शीतल पी सिंह-
केजरीवाल कितना नक़ली इंसान है! गाँधी की फ़ोटो अंबेडकर से रिप्लेस की , क्योंकि गांधी के चित्र से अब वोट नहीं मिलते पर अंबेडकर के करोड़ों समर्थकों के पास वोट हैं। अग़ल बग़ल अंबेडकर नज़र आने लगे पर जब उसके दलित मंत्री ने अंबेडकर के कहे / किये का अनुमोदन सार्वजनिक किया तो चमड़ी के नीचे का सच बाहर आ गया।
गुजरात चुनाव में स्टेक बड़ा था, पोस्टर बैनर सवाल पूछने लगे, केजरीवाल ने जै श्री राम का नारा लगाया और मंत्री से इस्तीफ़ा ले लिया! केजरीवाल, इस तरह के आचरण से तुम चुनाव जीत सकते हो लेकिन तुम ख़ुद को हारते जा रहे हो, ये तुम्हें सफलता के मद में दिखाई नहीं देगा।
सत्येंद्र पीएस-
राजेन्द्र पाल गौतम ने कुछ ऐसा नहीं कहा, जो अद्भुत अदम्य और नया है। अम्बेडकर का कहा दोहराया था उन्होंने। अम्बेडकर और पेरियार ने उससे कई गुना ज्यादा कहा है। इतना ही नहीं, संविधान सभा की बहसों में जयपाल सिंह मुंडा जो-जो कहते थे, आज की तारीख में कोई जेएनयू का प्रोफेसर बोल दे तो उसे गद्दार राष्ट्रद्रोही घोषित कर दिया जाएगा और कोई मुकदमा दर्ज हो गया तो सीधे जेल। सुप्रीम कोर्ट से भी राहत नहीं मिलेगी।
अंतर सिर्फ इतना आया है कि उस दौर में महात्मा गांधी थे और जब उनसे कहा जाता था कि अम्बेडकर ने ऐसा कहा तो गांधी कहते थे कि अम्बेडकर ने सही कहा और हरिजनों की जो गति की गई है,अम्बेडकर बहुत कम कह रहे हैं। उस दौर में नेहरू थे, जिन्होंने एक समतामूलक समाज का सपना देखा था, जिसमें सबको अपनी बात कहने और अपने मुताबिक जीने, अपनी इच्छा मुताबिक धर्म पालन से लेकर कपड़े पहनने का हक हो।
मैं इस निष्कर्ष पर पहुँचता जा रहा हूँ कि जो ज्यादा पढ़ लिख लेते हैं वो सूतियाय जाते हैं। सहजता, एक दूसरे का सहयोग, आपसी प्रेम, मिल जुलकर रहने, एक दूसरे के खिलाफ साजिश न ढूंढने में ज्यादा सुकून है। गांधीवाद का दुनिया मे कोई विकल्प नहीं है। राजेन्द्रपाल गौतम को समर्थन करने वाला कोई गांधी नहीं है। दिल्ली और पंजाब के दलित आम आदमी पार्टी के पुछल्ले हैं। राजेन्द्रपाल गौतम क्या, अम्बेडकर को ही खदेड़ दिया जाए तो घण्टा उनके ऊपर फ़र्क पडेगा। जिनके ऊपर फर्क पड़ता है उसे संतुष्ट करने के लिए अरविंद केजरीवाल भी फैसले करते हैं और नरेंद्र मोदी भी। मोदी की तुलना में केजरीवाल देश और समाज के लिए ज्यादा खतरनाक हैं। वह इसलिए कि अपना बनकर गला काट लेना ज्यादा बुरा होता है, इससे मानवता को नुकसान है। लोगों का भरोसा टूटता है।
अगर आपको बुद्धिस्ट बनना है तो शौक से बनिए। अभी बुद्धिज्म भाजपा आरएसएस के निशाने पर नहीं है और आरएसएस उन्हें हिन्दू ही मानकर चलता है। वरना इसको भी संघी और उसके समर्थक लव जिहाद घोषित कर देते। ग्राहम स्टेन्स की तरह किसी को जिंदा फूंक दिया जाता। आपके पास बुद्धिज्म के प्रचार प्रसार का मौका है। लेकिन चिढ़ाने के लिए बुद्धिस्ट बनेंगे तो उससे आपका भी नुकसान होगा, बुद्धिज्म का तो बुरा हाल हो ही गया है। धर्म के बारे में गाँधी का मार्ग अपनाएं और जहां सुकून हो वहां रहें। अपनी बात शालीनता से रखें। आप किसी पर हमले करेंगे, चिढाएंगे तो सामने वाले से यह उम्मीद न करें कि वह आरती उतारेगा क्योंकि वह आपका डबल कमीना है, गाँधी नहीं है।
बदलाव होता है। यह समझाइश और शालीनता से स्थायित्व लिए हुए होता है। भारत में कोई जाति स्थिर नहीं रही है। सभी विद्वानों का यही निष्कर्ष है यहाँ बड़े बड़े नामवर बेनिशाँ होकर दफन हो गए। कोई नहीं जानता कि मौर्य वंश, गुप्त वंश, हूंड़ वंश,कुषाण वंश, शुंग वंश, कण्व वंश कहाँ विलुप्त हो गए और उनकी जाति का कौन है? मौजूदा क्षत्रियों का इतिहास पढ़ेंगे तो उनकी उत्पत्ति की अजीब कहानियां मिलती हैं।
उनकी छोड़िये। खिलजी वंश, बलबन वंश, तुगलक वंश कहाँ है? आपको पता है क्या? वह भी छोड़ दीजिए। 1857 की क्रांति को अभी डेढ़ सौ साल हुए। भारत के आखिरी शहंशाह बहादुरशाह जफर थे। कितने लोगों को पता है कि उनके खानदान वाले कोलकाता में रेहड़ी लगाकर अंडे बेचते हैं?
कहने का मतलब यह है कि गैर बराबरी दूर करने के लिए हमेशा काम होना चाहिए। ब्रिटेन अमेरिका और योरोप के सम्पन्न देश मे भी सतत काम चलता है कि गैर बराबरी दूर हो। लेकिन वह नफरत से नहीं हो सकता है। मानवीय अच्छे गुण सबमें होते हैं। बुरे से बुरे दिखने वाले व्यक्ति में अच्छे गुण उभारे जा सकते हैं। उसका रास्ता गांधीवाद है, और कोई विकल्प मुझे नहीं दिखता।
पिछली पोस्ट ट्रैवल को लेकर थी। उसमें ज्यादा सुकून है। गांधीजी की स्टाइलिस फोटो देखें, इससे ज्यादा सुकून मिलेगा। व्याकुल न हों, गुस्से में न आएं। बुद्ध और गांधी यही समझाते समझाते थके जा रहे हैं।
राजनीति वगैरा माया है। यही हाल रहा तो फिर किसी राजे रजवाड़े और सम्राट, सल्तनत का शासन हो जाएगा। मनुष्यता ही न रही तो लोकतंत्र कैसे बचा रह सकता है? मैं भी जुनून में क्या क्या बकता रहता हूँ। आजकल दिमाग काम नहीं करता। लगता है कि यह सब पागलपन की बड़बड़ाहट है, जिसका कोई मतलब नहीं है आज के समाज में।