यशवंत सिंह-
जब कोई केशव प्रसाद मौर्या को जननायक बताने लगे, कोई परमपिता परमेश्वर से उनकी मुस्कुराहट, सादगी, प्यार, स्वास्थ्य, लोकप्रियता को यूँ ही बनाए रखने की प्रार्थना करने लगे तो मुझे उसके पत्रकार होने में शक होने लगता है।
मौर्या जी के विभागों में भ्रष्टाचार के क़िस्से कौन नहीं जानता। पर वो न्यूज़ न बनेगी। उस पर चर्चा न कराएँगे। पीआर पत्रक़ारिता और पार्टी वाली पत्रकारिता अपने चरम दौर में हैं। लखनऊ में अब भाजपाई पत्रकार मिलते हैं, सपाई पत्रकार मिलते हैं, बसपाई पत्रकार मिलते हैं और ढेर सारे मलाई पत्रकार मिल जाते हैं। शुद्ध खाँटी पत्रकार अब गिने चुने ही पाए जाते हैं।
आलोक पाठक तो मार्केटिंग के आदमी हैं इसलिए उनके हर डाल पर बैठने से कोई दिक़्क़त नहीं। वो उनका पेशागत काम है। पर हमारे संजय भाई केशव मौर्या के लिए क्यूँ इतने लहालोट हैं, समझ नहीं आ रहा।
आप उनको विश करिये, निजी रूप से। समझ आता है। पर इसकी नुमाइश ग़लत है। आप के तेवरदार कामकाज पर पानी फेर देता है। ये मेरे विचार हैं। हो सकता है मैं ग़लत होऊँ!