लखनऊ : इन दिनों लखनऊ विश्वविद्यालय में वेमुला जैसे प्रकरण की भूमिका पूर्ण तैयार नजर आ रही है। आइसा के प्रदेश अध्यक्ष सुधांशु बाजपेई के सोसल मीडिया पर वायरल हुए एक संदेश से मामला बेहद गंभीर नजर आ रहा है। मामले के बारे में हमने पड़ताल करने के लिए आइसा के प्रदेश अध्यक्ष से सीधे संपर्क किया तो उनका जवाब था “मेरा एक साल बर्बाद हो गया मै पी॰ एच॰ डी॰ करना चाहता था, लेकिन सारे सपने धरे रह गए अब समझ में आया वेमुला कैसे बनते हैं।”
जो मामला लखनऊ विश्वविद्यालय में उठा है वह वेमुला प्रकरण से बहुत हद तक मेल खाता है। इस मामले में भी पाँच छात्र निष्कासित हैं जिनमे दो दलित छात्र हैं एक ओबीसी और दो सवर्ण हैं। वेमुला के प्रकरण में मामला अगर केंद्रीय मंत्री को भेजा गया था तो यहा यह प्रकरण राज्यपाल तक पहुच चुका है। अगर निष्काषित छात्रों का पक्ष सुना जाये तो यहाँ पर भी छात्र संगठन एबीवीपी ही इसका मुख्य कारण है। समाज कई वर्गों में बटता नजर आ रहा है इनमे से एक वर्ग के अनुसार विश्वविद्यालय तो विमर्श का केंद्र होने चाहिए लेकिन उनके अनुसार विश्वविद्यालयों का भगवाकरण हो चुका है। असल मामला कुछ भी हो लेकिन अगर छात्र आत्महत्या को विवश हो तो इसे किसी मायने में कोई वर्ग ठीक नहीं कह सकता।
आपको बताते चलें कि लखनऊ विश्वविद्यालय में लगभग एक साल पहले चार छात्रों को निलंबित और एक को निष्कासित किया गया था। निलंबित और निष्कासित छात्रों के अनुसार उन्होने निलंबन समाप्त करने हेतु अपनी अर्जी राज्यपाल को दी लेकिन उनका निलंबन वापस न करके उन्हे कई पन्नों का जवाब थमा दिया गया। यह मामला गंभीर तब हो उठा जब आँखों में सपने लिए संघर्ष करते छात्रों की हिम्मत टूटने लगी। आँख इस कदर पथराई कि विश्वविद्यालय को खुला पत्र भेज कर आत्महत्या हेतु विवश न करने की प्रार्थना तक कर डाली गयी। चार अन्य निलंबित छात्रों में रवीद्र कुमार, संदीप सेन, अश्विनी यादव और संटू का नाम सामने आया है।
छात्रों के निलंबन का उद्देश्य कुछ भी हो लेकिन क्या वाकई छात्र आत्महत्या तक विवश किया जा रहा है यह सवाल गंभीर मुद्दा बन कर खड़ा हो गया है। बात वेमुला की हो या शुधांशु फर्क महज नाम का है। अगर देखा जाये तो वेमुला की मौत पर तमाम तरह की हाय तौबा और तमाशा तो हो रहा है लेकिन उससे अब तक क्या सीखा क्या गया बात यहा फिर अटक जाती है। सवाल यह भी है इस हादसे के बाद भी स्थितियाँ अब तक जस की तस क्यों हैं। निलंबित और निष्कासित छात्र आज भी अपने बिखरते सपनों को पथराई आंखो से बटोरने की जुगत में हैं। फिलहाल जिन आंखो में ऊंची उड़ान के सपने थे वह आंसुओं के सैलाब को लिए घूमती नजर आ रही हैं। दांव पर लगे इन भारत भविष्यों का सफर आखिर और कितना लंबा होगा देखने वाली बात होगी।
लखनऊ से रामजी मिश्र ‘मित्र’ की रिपोर्ट.