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सियासत

मणिपुर के दाग धोने के लिए भाजपा क्या-क्या करेगी?

संजय कुमार सिंह-

मणिपुर मामले से राजस्थान और छत्तीसगढ़ को जोड़ने के बाद बंगाल के एक हवा-हवाई मामले की चर्चा… इसे बेशर्मी कहें या राजनीति? असल में यह नासमझी है और कोई अज्ञानी खुद को सफल समझे तो ऐसी गलतफहमी होती रह सकती है।

मणिपुर के वायरल वीडियो का अपराध अपनी तरह का अनूठा और अद्वितीय मामला है। प्रधानमंत्री ने 78 दिनों बाद मणिपुर का नाम लिया और उसके साथ छत्तीसगढ़ व राजस्थान का नाम लेकर उन्होंने वही किया जो वे और उनकी पार्टी मणिपुर हिन्सा के मामले में अब तक करते रहे हैं। मेरा मानना है कि सरकार शुरू से हिंसा को कम करके आंकती रही है और हिंसा को होने दिया गया। वैसे ही जैसे गुजरात के मामले में था। चर्चा रही है कि प्रधानमंत्री (और उस समय के मुख्यमंत्री) ने कहा था कि हिन्दुओं को गुस्सा निकाल लेने दिया जाए। पूर्व आईपीएस संजीव भट्ट इसके गवाह हैं और भिन्न कारणों से, पर शायद इसीलिए जेल में हैं।

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खबरें ये भी हैं कि गुजरात में हिंसा रोकने के लिए पहुंचे सुरक्षा बलों को हवाई अड्डे पर इंतजार करवाया गया और बताया ही नहीं गया कि कहां जाना है और क्या जरूरत है। मोटे तौर पर स्थानीय स्तर पर यह व्यवस्था होनी चाहिए थी कि विमान से पहुंचे सुरक्षाकर्मियों को न्यूनतम समय पर दंगाग्रस्त जगहों पर पहुंचाया जाए और उनकी मदद से हिंसा रोकी जाए। गुजरात के बारे में कहा जाता है कि ऐसा नहीं हुआ और दंगाइयों को गुस्सा निकालने दिया गया। मणिपुर के मामले में पहले छप चुका है कि वहां के विधायक केंद्र की मदद मांगने के लिए (केंद्र को बिना मांगे मदद करनी चाहिए थी) प्रधानमंत्री से मिलने का इंतजार करते रहे पर प्रधानमंत्री उनसे कई दिनों तक नहीं मिले।

जाहिर है, केंद्र को जो करना चाहिये था वह नहीं किया गया। ऐसे में नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री (पद का उम्मीदवार) बनाने वाले संघ परिवार का काम था कि वह प्रधानमंत्री को जरूरी काम करने के लिए कहता या राजधर्म निभाने की जरूरत बताता। अगर उसे लग रहा है कि प्रधानमंत्री के काम में कमी या चूक है तो दूसरे उम्मीदवार को आगे लाना संघ परिवार और भाजपा संसदीय दल का काम है। हालांकि, इसकी जरूरत समझना भी उनका ही मामला है। कुल मिलाकर, नरेन्द्र मोदी ने जो गुजरात में किया वही मणिपुर में होने दिया। यह संघ परिवार के निर्देश पर है या यही लक्ष्य है, मैं नहीं जानता और अभी मुद्दा नहीं है। पर संसद की कार्यवाही शुरू होने से पहले उन्होंने मणिपुर पर जो बोला वह निश्चित रूप से एक प्रधानमंत्री के स्तर की बात नहीं थी। 

दिलचस्प यह है कि बात यहीं नहीं रुकी और भाजपा के लोगों ने यह प्रचारित किया या करने की कोशिश की कि बंगाल में भी मणिपुर जैसा मामला हुआ था और उस पर शोर नहीं मचा यानी मणिपुर का वीडियो सरकार अथवा भाजपा के खिलाफ साजिश है। मुझे लगता है कि यह बचाव बचकाना है। सरकार यह उम्मीद क्यों कर रही है कि उसके विरोधी उसके खिलाफ काम नहीं करेंगे। उसे बदनाम करने की कोशिश नहीं करेंगे। वैसे भी, सरकार और नरेन्द्र मोदी अपने विरोधियों के खिलाफ जो सब करते हैं वह उनके विरोधी क्यों नहीं करें? एंटायर पॉलिटिकल साइंस में राजनीति के नियम तो अलग नहीं ही होते होंगे। 

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हालांकि, भाजपा की यह चाल दुरुस्त होती, आरोप में दम होता तो अच्छी राजनीति मानी जा सकती थी। यहां यह उल्लेखनीय है कि एक तरफ अगर मणिपुर की हिंसा रोकी नहीं गई या नहीं रोकी जा सकी तो दूसरी ओर, यह भी तथ्य है कि बंगाल में पंचायत चुनाव के लिए केंद्रीय बलों की तैनाती पर बहुत जोर लगाया गया और क्यों लगाया गया होगा यह समझना मुश्किल नहीं है। मेरा मानना है कि पश्चिम बंगाल में चुनाव के लिए केंद्रीय बल लगाये जा सकते हैं तो मणिपुर में भी लगाये जाने चाहिए और सुरक्षा बलों की कमी थी तो बंगाल के चुनाव टाले जा सकते थे। पर सरकार ने जो किया वह उसका निर्णय था और उसका विवेक। उसके काम का आकलन होगा तो इसका भी उल्लेख होगा। 

अब जो हुआ वह दिलचस्प है। पहले प्रधानमंत्री ने मणिपुर की घटना को कम करके आंका, कई दिनों बाद बोले और जब बोले तो राजस्थान और छत्तीसगढ़ जोड़ दिया जो किसी तरह से जरूरी नहीं था और दोनों की स्थिति किसी भी तरह से मणिपुर के आस-पास नहीं मानी जा सकती है। इन सबकी आलोचना भी हुई और जब यह सब नहीं चला तो बंगाल में भी वैसे ही मामले की हवा हवाई चर्चा उड़ा दी गई। यह राजनीति में फूहड़पन का उदाहरण न हो तो भी मात खाने का साफ मामला है – आप जो मानिये। मैं नहीं कहता कि नरेन्द्र मोदी इतनी बुरी तरह हर बात पर मात खा रहे हैं, हार जा रहे हैं पर स्थिति ऐसी ही है।   

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अब बंगाल का मामला भी समझ लीजिये। एबीपी लाइव के मुताबिक, बंगाल पुलिस के डीजीपी एम मालवीय ने कहा, ”हावड़ा रूरल के एसपी को बीजेपी की तरफ से 13 जुलाई को ई-मेल के माध्यम से शिकायत मिली थी। इसमें दावा गया था कि आठ जुलाई यानी पंचायत चुनाव के दिन 11 बजे एक बूथ के अंदर से महिला को जबरदस्ती निकाला गया। इसके बाद महिला के साथ अश्लील व्यवहार किया गया,  उनके कपड़े फाड़े गए, इस दौरान उन्हें चोट भी लगी।” 

शिकायत को तुरंत थाना इंचार्ज के पास भेजा गया। अगले दिन यानी 14जुलाई को एफआईआर दर्ज की गई। पूरे मामले की जांच की गई। जांच में पता चला कि इस प्रकार की कोई भी घटना नहीं हुई थी या कहिये कि जांच में ऐसी किसी घटना का कोई सबूत नहीं मिला। चुनाव के कारण केंद्रीय बलों की तैनाती थी, हर जगह कम से कम मतदान केंद्रों पर लोगों की भीड़ और मोबाइल की उपलब्धता के बावजूद घटना का कोई वीडियो नहीं मिला। ना शिकायत के साथ दिया गया है। 

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संबंधित महिला से कहा गया कि उन्हें चोट लगने का सबूत दें, इलाज के बारे में बताए, सीआरपीसी की धारा 164 के तहत बयान दर्ज कराएं लेकिन अभी तक कोई जवाब नहीं है। यही नहीं, डीजीपी ने यह भी कहा कि भाजपा की फैक्ट फाइंडिंग टीम हावड़ा रूरल जिले में गई लेकिन उन्होंने भी इस तरह का कोई मामला पुलिस के समक्ष नहीं रखा। ऐसे में मामला अगर होगा तो क्या होगा, आप समझ सकते हैं लेकिन उसे भी मणिपुर मामले की बराबरी में पेश करने की कोशिश चल रही है।

एएनआई ने महिला की शिकायत दोहराई है और भाजपा अध्यक्ष सुकांत मजूमदार के हवाले से कहा है कि मणिपुर और बंगाल की घटनाओं में फर्क सिर्फ इतना है कि पश्चिम बंगाल में मणिपुर जैसी हुई दो घटनाओं का वीडियो उपलब्ध नहीं है। पीटीआई के मुताबिक, मजूमदार ने कहा, “मणिपुर में जो घटना हुई वो बहुत दुखद है, हम उसकी कड़ी निंदा करते हैं, ऐसी घटना कहीं भी नहीं होनी चाहिए, लेकिन बंगाल के दक्षिण पांचला में बीजेपी की महिला सदस्य को पंचायत चुनाव लड़ने के कारण निवस्त्र करके घुमाया गया। क्या ये मणिपुर से कम दुःखद घटना है?” इससे पहले प्रचारकों ने यह भी कहा है कि दूसरे पक्ष ने भी ऐसे वारदात किये हैं। कहने की जरूरत नहीं है कि एक गलती से दूसरी गलती सुधर नहीं जाती है पर सत्तारूढ़ दल है, कौन समझा पाएगा?

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