Vineet Kumar : उनकी सालों की मनुस्मृति पर फॉरवर्ड प्रेस का मात्र एक अंक भारी पड़ गया…. और आप कहते हैं- हिंदी में कुछ भी लिख दो, फर्क और असर तो सिर्फ अंग्रेजी से ही पड़ना है… नहीं तो जिसे लेखक, संपादक की हैसियत से छापा गया, उसे पाठक की हैसियत से लेने के बजाय गुंडई पर उतर आने की ज़रूरत क्यों पड़ जाती..
फारवर्ड प्रेस के जिस अंक को लेकर बवाल हुआ है, उसे पढ़ने के लिए उपर दिए गए मैग्जीन के आवरण चित्र पर क्लिक करें या फिर यहां क्लिक करें: Forward Press
Samar Anarya : महिषासुर के मिथक को लेकर अपनी अपनी राय हो सकती है पर उसके आधार पर किसी पत्रिका के दफ्तर में छापामारी और तोड़फोड़? सोचिये कि पेरियार आज होते तो सरकार उनके साथ क्या करती। फॉरवर्ड प्रेस पर हुआ पुलिसिया हमला आगे आने वाले दिनों की पूर्वसूचना है। हाशिम हुसैन, मार्केटिंग एक्सक्यूटिव धनंजय उपाध्याय, सकुर्लेशन एक्सक्यूटिव, राजन, ग्राफिक डिजायनर प्रकाश, ड्राइवर की गिरफ्तारी का विरोध करें। Pramod Ranjan की संभावित गिरफ्तारी का भी।
Ashok Das : प्रेस की आजादी को सिर्फ ब्राह्मणवादी मीडिया तक ही सीमित नहीं रखा जा सकता। यह बहुजन आंदोलन को बढ़ाने वाली पत्रिकाओं पर भी लागू होता है। “दलित दस्तक” समूह फारवर्ड प्रेस पर हुई कार्रवाई की निंदा करता है। हम अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के हक में खड़े हैं। फारवर्ड प्रेस कार्यालय में आज सुबह पुलिस ने छापा मारा तथा ‘बहुजन-श्रमण परंपरा विशेषांक’ (अक्टूबर, 2014) के अंक जब्त करके ले गयी। ऑफिस के ड्राइवर प्रकाश व मार्केटिंग एक्सक्यूटिव हाशिम हुसैन को भी अवैध रूप से उठा लिया गया है। सलाहकार संपादक प्रमोद रंजन को भी भूमिगत होना पडा है। प्रेस से जुड़़े किसी व्यक्ति को एफआइअार की कॉपी भी नहीं मिल पायी है।
Sanjeev Chandan : कल जे एन यू में काला दिन था . महिषासुर शहादत दिवस क़ॆ आयोजन में मुझे बोलना था , जब मैं वहां पहुंचा तो जे एन यू के मुख्य गेट पर पुलिस थी , वह जाने नहीं दे रही थी लोगों को , मैं भी रोक लिया गया . मैं Pramod Ranjan के साथ जे एन यू के पीछे के गेट से पहुंचा लेकिन तब तक ए बी पी के छात्र कार्यक्रम स्थल पर तोड फोड करने लगे थे . पुलिस के सामने शुरु से ही वे धमकियां दे रहे थे कि यहां ‘ खून’ होगा . जे एन यू एस यू और आइसा के छात्रों ने समझदारी से उनका परिरोध किया. वे वहां उपस्थित लोगों को काबेरी हास्टल में कार्यक्रम की जगह पर लेकर अन्दर से दरवाजा बन्द कर चुके थे . बाहार से ए बी पी के छात्रों ने कमरे के कांच तोड दिये और वहां दरवाजे भी तोड डाले गये . ए बी पी का यह शर्मनाक तरीका रहा अपनी बात कहने का , बाहर पुलिस उनका साथ दे रही थी . ए आई बी एस एफ के साथी Jitendra Yadav ने तमाम मुश्किलों और चुनौतिय़ों के बीच यह आयोजन कर डाला , शोर शारबे और हंगामे के बीच जितेन्द्र सहित तीन छात्र नेताओं ने अपनी बात कही . अफसोस मैं अन्दर नहीं जा सका .
Rahul Pandey : आज 9 अक्टूबर को महिषासुर जयंती के दिन दिल्ली पुलिस का Forward Press पर हमला और प्रेस के दो कर्मचारियों की गिरफ्तारी लोकतंत्र ही नहीं, देश की अस्मिता पर किया गया वह हमला है, जो निंदनीय तो है ही, पर इसपर चुप रहना और भी ज्यादा खराब है। दिल्ली की पुलिस ब्राह्म्णों के साथ मिलकर देश को जिस रसातल में ले जाने का सपना देख रही है, इंसाफ और अमनपसंद मेरे देश के लोग ऐसा नहीं होने देंगे, इसका मुझे यकीन है। दिल्ली पुलिस के आतंक के चलते फॉरवर्ड प्रेस के भाई Pramod Ranjan को जिस तरह से भूमिगत होना पड़ा है, वह साफ बताता है कि अब वाकई लोकतंत्र खतरे में है। मैं दिल्ली पुलिस के इस कुकर्म की पुरजोर निंदा करता हूं। यह हमला हमें बताता है कि राजा महिषासुर को लेकर हम एकदम सही राह पर हैं। ब्राह्म्णों के मिथकों का नाश हो। देवताओं का खात्मा हो। राजा महिषासुर की जय हो।
Rahul Pandey : जेएनयू में अभी अभी एबीवीपी वालों ने तोड़फोड़ करनी शुरू कर दी है। पगलाए हिंसक जानवरों ने यह तोड़फोड़ छात्रसंघ चुनावों का बदला उतारने और अपने ब्राह्म्णवाद को सर्वोपरि रखने के लिए की है। मौके पर मौजूद पियूष मौर्या बता रहे हैं कि कावेरी हॉस्टल में महिषासुर शहादत दिवस पर एक कार्यक्रम रखा गया था। दुर्गापूजा के दिनों में जब एबीवीपी वालों ने मूर्ति स्थापना की तो किसी ने विरोध नहीं किया, पर जब दलित वर्ग ने अपने राजा महिषासुर की जयंती मनानी चाही, तो एबीवीपी वालों ने स्थानीय गुंडों के साथ मिलकर तोड़फोड़ करनी शुरू कर दी है।
Krishna Kant : फारवर्ड प्रेस पर छापे के विरोध में पोस्ट लिखने पर कई मित्रों की आपत्ति थी कि आपको हल्ला मचाने से पहले पत्रिका पढ़नी चाहिए, न कि प्रशासन पर सवाल उठाने चाहिए. पत्रिका का यह अंक मैंने पढ़ लिया है. पत्रिका की पहली स्टोरी है—’जब असुर थे देवता और देव थे राक्षस’. यह स्टोरी वेदों, अवेस्ता और अन्य समकालीन ग्रंथों के सहारे इतिहास के सवर्ण अथवा दबंग पाठ को खारिज करती है और यह बताती है कि कैसे ‘अहुर यानी असुर कालांतर में सुर यानी देवता हुआ.’ जो असुर थे वे सुर हो गए. हमारे संस्कृत विषय में भी वेद के कुछ सूक्त पढ़ाये जाते हैं. और अवेस्ता का हवाला देकर अध्यापक यह बताते हैं कि उस दौरान असुर अधिपति के अर्थ में प्रयुक्त होता था. मुझे भी बताया गया. अगर दलित विमर्शकार इसकी व्याख्या अपने तरीके से करें तो इसमें कौन सा आसमान टूट पड़ा? पत्रिका में प्रेमकुमार मणि जी का बहुजन श्रमण परंपरा पर एक लेख है. समाज में मौजूद अनेक परंपराओं में से किसी एक पर चर्चा करना कबसे गैरकानूनी हो गया? इस कार्रवाई का मूल वेंडी डोनिगर की किताब पर प्रतिबंध में निहित है. अगर संघ प्रमुख भारतीय उपमहाद्वीप में रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति को हिंदू कहने का अधिकार रखते हैं, तो कोई समुदाय अपनी धर्म—संस्कृति और अपनी परंपरा के नये पाठ क्यों नहीं लिख सकता? वे सवर्ण परंपराओं को मानने से इनकार कर रहे हैं तो कौन सा राष्ट्र पर संकट आ गया, कि प्रेस और पत्रिका पर जब्ती की कार्रवाई करने की जरूरत पड़ गई? यदि प्रचलित मान्यताओं से हटकर कोई कुछ करना चाहे तो क्या उसपर ऐसी कार्रवाई होना उचित है? क्या सवर्ण मान्यताओं को खारिज करने वाली पत्रिका को जब्त किया जाना लोकतांत्रिक कदम है? फारवर्ड प्रेस के दफ्तर में छापा और पत्रिका जब्त किए जाने की मैं घोर निंदा करता हूं और आप सबसे ऐसा करने की उम्मीद करता हूं. यह अभिव्यक्ति की आजादी का गला घोंटने की कार्रवाई है.
Ashish Awasthi : दलित आवाज को उठाने वाली पत्रिका “फॉरवर्ड प्रेस” का दफ्तर आज सील किया गया..प्रतियां उठा ली गई. हर वैकल्पिक आवाज़ को दबा दिया जायेगा , कुचल दिया जायेगा। तर्कों और ऐतिहासिक प्रक्रियाओं से दरकिनार कर फैसला किया जायेगा तानाशाह के तरह।
“जो धर्म की ध्वजा नहीं उठाएंगे ,
मारे जायेंगे !!!!
लोकतंत्र की आढ़ लेके जम्हूरी निज़ाम का गला घोंटा जायेगा।
एक दम उस शख्श के मानिंद जिसने अपने अंतिम दौर में ख़ुदकुशी की थी.
पर हम लड़ेंगे
क्योंकि लड़ने की ज़रूरते है बाकी।
उन गुलाम इक्षाओं के लिए
उस सुबह के लिए
जिसका लाल ” मार्तण्ड ” हर बराबरी और गरिमामयी जिंदिगी की गारेंटी का पुरनोट होगा
इतनी जल्दी हम नहीं हारने वाले क्योंकि
हम घांस है
तुम्हारे हर किये पे उग आएंगे
जलकुंभी की तरह
We express our complete solidarity with Forward Press and all the members. I have always taken pride in association with Forward Press. It is rendering a great service to Dalit Bahujan people all over the country. It has stood with human rights of the people of all kind. It has also supported all ideas of freedom of ideas and expression. We may not agree with every article and every view point but we must stand in solidarity with people’s right to question mythologies and history.
Kanwal Bharti : प्रमोद रंजन के समर्थन में….
अब यह नहीं चलेगा
तुमने किस साजिश से हमें पढ़ने नहीं दिया, अब समझ में आ रहा है.
तुमने क्या-क्या नहीं किया हमें बर्बाद करने के लिए
सिर्फ इसलिए कि हम तुम्हारे सांस्कृतिक गुलाम बने रहें–
तुमने निर्गुण राम को, जो हमें कबीर ने दिया था,
राक्षसों और असुरों के बधिक राजा राम का रूप दे दिया
एक आदिवासी को बनाकर गुलाम बैठा दिया उनके चरणों में
और हमने कुछ नहीं कहा, खामोश ही रहे,
तुम्ही ने लिखा, तुम्ही ने थोपा,
हमने अनुकरण किया, हम अशिक्षित कैसे समझ सकते थे तुम्हारा जाल?
जिन्दा भी कहाँ रहने दिया था तुमने उसे
जिसने भी चाहा था तुम्हारी बराबरी करना.
शस्त्र-विद्या में पारंगत एकलव्य का अंगूठा इसीलिए न काटा था तुमने
कि वो अर्जुन से आगे जा रहा था,
और तुमने अपना काला इतिहास लिख दिया
कि एकलव्य ने खुद अपना अंगूठा दान किया था गुरु को,
जो वह था ही नहीं.
तुम्ही ने लिखा, तुम्ही ने थोपा
हमने अनुकरण किया, हम अशिक्षित कैसे समझ सकते थे तुम्हारा जाल?
क्यों मरवाया था तुमने राम से शम्बूक को?
इसीलिए न कि वो तुम्हारी वर्णव्यवस्था को उलट रहा था?
तुमने कितना बड़ा झूठ गढ़ा था कि वो राम के हाथों मृत्यु का याचक बन
सदेह स्वर्ग जाने की कामना से उल्टा तप कर रहा था.
तुम्ही ने लिखा, तुम्ही ने थोपा
हमने माना, हम अशिक्षित कैसे समझ सकते थे तुम्हारा जाल?
कितनी क्रूर हिंसा की थी तुमने हिरण्यकश्यप के साथ
तुमने क्यों फड़वाया था भूखे शेर से उसका जिस्म?
इसीलिए न कि वो विष्णु-विरोधी, देव-विरोधी था,
मानता था स्वधर्म को.
तुमने लिखा कि वह नरसिंह अवतार था जिसने मारा उसे.
कितना बड़ा खतरा रहा होगा वो तुम्हारे ब्राह्मण-धर्म के लिए
कि अवतार लेना पड़ा था उसे मारने के लिए भगवान को.
तुम्ही ने लिखा, तुम्ही ने थोपा
हमने माना, हम अशिक्षित कैसे समझ सकते थे तुम्हारा जाल?
कितना छल किया था तुमने ब्राह्मण-विरोधी देव-विरोधी महिषासुर के साथ
जब दमन नहीं कर सके उसका तो एक रूपसी को भेजा तुमने उसे मारने के लिए
जिसने उसे आठ दिन तक अपने रूप-जाल में फांसा,
और नौवें दिन उसकी हत्या कर दी.
हमारे सांस्कृतिक पुरौधा की हत्यारी दुर्गा को तुमने महाशक्ति बना दिया
अब मनाते हो हर वर्ष उसकी स्मृति में पूजा का देश व्यापी उत्सव
हमारे जख्मों पर नमक छिड़कने के लिए.
तुम्ही ने लिखा, तुम्ही ने थोपा
हमने माना, हम अशिक्षित कैसे समझ सकते थे तुम्हारा जाल?
अब तक जो भी तुमने चाहा, वही हुआ,
पर भारत में अंग्रेजों के आगमन और लोकतंत्र को आने से तुम नहीं रोक सके,
हम शिक्षित हो गये,
जोतिबा फुले और डा. आंबेडकर जैसे विद्वान का नेतृत्व हमें मिल गया.
हम अब जाग गये हैं, समझ गये हैं तुम्हारा जाल.
कि कैसे तुमने मारा हमारे नायकों को
कैसे हमें बनाया गुलाम?
अब तुम कहते हो कि हम मिथकों की राजनीति कर रहे हैं,
जातिवाद और साम्प्रदायिकता फैला रहे हैं,
और इस आरोप में तुम गिरफ्तार करा रहे हो हमारे लेखकों को,
जब्त करा रहे हो हमारी पत्रिकाओं को.
हम समझ गये हैं कि तुम लोकतंत्र में भी मौजूद हो
हमें फांसी देने के लिए.
नासमझी में हमारे लोगों ने बड़ी गलती की तुम्हें देश का नेतृत्व सौंप कर,
तुम इस योग्य बिल्कुल नहीं हो.
पूरा देश जानता है कि
तुमने मिथक की राजनीति करके पूरे देश में आग लगा दी है
कोई प्रमाण नहीं मिला अयोध्या में राम के होने का
फिर भी तुमने ध्वस्त कर दी बाबरी मस्जिद,
सड़कों पर लोगों का खून बहा दिया एक मिथक के लिए,
तुम मिथक के लिए राजनीति करो तो लोकतंत्र
हम करें तो जातिवाद
अब यह नहीं चलेगा, बिल्कुल नहीं चलेगा.
–कँवल भारती
(9-10-2014)
फेसबुक से.
Vipin
October 11, 2014 at 5:10 am
बहुत ‘अच्छा’ कर रहे हैं माननीय श्री यशवंत सिंह जी! ऐसे गंदे लोगों का पक्ष अपने पोर्टल पर प्रकाशित कर आप क्या दर्शन चाह रहे हैं? अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का क्या मतलब होता है, कि कोई कुछ भी अनाप-शनाप बोले और लिखे? ये लोग ख़म ठोंककर इतना गन्दा लिख रहे हैं तथा अब उस पर गंदे तर्क भी प्रस्तुत कर रहे हैं, और इनकी बातों को प्रस्तुत कर निष्पक्षता दर्शाना चाह रहे हैं? श्री यशवंत सिंह जी, अब तो शायद आप ओसामा-बिन-लादेन, दाऊद इब्राहीम को भी अच्छा बताइयेगा, क्योंकि इस दुनिया में और अपने देश में ही बहुत लोग इनको अच्छा कहते हैं और इनके समर्थन में तमाम तर्क भी प्रस्तुत कर देंगे। और अपने पोर्टल से पाकिस्तान का समर्थन भी कीजिये, क्योंकि अपने देश में ही पाकिस्तान के पक्ष में बोलने वाले लोग हैं। और फिर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की भी तो बात है! ये लोग तो महा भ्रष्ट हैं ही, लेकिन आप भी इनकी तरह हो चुके हैं? आपसे ऐसी उम्मीद नहीं थी। देवी माँ आपका भला करें।
iashtiyaq
October 11, 2014 at 10:36 am
bhartme asli faciwadi brahmanwad hi hai . jo farwad press ke logo ko rarest kiya . abhiwykti ki swtantrta jinda wad
.
Prashant Poonia
November 7, 2016 at 11:07 pm
Magazines published in 21st century has no chance to compete the manuscripts, the vedas, the epics that was published thousands of years ago. Even the aryan invasion theory is a myth as per the latest archaeological survey of india’s research. So please stop dividing the only peacful religion on earth by for shallow arguments, you worship whom you want but don’t criticise my god.
Yash raj
June 8, 2020 at 7:01 pm
Wah chutiyon Kya kahe
Nahin Matlab kuch bhi bak do bahenchod chutiya banane ke liye
Kyun Sanatan sanskriti ke peeche pade ho Kya liya h ishne tumhara
Are Devi devtaon Tak ko tum haramiyon ne nahin choda
Aakhir Kya chahte ho chutiyon
Kya sare time bas ye wo brahmabwad warnwyawashtha ke peeche pade rahte ho
Kya dikkat h tumhain Devi devtaon se kyun peeche pade ho
Agar itna hi raakshason see prem h to unki Pooja karo
Kyun insan apni hi sangat ke saath rah sakta h
Or tumhari sangat Kya h ye to pata chal hi raha h
Bahot sikshit ho Gaye ho tum
Gajab wah
Jai shree ram
Ram ram just