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पत्रिका, भास्कर, जागरण, अमर उजाला ने ‘ज़िंदा’ लोगों को ‘मुर्दा’ बता दिया!


राजीव शर्मा-

उर्दू शब्दकोश में दो शब्द ऐसे मिलते हैं, जिन्हें लिखने में हिंदी अख़बार/वेबसाइट आए दिन ग़लतियाँ करते रहते हैं। ये हैं- ‘महरूम’ और ‘मरहूम’। शब्दकोश में इन्हें क्रमशः ‘मह्रूम’ और ‘मर्हूम’ बताया गया है, लेकिन प्रचलन में ‘महरूम’ और ‘मरहूम’ ही हैं, इसलिए मैं भी इन्हें इसी तरह लिख रहा हूँ।

‘महरूम’ अरबी का शब्द है, जिसका अर्थ है- बदक़िस्मत, अभागा, असफल, निराश, जिसे संबंधित (वस्तु, सुविधा आदि) न मिला/ली हो। आसान शब्दों में कहें तो जो ‘वंचित’ रह गया, उसके लिए ‘महरूम’ शब्द लिखा जाता है।

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वहीं, ‘मरहूम’ भी अरबी का शब्द है, जिसका अर्थ है- मरा हुआ। अगर सम्मानपूर्वक कहें तो- स्वर्गीय, जन्नतनशीं या दिवंगत।

कई बार हिंदी अख़बार/वेबसाइट इन दोनों शब्दों का अंतर समझे बिना अर्थ का अनर्थ कर देते हैं। इस तरह वे अच्छे-ख़ासे ज़िंदा आदमी को मुर्दा घोषित कर देते हैं!

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पत्रिका, दैनिक भास्कर, दैनिक जागरण, बीबीसी हिंदी, जनसत्ता, न्यूज़18 और हिंदुस्तान की वेबसाइट ने भी ‘महरूम’ को ‘मरहूम’ बनाया है।

उदाहरणः

1. पत्रिका डॉट कॉम- पाली को छोटे-छोटी राहत देकर बड़ी सौगात से रखा मरहूम।

(जब पूरा ज़िला ही मरहूम हो गया तो राहत किसे मिल रही थी?)

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2. पत्रिका डॉट कॉम- पेयजल सहित अन्य कई मूलभूत सुविधाओं से मरहूम, सरकार नहीं दे रही ध्यान।

(पेयजल न मिलने से लोग मरहूम हो जाते थे। अब पेयजल मिलने से भी मरहूम होंगे। कौन लेगा यह सुविधा?)

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3. भास्कर डॉट कॉम- यहां नहीं आती हैं बहुएं, क्योंकि झाड़ू लगने से मरहूम है यह नगरी।

(ख़बर में बताया गया है कि कोटा नगर निगम का एक वार्ड सफ़ाई से वंचित है, लेकिन अख़बार ने पूरे शहर को ही ‘मरहूम’ बता दिया! कमाल कर दिया।)

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4. अमर उजाला डॉट कॉम- सभी योजनाओं से मरहूम है डेढ़ लाख की आबादी।

(अमर उजाला ने भी डेढ़ लाख लोगों को सीधे स्वर्ग भेज दिया!)

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5. हिंदी मॉम्सप्रेसो डॉट कॉम- शिक्षा से मरहूम रखकर बच्ची की शादी कर देना कितना दुर्भाग्यपूर्ण है।

(वेबसाइट ने एक सामाजिक समस्या की ओर ध्यान आकर्षित किया है, लेकिन बच्ची के लिए ‘महरूम’ शब्द आना चाहिए था।)

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6. बीबीसी हिंदी- जिस दिन सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला आया, व्हीलचेयर पर चलने वाले 53 साल के मौलवी रिज़वी ने ट्वीट किया, ‘आसिया की रिहाई इंसाफ से मरहूम करने जैसा है।’

(यहाँ ‘मरहूम’ शब्द ठीक नहीं बैठ रहा, ‘महरूम’ आना चाहिए था।)

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7. ‘मरहूम’ से संबंधित सबसे ज़्यादा ग़लतियाँ दैनिक जागरण डॉट कॉम पर मिलीं।

– पानी और सड़क से मरहूम कोहनू पंचायत

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(पूरी पंचायत ही मरहूम हो गई!)

– अब मां-बाप के प्यार से मरहूम नहीं रहेगा आर्यन

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(ईश्वर इस बच्चे को लंबी उम्र दे!)

– बिजली से मरहूम हुआ गांव

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(क्या सबको करंट लगाया गया?)

– जागरण विशेषः अब नहीं रहेंगे 14 गांव मीठे पानी से मरहूम

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(मीठा पानी पीते ही सब अमर हो जाएँगे!)

– चिकित्सक, कर्मी और आधुनिक सुविधाओं से मरहूम है जिले का सदर अस्पताल

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(तब तो अस्पताल में भूत-प्रेतों के लिए विशेष वार्ड खोला जाएगा!)

– सरकारी योजनाओं के लाभ से मरहूम चकनवाडीह

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(जब पहले ही मरहूम बना दिया तो योजनाओं का लाभ लेने कौन आएगा?)

8. जनसत्ता डॉट कॉम- मूलभूत सुविधाओं से भी मरहूम इस क्षेत्र के लोगों में मुख्य चुनाव आयुक्त के दौरे से उम्मीद जगी है।

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(मरहूम हो गए तो उम्मीद कैसे जगी?)

9. दिव्य हिमाचल डॉट कॉम- न ही कोई बड़ा उद्योग इस जिले में आ सका। इसके चलते युवा भी रोजगार से मरहूम हो गए हैं।

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(रोज़गार से ख़ुशहाल होते तो सुना था, मरहूम होने का नुस्ख़ा इस वेबसाइट ने खोज निकाला है!)

10. हिंदी न्यूज़ 18 डॉट कॉम- यहां शक के कीड़े से बिखरा परिवार, पिता के प्यार से बच्चा मरहूम।

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(ईश्वर इस बच्चे को भी लंबी उम्र दे!)

11. लाइव हिंदुस्तान डॉट कॉम- मुशर्रफ ड्रीम होम से भी हो सकते हैं मरहूम।

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(जब मैं ये पंक्तियाँ लिख रहा था तो मुशर्रफ़ ज़िंदा थे। ‘हिंदुस्तान’ ने बहुत पहले ही भेज दिया!)

बात काम की

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अब सवाल है- ख़बर लिखते समय ‘महरूम’ और ‘मरहूम’ में फ़र्क़ कैसे करें?

जवाब- बहुत ही आसान है। ‘मरहूम’ में पहले दो अक्षरों से बनता है- ‘मर’। इसलिए जो मर गया, वह ‘मरहूम’ हो गया।

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अब बच गया ‘महरूम’, उसे आप एक रोचक तरीक़े से याद रख सकते हैं।

‘महरूम’ के दो भाग कीजिए –  

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माइ+रूम यानी मेरा कमरा। (यह सिर्फ़ याद रखने के लिए बता रहा हूँ। इस शब्द की उत्पत्ति इन शब्दों से नहीं हुई है।)

आप यह याद रखिए कि दुनिया में ऐसे कई लोग हैं, जिनके पास ख़ुद का रूम नहीं है, वे उससे वंचित हैं। इस तरह आप ‘महरूम’ और ‘मरहूम’ की उलझन से बच जाएँगे।

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राजीव शर्मा

जयपुर

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[email protected]

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2 Comments

2 Comments

  1. lucky jain

    September 26, 2022 at 8:33 pm

    जब पत्रकारिता में बड़ी बड़ी अखबार कम्पनियां वरिष्ठ पत्रकारों को निकालकर 10-10 हजार के लोगों को नौकरी पर रखेंगे जिन्हें न तो भाषा का ज्ञान है और न ही शब्दों का पता है, तो ऐसे लोग खबरों में महरूम लोगों की कहानी के बजाए एक दिन मीडिया जगत और पत्रकारों को ही मरहूम बना देंगे।

  2. lucky jain

    September 26, 2022 at 8:35 pm

    जब पत्रकारिता में बड़ी बड़ी अखबार कम्पनियां वरिष्ठ पत्रकारों को निकालकर 10-10 हजार के लोगों को नौकरी पर रखेंगे जिन्हें न तो भाषा का ज्ञान है और न ही शब्दों का पता है, तो ऐसे लोग अपनी खबरों में महरूम लोगों की कहानी के बजाए एक दिन मीडिया जगत और पत्रकारों को ही मरहूम बना देंगे।

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