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केजरीवाल की गिरफ्तारी संवैधानिक संस्थाओं की साख पर सवाल

अदालत ने एक निर्वाचित मुख्यमंत्री को जेल नहीं भेजा है, केंद्र सरकार (जो दूसरे दल की है) के एक विभाग ईडी की हिरासत में दिया है, चुनाव के समय न सिर्फ मुख्यमंत्री को गिरफ्तार किया गया महुआ मोइत्रा के ठिकानों पर छापामारी भी चल रही है, इलेक्टोरल बांड की जांच की मांग भी नहीं है

संजय कुमार सिंह

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इसमें कोई शक नहीं है कि नरेन्द्र मोदी के शासन में संवैधानिक संस्थाओं की साख गिरी है। अरविन्द केजरीवाल की गिरफ्तारी इसी दिशा में एक कदम है और उन्हें जमानत नहीं मिलने से पूरी व्यवस्था को ऐसा ही बना दिये जाने की आशंका है। दिलचस्प यह है कि अखबारों में इस बात की चर्चा है कि जेल से शासन कैसे चलेगा। इस बात की नहीं कि यह स्थिति आई क्यों – या इसकी अपेक्षा नहीं की गई थी इसलिए इसकी व्यवस्था नहीं है। दिलचस्प यह है कि आगे जो होगा उससे भी पता चलेगा कि संविधान में किसकी कितनी आस्था है और कुछ नहीं हो तो “अकेला सब पर भारी व्यवस्था” चलाने वाला क्या करेगा। जरूरी नहीं है कि शिखर पर बैठे व्यक्ति को हर बार कुछ करना ही हो। कई बार नीचे के लोगों को आजादी देनी होती है पर तब वह सब पर भारी कैसे रहेगा और जो भी करेगा, फंसेगा। उसकी पोल खुलेगी। समस्या यह है कि अखबार उसे बतायेंगे नहीं और समर्थक मास्टर स्ट्रोक करार देंगे। कुल मिलाकर इसबार होली पर दिलचस्प स्थिति बनी है। पहले ऐसे मौके पर विशेष संपादकीय होते थे पर वह सब अब इतिहास हो गया है।    

गंभीरता से देखिये तो बात इतनी ही नहीं है। ईडी ने आम आदमी पार्टी को इसी बिना पर पीएमएलए का अभियुक्त बता दिया है और इस मामले में पार्टी के खिलाफ भी कार्रवाई हो सकती है। मेरा मानना है कि भाजपा के शासन में ईडी पर इतना भरोसा नहीं किया जा सकता है कि देश के एक उभरते नए राजनीतिक दल को जो अच्छा काम कर रही है, इस आरोप के दम पर प्रतिबंधित किया जाये। लेकिन जिस ढंग से काम हो रहा है उसमें नरेन्द्र मोदी फिर जीत गये तो यह संभव है और मैं इसीलिए कहता हूं कि उन्हें चुनाव जीतने से प्रतिबंधित किया जाये ताकि आम आदमी पार्टी के खिलाफ इस मामले की जांच हो तो इलेक्टोरल बांड की भी हो और दोनों निष्पक्ष हो। कुल मिलाकर राजनीति इतनी खराब और गंदी हो गई है कि अच्छे लोग राजनीति में शायद ही आयें। पढ़े-लिखे केजरीवाल हों या महुआ मोइत्रा दोनों का हाल देखिये। और पुराने वंशवादियों लुटेरों की शरणस्थली तथा वाशिंग मशीन पार्टी की सफलता गौरतलब है। फर्जी डिग्री वाले की शिकायत और आरोप पर क्या नहीं हो रहा है बस उनकी डिग्री की जांच नहीं हो रही है।  

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केजरीवाल की गिरफ्तारी को जायज बताने के लिए उनके पूर्व मित्र और कवि की टिप्पणी चर्चा में है और अमर उजाला ने अन्ना हजारे बयान को चार कॉलम में छापा है। शीर्षक लिखकर मैं उसे प्रचारित नहीं करूंगा। मैं यह बताउंगा कि इलेक्टोरल बांड पर कल अधिवक्ता प्रशांत भूषण और दूसरे लोगों ने प्रेस कांफ्रेंस की और केजरीवाल मामले में वायदा माफ गवाह का नाम, उनकी कंपनी, उनके खिलाफ कार्रवाई की तारीख और बांड खरीदने की तरीख तथा उसे भाजपा द्वारा भुनाए जाने की जानकारी दी जो आज पहले पन्ने पर तो नहीं दिखी। आज पहले पन्ने पर छपे बयानों में सबसे दिलचस्प भाजपा नेता और भोजपुरी गायक और अभिनेता तथा इस बार दिल्ली से दोबारा चुनाव लड़ने के लिए चुने गए मनोज तिवारी का है। टाइम्स ऑफ इंडिया ने छापा है। उन्होंने कहा है, हमने देखा है कि जेल से गिरोह चलते हैं सरकार नहीं। उन्होंने मुख्यमंत्री से इस्तीफे की मांग करते हुए यह बात कही है। पिछले दिनों खबर थी कि दिल्ली जेल से एक कैदी ने वसूली कर ली। एक कैदी की हत्या का वीडियो सार्वजनिक हुआ था। ऐसा नहीं है कि भाजपा सरकार के राज में दिल्ली की जेल भी गिरोह से मुक्त है पर मनोज तिवारी ने कहा है तो पहले पन्ने की खबर है ही।

मुख्यमंत्री की गिरफ्तारी गंभीर मामला है और हेमंत सोरेन का मामला भी ऐसा ही था जो उनके पद पर रहते भ्रष्टाचार का नहीं था और उसका उपयोग उन्हें अपमानित प्रताड़ित करने के साथ उनसे सत्ता छीनने के लिए किया गया। वहां विधायकों की दलीय स्थिति ऐसी थी कि मुख्यमंत्री गिरफ्तारी के बाद भी पद पर बने रहते। इसलिए अंतिम समय में उन्होंने इस्तीफा दे दिया और इसीलिए उनकी पार्टी की सरकार बनी रही। वरना योजना तो कुछ और थी। खरीद-बिक्री से उन्हें विस्थापित किया जा सकता था। संवैधानिक संकट का मामला नहीं आया। पर सुप्रीम कोर्ट में वह दिख गया। मुख्य न्यायाधीश ने पीठ बनाई और पीठ ने मामले को सुने बिना फैसला कर दिया। वहां संकट नहीं था दूसरे मुख्यमंत्री पद संभाल रहे हैं। दिल्ली में केजरीवाल की आम आदमी पार्टी को जरूरत से ज्यादा बहुमत है और उन्होंने इस्तीफा तो नहीं ही दिया सुप्रीम कोर्ट से बेल की अपील भी वापस ले ली। आखिरकार उन्हें ईडी की हिरासत में भेज दिया गया। जी हां एक निर्वाचित मुख्यमंत्री को ईडी की हिरासत में। संविधान संकट में है और लोकतंत्र के वाचडॉग के मुंह में हड्डी है। अदालत ने एक निर्वाचित मुख्यमंत्री को जेल नहीं भेजा है, केंद्र सरकार (जो दूसरे दल की है) के एक विभाग ईडी की हिरासत में दिया है। ईडी मुख्यमंत्री कार्यालय से बड़ा और शक्तिशाली हो गया! पर अभी उसे रहने देता हूं।

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मेरा मानना है कि देश में जो राजनीति और हेडलाइन मैनेजमेंट चल रहा है उसमें नरेन्द्र मोदी फंस गये हैं और इलेक्टोरल बांड के खुलासे के बाद दोनों कारणों से अरविन्द केजरीवाल की गिरफ्तारी ‘जरूरी’ थी। हालांकि, चुनाव की घोषणा के बाद यह निर्णय चुनाव आयोग को या कम से कम उसकी सहमति से लिया जाना था और सरकार से यह अपेक्षा नहीं थी कि वह इस समय ऐसा निर्णय करेगी जिसका असर उसके और दूसरे दल के राजनितक भविष्य और छवि पर पड़ सकता हो। देश में बहुदलीय व्यवस्था है और चुनाव के समय सभी दलों को समान स्थितियां मुहैया कराने के लिए पहले जो होता था वह अब नहीं होता है। इसलिए गिरफ्तारी का निर्णय चाहे जिसका हो, केजरीवाल और उनकी पार्टी को कई बड़े फायदे हुए – सबसे बड़ा यह कि उनपर भाजपा की बी टीम होने का दाग खत्म हो गया। दूसरे विपक्षी दलों का बिना शर्त समर्थन मिला और चूंकि अरविन्द केजरीवाल नरेन्द्र मोदी की राजनीति जानते हैं, इसलिए उनने इस्तीफा नहीं देकर सरकार के लिए भी संकट बनाये रखा है। और ऐसा नहीं है कि इस मामले को ठंडे बस्ते में रखकर सरकार बच जायेगी। तब इसका फायदा वे बाद में उठाते रहेंगे और अगर दिल्ली के उपराज्यपाल के जरिये कुछ करने की कोशिश की गई तो तथ्य यह है कि उनके खिलाफ मेधा पाटकर से मारपीट का 20 साल से भी पुराना मामला लंबित है और संवैधानिक पद पर होने के कारण उन्हें अदालत से राहत’ मिली हुई है जो केजरीवाल को मुख्यमंत्री रहते नहीं मिली। मुख्यमंत्री को हिरासत में भेजना कैसे सही हो सकता है या ऐसा इसीलिए हुआ कि जो व्यवस्था है उसमें यही होना था?

जो भी हो, लगता यही है कि इलेक्टोरल बांड से हुए नुकसान की खबरों से ध्यान मोड़ने के लिए अरविन्द केजरीवाल की गिरफ्तार हुई  और यह अखबारों में दिखा भी। विपक्षी नेताओं पर गिरफ्तारी की तलवार नहीं लटकी होती, स्थितियां सामान्य होती तो इलेक्टोरल बांड के मामले में जांच की मांग होती। सबको पता है कि पुलवामा का खुलासा नहीं हुआ और अगर नरेन्द्र मोदी की सरकार फिर सत्ता में आ गई तो इलेक्टोरल बांड की जांच भी लटक सकती है। इसलिए उन्हें चुनाव लड़ने से रोका जाना चाहिये। उनकी सरकार के जिन निर्णयों को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है और सुप्रीम कोर्ट से जो फैसले पलटे हैं और उसपर सरकार की जो प्रतिक्रिया रही है वही इसके लिए पर्याप्त है। पर यह मांग कौन करे? सबको दोषी-अपराधी प्रचारित किया जा चुका है। जहां तक मुख्यमंत्री के खिलाफ मामले की बात है, उनपर सरकार की उत्पाद नीति बदलने या बनाने तथा उससे किसी को फायदा पहुंचाने और उससे लाभ लेने का आरोप है। लाभ लेना छोड़कर बाकी मुख्यमंत्री का काम है और कई राज्यों में जहां शराबबंदी है वहां राज्य को राजस्व का नुकसान हो रहा है, अवैध शराब की समानांतर व्यवस्था चल रही है, मौतें हो रही हैं और कोई दिक्कत नहीं है। पैसे लिये-दिये गये कि नहीं मैं नहीं जानता। जांच हुई कि नहीं पता नहीं और यह निर्णय बिना पैसे लिये हुआ है या पैसे लेने-देने का कोई मामला नहीं है इसे कोई पक्का कह सकता। सरकार के हर निर्णय़ में पैसे लिये-दिये जाने की जांच होती भी नहीं है, हो ही नहीं सकती। पर दिल्ली के मुख्यमंत्री के मामले में शिकायत है। इस मामले में जो चश्मदीद बताया जा रहा है उसने इलेक्टोरल बांड से भाजपा को चंदा दिया है।

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इसपर ज्यादा लिखने की जरूरत नहीं है सिर्फ यह याद दिलाना था कि रिश्वत लेना अपराध है तो देना भी अपराध है और जो मजबूत होगा उसके खिलाफ कार्रवाई कैसे होगी। आप जानते हैं कि अब सबूत तो बलात्कार का भी मांगा जाता है। दूसरी ओर एक नेताजी अपने संस्थान की छात्रा से नंगे होकर तेल मालिश कराते थे। सबूत के लिए उसने इसे रिकार्ड कर लिया पर कार्रवाई नहीं हुई। नेताजी ने कह दिया कि उनसे वसूली के लिए वीडियो बनाया गया था। इसमें नंगे होकर मालिश कराने का मामला खत्म हो गया। वसूली के मामले का क्या हुआ, पता नहीं चला। फिर भी जिस ईडी पर वसूली का आरोप इलेक्टोरल बांड से संबंधित जानकारी सार्वजनिक होने से पुख्ता हुआ है उसे अदालत ने एक मुख्यमंत्री को पूछताछ के लिए सौंप दिया है तो आप समझ सकते हैं कि मुद्दा क्या है पर आज के अखबारों के शीर्षक देखिये। उससे पहले बता दूं कि इस पूरी व्यवस्था के लिए नरेन्द्र मोदी अकेले जिम्मेदार नहीं हैं और जो हैं वो कोई एक-दो लोग नहीं हैं। सबसे ज्यादा जिम्मेदार वो हैं जो उस पद पर हैं और इसके लिए एक समय के चुनाव आयुक्त टीएन शेषण को याद किया जा सकता है।

आप कह सकते हैं कि अगर संवैधानिक पद कृपा है तो कृपा करने वाले के खिलाफ कैसे हुआ जा सकता है पर मेरा मानना है कि अगर आप ऐसा नहीं कर सकते हैं तो ऐसे पद लेने नहीं चाहिये और लें तो उसके अनुकूल कार्य करें। इसीलिए एक बार चुने जाने के बाद पद से हटाना मुश्किल है और यही हमारे संविधान की विशेषता है जिसे बदलना चाहने वाले लोग सत्ता में हैं और अपनी इच्छा छिपाते भी नहीं हैं। दूसरी ओर दुनिया जानती है कि आरोप खबर नहीं है और अपराध साबित होने से पहले कोई दोषी नहीं होता है फिर भी आज ईडी का आरोप प्रमुखता से छपा है। उसी ईडी का जो केंद्र सरकार के लिए इलेक्टोरल बांड के जरिये वसूली का  आरोपी है। कुल मिलाकर स्थिति यह है कि भाजपा के लिए वसूली के आरोपी ईडी का आरोप अखबारों में शीर्षक है जबकि सबको पता है कि आरोप बाद में गलत हो सकते हैं।

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अमर उजाला की खबर के अनुसार कोर्ट में ईडी ने कहा है कि दिल्ली की आबकारी नीति मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल की साजिश है और वे इसमें सीधे शामिल हैं। मुझे लगता है कि सरकार की नीति में मुख्यमंत्री सीधे ही शामिल होगा और यह कोई खबर नहीं है। कोर्ट में यह भी कहा गया है कि पार्टी को कई करोड़ की रिश्वत मिली है। जाहिर है यह 100 में ही है। ज्यादा से ज्यादा कुछ सौ करोड़।  पर भाजपा को जिस असंवैधानिक इलेक्टोरल बांड से हजारों करोड़ मिले हैं वह कैसे ठीक है और उसकी जांच क्यों नहीं हो रही है। केजरीवाल या दिल्ली की सरकार को पैसे लेने की होते तो इलेक्टोरल बांड से क्यों नहीं लेती और नहीं ली तो जो वायदा माफ गवाह है उसे बचाने की साजिश नहीं है? बहुत सारे सवाल है जो मीडिया को उठाने चाहिये पर आज नजर नहीं आ रहे हैं। ज्यादातर शीर्षक पार्टी की अवमानना करने वाले हैं और चुनाव के समय छपे हैं।  

ईडी के आरोप शीर्षक में

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आम आदमी को एंटायर पॉलिटिकल साइंस की राजनीति समझ में नहीं आये – यह तो संभव है लेकिन पत्रकारों, संपादकों और अखबार वालों को कैसे नहीं समझ आ रही होगी? जाहिर है, वे सरकार का समर्थन कर रहे हैं और केजरीवाल व उनकी पार्टी के खिलाफ हैं। आज के अखबारों के ज्यादातर शीर्षक पार्टी को बदनाम करने वाले हैं। इंडियन एक्सप्रेस और टेलीग्राफ के शीर्षक का अंतर देखिये पेश है, मेरे सात अखबारों के शीर्षक।

1. इंडियन एक्सप्रेस

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ईडी को केजरीवाल की हिरासत मिली, अदालत से कहा गया कि वे घोटाले के सरगना हैं। उन्होंने कहा, कोई सबूत नहीं है। फ्लैग शीर्षक है, दिल्ली के गिरफ्तार मुख्यमंत्री 28 मार्च तक ईडी की हिरासत में।

2. द हिन्दू

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अरविन्द केजरीवाल को 28 मार्च तक ईडी की हिरासत में भेजा गया।

3. द टेलीग्राफ

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केजरीवाल के हिरासत में जाने से विपक्ष के मजबूत होने के संकेत

4.हिन्दुस्तान टाइम्स 

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ईडी को केजरीवाल की छह दिन की हिरासत मिली, कहा वे सरगना हैं

5. टाइम्स ऑफ इंडिया

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कोर्ट द्वारा ईडी को 28 मार्च तक हिरासत में सौंपने के बाद केजरीवाल की होली जेल में बीतेगी

6. अमर उजाला

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ईडी ने कोर्ट में कहा, केजरीवाल घोटाले के मुख्य साजिशकर्ता …. आबकारी नीति में सीधे शामिल

7. नवोदय टाइम्स

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केजरीवाल 28 तक रिमांड पर, आबकारी नीति मामला – ईडी ने मांगे थे 10 दिन 

कहने की जरूरत नहीं है कि केजरीवाल को ईडी की हिरासत में भेजे जाने की खबर आज सभी अखबारों में लीड है। हुआ यह कि हेडलाइन मैनेजमेंट के लिए केजरीवाल को गिरफ्तार किया गया और अब दो चार हेडलाइन तो मैनेज होंगे ही। मुद्दा यह है कि ज्यादातर अखबार भूल गये कि इलेक्टोरल बांड वसूली का मामला है। सरकार ने उसे चंदा कहा और पूछ लिया कि उसे कैसे मिले? दिलचस्प यह है कि जिसे कुछ नहीं मिला (या लिया) वह जेल में है और जिन्हें सैकड़ों हजारों करोड़ मिले उनका बाल भी बांका नहीं हुआ। आप मान सकते हैं कि देश में राम राज्य है, अच्छे दिन आ गये है, नामुमकिन मुमकिन हो रहा है और घर-घर मोदी है। जोर से बोलिये, जय श्रीराम।

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