कृष्ण कांत-
कश्मीर में लगातार हत्या और हमलों से दहशत में आए कश्मीरी पंडित अपना घर छोड़कर भाग रहे हैं। 19 दिन से धरना दे रहे थे कि सुरक्षा दो या फिर घाटी से बाहर कहीं बसाओ। सरकार फिल्म प्रमोशन में व्यस्त है। नफरत के सब कारोबारी गायब हैं। कश्मीर फाइल्स सिर्फ नफरत फैलाने का एक प्रोजेक्ट था। वह पूरा हुआ। अभी वे दूसरे प्रोजेक्ट में लगे हैं।
सौमित्र रॉय-
केंद्र सरकार 32 साल बाद फिर वही गलती दोहरा रही है, भागने लगे कश्मीरी पंडित! कश्मीर में बदले हुए घटनाक्रम और पलायन के लिए बीजपी और आरएसएस की नीति काफी हद तक जिम्मेदार है, जिसमें यह माना गया कि घाटी की मुख्य समस्या सांप्रदायिक और कानून-व्यवस्था से जुड़ी है।
अनुच्छेद 370 को हटाने के बाद से ही केंद्र सरकार ने एक ओर तो असहमति की उठती आवाजों को बंदूकों के जरिए दबाने की कोशिश जारी रखी है और उधर, कश्मीरी बहुसंख्यकों पर गैर कश्मीरियों की हुकूमत जमाने का प्रयास लगातार हो रहा है।
2020 में सरकार ने जम्मू-कश्मीर सिविल सेवा (विकेंद्रीकरण और भर्ती) अधिनियम, 2010 की धारा 15 में बदलाव कर स्थायी आवास प्रमाण पत्र देने के नियम जारी किए। घाटी में इसे कश्मीर की जननांकीय में बदलाव के रूप में देखा गया।
इसी तरह की अफवाह 1990 में भी उड़ी थी और इसका नतीजा यह हुआ कि पाकिस्तान के इशारे पर आतंकियों ने कश्मीरी पंडितों और सरकार से सहानुभूति रखने वाले मुस्लिमों का कत्लेआम शुरू कर दिया और कश्मीरी पंडितों, हिंदुओं को घाटी से पलायन करना पड़ा।
केंद्र सरकार 32 साल बाद फिर वही गलती दोहरा रही है।
शीतल पी सिंह-
जम्मू कश्मीर : इलाकाई देहाती बैंक, कुलगाम के ब्रांच मैनेजर विजय कुमार की आज सुबह आतंकवादियों द्वारा गोलियों से छलनी कर हत्या कर दिये जाने के बाद कश्मीर से हिंदुओं का दूसरा पलायन शुरू हो चुका है । कश्मीरी हिंदू/ पंडित कर्मचारियों के विभिन्न समूहों को प्रशासन ने पुलिस के ज़रिए विभिन्न कैंपों में पिछले तीन दिनों से क़ैद कर रक्खा है वरना वे सब भी तुरंत घाटी छोड़ने पर उतारू हैं ।
1990 में भी जब कश्मीरी हिंदुओं/पंडितों ने कश्मीर घाटी छोड़ी थी तब बीजेपी नेता जगमोहन वहाँ गवर्नर थे , गवर्नर राज था ! अब भी गवर्नर राज है । पिछले पाँच हफ़्तों में यह सातवीं टार्गेट किलिंग है और इस वर्ष की सत्रहवीं ।
धारा 370 में कश्मीर की दवा समझने वाले मूर्ख विचार की यह रक्तरंजित आहुति है । दरअसल बीजेपी/संघ और दक्षिणपंथी घृणा की राजनीति ने जम्मू कश्मीर की परिस्थितियों को और बिगाड़ दिया है और जो हमें दिखाया जा रहा है वह दावानल पर पर्दा है । 2014 में मोदीजी के अवतरण के समय कश्मीर लगातार शांति की ओर धीमे धीमे बढ़ रहा था, चुनी हुई सरकारें प्रशासन चला रही थीं और पाकिस्तान का असर कम हो रहा था ।
पर उत्तर भारत में फैले हिंदुत्ववादियों के बिना सोचे विचारे कश्मीर में प्लाट लेने और कश्मीरी लड़कियों से ब्याह करने के सपने ने सब कुछ तहस नहस कर दिया । अब पहले से दुगनी फ़ोर्स लगाने के बावजूद यह सब हो रहा है और राज्य की अर्थव्यवस्था चौपट हो जाने के कारण दिल्ली से श्रीनगर को ज़्यादा रक़म प्रशासन के खाते में पहुँचानी पड़ रही है ।