राजीव शर्मा-
एक नुक्ता न होने से शब्द देने लगता है दूसरा अर्थ…
उर्दू में ‘क़ानून’ قانون और ‘कानून’ کانُون दो ऐसे शब्द हैं, जिन्हें समझने में देशभर का मीडिया भारी ग़लती करता है। यहाँ मैं हिंदी मीडिया की बात कर रहा हूँ।Read more: ‘क़ानून’ और ‘कानून’ में फर्क समझ लीजिए!
मैंने दैनिक जागरण, जनसत्ता, दैनिक भास्कर, हिंदुस्तान, अमर उजाला, राजस्थान पत्रिका, प्रभात ख़बर, नवभारत टाइम्स, नईदुनिया, पंजाब केसरी आदि में कई बार ‘कानून’ शब्द छपते देखा है।
वैसे अब ‘कानून’ को ग़लत नहीं माना जाता, चूंकि नुक़्ते के नियम का पालन करना अनिवार्य नहीं रहा है, लेकिन इससे अर्थ का अनर्थ ज़रूर हो जाता है।
ज़्यादातर संपादक भी ‘क़ानून’ और ‘कानून’ में फ़र्क़ नहीं कर पाते, इसलिए हर जगह ‘कानून’ चला देते हैं।
‘क़ानून’ और ‘कानून’ में से पहला शब्द (क़ानून) ही ज़्यादा लिखा जाता है। यही उर्दू मीडिया में चलता है, लेकिन हिंदी में इसे ‘कानून’ बना दिया गया।
‘क़ानून’ अरबी भाषा का शब्द है। इसका अर्थ है- विधान, नियम या आईन। वहीं, ‘कानून’ फ़ारसी से आया है। इसका अर्थ है- भट्टी, चूल्हा (इसे कुछ शब्दकोशों में भट्ठी, अँगीठी भी बताया गया है)।
‘क़ानून’ पुल्लिंग है, जबकि ‘कानून’ को स्त्रीलिंग माना गया है। ये दोनों शब्द एक नहीं हैं।
जब हिंदी का कोई अख़बार लिखता है – ‘आप कानून के ज्ञाता हैं’ तो इसका अर्थ हुआ कि आपको भट्टी में आग लगानी आती है!
इसलिए जहाँ विधि, नियम, न्याय आदि से संबंधित विषय पर समाचार लिखना हो, वहाँ ‘क़ानून’ लिखना चाहिए। यही सही है। अगर नुक़्ता हटा देंगे तो चलने को वह चल जाएगा, लेकिन उसका अर्थ पूरी तरह बदल जाएगा।
.. राजीव शर्मा ..
जयपुर
Vimal Kothari
September 22, 2022 at 4:43 pm
बहुत ही ज्ञान की बात है। मैं आयकर की रिपोर्टिंग करता हूं। आज भी हमारे अधिकतर पत्रकार साथियों को आयकर छापे और सर्वे के अंतर का ज्ञान नहीं। होता कुछ है, प्रकाशित और प्रसारित कुछ ओर होता है।