सुप्रीम कोर्ट ने विधायकों को विधानसभा की कार्यवाही में भाग लेने के लिए बाध्य नहीं करने का निर्देश दिया…. कर्नाटक संकट पर बुधवार को उच्चतम न्यायालय ने दलबदल कानून के तहत विधानसभा अध्यक्ष (स्पीकर) के अधिकारों को मान्यता देते हुए कहा है कि विधायकों के इस्तीफे पर फैसला नियमों के अनुसार स्पीकर करें। लेकिन चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस दीपक गुप्ता और जस्टिस अनिरुद्ध बोस की पीठ ने अपने फैसले में बागी विधायकों को सदन की कार्यवाही में हिस्सा लेने के लिए बाध्य नहीं करने का आदेश देकर जहां स्पीकर के हाथ बांध दिए हैं वहीं कर्नाटक में कुमारस्वामी की सरकार को भी झटका दे दिया है। बागी विधायक अपने लंबित इस्तीफे मंजूर करने की मांग लेकर उच्चतम न्यायालय गए थे जिसे स्पीकर पर छोड़ दिया गया लेकिन न्यायालय ने व्हिप की बंदिश से मुक्ति का फैसला सुना दिया।
इस फैसले के बाद दोनों पक्ष अपनी जीत का दावा कर रहे हैं। अब सबकी नजरें गुरुवार को होने वाले एचडी कुमारस्वामी सरकार के विश्वासमत पर है। सत्ता का ऊंट किस करवट बैठेगा इसे लेकर सस्पेंस गहरा गया है।
चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा कि हमे इस मामले में संवैधानिक संतुलन कायम करना है। स्पीकर खुद से फैसला लेने के लिए स्वतंत्र है। उन्हें समयसीमा के भीतर निर्णय लेने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। चीफ जस्टिस ने कहा कि इस मामले में स्पीकर की भूमिका एवं दायित्व को लेकर कई अहम सवाल उठे हैं,जिनपर बाद में निर्णय लिया जाएगा। परंतु अभी हम संवैधानिक संतुलन कायम करने के लिए अपना अंतरिम आदेश जारी कर रहे हैं।
पीठ ने कहा है कि बागी 15 विधायकों पर पार्टी का व्हिप लागू नहीं होगा। यानी बागी कांग्रेस और जेडीएस विधायक विधानसभा में आने या न आने के लिए स्वतंत्र हैं।इस मामले में मंगलवार को कोर्ट ने सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था।इसका मतलब साफ है कि विधायक बहुमत परीक्षण में हिस्सा लेने या न लेने के लिए स्वतंत्र हैं। उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि स्पीकर केआर रमेश कुमार बागी विधायकों के इस्तीफे पर फैसला करें। ऐसे में पहली संभावना यह बनती है कि स्पीकर रमेश कुमार 15 बागी विधायकों के इस्तीफे स्वीकार कर लें।
वहीं, एक कांग्रेस विधायक रोशन बेग अभी निलंबित चल रहे हैं और उनका भी इस्तीफा मंजूर नहीं हुआ है। इस सूरत में अगर बहुमत परीक्षण होता है तो सदन की कुल सदस्य संख्या 224 से घटकर 208 पहुंच जाएगी। बहुमत हासिल करने के लिए 105 विधायकों के समर्थन की जरूरत होगी लेकिन कुमारस्वामी सरकार के पास 101 विधायकों, जिसमें स्पीकर और 1 बीएसपी विधायक शामिल है, का ही समर्थन बचेगा। इस्तीफा मंजूर होने पर कांग्रेस विधायकों की संख्या 79 से घटकर 66 और जेडीएस विधायकों की 37 से घटकर 34 हो जाएगी। ऐसे में भाजपा को फायदा हो सकता है, जिसके पास 105 विधायकों के साथ ही दो निर्दलीय विधायकों,एच नागेश और आर शंकर,का भी समर्थन है।
एक दूसरी स्थिति यह है कि स्पीकर केआर रमेश कुमार बागी विधायकों का इस्तीफा मंजूर न करें। ऐसी सूरत में वे सदन की कार्यवाही में हिस्सा ले सकते हैं। अगर 15 बागियों में से कम से कम 6 विधायक विश्वासमत में शामिल होते हैं, साथ ही पाला बदलते हुए कुमारस्वामी सरकार के समर्थन में वोट देते हैं तो कांग्रेस-जेडीएस सरकार बच सकती है।
यदि स्पीकर सभी 15 बागी विधायकों को अयोग्य ठहरा देते हैं तो सदन में संख्याबल घट जाएगा। ऐसे में 209 विधायकों के पास ही बहुमत परीक्षण में हिस्सा लेने का अधिकार होगा और बहुमत का गणित भी घटकर 105 पहुंच जाएगा। इस स्थिति में सरकार बचाने के लिए जेडीएस-कांग्रेस को भाजपा के खेमे में सेंध लगानी पड़ेगी। वहीं, दो निर्दलीयों का रुख भी काफी अहम रहेगा।
इससे पहले मंगलवार को सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा था कि हम ये तय नहीं करेंगे कि विधानसभा स्पीकर को क्या करना चाहिए, यानी उन्हें इस्तीफा स्वीकार करना चाहिए या नहीं। हालांकि, हम सिर्फ ये देख सकते हैं कि क्या संवैधानिक रूप से स्पीकर पहले किस मुद्दे पर निर्णय कर सकता है। कोर्ट ये तय नहीं करेगा कि स्पीकर को क्या करना है। राज्य के 10 बागी विधायकों के बाद कांग्रेस के पांच अन्य विधायकों ने 13 जुलाई को उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर कर आरोप लगाया था कि विधानसभा अध्यक्ष उनके इस्तीफा स्वीकार नहीं कर रहे हैं। इन विधायकों में आनंद सिंह, के सुधाकर, एन नागराज, मुनिरत्न और रोशन बेग शामिल हैं।
वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट.