हरदोई : उत्तर प्रदेश पुलिस ने फिर ‘कथित पत्रकार’ बताकर की कार्यवाही… पेड़ बचाने गए कुछ लोगों को हाथ में माइक लेकर वीडियो बनाना इतना महंगा पड़ा पुलिस ने उन पर कई धाराएं ठोंक दी. मामला यहीं तक न रुका. अब बात थी कथित पत्रकार होने की और यह दोष मढ़कर पेड़ बचाने गए लोग और भी दोषी साबित कर दिए गए. बात बढ़ी तो जनहित का ठेका लिए मीडिया के कुछ अखबार भी अपना रूप दिखाने आ गए.
हरदोई जिले के कासिमपुर थाने में एक मामला दर्ज होता है. मामले के अनुसार एक लकड़ी कटान करने वाला ठेकेदार हनीफ थाने में कुछ लोगों के खिलाफ पेड़ कटान को लेकर अवैध वसूली का मामला दर्ज कराता है. यह मामला हनीफ ने दर्ज कराया ऐसा पुलिस कहती है. जिन लोगों के खिलाफ मामला दर्ज हुआ उनमें शामिल हैं विवेक शुक्ल, रंजीत कुमार, आदित्य पटेल और अशोक कुमार. मामले के अनुसार यह कथित पत्रकार हैं जिसकी उन्हे जेल भेजकर सजा दी गई है. जेल भेजने की बात कासिमपुर थाने से सामने आई है.
दिलचस्प बात यह है कि वीडियो बनाने वाले लोग खुद को पत्रकार नहीं बता रहे थे और कासिमपुर थानेदार भी इस सवाल पर सकपका गए. थानेदार के अनुसार वह खुद को पत्रकार कहते थे लेकिन किससे कहा, इस सवाल पर उन्होंने तहरीर पर कार्यवाही का हवाला देकर अपना बचाव कर लिया.
अब यहाँ पर सवाल यह नहीं है कि वह पत्रकार हैं या नहीं हैं बल्कि सवाल यह है कि, क्या यह नागरिक स्वतंत्रता के अधिकारों का हनन का एक और मामला बनता है. यह तब और अहम हो जाता है जब हालही में उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा एक प्रकरण पर न्यायालय द्वारा नागरिक स्वतंत्रता पर पुलिस को सही गलत का आईना दिखाया था. बड़ा सवाल यह भी है कि क्या कुछ भी कहने सुनने का हक सिर्फ एक पत्रकार को है उनमें भी वह पत्रकार जो खुद को रजिस्टर्ड साबित कर सकें. बहस होना और सवाल उठना दोनों लाजमी हैं.
वैसे इन पत्रकारों ने जो वीडियो बनाई उसमें आम के पेड़ों का कटान होना दिखाया जा रहा है लेकिन हैरानी की बात यह है कि दैनिक जागरण अखबार ने अपनी खबर में यू के लिप्टस के पेड़ दिखाए हैं. पूरा वीडियो और फिर दैनिक जागरण की खबर और फिर पुलिस की अपनी कहानी यह सब पूरा वाकया एकदम स्पष्ट कर देते हैं. यहाँ पर यह भी बताते चलें कि यह कटान बाछुपुरवा में काटे जा रहे थे. वैसे हो सकता है कि गिरफ्तार लोगों ने वसूली की हो लेकिन सही काम में कोई ठेकेदार वसूली के पैसे क्यों दे देगा. और फिर बात यह भी है कि वसूली का गुनाह हुआ है इसका सबूत हो या ना हो लेकिन गिरफ्तार लोगों पर गढ़ी गई कहानी अपने आप में एक सबूत जरूर नजर आ रही है.
वैसे हाल ही में दैनिक जागरण ने पौधों की बारात नामक एक वृक्षारोपण का प्रोग्राम भी किया लेकिन अगर आम के हरे पेड़ काटे जाने पर यह ख़बर आती है तो फिर दैनिक जागरण की मंशा पर सवाल खड़े ही हो जाते हैं. पूरे मामले पर बात करने के लिए हमने कासिमपुर के थानेदार से बात की. घबराए थानेदार ने पूछने पर भी अपना नाम नहीं बताया. वैसे कुछ भी हो लेकिन एक तरफ माफिया लोग हैं और उनकी पुलिस, उनकी मीडिया है और दूसरी तरफ संघर्ष करते व जूझते नजर आ रहे हैं कथित पत्रकार के ओहदे से अपमानित संघर्ष करते आम लोग. माफिया का सीधा मुकाबला तमाम कथित पत्रकारों से है और ऐसे में आपकी सेवा में तत्पर है उत्तर प्रदेश पुलिस.
हरदोई से युवा पत्रकार रामजी मिश्र ‘मित्र’ की रिपोर्ट.