‘कल्पतरू एक्सप्रेस’ नामक अखबार संचालित करने वाले कल्पतरू समूह भी बड़े पैमाने पर फर्जीवाड़ा कर रहा है. सरकारी एजेंसियों की दिक्कत ये है कि जब जनता बड़े पैमाने पर लुट चुकी होती है तब कोर्ट आदि के आदेश पर सक्रिय होती हैं और दिखावे की कार्यवाही करती हैं. सहारा का प्रकरण सामने है. पीएसीएल का भी प्रकरण चल रहा है. इसी क्रम में कल्पतरू ग्रुप भी है. मथुरा के कल्पतरु ग्रुप की दो कंपनियों को सेबी ने निवेशकों से गैर-कानूनी रूप से पैसा इकट्टा करने से प्रतिबंधित कर दिया है। इसके बाद भी यह ग्रुप मिलते-जुलते नाम की एक और कंपनी बना कर अपनी रियल एस्टेट स्कीम के नाम पर पैसा इकट्टा कर रहा है.
उत्तर प्रदेश का कल्पतरू ग्रुप एक नई कंपनी का इस्तेमाल कर अपनी रियल एस्टेट स्कीमों के ज़रिए पुनः निवेशकों से पैसा इकट्ठा करने लगा है. पिछले साल बाज़ार विनियामक सेबी ने कल्पतरू ग्रुप की एक यूनिट, केबीसीएल इंडिया लि. और उसके निदेशकों को पैसा इकट्ठा करने से प्रतिबंधित कर दिया था और निर्देश दिया था कि वो कोई नई स्कीम लॉन्च न करें. इसके बाद भी, सूत्रों के अनुसार, ग्रुप अपनी दूसरी यूनिट, कल्पतरू बिल्डटेक कॉर्प लि. (केबीसीएल) के माध्यम से उप्र और राजस्थान में भूमि (प्लॉट) में निवेश पर बड़े प्रतिलाभों का लालच दे कर पैसा इकट्टा कर रहा है.
सेबी से जुड़े सूत्रों का कहना है कि निवेशकों के हितों की रक्षा पहला कार्य है और इसीलिए कदम उठाए गए हैं कि कल्पतरू ग्रुप अपनी स्कीमों के ज़रिए और पैसा इकट्ठा न करे। बावजूद इसके, कल्पतरू ग्रुप का मास्टरमाइंड जानबूझ कर अपनी ग़ैर-कानूनी ‘कलैक्टिव इन्वैस्टमैन्ट स्कीम (सीआईएस)’ के बिज़नेस को केबीसीएल इंडिया से कल्पतरू बिल्डटेक कॉर्प लि. (CIN: U45400UP2009PLC038016) जिसे भी केबीसीएल के नाम से ही जाना जाता है, जारी रखे हुए है। ये लोग दोनो कंपनियों केबीसीएल इंडिया (जिसे सेबी ने प्रतिबंधित कर रखा है) और केबीसीएल के नामों की समानता से लोगों में भ्रम पैदा कर पैसा इकट्ठा कर रहे हैं.
सूत्रों ने बताया कि कल्पतरू बिल्डटेक कॉर्प लि. भूमि में निवेश के लिए बराबर मासिक किस्तों (इएमआई) की स्कीम चला कर पैसा इकट्ठा कर रही है. निवेशकों को विकल्प दिया जा रहा है कि अगर वे भूमि न लेना चाहे तो अपना पैसा तयशुदा लाभ के अनुसार वापस ले सकते हैं. दूसरे शब्दों में, ये कंपनी रीयल एस्टेट प्रोजेक्ट्स की आड़ में सीआईएस का धंधा कर रही है. ये कंपनी ऐसे रीयल एस्टेट प्रोजेक्ट्स की आड़ में पैसे निवेश करा रही है जो कहीं हैं ही नहीं. इसमें सबसे चिंताजनक बात ये है कि निवेशकों को ये भी नहीं पता कि जिस भूमि की खरीद के लिए वो पैसा लगा रहे हैं, वो कहां है और और अगर है तो क्या उसका मालिकाना हक़ कंपनी के पास है भी या नहीं. भूमि एक भौतिक संपत्ति है, उसका मालिकाना हक़ स्पष्ट होना चाहिए. व्यक्ति तभी भूमि का स्वामी हो सकता है जब उसका भौतिक रूप से कब्जा ले लिया जाए. केबीसीएल के प्रमोटर कथित रूप से जो पैसा इकट्ठा कर रहे हैं उसके लिए वे एक सेल्स नेटवर्क का उपयोग कर रहे हैं जिसमें स्थानीय एजेन्टों को मोटे कमीशन का लालच दिया जाता है. कंपनी द्वारा नियुक्त एजेन्ट अपने स्तर पर कई नए एजेंट रखते हैं और ये एजेंट अपने नीचे अपना चेला एजेंट रखते हैं.
कलपतरू ग्रुप ने बिना सेबी की अनुमति के सीआईएस के संचालन से इनकार किया है. उसका कहना है कि केबीसीएल इंडिया एक पब्लिक लिमिटेड और लिस्टेड कंपनी है. उनका ग्रुप निर्माण, कृषि भूमि के विकास और प्रबंधन, टाउनशिप, शॉपिंग मॉल और देश के विभिन्न राज्यों में ग्रुप हाउसिंग सोसाइटी की गतिविधियां संचालित करता है और वो किसी भी प्रकार की कलैक्टिव इंवैस्टमैन्ट स्कीम का संचालन नहीं करता. गत वर्ष सेबी ने अपने एक आदेश द्वारा केबीसीएल इंडिया और कंपनी के निदेशकों राकेश कुमार, विश्वनाथ प्रताप सिंह और शशि कांत सिंह को प्रतिबंधित करते हुए कहा था कि ‘केबीसीएल प्रथम दृष्टया सेबी से बिना रजिस्ट्रेशन प्रमाण पत्र प्राप्त (जैसा कि सेबी एक्ट की धारा 12(1B) और सीआईएस विनियमन में कहा गया है) किए प्रायोजित अथवा लॉन्च की हुई सीआईएस के द्वारा लोगों से पैसा इकट्ठे करने की गतिविधियां संचालित कर रही है जैसा कि सेबी एक्ट की धारा 11AA में परिभाषित किया गया है।’
सेबी के पूर्णकालिक सदस्य, एस रामन, ने अपने 12 सितम्बर 2013 के आदेश में कहा था कि ‘केबीसीएल द्वारा वर्तमान रियल एस्टेट/ खरीद-विक्रय की योजना को पैसा इकट्ठा करने की गतिविधियों की आड़ के रूप में इस्तोमाल किया जा रहा है, जैसा कि सेबी एक्ट की धारा 11AA में परिभाषित किया गया है, और यह भी कि इसको बिना सेबी से रजिस्ट्रेशन कराए संचालित किया जा रहा है। एश संबंध में मैं यह पाता हूं कि निवेशकों के हियों की सुरक्षा करना सेबी प्राथमिक कार्य है, िसलिए इस संबंध में कदम उठाए गए है कि केबीसीएल द्वारा सिर्फ कानूनी गतिविधियां ही संचालित की जाएं और किसी भी निदेशक के साथ धोखा न हो।’
सेबी ने केबीसीएल और उसके निदेशकों को सीआईएस द्वारा खरीद की गयी संपत्तियों को न बेचे और इस स्कीम से इकट्ठा किए फंड को अन्यथा निवेश या उपयोग न करें। बहरहाल ये पहली बार नहीं था कि मथुरा के कम्पतरू ग्रुप को बाज़ार विनियामक के गुस्से का शिकार होना पड़ा है। 3002 में भी सेबी ने कल्पतरू ऐग्रो इंडिया लि. (केएआईएल) और उसके अधिकारियों को निवेशकों का पैसा न लौटाने पर पूंजी बाज़ार में अपनी गतिविधियां संचालित करने से प्रतिबंधित कर दिया था। कुछ महीने पहले, बॉम्बे हाई कोर्ट ने कल्पतरू बिल्डटेक कॉर्पोरेशन को प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से ‘कल्पतरू का नाम या चिह्न’ या इस प्रकार का कोई और भ्रामक रूप से समान चिह्न को अपने व्यीपारिक या ट्रेडिंग नाम के रूप में उपयोग करने से रोक दिया था। मुंबई स्थित रीयल एस्टेट कंपनी, कल्पतरू प्रोपर्टीज़ प्रा. लि. ने भी कल्पतरू बिल्डटेक कॉर्पोरेशन को उसके समान नाम और ट्रेडमार्क के उपयोग करने पर बौद्धिक अधिकारों के हनन के लिेए कोर्ट में घसीट लिया था। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि वो संतुष्ट है कि प्रशनगत ट्रेडमार्क कल्पतरू प्रोपर्टीज़ से ही जुड़ा हुआ है।
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Comments on “कल्पतरु ग्रुप की हेकड़ी : सेबी की पाबंदी के बाद अब नई कंपनी बनाकर जमीन देने के नाम पर जनता से की जा रही अवैध उगाही”
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Paisa milana kab possible hai