डाक्टर पथिक-
मैं ‘द लल्लनटॉप’ के शुरुआती पाठकों में से एक हूँ। मैं लल्लनटॉप की निष्पक्ष पत्रकारिता का कायल हो गया था और अपने पचासों दोस्तों को लल्लनटॉप पढ़ने की सलाह दे चुका हूँ।
शुरुआत में सब ठीक चला पर कुछ समय बाद लल्लनटॉप की पत्रकारिता का पतन होने लगा।
समाजवाद के सपने दिखाकर लल्लनटॉप दक्षिणपंथी पिच पर खेलने लगा।
ये वामपंथ दक्षिणपंथ भी चलता है,धंधा कोई भी हो आर्थिक हितों के विषय मे तो सचेत होना ही पढ़ता है।
लल्लनटॉप का वास्तविक पतन हुआ है कंटेंट के क्षेत्र में।
लल्लनटॉप ने एक नारीवादी कॉलम “ऑड नारी” शुरू किया।
शुरुआत में तो लल्लनटॉप ने नारीवाद परोसा बाद में लल्लनटॉप नारीवाद की आड़ में समलैंगिकता परोसने लगा।
लल्लनटॉप के आर्टिकल पढ़कर लगता कि समलैंगिकता न्यू नॉर्मल है,जो समलैंगिक नही है वो जीवन मे बहुत कुछ मिस कर रहा है।
लल्लनटॉप का समाज पर समलैंगिकता थोपना भी बर्दाश्त किया जा सकता है पर आजकल वो मधुर कथाएं और सत्यकथा के स्तर की घटिया कहानियां परोसने लगा।
लल्लनटॉप की दो स्टोरी देखिए। एक का टाइटल था
“अवैध संबंधों के शक में पति ने पत्नी के गुप्तांग को नट बोल्ड से कसा”
दूसरी स्टोरी का टाइटल था- “पत्नी को शक था कि दूसरी औरतों से अवैध संबंध बनाता था पति”
यह सब देखकर मुझे बड़ा दुख हुआ। लल्लनटॉप जो पत्रकारिता के क्षेत्र में क्रांति लाने आया था वो आज इस किस्म की लुग्दी पत्रकारिता करने लगा।
लल्लनटॉप के पतन की कहानी से मुझे एक नया सबक मिला कि-
“बुर्जुआ वर्ग द्वारा प्रारम्भ की गई क्रांति,नारी के जिस्म पर आकर खत्म होती है।”
