविका का साधन उपलब्ध कराना भी जोड़ दिया है। अर्थात हर राज्य सरकार की जिम्मेदारी है कि वे अपने हर नागरिक को रोजगार उपलब्ध कराए। रोजगार ना मिलने तक बेरोजगारी भत्ता दे। लेकिन उक्त मामले में केंद्र सरकार, राज्य सरकार का मुंह देखती है और राज्य सरकार, केंद्र का। ऐसे में बेचारे रह जाते हैं तो बेरोज़गार और गरीब।
क्या आप जानते हैं कि आपकी कमाई का 75 प्रतिशत हिस्सा सरकार के पास चला जाता है। और, यदि पुलिस की वसूली कार्रवाई हुई तो कमाई की 10 प्रतिशत राशि और गंवानी पड़ती है। तो हम अपनी कमाई का 25 प्रतिशत या 15 प्रतिशत हिस्सा पा कर भी खुश हैं। देशभक्ति की बातें करते हैं, देश के विकास के बारे में सोचते हैं। और सरकार 75 प्रतिशत हिस्सा पा कर भी विकासशील और गरीब देश है। उसे नागरिकों से शिकायत रहती है। नागरिक चोर, निकम्मे, अपराधी और कानून तोड़ने वाले दिखते है। जबकि इतना कर विश्व के शायद ही किसी देश में हो। डेनमार्क में 52 प्रतिशत कर लिया जाता है लेकिन जब आपकी नौकरी चली गई या बेरोजगार है तो सरकार आपकी कमाने की छमता का 75 प्रतिशत राशि बेरोजगारी भत्ते के रूप में देती है। ऊपर से टैक्स फ्री। भारत में आप बेरोजगार हो या भूखे। आप जानो आपका कर्म जाने सरकार को तो डायरेक्ट और इन डायरेक्ट टैक्स से मतलब है। हां यदि भूखे हो या कुछ नहीं खरीद रहे हैं तो 100 प्रतिशत टैक्स छूट है। और यदि आप गरीब हो तो गरीबी का प्रमाण पत्र बड़ी मुश्किल से मिलेगा।
दरअसल सरकार के पास जो कमाई है वह उसकी ना होकर आम जनता की है। अभी तक देश में इनडायरेक्ट टैक्स 30 प्रतिशत था लेकिन भ्रष्टाचार का ऐसा बोलबाला था कि जनता तक पहुँचते पहुँचते ये कर 75 प्रतिशत हो जाता था। जो वाहन माल लेकर आ रहा है जगह जगह इतनी वसूली होती थी की ये आंकड़ा 60 प्रतिशत पहुँच जाता था और व्यापारी ये सब कर जोड़ते हुए 15 प्रतिशत और राशि बढ़ा देता था। तो एक सामान पर हम 75 प्रतिशत ज्यादा राशि अदा करते थे।
ये रेट अदब से व्यापार करने वाले व्यापारियों के लिए था। लेकिन आपने कभी सोचा है कि 1 रूपये वाला पेन हमें 2 या 3 रूपये में क्यों मिलता है। 2 या 3 रूपये का सामान हमें 5 रूपये में क्यों मिलता है। कारण है टैक्स। अभी तक इनडायरेक्ट टैक्स की बात चल रही है। डायरेक्ट टैक्स पर तो आये ही नहीं। केंद्र सरकार 16 प्रकार के इनडायरेक्ट टैक्स लेती है। जबकि राज्य सरकारे 9 इनडायरेक्ट टैक्स लेती है। 4 प्रकार के डायरेक्ट टैक्स होते हैं। फ़िलहाल हम इनकम टैक्स अधिकतम 30 प्रतिशत देते हैं। इस तरह सरकार हमारे टैक्स से हर साल 15 लाख करोड़ कमाती है। और यदि सबको हर माह 1500 रूपये भी दिए जाय तो सरकार के ऊपर 4 लाख करोड़ रुपए का भार आएगा। जो की इतने का सरकार सब्सिडी बाँट देती है।
सरकार की जिम्मेदारी
सरकार को इन पैसों से रोटी कपडा, और माकन की सुविधा देनी चाहिए। लेकिन सरकार की प्राथमिकता बिजली, सड़क, परिवहन और पानी पर होती है। जबकि देश का विकास तबतक संभव नहीं जब तक हर नागरिक को रोजगार ना दिया जाय। आम नागरिक को न्यूनतम आय योजना ना लागू की जाय। सरकार जितना पैसा नागरिकों को देगी। उतबी ही तेजी से क्रेडिट निर्माण होगा और देश की आय तेजी से बढ़ेगी। लेकिन काला धन के नाम पर ऐसी मुहीम चल रही है की ऐसा लगता है सारा पैसा सरकार के पास चला जायेगा और जनता भिखारी हो जायेगी।
महेश्वरी प्रसाद मिश्र
पत्रकार
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