शीतल पी सिंह-
सार्वजनिक क्षेत्र… संदर्भ: कोयला – अनिल स्वरूप IAS (Retd), पूर्व कोयला सचिव के बीते कुछ दिनों के विभिन्न ट्वीट्स से….
कोल इंडिया लिमिटेड या भारतीय सार्वजनिक क्षेत्र की कोई इकाई आदर्श नहीं है लेकिन सभी प्रायवेट कंपनियों की सफलता क़ायम रहने की भी कोई गारंटी नहीं ले सकता । उनमें से अधिकांश बीमार हो जाती हैं और बैंकों का पैसा (जो सार्वजनिक बचत है) डुबा देती हैं।
फिर भी कुछ तथ्य : CIL यानि कोल इंडिया लिमिटेड दुनियाँ में सबसे सस्ती दर पर कोयला उत्पादन करने वाली कंपनी है जिसकी वजह से देश में बिजली उत्पादन की दर भी सस्ती है।
CIL के पास 2015 में 40,000 करोड़ रुपए रिज़र्व में मौजूद थे जो अब कुल 10,000 करोड़ रुपए बचे हैं।
CIL का शेयर 2016 में 400रुपये प्रत्येक पर विनिमय कर रहा था जो अब 200रुपये से भी नीचे है।
CIL में पिछले एक साल से उसकी सबसे बड़ी पोस्ट CMD की जगह ख़ाली पड़ी है।
CIL के रिज़र्व को सरकार द्वारा जबरन फर्टीलाइजर क्षेत्र की बीमारी दूर करने में लगा दिया गया।
CIL के मैनेजरों की ड्यूटी सरकारी स्कूलों के शौचालयों की गुणवत्ता निरीक्षण में लगाई गई।
2014-16 के बीच CIL ने कोयले के उत्पादन में रिकॉर्ड बनाया था । इसके बाद विभिन्न संबंधित राज्यों और केंद्र के बीच CIL से संबंधित झगड़े शुरू हुए और उनमें से अधिकांश ज्यों का त्यों हैं क्योंकि CIL लंबे समय से CMD विहीन है।
इसी दौरान प्रायवेट इकाई “अडानी ग्रुप” का कोयले के देश में उत्पादन के क्षेत्र में बड़े पैमाने पर दखल हुआ और संभावित लाभ की तीन में से दो सबसे बड़ी खदानें उनके हिस्से में चली गईं।
आप चाहें तो इन तथ्यों को ख़ारिज कर / झूठ गढ़कर/ बात बदलकर या यह सिद्धांत दोहराकर कि उद्योग चलाना सरकार का काम नहीं है……..पतली गली से निकल सकते हैं!