: जिस जमीन पर लगना था करघा, उसपर कोठीवाल का कब्जा :
पूरे दिन क्रब में जिस्म आधा रहे
घर में इस पर भी इक वक्त फांका रहे
भूख से गर्म तन सर्द चूल्हा रहे
इस तरह खून कब तक जलायेंगे हम
इस कटौती की मैयत उठायेंगे हम।
”हमें प्रधानमंत्री जी से मिलना है, उनको बताना है कि बनारस में हथकरघा विभाग के अफसरों से सांठगांठ कर कोठीवाल हमारी जमीन पर कब्जा जमाए बैठा है।” ये आवाज बुनकर कालोनी से आए बुनकरों की थी, बुनकर अपनी इस आवाज को अपने सांसद और देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तक पहुंचाना चाहते थे। पर अफसोस ये आवाज बैरीकेड पर ही दम तोड़ गयी क्योंकि बैरीकेट के इस पार बुनकर थे और उस पार अपने कार्यालय में प्रधान मंत्री चुनी हुई जनता से मिलकर उनकी समस्याओं को सुन रहे थे।
शुक्रवार दोपहर जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी रविन्द्रपुरी स्थित कार्यालय में जनसाधरण से रूबरू होने पहुंचे ठीक उसी वक्त सैकड़ो की संख्या में आमजनता अपने हाथों में में शिकायती पत्र लेकर कार्यालय से दूर पुलिसिया बैरीकेट पर ही खड़े रह गए। बुनकरों के लिए प्रधानमंत्री की तमाम लोकलुभावन योजनाओं और घोषणाओं के परे नाटी ईमली स्थित बुनकर कालोनी के बुनकर अपनी ही जमीन से बेदखल कर दिए गए है, वो जमीन जो उन्हें हथकरघा विभाग की ओर से 100 हथकरघा लगाने के लिए कभी दिया गया था, आज उस पर किसी हाजी साहब ने कब्जा कर रखा है।
बुनकर कमाल अख्तर का कहना था कि 1963 में बुनकर कालोनी की बुनियाद रखी गयी। 8 एकड़ में फैले इस कालोनी में बुनकरों के रिहाईश के अलावा 100 करघे लगाने के लिए जमीन भी दिया गया था। बुनकरों के बाबा-दादाओं के पास बकायदे इस संबधित कागजात भी मौजूद है। बावजूद इसके हथकरघा विभाग के अफसरों ने मोटी कमाई के चक्कर में कोठीवाल को इस जमीन पर कब्जा करा दिया। बुनकर फरियाद करते और दौड़ते ही रह गए, कभी इस अफसर के दरवाजे तो कभी उस अफसर के लेकिन सिवाय आष्वासन कुछ नहीं मिला। शुक्रवार को भी दर्जनों की संख्या में बुनकर अपने सांसद अपने शिकायत नामा के साथ अपने सांसद से मिलने पहुंचे लेकिन मिल नहीं पाये। निराश बुनकर बैरिकेड पर घंटो जमे रहे और अंतत निराश-हताश वापस लौट गये। मौके पर मौजूद बुनकरों ने बताया कि मउ की बुनकर कालोनी भी हथकरघा विभाग और पैसेवालों की मिलीभगत के चलते उजाड़ दी गयी है। बनारस में बुनकर कालोनी भी उस राह पर है।
प्रधानमंत्री के आने-जाने के बीच सैकड़ो फरियादी बस मूकदर्शक बन कर रह गए। चुनी हुई जनता और आम जनता के बीच का फर्क भी समझ में आ गया। साथ ही दशकों से शोषण और हालात के शिकार बदहाल बुनकरों के हालात पर अब्दुल बिस्मिल्लाह के उपन्यास की झीनी-झीनी बीनी चदरियां का सच किताब के पन्ने से निकलकर सामने नजर आया कि शोषण के पाट के एक छोर पर गिरस्ता, कोठीवाल और सरकारी अफसर है, तो दूसरी छोर पर भ्रष्ट राजनीतिक हथकण्डे बीच में कोई है तो वो है बुनकर…… ऐसे में किस जमीन पर फलेंगे-फूलेंगे प्रधानमंत्री की सुरमयी स्वप्वनील योजनाए।
बनारस से भाष्कर गुहा नियोगी की रिपोर्ट.